Jitiya Vrat 2025: भारतीय संस्कृति में मां और संतान के संबंध को अत्यंत पवित्र माना गया है। इस प्रेमपूर्ण संबंध की अभिव्यक्ति के लिए कई पर्वों की परंपरा है, और उनमें से एक है जीवित्पुत्रिका व्रत, जिसे सामान्य बोलचाल में जितिया व्रत भी कहा जाता है। यह व्रत विशेष रूप से माताएं अपनी संतान, विशेषकर पुत्रों की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और सुखद भविष्य के लिए रखती हैं। इस दिन माताएं निर्जला व्रत रखती हैं – यानी न तो अन्न ग्रहण करती हैं, न ही जल। इस उपवास को जितिया या जिउतिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है।
जीवित्पुत्रिका व्रत (Jivitputrika Vrat) को हिंदू धर्म के सबसे कठिन व्रतों में गिना जाता है। यह व्रत खास तौर पर बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड की महिलाओं के बीच बहुत लोकप्रिय है। इस दिन भगवान जीमूतवाहन की पूजा की जाती है, जिनकी कथा इस व्रत से जुड़ी हुई है। व्रत की शुरुआत ‘नहाय-खाय’ नामक परंपरा से होती है और तीसरे दिन पारण कर व्रत का समापन होता है। आइए जानते हैं कि साल 2025 में जीवित्पुत्रिका व्रत कब (Jitiya Vrat Kab hai) रखा जाएगा और उसका शुभ मुहूर्त क्या रहेगा।
यह व्रत अष्टमी तिथि को रखा जाता है और नवमी तिथि को पारण किया जाता है।
जीवित्पुत्रिका व्रत (Jivitputrika Vrat) का खास महत्व मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल में देखा जाता है, लेकिन अब यह पर्व देशभर में माताओं के बीच लोकप्रिय हो रहा है।
यह व्रत महाभारत काल से प्रचलित है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से संतान को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता और उसका जीवन समृद्ध और स्वस्थ होता है। माताएं बिना अन्न-जल ग्रहण किए पूरे दिन निर्जला उपवास करती हैं और अगले दिन सूर्योदय के बाद व्रत खोलती हैं। इस व्रत की कठिनता और तपस्या के कारण इसे विशेष पुण्यदायक माना जाता है।
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शास्त्रों में बताया गया है कि किसी भी व्रत का समापन पारण के साथ करना आवश्यक होता है, ताकि व्रत का संपूर्ण फल प्राप्त हो सके। जीवित्पुत्रिका व्रत का पारण भी इसी परंपरा का एक अहम हिस्सा है। यह व्रत तीन दिनों तक चलने वाला होता है, और इसका पारण तीसरे दिन यानी नवमी तिथि को किया जाता है।
पारण (Jitiya Vrat Paran Time 2025) से पहले व्रती महिलाएं स्नान करके भगवान सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित करती हैं और पूजा-पाठ करती हैं। इसके बाद व्रत का विधिवत समापन किया जाता है। पारंपरिक रूप से इस दिन मटर का झोर (तरकारी), चावल, मरुआ की रोटी, पोई और नोनी के साग आदि खाने का विशेष प्रचलन है। यह भोजन सांस्कृतिक रूप से इस व्रत से जुड़ा हुआ है।
पारण आमतौर पर सूर्योदय के बाद से दोपहर तक किया जाता है, लेकिन इस दौरान पूजा और नियमों का विशेष ध्यान रखना जरूरी होता है।
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पुराणों के अनुसार जीमूतवाहन नामक एक धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अपने राज्य का त्याग कर वनवास को चुना और जरूरतमंदों की सेवा करने लगे। एक बार उन्होंने देखा कि एक नाग स्त्री विलाप कर रही है। पूछने पर ज्ञात हुआ कि हर दिन गरुड़ एक नाग को भोजन के रूप में ले जाता है और आज उसके बेटे की बारी है।
जीमूतवाहन ने उस नाग पुत्र की जगह स्वयं को गरुड़ के आगे प्रस्तुत कर दिया। जब गरुड़ ने जीमूतवाहन की सहनशीलता, बलिदान और धर्म का पालन देखा, तो वह द्रवित हो गया और नागों को खाना छोड़ दिया। (Jitiya Vrat katha)
जीमूतवाहन का यह बलिदान मातृत्व के प्रतीक बन गया और तभी से माताएं अपने पुत्रों की रक्षा और दीर्घायु के लिए जितिया व्रत रखने लगीं।
राज्य / क्षेत्र |
प्रमुख परंपराएं |
बिहार |
घरों में अल्पना बनाई जाती है, कथा में लोकगीत गाए जाते हैं |
उत्तर प्रदेश |
महिलाएं सामूहिक रूप से मंदिरों में कथा सुनती हैं |
झारखंड |
मिट्टी के भगवान बनाए जाते हैं और पूजा की जाती है |
नेपाल |
तामांग व अन्य जनजातियां इस दिन पारंपरिक भोजन बनाती हैं |
जितिया व्रत 2025 (Jitiya Vrat 2025) न केवल एक धार्मिक परंपरा है, बल्कि यह मातृत्व की शक्ति, त्याग और संकल्प का प्रतीक है। यह पर्व माताओं के अद्वितीय प्रेम और उनके द्वारा की गई कठिन तपस्या का एक रूप है, जो संतान के कल्याण के लिए समर्पित है। यदि आप भी इस व्रत को विधिवत और श्रद्धा के साथ करते हैं, तो निश्चित रूप से आपके जीवन में सुख, सौभाग्य और शांति का आगमन होगा।
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