Kalparambha 2025: भारत की विविधता का सबसे सुंदर रूप उसके त्योहारों में देखने को मिलता है, और शारदीय नवरात्रि इसका एक बेहतरीन उदाहरण है। देश का हर कोना इसे अपने विशेष अंदाज़ और पारंपरिक रीति-रिवाज़ों के साथ मनाता है। खासकर उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे पूर्वी और उत्तर-पूर्वी राज्यों में यह पर्व एक अलग ही उत्साह और श्रद्धा के साथ आरंभ होता है।
नवरात्रि की षष्ठी तिथि से एक खास अनुष्ठान की शुरुआत होती है, जिसे कल्पारंभ कहा जाता है। यह उस पावन क्षण को दर्शाता है जब देवी दुर्गा की पूजा विधिवत रूप से आरंभ की जाती है।
साधारण शब्दों में कहें तो कल्पारंभ का मतलब (Kalparambha Meaning) है – इस दिन मां दुर्गा को बिल्व वृक्ष या कलश में विराजमान होने का आमंत्रण दिया जाता है। यह एक तरह से दुर्गा पूजा के मुख्य अनुष्ठानों की विधिवत शुरुआत का प्रतीक होता है। यह वही समय होता है जब भक्तगण पूरी श्रद्धा से देवी का आवाहन करते हैं कि वह पृथ्वी पर पधारें और अपने भक्तों पर कृपा करें।
इस अनुष्ठान को अकाल बोधन (Akal Bodhan) भी कहा जाता है। इसका अर्थ होता है – देवी का असमय आह्वान करना। चूंकि यह काल वह होता है जब देवी-देवता शयन में माने जाते हैं, इसलिए श्रीराम ने लंका युद्ध से पूर्व मां दुर्गा को जगाने के लिए विशेष पूजा की थी। तभी से यह परंपरा चली आ रही है।
अर्थात बोधन यानी ‘जगाना’, और अकाल यानी ‘समय से पहले’। इसीलिए कल्पारंभ के माध्यम से भक्त देवी को नींद से जगाकर उन्हें अपने घर आमंत्रित करते हैं।
इस परंपरा के जरिए पश्चिम बंगाल की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत में नवरात्रि का शुभारंभ बेहद श्रद्धा और उल्लास के साथ होता है।
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यहां नवरात्रि की शुरुआत कल्पारंभ से होती है, जो इस बार 28 सितम्बर 2025 , दिन रविवार को मनाया जाएगा। "कल्पारंभ" शब्द का अर्थ होता है – समय की शुरुआत या एक नए कालचक्र का आरंभ। शक्ति उपासना की विधिवत शुरुआत इसी दिन से होती है। खास बात यह है कि इन क्षेत्रों में दुर्गा पूजा की मुख्य आराधना षष्ठी से नवमी तक की जाती है, लेकिन उसकी तैयारी और पूजा का प्रारंभ कल्पारंभ से ही माना जाता है।
आश्विन माह की षष्ठी तिथि को जब मां दुर्गा के स्वागत की पूरी तैयारी होती है, उसी दिन यह कालप्रारंभ (Kalparambha 2025 Date) का शुभ मुहूर्त माना जाता है — जो देवी की आराधना के नौ दिनों को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देता है।
संक्षेप में कहें तो, पूर्वी भारत की दुर्गा पूजा का पहला पड़ाव कल्पारंभ है, जो शक्ति, श्रद्धा और परंपरा की शुरुआत का प्रतीक है।
कल्पारंभ की पूजा का आरंभ प्रातःकाल के शुभ समय में किया जाता है। इस दिन साधक शक्ति-पूजन और व्रत का संकल्प लेकर नवरात्रि की आध्यात्मिक यात्रा शुरू करते हैं।
सबसे पहले एक पवित्र कलश में शुद्ध जल भरकर उसे बिल्व वृक्ष के नीचे स्थापित किया जाता है। इसे बिल्व निमंत्रण कहा जाता है। मान्यता है कि इस विधि के माध्यम से मां दुर्गा को आमंत्रित किया जाता है और वे उस कलश में आकर निवास करती हैं। इसे अधिवास कहा जाता है। इसलिए इस कलश को देवी का प्रतीक स्वरूप मानकर पूजा स्थल पर प्रतिष्ठित किया जाता है।
शाम के समय अकाल बोधन की परंपरा निभाई जाती है। ‘अकाल बोधन’ का अर्थ होता है — किसी को उसके निर्धारित समय से पहले जगाना। पौराणिक मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई से पहले मां दुर्गा को प्रसन्न करने हेतु उन्हें असमय जगाया था, और तभी से यह परंपरा प्रचलित है।
अकाल बोधन का सबसे शुभ समय सूर्यास्त से लगभग ढाई घंटे पूर्व माना गया है। इस समय विशेष मंत्रोच्चार के साथ मां दुर्गा को जगाया जाता है, फिर धूप, दीप और आरती से उनका पूजन किया जाता है। पूजा के पश्चात सभी भक्तों और उपस्थित प्रियजनों में प्रसाद बांटा जाता है।
इस प्रकार कल्पारंभ (Kalparambha 2025) के दिन विधिपूर्वक की गई पूजा, पूरे नवरात्रि में शक्ति, श्रद्धा और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है।
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कल्पारम्भ से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा हमें प्रभु श्रीराम के जीवन से मिलती है। कहा जाता है कि जब श्रीराम रावण से युद्ध करने जा रहे थे, तब उन्होंने मां आदिशक्ति की कृपा पाने के लिए नौ दिनों तक शक्ति की आराधना की थी। लेकिन वह समय दक्षिणायन का था, जिसे देवताओं के विश्राम की अवधि माना जाता है। यानी देवी-देवता उस समय योगनिद्रा में होते हैं।
श्रीराम को यह भली-भांति ज्ञात था, फिर भी उन्होंने मां की पूजा प्रारंभ की — लेकिन अनुष्ठान के छठे दिन एक विशेष क्रिया की, जिसे कल्पारम्भ कहा गया। इस क्रिया द्वारा उन्होंने देवी को निद्रा से जगाने का प्रयत्न किया, जिसे अकाल बोधन भी कहा जाता है। श्रीराम की श्रद्धा और आह्वान से प्रसन्न होकर मां आदिशक्ति ने उन्हें दर्शन दिए और विजय का आशीर्वाद प्रदान किया।
यहीं से यह परंपरा शुरू हुई कि नवरात्रि की षष्ठी तिथि को कल्पारम्भ (kalparambha puja ) कर मां दुर्गा का आह्वान किया जाता है। खासकर उत्तर-पूर्वी भारत के राज्यों — जैसे पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार, और असम में — नवरात्रि का प्रारंभ षष्ठी से ही माना जाता है। इन क्षेत्रों में षष्ठी को बिल्व निमंत्रण, अकाल बोधन, और कल्पारम्भ जैसे अनुष्ठानों के साथ विशेष श्रद्धा से मनाया जाता है।
यहां नवरात्रि चार मुख्य दिनों — महाषष्ठी, महासप्तमी, महाष्टमी, और महानवमी — में मां दुर्गा की विशेष पूजा-अर्चना होती है।
कल्पारंभ (Kalparambha 2025) केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि श्रद्धा, विश्वास और आस्था का प्रतीक है। यह वह विशेष क्षण होता है जब भक्तजन पूरे भाव और समर्पण से मां दुर्गा का आह्वान करते हैं, उन्हें आमंत्रित करते हैं कि वे पृथ्वी पर पधारें और अपने भक्तों को आशीर्वाद दें। विशेष रूप से पूर्वी भारत में यह परंपरा बड़ी ही श्रद्धा और उल्लास से निभाई जाती है।
अकाल बोधन की यह पौराणिक कथा न केवल श्रीराम की भक्ति का प्रमाण है, बल्कि यह भी दिखाती है कि सच्चे हृदय से की गई पूजा कभी व्यर्थ नहीं जाती। आज भी कल्पारंभ के साथ जैसे ही नवरात्रि की शुरुआत होती है, वातावरण में एक दिव्यता और ऊर्जा का संचार हो जाता है। यही वह समय होता है जब मां दुर्गा की उपासना का वास्तविक आरंभ होता है।
जय माता दी।
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Neha Jain is a festival writer with 7+ years’ experience explaining Indian rituals, traditions, and their cultural meaning, making complex customs accessible and engaging for today’s modern readers.