Chhath Puja 2025: भारत में मनाए जाने वाले हर त्यौहार हमारी संस्कृति और परंपराओं की झलक पेश करते हैं। इन्हीं में से एक है छठ पूजा, जिसे सूर्य षष्ठी या दला पूजा के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व सूर्य देव और उनकी पत्नी उषा (जिन्हें छठी मैया कहा जाता है) को समर्पित है। इस दिन लोग सूर्य देव को पृथ्वी पर जीवन, ऊर्जा और आशीर्वाद देने के लिए धन्यवाद अर्पित करते हैं।
यह महापर्व खास तौर पर बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है, वहीं नेपाल के कई क्षेत्रों में भी इसकी गहरी आस्था देखने को मिलती है। मुख्य छठ पूजा (Chhath Puja) के अलावा चैत्र मास में चैती छठ भी मनाया जाता है, जो नई फसल की शुरुआत का प्रतीक है। यह पर्व भी उतनी ही श्रद्धा और भक्ति के साथ सूर्य देव की आराधना के लिए समर्पित होता है।
सनातन धर्म में छठ पूजा (Importance Of Chhath Puja) का विशेष स्थान है। यह पावन पर्व हर वर्ष कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से शुरू होकर सप्तमी तक मनाया जाता है। इन चार दिनों में श्रद्धालु सूर्य देव और छठी मैया की आराधना करते हैं। इसकी शुरुआत नहाय-खाय से होती है, जबकि समापन सप्तमी तिथि को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने के साथ होता है। आइए अब जानते हैं इस साल छठ पूजा की तिथि और शुभ मुहूर्त (Chhath Puja Date and Time)।
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस वर्ष कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि 27 अक्टूबर की सुबह 06:04 बजे शुरू होगी और 28 अक्टूबर को सुबह 07:59 बजे समाप्त होगी। इसी दौरान छठ पूजा का मुख्य अनुष्ठान संपन्न होगा। 27 अक्टूबर को संध्याकाल में अस्त होते सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया जाएगा, जबकि 28 अक्टूबर को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ यह महापर्व पूर्ण होगा।
दूसरे दिन खरना होता है। इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत रखते हैं और शाम को गुड़ की खीर बनाकर छठ मैया को भोग अर्पित करते हैं। उसके बाद यही प्रसाद परिवार और घर के लोग मिलकर ग्रहण करते हैं।
तीसरे दिन असली छठ पर्व मनाया जाता है, जब व्रती डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं।
अंतिम दिन यानी चौथे दिन सप्तमी तिथि को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ इस पावन पर्व का समापन होता है। यही चारों दिन मिलकर छठ पर्व को पूर्णता और आध्यात्मिक गहराई प्रदान करते हैं।
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छठ पूजा की शुरुआत नहाय-खाय से होती है। इस दिन व्रती स्नान-ध्यान कर सूर्य देव और कुल देवताओं की पूजा करते हैं। इसके बाद शुद्ध भोजन जैसे चावल, दाल और लौकी की सब्जी ग्रहण की जाती है। इस वर्ष नहाय-खाय 25 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इस दिन सूर्योदय का समय सुबह 6:41 बजे और सूर्यास्त का समय शाम 6:06 बजे है ।
नहाय-खाय के अगले दिन, पंचमी तिथि को खरना का व्रत रखा जाता है। इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत रखते हैं और शाम को स्नान कर छठी मैया (Chhathi Maiya) की पूजा करते हैं। पूजा के बाद चावल की खीर, फल-फूल और अन्य प्रसाद अर्पित किया जाता है। प्रसाद ग्रहण करने के बाद अगले दिन से 36 घंटे का कठोर निर्जला उपवास शुरू होता है। इस साल खरना 26 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इस दिन सूर्योदय का समय सुबह 6:41 बजे और सूर्यास्त का समय शाम 6:05 बजे है ।
इसी कारण जब खेतों में रवि और खरीफ की फसल कटकर घर आती है, तब लोग सूर्य देव के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और छठ मैया का आशीर्वाद पाने के लिए चैत्र और कार्तिक माह में इस महापर्व को श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाते हैं।
बिहार सहित पूरे पूर्वी भारत में छठ पूजा का अत्यंत महत्व माना जाता है। मान्यता है कि छठी मैया बच्चों की रक्षा करती हैं और उन्हें लंबी उम्र का आशीर्वाद देती हैं। इसी कारण यह पर्व खासकर माताएँ अपने बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की कामना के लिए करती हैं।
वैदिक परंपरा में सूर्य देव को आरोग्य और ऊर्जा का स्रोत कहा गया है। माना जाता है कि उनकी उपासना से रोगों का निवारण होता है और जीवन में नई शक्ति मिलती है। यही कारण है कि छठ पूजा (Chhath puja 2025) को सूर्य देव को धन्यवाद देने का पवित्र अवसर माना जाता है, जिसमें भक्त उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं कि वे पृथ्वी पर जीवन और परिवार के संरक्षण का आधार बने हुए हैं।
श्रद्धा के साथ छठ व्रत करने से जीवन की कठिनाइयाँ दूर होती हैं और व्यक्ति को सुख, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
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लोककथाओं के अनुसार, राजा प्रियव्रत संतानहीन होने के कारण बहुत दुखी थे। उनकी इस पीड़ा को दूर करने के लिए महर्षि कश्यप ने यज्ञ करवाया। यज्ञ के प्रभाव से रानी मालिनी ने पुत्र को जन्म दिया, लेकिन दुर्भाग्य से वह शिशु मृत पैदा हुआ। इस गहन शोक के बीच राजा और रानी ने माता षष्ठी की आराधना शुरू की। मान्यता है कि माता षष्ठी प्रकट होकर आईं और रानी के हाथ में रखे मृत शिशु को जीवन प्रदान कर दिया। इस चमत्कार से राजा अत्यंत कृतज्ञ हुए और उन्होंने माता षष्ठी की स्तुति प्रारंभ की। इसी से छठ पूजा की परंपरा शुरू हुई, क्योंकि विश्वास किया गया कि छठी मैया बच्चों की रक्षा करती हैं और नि:संतान दंपतियों को संतान सुख का आशीर्वाद देती हैं।
कहा जाता है कि जब भगवान राम और माता सीता वनवास से अयोध्या लौटे तो लोगों ने दीपावली मनाई। दीपावली के छह दिन बाद रामराज्य की स्थापना हुई। उस पावन अवसर पर राम और सीता ने व्रत रखा। सीता जी ने छठ पूजा (Chhath Puja festival) करके सूर्य देव का आशीर्वाद प्राप्त किया, जिसके फलस्वरूप उन्हें लव और कुश जैसे पुत्र प्राप्त हुए।
छठ पूजा (Chhath Puja) केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आस्था, अनुशासन और कृतज्ञता का प्रतीक है। यह पर्व हमें सिखाता है कि प्रकृति और सूर्य देव के बिना जीवन की कल्पना भी संभव नहीं। कठोर नियमों और उपवास के माध्यम से व्रती न केवल अपनी संतान और परिवार की खुशहाली के लिए प्रार्थना करते हैं, बल्कि जीवन में धैर्य, श्रद्धा और आत्मसंयम का भी पालन करते हैं। छठ मैया और सूर्य देव की आराधना से साधक को मानसिक शांति, शारीरिक ऊर्जा और जीवन में सकारात्मकता प्राप्त होती है। यही कारण है कि यह पर्व लोक आस्था का सबसे बड़ा और पवित्र उत्सव माना जाता है, जो हर वर्ष लाखों लोगों के जीवन में नवऊर्जा और आशीर्वाद लेकर आता है।
Neha Jain is a festival writer with 7+ years’ experience explaining Indian rituals, traditions, and their cultural meaning, making complex customs accessible and engaging for today’s modern readers.