Durga Kavach In Hindi: देवी दुर्गा कवच का पाठ अत्यंत प्रभावशाली और मंगलकारी माना जाता है। यह न केवल शरीर के प्रत्येक अंग की सुरक्षा करता है, बल्कि महामारी और विविध संकटों से रक्षा करने की शक्ति भी प्रदान करता है। इस पाठ का नियमित जाप संपूर्ण स्वास्थ्य और शुभता का आशीर्वाद दिलाता है। मान्यता है कि गुप्त नवरात्रि के दौरान देवी दुर्गा कवच का पाठ (Durga Kavach Lyrics) करने से विशेष आध्यात्मिक और अद्भुत लाभ प्राप्त होते हैं। इसे पूर्ण श्रद्धा और पवित्रता के साथ करने से देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है।
ॐ नमश्चण्डिकायै।
ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्।
यन्न कस्य चिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह॥1॥
॥मार्कण्डेय उवाच॥
मार्कण्डेय जी ने कहा— "हे पितामह! कृपया मुझे ऐसा परम गोपनीय साधन बताइए, जो इस संसार में मनुष्यों की हर प्रकार से रक्षा करने वाला हो और जिसे अब तक आपने किसी और के समक्ष प्रकट न किया हो।" (Durga Kavach Lyrics In Hindi)
॥ब्रह्मोवाच॥
अस्ति गुह्यतमं विप्रा सर्वभूतोपकारकम्।
दिव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्वा महामुने॥2॥
हे ब्रह्मन्! ऐसा एकमात्र साधन देवी का दिव्य कवच है, जो अत्यंत गोपनीय, पवित्र और समस्त प्राणियों के कल्याणकारी है। हे महामुने! ध्यानपूर्वक इसे सुनो।
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्॥3॥
पहला स्वरूप शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है, दूसरा ब्रह्मचारिणी के रूप में विख्यात है। तीसरे स्वरूप को चन्द्रघण्टा कहा जाता है, जबकि चौथा रूप कूष्माण्डा के नाम से प्रसिद्ध है। Durga Kavach Lyrics)
पचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्॥4॥
पाँचवें स्वरूप को स्कन्दमाता कहा जाता है, जबकि छठी देवी कात्यायनी के नाम से जानी जाती हैं। सातवाँ रूप कालरात्रि के रूप में प्रसिद्ध है, और आठवाँ स्वरूप महागौरी के नाम से विख्यात है। (Durga Kavach)
नवमं सिद्धिदात्री च नव दुर्गाः प्रकीर्तिताः।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना॥5॥
नवम स्वरूप को सिद्धिदात्री के नाम से जाना जाता है। इन सभी नामों का उल्लेख सर्वज्ञ महात्मा वेदभगवान द्वारा किया गया है।
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अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे।
विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः॥6॥
जो व्यक्ति अग्नि में घिरा हो, युद्धभूमि में शत्रुओं से घिरा हो या किसी गंभीर संकट में फंसा हो, यदि वह भय से व्याकुल होकर माँ दुर्गा की शरण लेता है, तो उसका कभी अनिष्ट नहीं होता।
न तेषां जायते किंचिदशुभं रणसंकटे।
नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न ही॥7॥
युद्ध के दौरान या किसी संकट में पड़ने पर भी उन पर कोई विपत्ति नहीं आती। उन्हें न तो शोक का सामना करना पड़ता है और न ही भय या दुःख का अनुभव होता है।
यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां वृद्धिः प्रजायते।
ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः॥8॥
जो भक्तिपूर्वक देवी का स्मरण करते हैं, उनका निश्चित रूप से कल्याण होता है। हे देवेश्वरी! जो श्रद्धा से तुम्हारा चिंतन करते हैं, तुम निसंदेह उनकी रक्षा करती हो
प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना।
ऐन्द्री गजसमारूढा वैष्णवी गरुडासना॥9॥
चामुण्डादेवी प्रेत पर विराजमान होती हैं, जबकि वाराही भैंसे की सवारी करती हैं। ऐन्द्री का वाहन ऐरावत हाथी है, और वैष्णवी देवी गरुड़ पर विराजती हैं।
माहेश्वरी वृषारूढा कौमारी शिखिवाहना।
लक्ष्मी: पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया॥10॥
माहेश्वरी वृषभ पर सवार होती हैं, जबकि कौमारी का वाहन मयूर है। भगवान विष्णु की प्रिय लक्ष्मी देवी कमल के आसन पर विराजमान हैं और उनके हाथों में कमल सुशोभित रहता है।
श्वेतरूपधारा देवी ईश्वरी वृषवाहना।
ब्राह्मी हंससमारूढा सर्वाभरणभूषिता॥ 11॥
ईश्वरी देवी, वृषभ पर विराजमान होकर स्वेत आभा बिखेरती हैं, जबकि ब्राह्मी देवी हंस पर आरूढ़ होकर विविध आभूषणों से अलंकृत हैं।
इत्येता मातरः सर्वाः सर्वयोगसमन्विताः।
नानाभरणशोभाढया नानारत्नोपशोभिता:॥ 12॥
ये सभी देवियाँ अद्भुत योग शक्तियों से सम्पन्न हैं। इनके अलावा, अन्य कई देवियाँ भी हैं, जो विविध आभूषणों की शोभा बढ़ाती हैं और विभिन्न रत्नों से अलंकृत होकर अद्वितीय तेज से जगमगाती हैं।
दृश्यन्ते रथमारूढा देव्याः क्रोधसमाकुला:। शंखम चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम्॥13॥
खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च। कुन्तायुधं त्रिशूलं च शार्ङ्गमायुधमुत्तमम्॥ 14॥
दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च। धारयन्त्यायुद्धानीथं देवानां च हिताय वै॥ 15॥
ये सभी देवियाँ क्रोध से भरी हुई हैं और भक्तों की रक्षा के लिए रथ पर विराजमान दिखाई देती हैं। उनके हाथों में शंख, चक्र, गदा, शक्ति, हल, मूसल, खेटक, तोमर, परशु, पाश, कुन्त, त्रिशूल और दिव्य शार्ङ्गधनुष जैसे शक्तिशाली अस्त्र-शस्त्र सुशोभित होते हैं। उनका मुख्य उद्देश्य दैत्यों का संहार करना, भक्तों को अभयदान देना और देवताओं का कल्याण सुनिश्चित करना है। (Durga Kavach Lyrics In Hindi)
नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे।
महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनि॥16॥
हे महाशक्ति! तुम्हारा रौद्र रूप अत्यंत प्रचंड है, तुम्हारा पराक्रम अद्वितीय और बल अपार है। तुम महान उत्साह से भरपूर होकर समस्त भय का नाश करने वाली हो। तुम्हें कोटि-कोटि नमन!
त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिनि। प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्रि आग्नेय्यामग्निदेवता॥ 17॥
दक्षिणेऽवतु वाराही नैऋत्यां खड्गधारिणी। प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी॥ 18॥
हे जगदम्बिके! तुम्हारा तेज इतना प्रबल है कि तुम्हारी ओर देखना भी कठिन है। शत्रुओं में भय उत्पन्न करने वाली माँ, मेरी रक्षा करो। पूर्व दिशा में ऐन्द्री, अग्निकोण में अग्निशक्ति, दक्षिण में वाराही और नैऋत्य दिशा में खड्गधारिणी मेरी रक्षा करें। पश्चिम में वारुणी देवी और वायव्य दिशा में मृग पर विराजमान देवी मेरी रक्षा करें। उत्तर दिशा में कौमारी और ईशान कोण में शूलधारिणी देवी रक्षा करें। (Durga Kavach pdf)
उदीच्यां पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी।
ऊर्ध्वं ब्रह्माणी में रक्षेदधस्ताद् वैष्णवी तथा॥ 19॥
पश्चिम में वारुणी देवी और वायव्य दिशा में मृग पर विराजमान देवी मेरी रक्षा करें। उत्तर दिशा में कौमारी और ईशान कोण में शूलधारिणी देवी रक्षा करें। (Durga Raksha Kavach)
एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहाना।
जाया मे चाग्रतः पातु: विजया पातु पृष्ठतः॥ 20॥
ब्रह्माणी ऊपर से और वैष्णवी नीचे से मेरी रक्षा करें। चामुण्डा देवी दसों दिशाओं में मेरी सुरक्षा करें। जया आगे से और विजया पीछे से मेरी रक्षा करें।
अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापराजिता।
शिखामुद्योतिनि रक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता॥21॥
वामभाग में अजिता और दक्षिण भाग में अपराजिता रक्षा करें। उद्योतिनी मेरी शिखा की रक्षा करें और माँ उमा मेरे मस्तक पर विराजमान होकर मेरी सुरक्षा करें।
मालाधारी ललाटे च भ्रुवो रक्षेद् यशस्विनी।
त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके॥ 22॥
मेरे ललाट की रक्षा मालाधरी देवी करें, जबकि यशस्विनी देवी मेरी भौंहों का संरक्षण करें। भौंहों के मध्य त्रिनेत्रा देवी रक्षा करें और नथुनों की रक्षा यमघण्टा देवी करें। (Durga Kavach Pdf)
शङ्खिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी।
कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तु शङ्करी ॥ 23॥
शंख आंखों के बीच और कानों के द्वार पर स्थित है। कालिका को गालों की और शंकरी को कानों की जड़ की रक्षा करनी चाहिए। 23॥
नासिकायां सुगन्धा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका।
अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती॥ 24॥
नासिका की रक्षा सुगंधा देवी करें, ऊपर के ओंठ की रक्षा चर्चिका देवी करें। नीचे के ओंठ की सुरक्षा अमृतकला देवी करें और जिह्वा की रक्षा सरस्वती देवी करें।
दन्तान् रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका।
घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके॥ 25॥
कौमारी देवी दाँतों की रक्षा करें, जबकि चण्डिका देवी कंठ प्रदेश की सुरक्षा करें। चित्रघण्टा देवी गले की देखभाल करें और महामाया देवी तालु की रक्षा करें। (Durga Kavach)
कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वाचं मे सर्वमंगला।
ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धारी॥ 26॥
कामाक्षी देवी ठोड़ी की रक्षा करें और सर्वमंगला देवी मेरी वाणी का संरक्षण करें। भद्रकाली गले की रक्षा करें, जबकि धनुर्धरी देवी मेरुदंड (पृष्ठवंश) की सुरक्षा करें।
नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी।
स्कन्धयोः खड्गिनी रक्षेद् बाहू मे वज्रधारिणी॥27॥
गले के बाहरी भाग की रक्षा नीलग्रीवा करें, जबकि कंठ नली की सुरक्षा नलकूबरी देवी करें। दोनों कंधों की रक्षा खड्गिनी करें और मेरी दोनों भुजाओं का संरक्षण वज्रधारिणी देवी करें। (Durga Kavach Lyrics)
हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चान्गुलीषु च।
नखाञ्छूलेश्वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्वरी॥28॥
दोनों हाथों की रक्षा दण्डिनी करें, जबकि उंगलियों की सुरक्षा अम्बिका देवी करें। नखों की रक्षा शूलेश्वरी करें, और पेट (कुक्षि) की रक्षा कुलेश्वरी देवी करें।
स्तनौ रक्षेन्महादेवी मनः शोकविनाशिनी।
हृदये ललिता देवी उदरे शूलधारिणी॥ 29॥
महादेवी दोनों स्तनों की रक्षा करें, जबकि शोकविनाशिनी देवी मन की सुरक्षा करें। ललिता देवी हृदय में विराजमान होकर रक्षा करें, और शूलधारिणी उदर की रक्षा करें।
नाभौ च कामिनी रक्षेद् गुह्यं गुह्येश्वरी तथा। पूतना कामिका मेढ्रं गुहे महिषवाहिनी॥30॥
कट्यां भगवतीं रक्षेज्जानूनी विन्ध्यवासिनी। जङ्घे महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी॥31॥
नाभि की रक्षा कामिनी देवी करें, जबकि गुह्यभाग की सुरक्षा गुह्येश्वरी देवी करें। पूतना और कामिका लिंग की रक्षा करें, और महिषवाहिनी गुदा की सुरक्षा करें। भगवती कटि प्रदेश की रक्षा करें, वहीं विन्ध्यवासिनी घुटनों की रक्षा करें। समस्त इच्छाओं को पूर्ण करने वाली महाबला देवी दोनों पिण्डलियों की रक्षा करें।
गुल्फयोर्नारसिंही च पादपृष्ठे तु तैजसी।
पादाङ्गुलीषु श्रीरक्षेत्पादाध:स्तलवासिनी॥32॥
नरसिंही देवी दोनों घुटनों की रक्षा करें, जबकि तेजस्विनी देवी दोनों पैरों के पृष्ठभाग की सुरक्षा करें। श्रीदेवी पैरों की उंगलियों की रक्षा करें, और तलवासिनी देवी पैरों के तलवों की सुरक्षा करें।
नखान् दंष्ट्रा कराली च केशांशचैवोर्ध्वकेशिनी।
रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्वरी तथा॥33॥
दंष्ट्राकराली देवी, जो अपनी भयावह दाढ़ों के कारण भयानक प्रतीत होती हैं, नखों की रक्षा करें, जबकि ऊर्ध्वकेशिनी देवी केशों की सुरक्षा करें। कौबेरी देवी रोमकूपों की रक्षा करें, और वागीश्वरी देवी त्वचा की सुरक्षा करें।
रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती। अन्त्राणि कालरात्रिश्च पित्तं च मुकुटेश्वरी॥ 34 ॥
पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा। ज्वालामुखी नखज्वालामभेद्या सर्वसन्धिषु॥35 ॥
पार्वती देवी रक्त, मज्जा, वसा, मांस, हड्डी और मेद की रक्षा करें। कालरात्रि देवी आँतों की और मुकुटेश्वरी देवी पित्त की सुरक्षा करें। मूलाधार सहित सभी कमल-कोशों में पद्मावती देवी स्थित होकर रक्षा करें, जबकि चूड़ामणि देवी कफ की सुरक्षा करें। नखों की आभा की रक्षा ज्वालामुखी देवी करें। अभेद्या देवी, जिसे किसी भी अस्त्र से भेदा नहीं जा सकता, शरीर की समस्त संधियों में रहकर रक्षा करें।
शुक्रं ब्रह्माणी मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा।
अहङ्कारं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी॥36॥
ब्रह्माणी देवी मेरे वीर्य की रक्षा करें, छत्रेश्वरी देवी मेरी छाया की सुरक्षा करें, और धर्मधारिणी देवी मेरे अहंकार, मन और बुद्धि की रक्षा करें।
प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम्।
वज्रहस्ता च मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना॥37॥
वज्रधारी वज्रहस्ता देवी मेरे प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान वायु की रक्षा करें, जबकि कल्याणमयी भगवती कल्याण शोभना मेरे जीवन की सुरक्षा करें।
रसे रूपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी।
सत्वं रजस्तमश्चैव रक्षेन्नारायणी सदा॥38॥
रस, रूप, गंध, शब्द और स्पर्श का अनुभव करते समय योगिनी देवी मेरी रक्षा करें, जबकि सत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुण की सुरक्षा सदैव नारायणी देवी करें।
आयू रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी।
यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी॥39॥
वाराही देवी आयु की रक्षा करें, वैष्णवी देवी धर्म की सुरक्षा करें, और चक्रधारी चक्रिणी देवी यश, कीर्ति, लक्ष्मी, धन और विद्या की रक्षा करें। (Durga Kavach Lyrics)
गोत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके।
पुत्रान् रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी॥40॥
हे इन्द्राणि! आप मेरे कुल की रक्षा करें। हे चण्डिके! आप मेरे पशुओं की रक्षा करें। महालक्ष्मी मेरे संतानों का संरक्षण करें और भैरवी मेरी पत्नी की रक्षा करें।
पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तथा।
राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता॥ 41॥
मेरे मार्ग को शुभ और सुरक्षित बनाने वाली देवी रक्षा करें। राजा के दरबार में महालक्ष्मी मेरी सुरक्षा करें, और सर्वव्यापी विजया देवी सभी प्रकार के भय से मेरी रक्षा करें।
रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु।
तत्सर्वं रक्ष मे देवी जयन्ती पापनाशिनी॥ 42॥
हे देवी! जो स्थान इस कवच (Durga Kavach) में उल्लेखित नहीं है और सुरक्षा से वंचित रह गया है, उसकी रक्षा भी तुम ही करो। क्योंकि तुम ही विजयशालिनी हो और समस्त पापों का नाश करने वाली हो।
रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु। तत्सर्वं रक्ष मे देवी जयन्ती पापनाशिनी॥43॥
पदमेकं न गच्छेतु यदिच्छेच्छुभमात्मनः। कवचेनावृतो नित्यं यात्र यत्रैव गच्छति॥44॥
तत्र तत्रार्थलाभश्च विजयः सर्वकामिकः। यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम्।
परमैश्वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान्॥
यदि कोई अपने कल्याण की कामना करता है, तो उसे बिना कवच के एक भी कदम नहीं उठाना चाहिए। यात्रा पर निकलने से पहले कवच का पाठ (Durga Kavach Lyrics) अवश्य करें। कवच के प्रभाव से चारों ओर से सुरक्षित व्यक्ति जहाँ भी जाता है, वहाँ उसे धन-लाभ होता है और उसकी सभी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं। इसके प्रभाव से वह निश्चित रूप से विजय प्राप्त करता है और जो भी वस्तु पाने की इच्छा करता है, उसे हासिल कर लेता है। ऐसा व्यक्ति इस पृथ्वी पर अपार ऐश्वर्य और अद्वितीय समृद्धि का अधिकारी बनता है।
निर्भयो जायते मर्त्यः सङ्ग्रमेष्वपराजितः।
त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान्॥45॥
कवच (Durga kavach) से सुरक्षित व्यक्ति निर्भय हो जाता है। उसे युद्ध में कभी पराजय का सामना नहीं करना पड़ता और वह तीनों लोकों में सम्मान और पूजन का अधिकारी बनता है।
इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम्। य: पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः॥46॥
दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वपराजितः। जीवेद् वर्षशतं साग्रामपमृत्युविवर्जितः॥47॥
देवी का यह कवच (Devi Durga Kavach) देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। जो व्यक्ति इसे प्रतिदिन नियमपूर्वक तीनों संध्याओं के समय श्रद्धा और भक्ति के साथ पढ़ता है, वह दैवी शक्तियों से संपन्न हो जाता है और तीनों लोकों में अजेय रहता है। साथ ही, वह अकाल मृत्यु से मुक्त होकर सौ से अधिक वर्षों तक स्वस्थ और सुखमय जीवन व्यतीत करता है।
नश्यन्ति टयाधय: सर्वे लूताविस्फोटकादयः। स्थावरं जङ्गमं चैव कृत्रिमं चापि यद्विषम्॥ 48॥
अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले। भूचराः खेचराशचैव जलजाश्चोपदेशिकाः॥49॥
सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा। अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्च महाबला॥ 50॥
ग्रहभूतपिशाचाश्च यक्षगन्धर्वराक्षसा:। ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः॥ 51॥
नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते। मानोन्नतिर्भावेद्राज्यं तेजोवृद्धिकरं परम्॥ 52॥
यह कवच समस्त रोगों और विष प्रभावों को नष्ट करने में सक्षम है। चेचक, कोढ़, मकरी जैसी बीमारियाँ इससे दूर हो जाती हैं। स्थावर विष—जैसे कनेर, भाँग, अफीम, धतूरा—और जंगम विष—जैसे साँप-बिच्छू का ज़हर—साथ ही कृत्रिम रूप से निर्मित विष भी इसके प्रभाव से निष्फल हो जाते हैं।
पृथ्वी पर किए जाने वाले मारण-मोहन आदि तांत्रिक प्रयोग और उनके मंत्र-यंत्र भी इस कवच (Maa Durga Kavach) को धारण करने वाले व्यक्ति के सामने निष्क्रिय हो जाते हैं। ग्राम देवता, आकाश में विचरण करने वाले विशेष देव, जल से उत्पन्न शक्तियाँ, जन्मजात देवता, कुलदेवता, डाकिनी, शाकिनी, भूत-प्रेत, यक्ष, गंधर्व, राक्षस, ब्रह्मराक्षस, बेताल, भैरव आदि हानिकारक शक्तियाँ भी कवचधारी व्यक्ति को देखकर दूर भाग जाती हैं।
जो व्यक्ति इस कवच (Durga Kavach) को धारण करता है, उसे राजा से सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। यह कवच न केवल व्यक्ति के तेज को बढ़ाने वाला है, बल्कि जीवन में सर्वश्रेष्ठ फल देने वाला भी है।
नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते। मानोन्नतिर्भावेद्राज्यं तेजोवृद्धिकरं परम्॥ 53॥
यशसा वद्धते सोऽपी कीर्तिमण्डितभूतले। जपेत्सप्तशतीं चणण्डीं कृत्वा तु कवचं पूरा॥ 54॥
यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम्। तावत्तिष्ठति मेदिनयां सन्ततिः पुत्रपौत्रिकी॥
जो व्यक्ति इस कवच का पाठ (Durga kavach Lyrics) करता है, वह अपने यश और कीर्ति से विभूषित होकर निरंतर उन्नति प्राप्त करता है। जो पहले देवी कवच का पाठ करके फिर सप्तशती चण्डी का पाठ करता है, उसकी वंश परंपरा तब तक बनी रहती है, जब तक यह धरती अपने वन, पर्वत और उपवनों सहित स्थिर रहती है।
देहान्ते परमं स्थानं यात्सुरैरपि दुर्लभम्।
प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः॥55॥
लभते परमं रूपं शिवेन सह मोदते ॥ॐ॥ ॥ 56॥
जीवन के अंत के पश्चात, भगवती महामाया की कृपा से वह व्यक्ति परमपद को प्राप्त करता है, जो देवताओं के लिए भी दुर्लभ माना जाता है। वहां वह दिव्य और सुंदर स्वरूप धारण कर कल्याणकारी शिव के साथ आनंद का अनुभव करता है। (Durga Kavach Lyrics)
। इति देव्या: कवचं सम्पूर्णम् ।
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