October 28, 2025 Blog

Baikunth Chaturdashi 2025: बैकुंठ चतुर्दशी क्यों मनाते है? इस दिन महादेव ने विष्णु जी को क्या वरदान दिया था

BY : Neha Jain – Cultural & Festival Content Writer

Baikunth Chaturdashi 2025: दिवाली की चमक-दमक के समाप्त होने और देव दिवाली से ठीक पहले आने वाला बैकुंठ चतुर्दशी का दिन बेहद पवित्र और चमत्कारी माना जाता है। इस विशेष दिन को ‘हरिहर मिलन’ के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इसी दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव का दिव्य संगम होता है।

साल 2025 में बैकुंठ चतुर्दशी (Baikunth Chaturdashi 2025 Date) का पर्व 4 नवंबर, मंगलवार को मनाया जाएगा। यह तिथि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को पड़ती है। पुराणों के अनुसार, जो श्रद्धालु इस दिन पूरी निष्ठा और भक्ति से भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा-अर्चना करते हैं, उन्हें बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है और उनके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।


शिवजी द्वारा विष्णु जी की पूजा की कथा

बैकुंठ चतुर्दशी का महत्व (Importance Of Baikunth Chaturdashi) एक बेहद सुंदर और प्रेरणादायक कथा से जुड़ा हुआ है, जो भगवान शिव और भगवान विष्णु के बीच की गहरी भक्ति और एकता को दर्शाती है।


पौराणिक कथा का सार (The essence of the legend Of Baikunth Chaturdashi)

कहानी के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने अपनी चार महीने की योगनिद्रा पूर्ण की, तो सृष्टि के कार्यों को पुनः आरंभ करने से पहले उन्होंने देवों के देव महादेव की आराधना करने का निश्चय किया। इस संकल्प के साथ वे काशी नगरी पहुंचे और पवित्र मणिकर्णिका घाट पर स्नान किया। इसके बाद उन्होंने भगवान शिव की एक हजार कमल पुष्पों से पूजा करने का व्रत लिया। (Baikunth Chaturdashi 2025) 

यह कथा न केवल दोनों देवों के परस्पर सम्मान को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि भक्ति में अहंकार का कोई स्थान नहीं होता—ईश्वर भी दूसरे ईश्वर की पूजा कर उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।

जब भगवान विष्णु भगवान शिव की पूजा में लीन थे, तब उनकी भक्ति की परीक्षा लेने के लिए महादेव ने चुपचाप एक कमल का फूल गायब कर दिया। जब श्रीहरि ने पूजा पूरी करने के समय फूलों की गिनती की, तो उन्हें एक पुष्प कम मिला। उसी क्षण उन्हें याद आया कि लोग उन्हें ‘कमल नयन’ या ‘पुंडरीकाक्ष’ कहते हैं — अर्थात् जिनकी आंखें कमल के समान सुंदर हैं।

यह सोचते ही, बिना किसी झिझक या विलंब के, भगवान विष्णु ने अपने एक कमल समान नेत्र को भगवान शिव को अर्पित करने का निश्चय किया ताकि पूजा अधूरी न रहे। विष्णु जी की यह निस्वार्थ भक्ति और समर्पण देखकर भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हो उठे। वे तुरंत प्रकट हुए और बोले —
“हे विष्णु! तुमसे बढ़कर मेरा सच्चा भक्त इस सृष्टि में कोई नहीं है।”

यह प्रसंग दर्शाता है कि सच्ची भक्ति वह होती है जिसमें भाव और समर्पण सबसे ऊपर होते हैं।

baikunth chaturdashi

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महादेव ने विष्णु जी को क्या वरदान दिया (What boon did Mahadev give to Lord Vishnu?)

भगवान विष्णु की अद्भुत भक्ति से प्रसन्न होकर महादेव ने उन्हें वरदान दिया कि कार्तिक मास की यह चतुर्दशी अब से “बैकुंठ चतुर्दशी” (Baikunth Chaturdashi) कहलाएगी। उन्होंने कहा कि इस पवित्र दिन जो भी भक्त पहले भगवान विष्णु की आराधना करेगा, उसे जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिलेगी और वह सीधे बैकुंठ लोक की प्राप्ति करेगा।

इसी अवसर पर भगवान शिव ने श्रीहरि को सुदर्शन चक्र भी प्रदान किया था, जो उनकी शक्ति और धर्म रक्षा का प्रतीक बना। इसी कारण इस दिन भक्त पहले भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और उन्हें कमल के पुष्प अर्पित करते हैं।

इसके बाद अगली सुबह सूर्योदय के समय भगवान शिव की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन हरिहर मिलन — यानी शिव और विष्णु के एकत्व के दर्शन — से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष का मार्ग खुल जाता है। कहा जाता है कि बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु का धाम, बैकुंठ लोक, सभी श्रद्धालु भक्तों के लिए खुल जाता है।

बैकुंठ चतुर्दशी पूजा विधि (Baikunth Chaturdashi Puja Vidhi)

बैकुंठ चतुर्दशी का पूजन रात के समय किया जाता है, जिसे निशीथ व्यापिनी पूजा कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव — दोनों की एक साथ आराधना की जाती है, जिसे हरि-हर मिलन का प्रतीक माना गया है।

  1. स्नान और संकल्प:
    इस दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पहले उठकर गंगाजल या पवित्र जल से स्नान करें। इसके बाद स्वच्छ वस्त्र पहनें और भगवान के समक्ष व्रत और पूजा का संकल्प लें।
  2. स्थापना:
    घर के पूजा स्थल या आंगन में एक चौकी रखें और उस पर भगवान शिव (शिवलिंग या चित्र रूप में) और भगवान विष्णु (शालिग्राम या तस्वीर) को एक साथ विराजमान करें। यह शिव-विष्णु एकत्व का प्रतीक माना जाता है।
  3. दीप प्रज्वलन:
    देसी घी का एक बड़ा दीपक या कई छोटे दीप जलाएं। बैकुंठ चतुर्दशी पर दीपदान का विशेष महत्व होता है।
  4. भगवान विष्णु की पूजा:
    पूजा की शुरुआत भगवान विष्णु से करें। उन्हें पीले वस्त्र पहनाएं, चंदन, तुलसीदल और फलों का भोग लगाएं। इसके बाद कमल पुष्प अर्पित करें, जो इस दिन का मुख्य प्रतीक है।
  5. भगवान शिव की पूजा:
    विष्णु पूजन के बाद भगवान शिव की आराधना करें। उन्हें बिल्वपत्र, भस्म, दूध, शहद और सफेद वस्त्र अर्पित करें। ध्यान रखें, शिव पूजा में तुलसी का उपयोग नहीं किया जाता।
  6. मंत्र जाप:
    दोनों देवताओं के मंत्रों का जाप करें —
  • विष्णु जी के लिए: “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”

  • शिव जी के लिए: “ॐ नमः शिवाय”
  1. कथा श्रवण और आरती:
    अब बैकुंठ चतुर्दशी की कथा (Baikunth Chaturdashi ki katha) का श्रवण करें या पढ़ें। पूजा पूर्ण होने पर घी या कपूर के दीपक से दोनों देवताओं की आरती करें।
  2. दीपदान और व्रत पारण:
    पूजा निशीथ काल (रात्रि के मध्य समय) में समाप्त की जाती है। अगले दिन चतुर्दशी समाप्त होने पर, यानी पूर्णिमा के शुभ मुहूर्त में, व्रत का पारण करें। यदि संभव हो, तो ब्राह्मण को भोजन कराकर दान दें।

यह व्रत मन, वचन और कर्म से की गई भक्ति का प्रतीक है, जो मोक्ष और बैकुंठ लोक की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।
 
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वैकुण्ठ चतुर्दशी का महत्व और मणिकर्णिका स्नान (Significance of Vaikuntha Chaturdashi and Manikarnika Snan)

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाने वाला वैकुण्ठ चतुर्दशी (Baikunth Chaturdashi 2025) हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र पर्व माना जाता है। यह दिन शैव (भगवान शिव के उपासक) और वैष्णव (भगवान विष्णु के भक्त) — दोनों के लिए समान रूप से शुभ होता है। इस दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की पूजा-अर्चना का विशेष महत्व होता है।

देशभर में यह पर्व वाराणसी, गया, ऋषिकेश सहित कई तीर्थ स्थलों पर बड़े ही हर्षोल्लास और भक्ति भाव से मनाया जाता है। मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखकर और विधि-विधान से पूजा करता है, उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं और मृत्यु के बाद उसे वैकुण्ठ लोक, अर्थात भगवान विष्णु के धाम की प्राप्ति होती है।

वैकुण्ठ चतुर्दशी की पूजा (Baikunth Chaturdashi puja) दो अलग-अलग समय पर की जाती है —

  • विष्णु भक्तों के लिए पूजा का सबसे शुभ समय निशीथ काल होता है, जो मध्यरात्रि का समय है। इस दौरान श्रद्धालु विष्णु सहस्रनाम  का पाठ करते हुए भगवान श्रीहरि को हजार कमल पुष्प अर्पित करते हैं।

  • वहीं शिव भक्तों के लिए पूजा का सर्वश्रेष्ठ समय अरुणोदय मुहूर्त होता है, जो सूर्योदय से ठीक पहले का क्षण है।

शिव उपासकों के लिए इस दिन मणिकर्णिका घाट पर स्नान करना अत्यंत शुभ माना गया है। वाराणसी के इस पवित्र घाट पर अरुणोदय के समय किया गया स्नान मणिकर्णिका स्नान कहलाता है, जो पापों का नाश करता है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है।

कहा जाता है कि वैकुण्ठ चतुर्दशी (Baikunth Chaturdashi) के दिन हरि और हर की संयुक्त आराधना से भक्तों के सारे कष्ट मिट जाते हैं और उनके जीवन में सुख, शांति व आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है। इसलिए इस दिन पूजा का सही मुहूर्त और विधि का पालन करना अत्यंत आवश्यक माना गया है।


निष्कर्ष

वैकुण्ठ चतुर्दशी (Baikunth Chaturdashi) वह विशेष दिन है जब भगवान विष्णु को काशी के प्रसिद्ध विश्वनाथ मंदिर में विशेष रूप से पूजित किया जाता है। इस दिन मंदिर का वातावरण इतना पवित्र होता है कि कहा जाता है — वह स्वयं वैकुण्ठ लोक के समान बन जाता है। इस पावन अवसर पर भगवान शिव और भगवान विष्णु दोनों एक-दूसरे की पूजा करते हैं — श्रीहरि विष्णु शिव को तुलसी दल अर्पित करते हैं, जबकि महादेव उन्हें बेलपत्र चढ़ाते हैं।

यह अनोखी परंपरा हरि-हर एकता का प्रतीक मानी जाती है, जो यह संदेश देती है कि सृष्टि में सब एक हैं। माना जाता है कि जो भी भक्त पूरे श्रद्धा और विधि-विधान से इस व्रत का पालन करता है, उसके जीवन की सभी रुकावटें दूर होती हैं और उसके लिए स्वर्ग यानी वैकुण्ठ के द्वार खुल जाते हैं।

हम आशा करते हैं कि आपको वैकुण्ठ चतुर्दशी (Baikunth chaturdashi ) से जुड़ी सभी जानकारी उपयोगी लगी होगी, और इस वर्ष आप भी इस पवित्र दिन पर पूर्ण श्रद्धा और वैदिक विधि से पूजा-अर्चना कर दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करेंगे।

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Author: Neha Jain – Cultural & Festival Content Writer

Neha Jain is a festival writer with 7+ years’ experience explaining Indian rituals, traditions, and their cultural meaning, making complex customs accessible and engaging for today’s modern readers.