Durga Puja 2025: दुर्गा पूजा, हिंदू धर्म का एक भव्य और आस्था से जुड़ा पर्व है, जिसे देवी दुर्गा की शक्ति और विजय के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह सिर्फ एक पूजा नहीं, बल्कि शक्ति, संस्कृति और श्रद्धा का 10 दिवसीय महोत्सव है, जिसे दुनियाभर में "दुर्गोत्सव" के नाम से भी जाना जाता है।
हालांकि पूजा की तैयारियाँ महालया से ही शुरू हो जाती हैं, लेकिन इसका मुख्य अनुष्ठान षष्ठी तिथि से शुरू होकर विजयादशमी तक चलता है। इन दस दिनों के दौरान देवी दुर्गा के विविध रूपों की आराधना होती है, और भक्तगण विशेष पूजा, व्रत और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेते हैं।
भारत के पूर्वी हिस्सों जैसे पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम, त्रिपुरा, मणिपुर, बिहार और झारखंड में यह पर्व बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। यहां पूजा-पंडालों (Durga Puja Pandal) की भव्य सजावट, देवी की अलौकिक प्रतिमाएं, मंत्रोच्चार और सांस्कृतिक उत्सव इस पर्व को और खास बना देते हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार दुर्गा पूजा अश्विन मास के शुक्ल पक्ष में आती है, और अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह आमतौर पर सितंबर या अक्टूबर में मनाई जाती है। षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी और दशमी की तिथियां पूजा के प्रमुख दिन होते हैं। विजयादशमी के दिन मां दुर्गा की विदाई के साथ बुराई पर अच्छाई की जीत का यह पर्व समापन की ओर बढ़ता है, जो समाज को एक सकारात्मक संदेश भी देता है।
दुर्गा पूजा 2025 (Durga Puja 2025 Date) की तैयारियों में जुटने से पहले आइए जानते हैं इस वर्ष पर्व से जुड़ी महत्वपूर्ण तिथियां और शुभ मुहूर्त। यह जानकारी आपकी पूजा, यात्रा और आयोजन की योजना को बेहतर बनाने में मदद करेगी।
इन तिथियों को ध्यान में रखते हुए आप अपनी पूजा, यात्रा और उत्सव की तैयारियां पहले से कर सकते हैं।
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दुर्गा पूजा सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि मां दुर्गा के नौ दिवसीय दिव्य उत्सव का ऐसा सिलसिला है, जिसमें हर दिन का अपना अलग ही महत्व और ऊर्जा होती है। चलिए जानते हैं कि इस पावन अवसर पर हर दिन किस रूप में देवी की उपासना होती है और उसके पीछे क्या भाव छिपा है:
दुर्गा पूजा की विधिवत शुरुआत षष्ठी तिथि से मानी जाती है। इसे महालय के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन देवताओं और असुरों के बीच भीषण युद्ध हुआ था जिसमें कई ऋषि-मुनि और देवता वीरगति को प्राप्त हुए थे। षष्ठी तिथि के दिन दुर्गा पूजा की शुरुआत कुछ विशेष विधियों से की जाती है। इस दिन बिल्व निमंत्रण, कल्पारंभ, अकाल बोधन, मां दुर्गा का आमंत्रण और अधिवास जैसे शुभ अनुष्ठानों की परंपरा निभाई जाती है। ये सभी प्रक्रियाएं देवी के स्वागत और पूजा की विधिवत शुरुआत का संकेत होती हैं।
महासप्तमी के दिन दुर्गा पूजा (Durga Puja Date) की पहली औपचारिक पूजा होती है। इस दिन नवपत्रिका यानी नौ पवित्र पौधों की पूजा की जाती है, जिन्हें बंगाल में कलाबाऊ पूजा के नाम से जाना जाता है। इन नौ पत्तों में केले, हल्दी, अनार, अशोक, बिल्व, धान, जौ, कच्वी और मनका शामिल होते हैं। ये सभी पौधे देवी के नौ स्वरूपों का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह पूजा प्रकृति के साथ देवी के सामंजस्य को दर्शाती है।
अष्टमी दुर्गा पूजा (Durga Puja Ashtami) का सबसे खास और शक्तिशाली दिन माना जाता है। इसे महा अष्टमी कहा जाता है। इस दिन मां के नौ रूपों की आराधना की जाती है और उन्हें विशेष श्रृंगार और भोग अर्पित किया जाता है। षोडशोपचार विधि से पूजा की जाती है और मिट्टी के नौ कलश स्थापित कर देवी के नौ रूपों का आह्वान किया जाता है। कई स्थानों पर कन्या पूजन और संधि पूजा का आयोजन होता है, जो मां के सौम्य और रौद्र दोनों स्वरूपों का प्रतीक है।
महानवमी पूजा मां दुर्गा के उस रूप को समर्पित होती है जिसमें उन्होंने राक्षस महिषासुर का वध किया था। इस दिन मां को महिषासुर मर्दिनी के रूप में पूजा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इसी दिन मां ने धर्म की रक्षा के लिए असुर का अंत किया था। इस दिन विशेष हवन, बलिदान और नवमी पूजा जैसे अनुष्ठान किए जाते हैं।
दुर्गा पूजा (Durga Puja 2025 end Date) का दसवां और अंतिम दिन महादशमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन मां दुर्गा की प्रतिमाओं को भक्तों द्वारा विधिपूर्वक विदा किया जाता है और गंगा या किसी पवित्र जल में उनका विसर्जन किया जाता है। इसके पहले, विवाहित महिलाएं पारंपरिक सिंदूर खेला में शामिल होती हैं, जिसमें वे एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर देवी से सुहाग की लंबी उम्र का आशीर्वाद मांगती हैं।
विसर्जन के समय ढोल-नगाड़ों के साथ भव्य शोभायात्राएं निकलती हैं। लोग मां को विदा करते हुए नाचते-गाते हैं और जय माता दी के उद्घोष से माहौल को भक्तिमय बना देते हैं। मां के विसर्जन (Durga Puja Visarjan) के बाद विजयादशमी की बधाइयां देने का चलन है, जहां लोग अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलने जाते हैं और इस शुभ अवसर की शुभकामनाएं साझा करते हैं।
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इन नौ दिनों में देशभर में भक्ति का ऐसा माहौल बनता है जो न केवल मन को छूता है, बल्कि वातावरण को भी पवित्रता से भर देता है। पर्व का समापन विजयदशमी पर होता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
शारदीय नवरात्रि और दुर्गा पूजा (Durga Puja 2025) , दोनों ही मां दुर्गा को समर्पित होते हैं। मान्यता है कि इन दिनों में मां दुर्गा अपने भक्तों से मिलने कैलाश पर्वत से धरती पर आती हैं और लक्ष्मी, सरस्वती, गणेश व कार्तिकेय के साथ भक्तों को आशीर्वाद देती हैं।
एक पौराणिक कथा के अनुसार, महिषासुर नामक राक्षस ने ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त कर देवताओं को पराजित कर दिया था। ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शक्तियों से एक देवी उत्पन्न हुईं, जिन्हें मां दुर्गा कहा गया। मां दुर्गा ने नौ रातों तक महिषासुर से युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध कर दिया। इसी वजह से इस दिन को विजयादशमी कहा गया और दुर्गा पूजा (Durga Puja Festival) बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाई जाती है।
उत्तर भारत में जहां इन दिनों रामलीला का आयोजन होता है और दशहरा पर रावण दहन कर भगवान राम की विजय का उत्सव मनाया जाता है, वहीं पूर्वी भारत—विशेषकर बंगाल, ओडिशा और त्रिपुरा—में यही दिन महिषासुर मर्दिनी की उपासना के रूप में मनाया जाता है।
एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान श्रीराम ने भी लंका पर चढ़ाई से पहले मां दुर्गा की आराधना की थी। उन्होंने देवी से शक्ति प्राप्त कर रावण का अंत किया और इस दिन को विजयादशमी के रूप में मनाया जाने लगा।
दुर्गा पूजा (Durga Puja 2025 )के दौरान न केवल मंदिरों और पंडालों में पूजा होती है, बल्कि लोगों के दिलों में भी भक्ति की लौ जलती है। ये दिन नारी शक्ति, संस्कारों और परंपरा की झलक भी देते हैं। भव्य पंडाल, सांस्कृतिक कार्यक्रम, नृत्य, गीत और पारंपरिक भोजन—ये सब मिलकर दुर्गा पूजा को एक सांस्कृतिक उत्सव में बदल देते हैं, जिसे हर आयु वर्ग के लोग पूरे उत्साह से मनाते हैं।
दुर्गा पूजा (Durga Puja Mahotsav) केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि शक्ति, आस्था, संस्कृति और मानवीय भावनाओं का संगम है। यह हमें यह सिखाता है कि जब हमारी आस्था अटूट होती है, तो हर बुराई पर विजय पाई जा सकती है। यही कारण है कि यह पर्व भारत के कोने-कोने में, अलग-अलग रूपों में, लेकिन एक समान भावना के साथ मनाया जाता है।
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