Sarva Pitru Amavasya 2025: सर्व पितृ अमावस्या को महालय अमावस्या भी कहते है। 'महालय' शब्द में 'महा' और 'लय' से मिलकर बना है जिसका अर्थ होता है 'महान अंत' या 'बड़ा समापन'। यह दिन भाद्रपद मास की अमावस्या तिथि को आता है और आमतौर पर अंग्रेजी कैलेंडर में सितंबर या अक्टूबर में पड़ता है।
यह तिथि पितृ पक्ष के समापन का दिन मानी जाती है, जो पंद्रह दिनों तक चलने वाला वह विशेष काल होता है, जब हम अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध और तर्पण करते हैं।
सर्व पितृ अमावस्या धार्मिक और जयोतिष दोनों रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। आइए जानते है कि 2025 में यह अमावस्या (Sarva Pitru Amavasya 2025) कब पड़ रही है, इस दिन क्या विशेष उपाय करने चाहिए, श्राद्ध की विधि क्या है और पितृ दोष जैसे नकारात्मक प्रभावों से मुक्ति कैसे पाई जा सकती है—इन सभी बातों को इस लेख में क्रमबद्ध रूप से जानने का प्रयास करेंगे।
इस साल सर्वपितृ अमावस्या या महालय अमावस्या श्राद्ध की तिथि 21 सितम्बर, 2025 दिन रविवार को पड़ रही है । यह दिन पितृ पक्ष का आखिरी और सबसे खास दिन माना जाता है। इस दिन उन सभी पितरो का श्राद्ध करते है, जिनकी मृत्यु की तिथि ज्ञात न हो। इस दिन को लेकर खास धार्मिक मान्यताएं जुड़ी हैं।
हिन्दू पंचांग के अनुसार, अमावस्या तिथि (Pitru paksha Amavasya 2025 Date) 21 सितंबर को सुबह 12 बजकर 16 मिनट से शुरू होगी और 22 सितंबर को सुबह 01 बजकर 23 मिनट समाप्त होगी। इस दिन तर्पण और श्राद्ध के लिए कुछ मुख्य मुहूर्त हैं, जैसे कुतुप मुहूर्त (दोपहर 12 बजकर 08 मिनट से 12 बजकर 57 मिनट तक), रौहिण मुहूर्त (12 बजकर 57 मिनट से 1 बजकर 45 मिनट तक) और अपराह्न काल मिहरत (1 बजकर 45 मिनट से 4 बजकर 11 मिनट तक)। ये सभी समय पितरों के निमित्त किए गए कार्यों के लिए अत्यंत शुभ माने जाते हैं।
ऐसा माना जाता है कि इन शुभ समयों में श्रद्धा भाव से किए गए तर्पण और श्राद्ध कर्म (Shradha Amavasya) से पितरों को शांति मिलती है और वे प्रसन्न होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। इससे जीवन में सुख, समृद्धि और मानसिक शांति का मार्ग प्रशस्त होता है। यह दिन न सिर्फ पूर्वजों के प्रति सम्मान प्रकट करने का अवसर है, बल्कि यह उन्हें मोक्ष की ओर अग्रसर करने का भी एक पवित्र माध्यम है।
सर्वपितृ अमावस्या के दिन, परिवार के उन सभी दिवंगत सदस्यों का श्राद्ध और तर्पण किया जाता है, जिनकी मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं होती या जिनका श्राद्ध किसी कारणवश नहीं किया जा सका हो। यह दिन उन सभी पितरों के लिए समर्पित होता है, जिनकी आत्मा की शांति के लिए श्रद्धा और विधि-विधान से पूजा की जाती है।
मान्यता है कि इस एक दिन का श्राद्ध, गया जैसे तीर्थ स्थल पर किए गए श्राद्ध के समान पुण्यदायी होता है। यदि कोई व्यक्ति अपने पितरों की मृत्यु तिथि नहीं जानता है, तो वह इस दिन उनका श्राद्ध कर सकता है। यही वजह है कि सर्वपितृ अमावस्या (Shradh Amavasya) को पितृ पक्ष की सबसे महत्वपूर्ण तिथि माना गया है।
इस दिन श्रद्धा से तर्पण, पिंडदान और ब्राह्मण भोजन जैसे कर्म करने से पितरों को संतोष मिलता है और वे अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। अगर किसी के जीवन में बाधाएं, आर्थिक तंगी, स्वास्थ्य समस्याएं या पारिवारिक कलह बनी रहती हैं, तो यह माना जाता है कि पितृ दोष एक संभावित कारण हो सकता है। ऐसे में सर्वपितृ अमावस्या (Pitru paksha Amavasya) पर विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण करने से उन बाधाओं में कमी आ सकती है और जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आने लगते हैं।
इस दिन अपने पितरों को स्मरण कर, उनके लिए श्रद्धा भाव से किया गया छोटा-सा कर्म भी बड़े पुण्य का फल देता है।
श्राद्ध कर्म को लेकर परंपरागत रूप से यह मान्यता है कि इसे परिवार का सबसे बड़ा पुत्र या पैतृक वंश का कोई पुरुष सदस्य ही करता है, और यह मुख्य रूप से तीन पीढ़ियों तक के पितरों के लिए किया जाता है। हालांकि, सर्वपितृ अमावस्या (Sarva Pitru Amavasya) एक ऐसा अवसर होता है, जब इन सीमाओं से परे जाकर भी पितृ तर्पण किया जा सकता है।
अगर किसी परिवार में पुरुष वंशज नहीं हैं, तो ऐसे में बेटी का पुत्र—यानि नाती—भी अपनी मां के कुल के लिए श्रद्धापूर्वक श्राद्ध कर सकता है। यह विशेष रूप से सर्वपितृ अमावस्या पर मान्य और प्रभावशाली माना गया है।
इस दिन उन सभी पितरों के लिए तर्पण और श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु तिथि अज्ञात हो, या जिनका श्राद्ध किसी कारणवश उचित तिथि पर नहीं हो पाया हो। इसलिए इसे ‘सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या’ (Sarva Pitru Amavasya) कहा जाता है, क्योंकि यह दिन सभी पितरों को शांति और मोक्ष प्रदान करने का एक अत्यंत शुभ अवसर माना जाता है।
सनातन धर्म में यह विश्वास किया जाता है कि जीवन में आगे बढ़ने और मोक्ष की प्राप्ति के लिए इंसान को तीन प्रमुख ऋणों से मुक्त होना आवश्यक है—देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण। इनमें से पितृ ऋण, पूर्वजों के प्रति हमारे कर्तव्य और आभार का प्रतीक होता है।
मान्यता है कि माता-पिता और पूर्वजों का सम्मान केवल उनके जीवित रहते ही नहीं, बल्कि उनके देहांत के बाद भी किया जाना चाहिए। सर्वपितृ अमावस्या (Pitru Paksha Amavasya) एक ऐसा पावन अवसर है जब हम अपने सभी पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हैं और उन्हें तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध के माध्यम से श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
शास्त्रों और पुराणों जैसे कि गरुड़ पुराण, वायु पुराण, अग्नि पुराण, मत्स्य पुराण और मार्कंडेय पुराण में श्राद्ध और तर्पण के महत्व का विस्तार से वर्णन किया गया है। इन ग्रंथों के अनुसार, पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए किया गया श्राद्ध कर्म न केवल पितरों को संतुष्टि देता है, बल्कि श्राद्धकर्ता के जीवन में सुख, समृद्धि और आशीर्वाद भी लेकर आता है।
इस दिन को इसलिए भी विशेष माना गया है क्योंकि यह पितृ पक्ष (Pitru Paksha 2025) का समापन करता है, और जिन पूर्वजों की पुण्यतिथि ज्ञात नहीं होती, उनके लिए भी श्रद्धा सहित कर्म करने का यही सर्वोत्तम दिन होता है।
इस परंपरा के ज़रिए व्यक्ति अपने वंश, गोत्र और पारिवारिक रिश्तों को बेहतर ढंग से समझ पाता है। यह एक तरह से हमारे पूर्वजों को जानने, अपनी जड़ों को पहचानने और पारिवारिक रिश्तों की जानकारी को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाने का भी माध्यम बन जाता है।
इसलिए यह दिन सिर्फ श्रद्धा और आस्था का नहीं, बल्कि अपने वंश, अपने मूल और पारिवारिक इतिहास को याद करने और उसे जीवित रखने का भी अवसर है। आप भी इस अवसर पर अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करें और पूरे सम्मान के साथ श्राद्ध कर्म में भाग लें।
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इस पवित्र कार्य से भगवान यम की कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन की कई बाधाएँ स्वतः दूर होने लगती हैं। माना जाता है कि ऐसे कर्म से परिवार नकारात्मक ऊर्जा, रोग और कष्टों से सुरक्षित रहता है।
श्राद्ध और तर्पण के माध्यम से व्यक्ति अपने पितरों को सम्मान अर्पित करता है, जिससे जीवन में सकारात्मकता, सुख-शांति और समृद्धि का संचार होता है। साथ ही, यह भी विश्वास है कि ऐसे कर्म करने वालों को दीर्घायु और पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
सर्वपितृ अमावस्या (Sarva Pitru Amavasya) को लेकर हमारे समाज में कई गहरी मान्यताएं जुड़ी हैं। ऐसा माना जाता है कि जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो उसकी आत्मा अनुष्ठानों के अभाव में कभी-कभी धरती पर भटकती रह जाती है। इन आत्माओं की संतुष्टि और शांति के लिए श्राद्ध व तर्पण बेहद ज़रूरी माने गए हैं, क्योंकि अगर वे असंतुष्ट रहती हैं, तो उनके प्रभाव से परिवार में बाधाएं, तनाव और दुर्भाग्य जैसे परिणाम देखने को मिल सकते हैं।
यह भी मान्यता है कि पितृों की कृपा से वंश आगे बढ़ता है और परिवार समृद्धि की ओर बढ़ता है। इसलिए सर्वपितृ अमावस्या (Pitru Paksha Amavasya) के दिन श्राद्ध कर्म के जरिए उन्हें श्रद्धा और सम्मान देना न केवल एक धार्मिक परंपरा है, बल्कि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक चलने वाली जिम्मेदारी भी है।
परिवार के युवा लड़कों को इन संस्कारों से परिचित कराया जाता है ताकि वे आने वाले समय में अपने पितरों का ध्यान रखने की परंपरा को निभा सकें। ऐसा विश्वास है कि जो लोग इस जीवन के लिए अपने पूर्वजों का आभार प्रकट करना चाहते हैं, वे इस दिन उन्हें श्राद्ध अर्पित कर पितृ ऋण से मुक्त होने का प्रयास करते हैं।
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