July 1, 2025 Blog

Jitiya Vrat 2025: जितिया व्रत कब और कौन रख सकता है? क्या है इस व्रत का महत्त्व एवं पूजा विधि

BY : STARZSPEAK

Jitiya Vrat 2025: भारतीय संस्कृति में मां और संतान के संबंध को अत्यंत पवित्र माना गया है। इस प्रेमपूर्ण संबंध की अभिव्यक्ति के लिए कई पर्वों की परंपरा है, और उनमें से एक है जीवित्पुत्रिका व्रत, जिसे सामान्य बोलचाल में जितिया व्रत भी कहा जाता है। यह व्रत विशेष रूप से माताएं अपनी संतान, विशेषकर पुत्रों की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और सुखद भविष्य के लिए रखती हैं। इस दिन माताएं निर्जला व्रत रखती हैं – यानी न तो अन्न ग्रहण करती हैं, न ही जल। इस उपवास को जितिया या जिउतिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है।
जीवित्पुत्रिका व्रत (Jivitputrika Vrat) को हिंदू धर्म के सबसे कठिन व्रतों में गिना जाता है। यह व्रत खास तौर पर बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड की महिलाओं के बीच बहुत लोकप्रिय है। इस दिन भगवान जीमूतवाहन की पूजा की जाती है, जिनकी कथा इस व्रत से जुड़ी हुई है। व्रत की शुरुआत ‘नहाय-खाय’ नामक परंपरा से होती है और तीसरे दिन पारण कर व्रत का समापन होता है। आइए जानते हैं कि साल 2025 में जीवित्पुत्रिका व्रत कब (Jitiya Vrat Kab hai) रखा जाएगा और उसका शुभ मुहूर्त क्या रहेगा।

जितिया व्रत 2025 की तिथि व मुहूर्त (Jitiya Vrat 2025 Date & Time)

  • व्रत की तिथि: सोमवार, 14 सितंबर 2025

  • अष्टमी तिथि प्रारंभ: 14 सितंबर 2025, सुबह 5 बजकर 4 मिनट

  • अष्टमी तिथि समाप्त: 15 सितंबर 2025, सुबह 3 बजकर 6 मिनट

  • पारण तिथि (व्रत तोड़ने का समय): 15 सितंबर 2025, सुबह 06:10 से 08:32 के बीच

यह व्रत अष्टमी तिथि को रखा जाता है और नवमी तिथि को पारण किया जाता है।

जीवित्पुत्रिका व्रत (Jivitputrika Vrat) का खास महत्व मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल में देखा जाता है, लेकिन अब यह पर्व देशभर में माताओं के बीच लोकप्रिय हो रहा है।

जितिया व्रत का महत्व (Significance Of Jitiya Vrat)

यह व्रत महाभारत काल से प्रचलित है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से संतान को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता और उसका जीवन समृद्ध और स्वस्थ होता है। माताएं बिना अन्न-जल ग्रहण किए पूरे दिन निर्जला उपवास करती हैं और अगले दिन सूर्योदय के बाद व्रत खोलती हैं। इस व्रत की कठिनता और तपस्या के कारण इसे विशेष पुण्यदायक माना जाता है।

jitiya vrat 2025

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जितिया व्रत की विधि (Jitiya Vrat Puja Vidhi)

व्रत से एक दिन पहले - नहाय-खाय (13 सितंबर 2025)
  • इस दिन माताएं स्नान कर पवित्र होकर सादा भोजन करती हैं और अगले दिन के व्रत की तैयारी करती हैं।

  • भोजन में नमक, लहसुन, प्याज आदि वर्जित होते हैं।

व्रत का दिन (14 सितंबर 2025)
  1. ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान कर साफ-स्वच्छ कपड़े पहनें।

  2. पूजन स्थल को पवित्र कर के वहां एक वेदी बनाएं और उस पर पीला कपड़ा बिछाएं।

  3. भगवान विष्णु, देवी पार्वती और जीमूतवाहन (व्रत कथा के नायक) की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें।

  4. पूजा में उपयोग करें: फूल, चंदन, धूप, दीप, अक्षत, रोली, पीले फल, तुलसी पत्र, जल पात्र, घी का दीपक।

  5. व्रत का संकल्प लें: "मैं जीवित्पुत्रिका व्रत संतान की लंबी उम्र और सुखद भविष्य के लिए कर रही हूं।"

  6. कथा पाठ करें और भगवान विष्णु व माता पार्वती की आरती करें।

  7. दिनभर निर्जला व्रत रखें, न अन्न खाएं न जल पिएं।

  8. अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण करें।

जितिया व्रत पारण विधि (Jitiya Vrat Paran Vidhi)

शास्त्रों में बताया गया है कि किसी भी व्रत का समापन पारण के साथ करना आवश्यक होता है, ताकि व्रत का संपूर्ण फल प्राप्त हो सके। जीवित्पुत्रिका व्रत का पारण भी इसी परंपरा का एक अहम हिस्सा है। यह व्रत तीन दिनों तक चलने वाला होता है, और इसका पारण तीसरे दिन यानी नवमी तिथि को किया जाता है।

पारण (Jitiya Vrat Paran Time 2025) से पहले व्रती महिलाएं स्नान करके भगवान सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित करती हैं और पूजा-पाठ करती हैं। इसके बाद व्रत का विधिवत समापन किया जाता है। पारंपरिक रूप से इस दिन मटर का झोर (तरकारी), चावल, मरुआ की रोटी, पोई और नोनी के साग आदि खाने का विशेष प्रचलन है। यह भोजन सांस्कृतिक रूप से इस व्रत से जुड़ा हुआ है।

पारण आमतौर पर सूर्योदय के बाद से दोपहर तक किया जाता है, लेकिन इस दौरान पूजा और नियमों का विशेष ध्यान रखना जरूरी होता है।


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जितिया व्रत कथा (Jitiya Vrat Katha) 

पुराणों के अनुसार जीमूतवाहन नामक एक धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अपने राज्य का त्याग कर वनवास को चुना और जरूरतमंदों की सेवा करने लगे। एक बार उन्होंने देखा कि एक नाग स्त्री विलाप कर रही है। पूछने पर ज्ञात हुआ कि हर दिन गरुड़ एक नाग को भोजन के रूप में ले जाता है और आज उसके बेटे की बारी है।

जीमूतवाहन ने उस नाग पुत्र की जगह स्वयं को गरुड़ के आगे प्रस्तुत कर दिया। जब गरुड़ ने जीमूतवाहन की सहनशीलता, बलिदान और धर्म का पालन देखा, तो वह द्रवित हो गया और नागों को खाना छोड़ दिया। (Jitiya Vrat katha)

जीमूतवाहन का यह बलिदान मातृत्व के प्रतीक बन गया और तभी से माताएं अपने पुत्रों की रक्षा और दीर्घायु के लिए जितिया व्रत रखने लगीं।


व्रत में दान और रीति-रिवाज

  • व्रत के बाद माताएं सुथनी, फल, पीले वस्त्र, चूड़ी, काजल, सिंदूर, चावल, और दक्षिणा ब्राह्मण या किसी सुहागिन को दान करती हैं।

  • कई क्षेत्रों में व्रत के अगले दिन माताएं बच्चों को माथे पर काजल, नजर का टीका लगाकर उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं।

व्रत में पहनने योग्य वस्त्र

  • व्रत के दिन महिलाएं प्रायः पीले, लाल या नारंगी रंग के वस्त्र पहनती हैं।

  • यह रंग सौभाग्य, ऊर्जा और सकारात्मकता का प्रतीक माने जाते हैं।

  • कुछ क्षेत्रों में माताएं पारंपरिक साड़ी पहनकर पूजा करती हैं, वहीं युवा महिलाएं सूती सलवार-सूट या साड़ी भी पहन सकती हैं।

क्षेत्रीय विविधताएं

राज्य / क्षेत्र

प्रमुख परंपराएं

बिहार

घरों में अल्पना बनाई जाती है, कथा में लोकगीत गाए जाते हैं

उत्तर प्रदेश

महिलाएं सामूहिक रूप से मंदिरों में कथा सुनती हैं

झारखंड

मिट्टी के भगवान बनाए जाते हैं और पूजा की जाती है

नेपाल

तामांग व अन्य जनजातियां इस दिन पारंपरिक भोजन बनाती हैं


व्रत के नियम और सावधानियां

  • व्रत के दिन पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करें।

  • किसी को कटु शब्द न कहें।

  • झूठ, छल, अपशब्द या क्रोध से बचें।

  • व्रत खोलते समय पहले भगवान को भोग लगाएं और फिर स्वयं पारण करें।

निष्कर्ष

जितिया व्रत 2025 (Jitiya Vrat 2025) न केवल एक धार्मिक परंपरा है, बल्कि यह मातृत्व की शक्ति, त्याग और संकल्प का प्रतीक है। यह पर्व माताओं के अद्वितीय प्रेम और उनके द्वारा की गई कठिन तपस्या का एक रूप है, जो संतान के कल्याण के लिए समर्पित है। यदि आप भी इस व्रत को विधिवत और श्रद्धा के साथ करते हैं, तो निश्चित रूप से आपके जीवन में सुख, सौभाग्य और शांति का आगमन होगा।

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