Gopal Chalisa Lyrics : जन्माष्टमी पर गोपाल चालीसा का पाठ करने से पूरी होती है सभी मोनकामना
BY : STARZSPEAK
Gopal Chalisa: भगवान श्रीकृष्ण के बालरूप को हम सभी लड्डू गोपाल के नाम से जानते हैं। उनके इस मोहक स्वरूप की पूजा लगभग हर भक्त के घर में की जाती है। हिंदू संस्कृति में लड्डू गोपाल को केवल एक देवता नहीं, बल्कि परिवार का सदस्य माना जाता है, जिनकी सेवा और देखभाल पूरे प्रेम और श्रद्धा से की जाती है। (Gopal Chalisa)
हिंदू धर्म में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा का विशेष महत्व है, विशेषकर उनके बालस्वरूप लड्डू गोपाल की। ऐसा माना जाता है कि लड्डू गोपाल की भक्ति से घर में सुख-समृद्धि, संतान सुख और सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है। लड्डू गोपाल की सेवा एक नियमित दिनचर्या का हिस्सा होती है जिसमें उन्हें रोज स्नान कराना, सुंदर वस्त्र पहनाना, चंदन का तिलक लगाना और श्रृंगार करना शामिल है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, पूजा के समय गोपाल चालीसा का पाठ (Gopal Chalisa Lyrics) अत्यंत शुभ माना गया है। यह चालीसा भगवान श्रीकृष्ण की महिमा का सुंदर वर्णन करती है और इसे पढ़ने से भक्तों पर भगवान की विशेष कृपा बनी रहती है।
इसलिए जब भी आप लड्डू गोपाल की पूजा करें, गोपाल चालीसा का पाठ (Gopal Chalisa Lyrics) अवश्य करें और प्रभु की कृपा सदा अपने जीवन में बनाए रखें।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति नियमित रूप से भक्ति भाव के साथ लड्डू गोपाल की चालीसा का पाठ करता है, उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। इसी भावना के साथ हम आपके लिए लेकर आए हैं श्री गोपाल चालीसा के लिरिक्स (Gopal Chalisa Lyrics) , ताकि आप रोजाना इस दिव्य पाठ का आनंद और लाभ ले सकें।

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|| Gopal Chalisa Lyrics ||
|| श्री गोपाल चालीसा ||
|| दोहा ||
श्री राधापद कमल रज, सिर धरि यमुना कूल |
वरणो चालीसा सरस, सकल सुमंगल मूल ||
|| चौपाई ||
जय जय पूरण ब्रह्म बिहारी, दुष्ट दलन लीला अवतारी |
जो कोई तुम्हरी लीला गावै, बिन श्रम सकल पदारथ पावै ||
श्री वसुदेव देवकी माता, प्रकट भये संग हलधर भ्राता |
मथुरा सों प्रभु गोकुल आये, नन्द भवन मे बजत बधाये ||
जो विष देन पूतना आई, सो मुक्ति दै धाम पठाई |
तृणावर्त राक्षस संहारयौ, पग बढ़ाय सकटासुर मार्यौ ||
खेल खेल में माटी खाई, मुख मे सब जग दियो दिखाई |
गोपिन घर घर माखन खायो, जसुमति बाल केलि सुख पायो ||
ऊखल सों निज अंग बँधाई, यमलार्जुन जड़ योनि छुड़ाई |
बका असुर की चोंच विदारी, विकट अघासुर दियो सँहारी ||
ब्रह्मा बालक वत्स चुराये, मोहन को मोहन हित आये |
बाल वत्स सब बने मुरारी, ब्रह्मा विनय करी तब भारी ||
काली नाग नाथि भगवाना, दावानल को कीन्हों पाना |
सखन संग खेलत सुख पायो, श्रीदामा निज कन्ध चढ़ायो ||
चीर हरन करि सीख सिखाई, नख पर गिरवर लियो उठाई |
दरश यज्ञ पत्निन को दीन्हों, राधा प्रेम सुधा सुख लीन्हों ||
नन्दहिं वरुण लोक सों लाये, ग्वालन को निज लोक दिखाये |
शरद चन्द्र लखि वेणु बजाई, अति सुख दीन्हों रास रचाई ||
अजगर सों पितु चरण छुड़ायो, शंखचूड़ को मूड़ गिरायो |
हने अरिष्टा सुर अरु केशी, व्योमासुर मार्यो छल वेषी ||
व्याकुल ब्रज तजि मथुरा आये, मारि कंस यदुवंश बसाये |
मात पिता की बन्दि छुड़ाई, सान्दीपन गृह विघा पाई ||
पुनि पठयौ ब्रज ऊधौ ज्ञानी, पे्रम देखि सुधि सकल भुलानी |
कीन्हीं कुबरी सुन्दर नारी, हरि लाये रुक्मिणि सुकुमारी ||
भौमासुर हनि भक्त छुड़ाये, सुरन जीति सुरतरु महि लाये |
दन्तवक्र शिशुपाल संहारे, खग मृग नृग अरु बधिक उधारे ||
दीन सुदामा धनपति कीन्हों, पारथ रथ सारथि यश लीन्हों |
गीता ज्ञान सिखावन हारे, अर्जुन मोह मिटावन हारे ||
केला भक्त बिदुर घर पायो, युद्ध महाभारत रचवायो |
द्रुपद सुता को चीर बढ़ायो, गर्भ परीक्षित जरत बचायो ||
कच्छ मच्छ वाराह अहीशा, बावन कल्की बुद्धि मुनीशा |
ह्वै नृसिंह प्रह्लाद उबार्यो, राम रुप धरि रावण मार्यो ||
जय मधु कैटभ दैत्य हनैया, अम्बरीय प्रिय चक्र धरैया |
ब्याध अजामिल दीन्हें तारी, शबरी अरु गणिका सी नारी ||
गरुड़ासन गज फन्द निकन्दन, देहु दरश धु्रव नयनानन्दन |
देहु शुद्ध सन्तन कर सग्ड़ा, बाढ़ै प्रेम भक्ति रस रग्ड़ा ||
देहु दिव्य वृन्दावन बासा, छूटै मृग तृष्णा जग आशा |
तुम्हरो ध्यान धरत शिव नारद, शुक सनकादिक ब्रह्म विशारद ||
जय जय राधारमण कृपाला, हरण सकल संकट भ्रम जाला |
बिनसैं बिघन रोग दुःख भारी, जो सुमरैं जगपति गिरधारी ||
जो सत बार पढ़ै चालीसा, देहि सकल बाँछित फल शीशा ||
|| छन्द ||
गोपाल चालीसा पढ़ै नित, नेम सों चित्त लावई |
सो दिव्य तन धरि अन्त महँ, गोलोक धाम सिधावई ||
संसार सुख सम्पत्ति सकल, जो भक्तजन सन महँ चहैं |
ट्टजयरामदेव' सदैव सो, गुरुदेव दाया सों लहैं ||
|| दोहा ||
प्रणत पाल अशरण शरण, करुणा-सिन्धु ब्रजेश |
चालीसा के संग मोहि, अपनावहु प्राणेश ||
श्री लड्डू गोपाल की कथा और चालीसा के दिव्य लाभ
भगवान श्रीकृष्ण का बालस्वरूप—लड्डू गोपाल—हर भक्त के दिल के बेहद करीब होता है। इस रूप में उन्हें मासूमियत, आनंद और प्रेम का प्रतीक माना जाता है। एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, एक बार भगवान श्रीकृष्ण बालरूप में एक भक्त के घर पधारे। उनके एक हाथ में लड्डू था और दूसरे हाथ से वह लड्डू खाने जा रहे थे। तभी उस भक्त ने उन्हें देखा और उनके इस बालरूप की भव्यता में इतना लीन हो गया कि बस, उसी क्षण से श्रीकृष्ण के इस रूप को लड्डू गोपाल के नाम से पूजा जाने लगा। (Gopal Chalisa )
समय के साथ, लड्डू गोपाल केवल एक पूजनीय रूप नहीं रहे, बल्कि हर भक्त के घर में घर के छोटे सदस्य की तरह स्थान पाने लगे। उन्हें स्नान कराना, वस्त्र पहनाना, भोग लगाना और सोने के लिए पालने में झुलाना—यह सब एक सच्चे भक्त के लिए दिनचर्या का हिस्सा बन गया।
गोपाल चालीसा के पाठ के चमत्कारी लाभ (Miraculous benefits of reciting Gopal Chalisa)
लड्डू गोपाल चालीसा का पाठ (Gopal Chalisa Lyrics) एक ऐसा दिव्य माध्यम है जिससे न सिर्फ़ आत्मा को शांति मिलती है, बल्कि जीवन में सकारात्मक बदलाव भी महसूस होते हैं। चालीसा का नियमित पाठ करने से:
- घर में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है ।
- पारिवारिक कलह और मानसिक तनाव दूर होते हैं।
- भक्त की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
- बच्चों में अच्छे संस्कार और बुद्धिमत्ता का विकास होता है।
- जीवन में आध्यात्मिक ऊर्जा और ईश्वर के प्रति प्रेमभाव बढ़ता है।
- भगवान श्रीकृष्ण की कृपा पूरे परिवार पर बनी रहती है।
यह चालीसा (Gopal Chalisa) न केवल एक स्तुति है, बल्कि श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम प्रकट करने का एक माध्यम भी है। जब आप श्रद्धा से लड्डू गोपाल की चालीसा का पाठ करते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे स्वयं भगवान आपके जीवन में प्रेम और प्रकाश भर रहे हों।
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