Dussehra 2025: हिंदू धर्म में दशहरा, जिसे विजयादशमी भी कहा जाता है, एक अत्यंत शुभ और महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। यह त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और भगवान श्रीराम द्वारा रावण के वध की स्मृति में मनाया जाता है। यह पर्व नवरात्रि के समापन पर मनाया जाता है, इसलिए इसकी तारीख हर साल थोड़ी बदल जाती है। हर साल यह पर्व अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को पूरे देश में श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। आइए जानते है कि इस साल दशहरा का पर्व कब (Dussehra 2025 date) मनाया जायेगा और पूजन का शुभ मुहूर्त क्या होगा ?
दशहरा 2025 कब है? (When Is Dussehra 2025)
साल 2025 में दशहरा 2 अक्टूबर, गुरुवार के दिन मनाया जाएगा। खास बात यह है कि इसी दिन गांधी जयंती भी है, जिससे यह दिन और अधिक विशेष बन जाता है। लोग इस दिन को शुभ मानकर नई चीज़ों की खरीदारी, वाहनों की पूजा, और कार्य की शुरुआत जैसे कार्य करना पसंद करते हैं।
शुभ तिथि और मुहूर्त (Dussehra 2025 Date and Muhurat):
- दशमी तिथि की शुरुआत: 01 अक्टूबर 2025 को दोपहर 3:31 बजे
- दशमी तिथि का समापन: 02 अक्टूबर 2025 को दोपहर 3:40 बजे
- विजय मुहूर्त: 02 अक्टूबर को दोपहर 3:35 से 4:22 बजे तक
- विजय मुहूर्त की अवधि: लगभग 46 मिनट
- अपराह्न पूजा का समय: दोपहर 2:49 बजे से शाम 5:08 बजे तक
- पूजा अवधि: करीब 2 घंटे 19 मिनट
इस दिन शमी वृक्ष की पूजा, अपराजिता देवी की आराधना और सीमा अवलंघन जैसी परंपराओं को निभाना अत्यंत शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इन अनुष्ठानों से जीवन में साहस, सफलता और शांति आती है।
दशहरा पर्व का महत्व (Significance Of Dussehra Festival)
दशहरा का पर्व हर साल पूरे देश में बड़े जोश और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। लोग अपने-अपने क्षेत्रीय अंदाज़ में इस दिन को खास बनाते हैं। मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्रीराम ने रावण का अंत कर बुराई पर अच्छाई की जीत हासिल की थी। इसलिए विजयादशमी को धर्म, सत्य और न्याय के प्रतीक पर्व के रूप में देखा जाता है। देश के अलग-अलग हिस्सों में इसे मनाने की परंपराएं और रंग-बिरंगे रीति-रिवाज़ इसे और भी खास बना देते हैं।

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लोग दशहरा कैसे मनाते हैं? (How do people celebrate Dussehra?)
दशहरा या विजयादशमी (Vijayadashami 2025) भारत के अलग-अलग हिस्सों में अपने-अपने खास अंदाज़ में मनाया जाता है। कहीं पर भव्य जुलूस निकाले जाते हैं, तो कहीं रामलीला का मंचन करके भगवान राम की लीलाओं को जीवंत किया जाता है। कई शहरों में रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के विशाल पुतलों का दहन किया जाता है, जिसे देखने के लिए भारी भीड़ जुटती है। इस दिन आतिशबाजी और मिठाइयों का भी विशेष महत्व होता है। जगह-जगह मेले लगते हैं और मनोरंजन से जुड़े कई कार्यक्रम होते हैं। इसके अलावा, कुछ स्थानों पर विजयादशमी से ठीक 9 या 10 दिन पहले से ही रामायण का नाट्य रूपांतरण शुरू हो जाता है, जो अंतिम दिन रावण वध के दृश्य के साथ संपन्न होता है। साल 2025 में भी दशहरा (Dussehra 2025) की छुट्टियों के दौरान देशभर में इसी तरह का उल्लास देखने को मिलेगा।
हम दशहरा क्यों मनाते हैं? (Why do we celebrate Dussehra?)
दशहरा का पर्व सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक गहरा प्रतीकात्मक संदेश भी देता है—बुराई चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हो, अच्छाई और सत्य की जीत निश्चित है। यह पर्व भगवान राम द्वारा रावण का वध कर धर्म की स्थापना करने की याद दिलाता है। साथ ही, देवी दुर्गा द्वारा महिषासुर जैसे अहंकारी राक्षस का अंत करने का भी प्रतीक है। दशहरा, (Dussehra Festival) नवरात्रि के समापन का दिन होता है और इसे जीत, शक्ति और नारी सशक्तिकरण की भावना के साथ भी जोड़ा जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार यह पर्व आश्विन माह की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है, और यही कारण है कि हर वर्ष इसकी तिथि बदलती रहती है।
दशहरे पर निभाई जाने वाली खास परंपराएं (Special Traditions Followed on Dussehra)
दशहरा या विजयादशमी का पर्व देशभर में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है, लेकिन कुछ परंपराएं ऐसी होती हैं जिन्हें अधिकांश लोग निभाते हैं। इस शुभ दिन पर लोग नए कपड़े और आभूषण पहनकर रावण दहन देखने जाते हैं और बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाते हैं। आइए जानते हैं दशहरे (Dussehra Rituals) पर निभाई जाने वाली 10 खास परंपराएं:
- पूजन की परंपरा:
सुबह के समय लोग अपने वाहन, शस्त्र, भगवान राम-लक्ष्मण, माता सीता, हनुमान जी, देवी दुर्गा, देवी अपराजिता और शमी वृक्ष की पूजा करते हैं। इसे शक्ति, विजय और सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है।
- तिलक लगाकर रावण दहन:
घर से रावण दहन देखने निकलते समय माथे पर तिलक लगाकर निकलना शुभ माना जाता है। ऐसा करने से सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।
- शमी के पत्तों का आदान-प्रदान:
रावण दहन के बाद लौटते वक्त शमी वृक्ष के पत्ते (जिन्हें सोना भी कहा जाता है) लेकर घर लौटना और उन्हें परिजनों व मित्रों को देना सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। घर लौटने वाले की आरती उतार कर उसका स्वागत करने की परंपरा भी है।
- बड़ों का आशीर्वाद और मिलन समारोह:
इस दिन लोग एक-दूसरे के घर जाकर गले मिलते हैं, बड़ों के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेते हैं। शमी के पत्तों को एक-दूसरे को भेंट कर अच्छे संबंधों को और मजबूत किया जाता है।
- बच्चों को ‘दशहरी’ देना:
दशहरे (Dussehra Festival) पर बच्चों को मिठाई, नए कपड़े या पैसे देकर आशीर्वाद देने की परंपरा है, जिसे ‘दशहरी’ कहा जाता है।
- पारंपरिक पकवानों की धूम:
इस दिन खासतौर पर घरों में गिलकी के पकौड़े और गुलगुले (मीठे पकौड़े) बनाए जाते हैं। इन्हें बनाकर घर के सदस्यों और मेहमानों को परोसा जाता है।
- दुर्गा सप्तशती या चंडी पाठ:
दशहरे के दिन दुर्गा सप्तशती या चंडी पाठ का विशेष महत्व होता है। इससे वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- दीपदान की परंपरा:
पीपल, शमी और बरगद के पेड़ के नीचे दीप जलाना शुभ माना जाता है। साथ ही मंदिरों और घर में भी दीप जलाकर वातावरण को रोशन किया जाता है।
- एक बुराई को छोड़ने का संकल्प:
इस दिन का असली सार यही है कि हम अपने भीतर की किसी एक बुराई—जैसे क्रोध, आलस्य, ईर्ष्या या नकारात्मक सोच—को त्यागने का संकल्प लें।
- गिले-शिकवे मिटाकर रिश्तों की नई शुरुआत:
दशहरा मेल-मिलाप का भी पर्व है। लोग इस दिन पुराने गिले-शिकवे भूलकर एक-दूसरे को गले लगाते हैं और रिश्तों में फिर से warmth और positivity भरते हैं।
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दशहरे पर करें ये 6 खास उपाय (Do these 6 special remedies on Dussehra)
दशहरा केवल एक पर्व नहीं, बल्कि जीवन में अच्छाई को अपनाने और बुराई को दूर करने का प्रतीक है। इस दिन कुछ विशेष उपाय करके हम अपने जीवन की कई परेशानियों से छुटकारा पा सकते हैं। आइए जानते हैं ऐसे ही छह सरल और प्रभावशाली उपाय, जिन्हें दशहरे के दिन अपनाकर जीवन में सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है:
- स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियों से मिलेगी राहत
अगर आप या आपके घर का कोई सदस्य लंबे समय से किसी बीमारी से परेशान है, तो दशहरे (Dussehra Festival) के दिन हनुमान जी की कृपा से राहत पा सकते हैं। इसके लिए सुंदरकांड का पाठ करें। फिर एक नारियल लें, उसे रोगी के ऊपर सात बार घुमाएं और यह मंत्र पढ़ें – "नासे रोग हरे सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा"। इसके बाद नारियल को रावण दहन की अग्नि में अर्पित कर दें। मान्यता है कि यह प्रक्रिया रोगों को जड़ से खत्म करने में मदद करती है।
- व्यापार में तरक्की के लिए खास उपाय
अगर कारोबार ठप है या आर्थिक स्थिति कमजोर चल रही है, तो दशहरे के दिन पीले वस्त्र में नारियल, जनेऊ और मिठाई बांधकर किसी योग्य ब्राह्मण को दान करें। यह उपाय न केवल व्यापार में उन्नति लाता है, बल्कि आर्थिक समस्याओं को भी दूर करता है।
- शनि के दोष से राहत
जिन लोगों की कुंडली में शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या चल रही है, उन्हें दशहरे के दिन शमी के पेड़ के नीचे तिल के तेल के 11 दीपक जलाने चाहिए। दीपक जलाते समय शनि देव से मन से प्रार्थना करें। ऐसा करने से शनि की दशा से राहत मिलने की संभावना बढ़ जाती है।
- दरिद्रता और घरेलू कलह से छुटकारा
दशहरे के दिन गुप्त दान का विशेष महत्व है। यह दान चुपचाप और बिना दिखावे के करना चाहिए। किसी ब्राह्मण या जरूरतमंद को अन्न, वस्त्र या धन दान करें। यह न केवल दरिद्रता को दूर करता है, बल्कि घर में चल रही अनबन और अशांति को भी खत्म करने में मदद करता है।
- रावण दहन में शामिल होकर करें बुराइयों का अंत
दशहरे के दिन रावण के पुतले का दहन एक प्रतीकात्मक प्रक्रिया है, जो दर्शाती है कि बुराई चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हो, उसका अंत निश्चित है। इस दिन रावण दहन के कार्यक्रम में भाग लें और मन में यह संकल्प लें कि आप अपने अंदर की किसी एक बुराई – जैसे क्रोध, अहंकार, या आलस्य – को आज से ही छोड़ देंगे।
- आर्थिक परेशानियों से राहत पाने का उपाय
अगर आपको पैसों की तंगी का सामना करना पड़ रहा है, तो दशहरे के दिन शाम के समय किसी मंदिर में झाड़ू दान करें। झाड़ू को माँ लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। इस उपाय को करते समय माँ लक्ष्मी का ध्यान करते हुए प्रार्थना करें कि आपके जीवन में फिर से आर्थिक स्थिरता लौट आए।
निष्कर्ष:
दशहरा (Dussehra 2025) सिर्फ एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति की आत्मा है। यह पर्व न केवल अच्छाई की जीत का प्रतीक है, बल्कि जीवन में नई शुरुआत, सकारात्मक सोच और रिश्तों की मिठास को भी प्रेरित करता है। इन आसान उपायों को अपनाकर आप जीवन में स्वास्थ्य, धन, शांति और सकारात्मकता को आमंत्रित कर सकते हैं। बस जरूरी है आस्था, श्रद्धा और सच्चे मन से इन्हें करना। आप भी इस दिन को सकारात्मकता और शुभ कार्यों से भरें और अपने जीवन में नया उजाला लाएं।
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