Dev Diwali 2025: दिवाली के लगभग 15 दिन बाद मनाई जाने वाली देव दीपावली हिंदू धर्म का एक अत्यंत पवित्र और भव्य पर्व है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने का विशेष महत्व बताया गया है, क्योंकि माना जाता है कि इस स्नान से सभी पाप धुल जाते हैं और देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
शाम होते ही वाराणसी के घाटों पर एक अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है — लाखों मिट्टी के दीपकों की रोशनी से पूरा शहर मानो स्वर्ग जैसा जगमगा उठता है। केवल घाट ही नहीं, बल्कि काशी के हर मंदिर और हर गली दीपों की रौशनी से आलोकित हो उठती है। यह दृश्य श्रद्धा, भक्ति और सौंदर्य का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है, जो देवताओं का स्वागत करने का प्रतीक है।
वैदिक पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 4 नवंबर 2025 को रात 10 बजकर 36 मिनट पर होगी, और यह तिथि अगले दिन यानी 5 नवंबर को शाम 6 बजकर 48 मिनट तक रहेगी। इसी कारण देव दीपावली का पावन पर्व बुधवार, 5 नवंबर 2025 (5 November 2025) को मनाया जाएगा। इस दिन भगवान शिव और सभी देवताओं की आराधना कर दीप जलाने से विशेष पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

हिंदू परंपरा में देव दिवाली को देवों के देव महादेव की विजय का पर्व माना गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, देव दीपावली का संबंध भगवान शिव से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में त्रिपुरासुर नामक एक असुर अपने अत्याचारों से देवताओं, ऋषियों और मनुष्यों को अत्यंत कष्ट दे रहा था। तब कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने उसका संहार किया और संसार को उसके आतंक से मुक्त कराया। उसी विजय के उपलक्ष्य में देवताओं ने प्रसन्न होकर दीप जलाए थे। तभी से यह दिन त्रिपुरोत्सव या त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी प्रसिद्ध हुआ। माना जाता है कि इसी दिन देवी-देवता स्वयं काशी में आकर दीप जलाते हैं, इसलिए इसे देवताओं की दीपावली या देव दीपावली (Dev Deepawali) कहा जाता है।
इसके अलावा, इस दिन का संबंध भगवान विष्णु से भी जोड़ा जाता है। मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन श्रीहरि ने मत्स्य अवतार धारण किया था। साथ ही, कुछ श्रद्धालु इस तिथि को भगवान विष्णु के योगनिद्रा से जागने का दिन मानते हैं और माता लक्ष्मी व भगवान नारायण की संयुक्त पूजा करते हैं। इसलिए यह दिन शिव और विष्णु, दोनों की आराधना के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
देव दीपावली के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर पवित्र नदी में स्नान करना अत्यंत शुभ माना जाता है, खासतौर पर वाराणसी के घाटों पर स्नान का विशेष महत्व होता है। यदि वहां जाना संभव न हो, तो घर पर ही पानी में कुछ बूंदें गंगाजल मिलाकर स्नान किया जा सकता है। इसके बाद सुबह के समय मिट्टी के दीपक में घी या तिल का तेल भरकर दीप जलाना और दीपदान करना बहुत ही पुण्यदायी माना गया है।
देव दिवाली के दिन वाराणसी के घाटों का दृश्य अत्यंत मनमोहक होता है। लाखों दीयों की चमक गंगा के जल पर ऐसी झिलमिलाती है मानो धरती पर तारे उतर आए हों। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस पवित्र दिन गंगा स्नान करने और दान देने से अत्यधिक पुण्य की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि देव दीपावली (Dev Diwali) की रात काशी के घाटों पर दीपदान करने से व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का संचार होता है तथा उसे अनंत लोक का फल प्राप्त होता है।
यह भी पढ़ें - Baikunth Chaturdashi 2025: बैकुंठ चतुर्दशी क्यों मनाते है? इस दिन महादेव ने विष्णु जी को क्या वरदान दिया थादेव दिवाली का पर्व भगवान शिव और भगवान विष्णु दोनों की आराधना का अद्भुत संगम है। इस दिन यदि सही विधि-विधान से पूजा की जाए, तो दोनों देवताओं का आशीर्वाद एक साथ प्राप्त होता है।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, किसी भी शुभ कार्य में विषम संख्या में दीप जलाना अत्यंत शुभ माना जाता है। देव दीपावली के अवसर पर भी यही परंपरा अपनाई जाती है। इस दिन आप शुभ मुहूर्त में 5, 7, 9, 11, 51 या 101 दीपक जला सकते हैं। अगर आप इससे अधिक दीप जलाना चाहें, तो बस इस बात का ध्यान रखें कि उनकी संख्या विषम हो, क्योंकि ऐसा करने से पूजा का फल और अधिक बढ़ जाता है।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपकाय नमोस्तुते।।
दीपो ज्योति परंब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दन:।
दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोस्तुते।।
देव दिवाली (Dev Diwali) केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आस्था, प्रकाश और आध्यात्मिकता का संगम है। यह दिन भगवान शिव की विजय और देवताओं के आनंद का प्रतीक माना जाता है। वाराणसी के घाटों पर जगमगाते दीप न केवल गंगा की लहरों को रोशन करते हैं, बल्कि भक्तों के हृदय में भी भक्ति का प्रकाश भर देते हैं। देव दीपावली हमें सिखाती है कि जब हम अपने भीतर के अंधकार को मिटाकर श्रद्धा और प्रेम के दीप जलाते हैं, तभी सच्चे अर्थों में जीवन प्रकाशमय बनता है। इस पावन अवसर पर स्नान, पूजा और दीपदान के माध्यम से अपने जीवन में सकारात्मकता, शांति और समृद्धि का स्वागत करें।
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Neha Jain is a festival writer with 7+ years’ experience explaining Indian rituals, traditions, and their cultural meaning, making complex customs accessible and engaging for today’s modern readers.