दुर्गा जी आरती

दुर्गा जी आरती

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श्री दुर्गा आरती हिन्दू धर्म में माँ दुर्गा की पूजा करने का एक महत्वपूर्ण तरीका है। यह आरती माँ दुर्गा की उपासना के लिए अत्यंत उपयोगी होती है।

श्री दुर्गा आरती का उच्चारण करने से माँ दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है और जीवन की समस्याओं, टकरावों और कष्टों से मुक्ति मिलती है। इसके अलावा, श्री दुर्गा आरती का उच्चारण करने से व्यक्ति की मानसिक शक्ति बढ़ती है और उन्हें शांति, समझौता और समझदारी की भावना प्राप्त होती है।

इस आरती के उच्चारण से माँ दुर्गा की कृपा से व्यक्ति के जीवन में सुख और समृद्धि का अनुभव होता है। यह आरती विभिन्न प्रकार की बुराइयों, दुश्मनों और कठिनाइयों से मुक्ति प्रदान करती है।

इसलिए, श्री दुर्गा आरती का महत्व बहुत अधिक होता है और लोगों को इस आरती का उच्चारण नियमित रूप से करना चाहिए।

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श्री दुर्गा आरती
ॐ जय अम्बे गौरी ,
मैया जय श्यामा गौरी ।
 
तुमको निशदिन ध्यावत
हरी ब्रह्मा शिवजी ॥
 
॥ ॐ जय अम्बे गौरी ॥
 
मांग सिन्दूर विराजत
टीको मृगमद को ।
 
उज्जवल से दोउ नैना
चन्द्रवदन नीको ॥
 
॥ ॐ जय अम्बे गौरी ॥
 
कनक समान कलेवर
रक्ताम्बर राजे ।
 
रक्तपुष्प गल माला
कण्ठन पर साजे ॥
 
॥ ॐ जय अम्बे गौरी ॥
 
 
केहरि वाहन राजत
खड्ग खप्पर धारी ।
 
सुर नर मुनि जन सेवत
तिनके दुःख हारी ॥
 
॥ ॐ जय अम्बे गौरी ॥
 
कानन कुण्डल शोभित
नासाग्रे मोती ।
 
कोटिक चन्द्र दिवाकर
सम राजत ज्योति ॥
 
॥ ॐ जय अम्बे गौरी ॥
 
शुम्भ निशुम्भ विदारे
महिषासुर घाती ।
 
धूम्र विलोचन नैना
निशदिन मदमाती ॥
 
॥ ॐ जय अम्बे गौरी ॥
 
चंड मुंड संहारे
शोणित बीज हरे ।
 
मधु कैटभ दोउ मारे
सुर भयहीन करे ॥
 
॥ ॐ जय अम्बे गौरी ॥
 
ब्रह्माणी रुद्राणी
तुम कमला रानी ।
 
आगम निगम बखानी
तुम शिव पटरानी ॥
 
॥ ॐ जय अम्बे गौरी ॥
 
चौसठ योगिनी गावत
नृत्य करत भैरों ।
 
बाजत ताल मृदंगा
अरु बाजत डमरू ॥
 
॥ ॐ जय अम्बे गौरी ॥
 
तुम ही जग की माता
तुम ही हो भरता ।
 
भक्तन की दुःख हरता
सुख सम्पति करता ॥
 
॥ ॐ जय अम्बे गौरी ॥
 
भुजा चार अति शोभित
वर मुद्रा धारी ।
 
मनवांछित फल पावत
सेवत नर नारी ॥
 
॥ ॐ जय अम्बे गौरी ॥
 
कंचन थाल विराजत
अगर कपूर बाती ।
 
श्रीमालकेतु में राजत
कोटि रतन ज्योति ॥
 
॥ ॐ जय अम्बे गौरी ॥
 
श्री अम्बे जी की आरती
जो कोई नर गावे ।
 
कहत शिवानंद स्वामी
मनवांछित पावे ॥
 
॥ इति श्री दुर्गा आरती ॥