May 2, 2025 Blog

Kanakadhara Stotram: धन प्राप्ति एवं माँ लक्ष्मी की कृपा के लिए करे इस स्तोत्र का पाठ

BY : STARZSPEAK

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Kanakadhara Stotram: कनकधारा स्तोत्र एक दिव्य स्तुति है जो मां लक्ष्मी को समर्पित है, और इसे महान संत आदि शंकराचार्य ने रचा था। इसमें देवी लक्ष्मी की सुंदरता, करुणा और उदारता का भावपूर्ण वर्णन किया गया है। यह स्तोत्र न सिर्फ एक स्तुति है, बल्कि मां लक्ष्मी से धन, सुख-समृद्धि और मानसिक शांति की प्रार्थना भी है।

इसका पाठ शुभ अवसरों जैसे दिवाली, धनतेरस या अक्षय तृतीया पर करना विशेष फलदायी माना जाता है, लेकिन इसे आप किसी भी दिन, किसी भी समय श्रद्धा से पढ़ सकते हैं।

नियमित रूप से कनकधारा स्तोत्र का पाठ (Kanakadhara Stotram Lyrics) करने से मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। यह न केवल आर्थिक समृद्धि को आकर्षित करता है, बल्कि जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाकर नकारात्मकता और बुरी शक्तियों से भी सुरक्षा प्रदान करता है।

!! श्री कनकधारा स्तोत्रम् !!

!! Shri Kanakadhara Stotram Lyrics !!

अंगहरे पुलकभूषण माश्रयन्ती भृगांगनैव मुकुलाभरणं तमालम।

अंगीकृताखिल विभूतिरपांगलीला मांगल्यदास्तु मम मंगलदेवताया:।।1।।

अर्थ: जैसे कोई भँवरा अधखिले फूलों से सजे तमाल के पेड़ पर जा बैठता है, वैसे ही मां लक्ष्मी की वो शुभदृष्टि — जो भगवान विष्णु के रोमांच से भरे हुए तेजस्वी शरीर पर हर पल टिकी रहती है, और जिसमें सम्पूर्ण ऐश्वर्य और शुभता का वास है — मेरे जीवन में भी शुभता और मंगल लेकर आए।

मुग्ध्या मुहुर्विदधती वदनै मुरारै: प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।

माला दृशोर्मधुकर विमहोत्पले या सा मै श्रियं दिशतु सागर सम्भवाया:।।2।।

अर्थ : जो देवी लक्ष्मी अमृत के सागर-सी उज्ज्वल आभा से चमकती हैं, जिनकी दृष्टि संसार की सारी विपत्तियों और कठिनाइयों को पल भर में दूर कर सकती है, और जिनका मात्र एक नजर का स्पर्श ही व्यक्ति के जीवन को बदल देता है — वे मां लक्ष्मी मुझे भी अपनी कृपा-दृष्टि से तुरंत लाभ दें। क्योंकि जहां-जहां उनका निवास होता है, वहां-वहां सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य स्वतः चला आता है। (Kanakadhara Stotram in hindi)


विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षमानन्द हेतु रधिकं मधुविद्विषोपि।

ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्द्धमिन्दोवरोदर सहोदरमिन्दिराय:।।3।।

अर्थ : जो देवी लक्ष्मी, स्वर्ग के राजा इंद्र को भी अपार वैभव देने की शक्ति रखती हैं, जिनकी उपस्थिति स्वयं विष्णु भगवान को भी गहरे आनंद से भर देती है, और जिनका रूप नीले कमल की कोमल गहराई जैसा मोहक लगता है — ऐसी मां लक्ष्मी के अधखुले नेत्रों की एक झलक भी अगर मुझ पर पड़ जाए, तो मेरा जीवन धन्य हो जाए।

आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दमानन्दकन्दम निमेषमनंगतन्त्रम्।

आकेकर स्थित कनी निकपक्ष्म नेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजंगरायांगनाया:।।4।।

अर्थ : शेषनाग पर विश्राम करने वाले भगवान विष्णु की प्रिय अर्धांगिनी मां लक्ष्मी के नेत्र हमें समृद्धि और ऐश्वर्य प्रदान करें। उनके सुंदर नेत्रों की पुतलियां और बरौनियां प्रेम से भरी होती हैं — जैसे प्रेम देवता (अनंग) के प्रभाव में हों। जब वे अपने प्रिय श्रीहरि मुकुंद को अपने पास देखते हैं, तो उनके नेत्र अपलक हो जाते हैं और प्रेम से थोड़े तिरछे हो उठते हैं। (Kanakadhara Stotram in hindi pdf)

बाह्यन्तरे मधुजित: श्रितकौस्तुभै या हारावलीव हरि‍नीलमयी विभाति।

कामप्रदा भगवतो पि कटाक्षमाला कल्याण भावहतु मे कमलालयाया:।।5।।

अर्थ : मां लक्ष्मी, जो भगवान विष्णु के वक्षस्थल पर कौस्तुभ मणि से सजी इंद्रनीलमणि जैसी हार की तरह शोभायमान होती हैं और जिनकी मधुर दृष्टि स्वयं श्रीहरि के मन में भी प्रेम का संचार कर देती है — वही कमल के कुंजों में निवास करने वाली कमला (लक्ष्मीजी) की सौम्य और स्नेहभरी नजरें मुझ पर भी कृपा बरसाएं और मेरा कल्याण करें। (Kanakadhara Stotram)

कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव्।

मातु: समस्त जगतां महनीय मूर्तिभद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनाया:।।6।।

अर्थ : जैसे काले बादलों के बीच बिजली चमकती है, वैसे ही माता लक्ष्मी भगवान विष्णु के श्यामवर्ण वक्षस्थल पर दिव्य आभा बिखेरती हैं। उनके प्रकट होने से भृगु वंश को आनंद की प्राप्ति हुई और वे संपूर्ण सृष्टि की जननी हैं। ऐसी पूजनीय और तेजस्विनी मां लक्ष्मी मेरी भी रक्षा करें और मुझे शुभता व कल्याण प्रदान करें।

प्राप्तं पदं प्रथमत: किल यत्प्रभावान्मांगल्य भाजि: मधुमायनि मन्मथेन।

मध्यापतेत दिह मन्थर मीक्षणार्द्ध मन्दालसं च मकरालयकन्यकाया:।।7।।

यह वही समुद्र-कन्या लक्ष्मी (कमला) की मंद, थोड़ी थकी हुई-सी और अधखुली आंखों वाली दृष्टि है, जिसकी कोमल छवि ने पहली बार भगवान मधुसूदन के हृदय में प्रेम का स्पर्श कराया था। आज वही दृष्टि मुझ पर पड़ी है।।7।।

दद्याद दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम स्मिभकिंचन विहंग शिशौ विषण्ण।

दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं नारायण प्रणयिनी नयनाम्बुवाह:।।8।।

भगवान नारायण की प्रिय लक्ष्मी जी की आंखें ऐसे मेघ के समान हैं, जिन्हें दया रूपी अनुकंपा की हवा ने प्रेरित किया है। मेरी जिंदगी के दुखद प्रारब्ध और बुरे कर्मों की छाया को वो दूर करें, और मेरे जैसे दुखी, आश्रित व्यक्ति पर अपने धन और समृद्धि की वर्षा करें, जैसे चातक पक्षी को बरसात का इंतजार होता है।।8।। (Kanakadhara Stotram pdf)

इष्टा विशिष्टमतयो पि यथा ययार्द्रदृष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लभंते।

दृष्टि: प्रहूष्टकमलोदर दीप्ति रिष्टां पुष्टि कृषीष्ट मम पुष्कर विष्टराया:।।9।।

जिनकी करुणामयी नजर जब किसी पर पड़ती है, तो बुद्धिमान लोग भी आसानी से स्वर्ग जैसे ऊँचे पद को पा जाते हैं — वही पद्मासना देवी लक्ष्मी की कमल जैसे खिले सौंदर्य से भरी दृष्टि मुझ पर भी पड़े और मेरी सभी मनचाही कामनाओं को पूरा करे।।9।।

गीर्देवतैति गरुड़ध्वज भामिनीति शाकम्भरीति शशिशेखर वल्लभेति।

सृष्टि स्थिति प्रलय केलिषु संस्थितायै तस्यै ‍नमस्त्रि भुवनैक गुरोस्तरूण्यै ।।10।।

जो सृष्टि के प्रारंभ में वाग्देवता (सरस्वती) के रूप में प्रकट होती हैं, और प्रलय के समय शाकम्भरी (दुर्गा) या चंद्रशेखर वल्लभा पार्वती (रुद्रशक्ति) के रूप में स्थापित होती हैं, मैं उन नित्य यौवन और दिव्य सौंदर्य से भरपूर श्री लक्ष्मी जी को, जो त्रिभुवन के एकमात्र पिता भगवान नारायण की प्रिय पत्नी हैं, शरणागत भाव से प्रणाम करता हूँ।।10।। (Kanakadhara Stotram lyrics)

श्रुत्यै नमोस्तु शुभकर्मफल प्रसूत्यै रत्यै नमोस्तु रमणीय गुणार्णवायै।

शक्तयै नमोस्तु शतपात्र निकेतानायै पुष्टयै नमोस्तु पुरूषोत्तम वल्लभायै।।11।।

माँ, शुभ कर्मों का फल देने वाली आप श्रुति के रूप में हमारे बीच हैं, आपको प्रणाम। आप जो रमणीय गुणों की सागर-सी हैं, रति रूप में हमारी श्रद्धा आपको समर्पित है। कमल के फूलों में बसी हुई शक्ति स्वरूपा लक्ष्मी को नमन है, और वह जो पुरुषोत्तम भगवान की प्रिय हैं, उन्हें भी सादर प्रणाम करता हूँ।।11।।

नमोस्तु नालीक निभाननायै नमोस्तु दुग्धौदधि जन्म भूत्यै ।

नमोस्तु सोमामृत सोदरायै नमोस्तु नारायण वल्लभायै।।12।।

कमल जैसे मुख वाली कमला देवी को नमन है। समुद्र में निवास करने वाली श्रीदेवी को प्रणाम है। चंद्रमा और अमृत की सगी बहन को सादर प्रणाम है। भगवान नारायण की प्रिय को नमस्कार है।।12।। (Kanakadhara Stotram lyrics in hindi)

सम्पतकराणि सकलेन्द्रिय नन्दानि साम्राज्यदान विभवानि सरोरूहाक्षि।

त्व द्वंदनानि दुरिता हरणाद्यतानि मामेव मातर निशं कलयन्तु नान्यम्।।13।।

कमल जैसे नेत्रों वाली पूज्य मां! आपके चरणों में जो प्रणाम किया जाता है, वह समृद्धि देने वाला, सभी इंद्रियों को सुख देने वाला, साम्राज्य प्रदान करने में सक्षम और सारे पापों का नाश करने वाला होता है। कृपया, ऐसे आशीर्वाद से हमेशा मुझे समर्थ बनाएं और सदा आपके चरणों में श्रद्धा रखने का सौभाग्य प्रदान करें।।13।।

यत्कटाक्षसमुपासना विधि: सेवकस्य कलार्थ सम्पद:।

संतनोति वचनांगमानसंसत्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे।।14।।

जो देवी अपनी कृपा की एक दृष्टि से उपासक के सारे इच्छित फल और संपत्ति को बढ़ा देती हैं, वही श्रीहरि की हृदयेश्वरी, लक्ष्मी देवी, मैं मन, वाणी और शरीर से उनका भजन करता हूँ।।14।।

सरसिजनिलये सरोज हस्ते धवलमांशुकगन्धमाल्यशोभे।

भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्।।15।।

भगवती हरिप्रिया! आप जो कमल के वन में निवास करती हैं, आपके हाथों में नीला कमल बहुत सुंदर दिखता है। आप जो अत्यंत चमकदार वस्त्र, सुगंधित पुष्प और माला से सजी हैं, आपकी झांकी सच में बहुत मोहक और आकर्षक है। त्रिभुवन का ऐश्वर्य देने वाली देवी, कृपया आप मुझ पर अपनी कृपा दृष्टि रखें।।15।। (Kanakadhara Stotram lyrics)

दग्धिस्तिमि: कनकुंभमुखा व सृष्टिस्वर्वाहिनी विमलचारू जल प्लुतांगीम।

प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष लोकाधिनाथ गृहिणी ममृताब्धिपुत्रीम्।।16।।

जो देवी दिग्गजों द्वारा स्वर्ण कलश से गिराए गए आकाश गंगा के शुद्ध और सुंदर जल से स्नान करती हैं, वह संपूर्ण ब्रह्मांड के स्वामी भगवान विष्णु की पत्नी और क्षीरसागर की पुत्री, जगज्जननी लक्ष्मी को मैं सादर प्रात:काल प्रणाम करता हूँ।।16।।

कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूरतरां गतैरपाड़ंगै:।

अवलोकय माम किंचनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयाया:।।17।।

कमल नयन केशव की प्रिय और सुंदर कमले! मैं एक अकिंचन (दीन-हीन) व्यक्ति हूं, इसलिये तुम्हारी कृपा का स्वाभाविक पात्र हूं। कृपया अपनी करुणा की उमड़ी हुई बाढ़ की तरह अपने कटाक्षों से मेरी ओर देखो और मुझे आशीर्वाद दें।।17।।

स्तुवन्ति ये स्तुतिभिर भूमिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्। 

गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते बुधभाविताया:।।18।।

जो लोग प्रतिदिन इन स्तुतिों के द्वारा त्रिभुवन की जननी और वेदत्रयी स्वरूपा भगवती लक्ष्मी की पूजा करते हैं, वे इस पृथ्वी पर महान गुणों वाले और अत्यधिक सौभाग्यशाली होते हैं। इसके अलावा, विद्वान लोग भी उनके विचारों और भावनाओं को जानने के लिए उत्सुक रहते हैं।।18।। (Kanakadhara Stotram lyrics)


।।इति कनक धारा स्त्रोत समाप्त।।


कनकधारा स्तोत्र पढ़ने के लाभ (Benefits Of Chanting Kanakadhara Stotram )

आर्थिक तंगी एक ऐसी स्थिति है जिससे लगभग हर इंसान किसी न किसी मोड़ पर जूझता है। ऐसे में हम सभी चाहते हैं कि हमारे जीवन में धन की स्थिरता बनी रहे और समृद्धि का मार्ग खुले। इसी दिशा में एक बेहद प्रभावशाली उपाय है — कनकधारा स्तोत्र का पाठ (Kanakadhara Stotram Lyrics)

कनकधारा स्तोत्र की खास बात यह है कि इसे पढ़ने के लिए किसी विशेष पूजा-विधि, माला या जप की ज़रूरत नहीं होती। इसे आप सिर्फ दिन में एक बार श्रद्धा से पढ़ें, यही पर्याप्त है। इसके साथ अगर आप प्रतिदिन कनकधारा यंत्र के सामने दीपक और अगरबत्ती लगाते हैं, तो यह और भी प्रभावशाली हो जाता है। हालांकि, यदि किसी दिन आप यह करना भूल भी जाएं, तब भी इसका असर बना रहता है क्योंकि यह स्तोत्र (Kanakadhara Stotram) अपने आप में एक सिद्ध और शक्तिशाली पाठ है।

आप कनकधारा यंत्र (Kanakdhara Yantra) को किसी भी पूजा सामग्री की दुकान से आसानी से प्राप्त कर सकते हैं और अपने पूजाघर में स्थापित कर सकते हैं। मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए जितने भी यंत्र और स्तोत्र हैं, उनमें से कनकधारा यंत्र और स्तोत्र को सबसे जल्द फल देने वाला और प्रभावशाली माना जाता है।