Jyeshtha Gauri Avahan 2025: भारत एक ऐसा देश है जहां हर गली, हर राज्य और हर समुदाय में विविधता रची-बसी है। अलग-अलग धर्म, बोलियाँ, परंपराएं और रीति-रिवाज़ यहाँ के जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। यही कारण है कि यहां साल भर में सैकड़ों नहीं, बल्कि हजारों त्योहार मनाए जाते हैं—हर एक त्योहार के साथ जुड़ी होती है एक अनोखी कहानी, संस्कृति और भावना। यह भारत की गहराई से जुड़ी हुई सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है।
यहाँ के त्योहार न केवल धार्मिक आस्था को दर्शाते हैं, बल्कि सामाजिक मेलजोल, पारिवारिक एकता और पारंपरिक मूल्यों को भी मजबूत करते हैं। अधिकतर पर्व किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित होते हैं, जिनकी पूजा श्रद्धा और विधिविधान के साथ की जाती है। ऐसे ही एक विशेष त्योहार का नाम है गौरी पूजन, जो देवी पार्वती के एक रूप—गौरी माता—को समर्पित होता है।
गौरी पूजन एक पावन पर्व है जो मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा मनाया जाता है और देवी गौरी के प्रति श्रद्धा, प्रेम और सम्मान को दर्शाता है। इसे मंगला गौरी व्रत या ज्येष्ठ गौरी पूजा (Jyeshtha Gauri Puja) के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व विशेषकर महाराष्ट्र में बड़े श्रद्धा भाव से मनाया जाता है, लेकिन इसकी महिमा कई अन्य राज्यों में भी देखने को मिलती है।
साल 2025 में ज्येष्ठा गौरी पूजन (Jyeshtha Gauri Puja) का पावन पर्व सोमवार, 1 सितंबर को मनाया जाएगा। यह दिन माता गौरी की कृपा पाने के लिए बेहद शुभ माना गया है। इस दिन श्रद्धालु पूरे विधि-विधान से देवी गौरी की पूजा करते हैं, विशेष रूप से महिलाएं इस दिन का बड़ी श्रद्धा से पालन करती हैं।
पूजन के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 05:59 बजे से शुरू होकर शाम 06:43 बजे तक रहेगा। इस अवधि में माता की पूजा करना विशेष फलदायी माना जाता है, क्योंकि यह समय ऊर्जा और सकारात्मकता से भरपूर होता है। कुल मिलाकर पूजन की अवधि करीब 12 घंटे 43 मिनट की होगी।
इस पर्व (Jyeshtha Gauri Pujan 2025 Date) की शुरुआत 31 अगस्त 2025, रविवार को गौरी माता के ‘आवाहन’ से होती है, यानी उस दिन माता को विधिपूर्वक घर में आमंत्रित किया जाता है। इसके बाद 1 सितंबर को मुख्य पूजन होता है और 2 सितंबर, मंगलवार को विधिवत विसर्जन के साथ माता को विदा किया जाता है।
इस व्रत और पूजन का गहरा संबंध ज्येष्ठा नक्षत्र से भी है। यह नक्षत्र 31 अगस्त की शाम 05:27 बजे आरंभ होगा और 1 सितंबर की शाम 07:55 बजे तक प्रभाव में रहेगा। इसी नक्षत्र में गौरी पूजन करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है और देवी की कृपा बनी रहती है।
इस तरह 2025 में गौरी पूजन (Jyeshtha Gauri Puja 2025) का यह पर्व श्रद्धा, आस्था और पारंपरिक भावनाओं से परिपूर्ण रहेगा, जो भक्तों के जीवन में सुख-समृद्धि और सौभाग्य लेकर आएगा।
यह भी पढ़ें - Mahalaxmi Vrat 2025: कब से शुरू हो रहा है महालक्ष्मी व्रत, जानिए इसकी पूजा विधि एवं नियम
गौरी पूजन (Gauri Pujan) आमतौर पर गणेश चतुर्थी के तीसरे दिन से शुरू होता है, जब देवी गौरी का स्वागत विधिवत किया जाता है। यह आवाहन एक पारंपरिक रीतिरिवाज़ होता है जिसमें गौरी माता की मूर्ति को घर लाया जाता है और पूजा की जाती है। तीसरे दिन से लेकर पाँचवे दिन तक यह पर्व चलता है, जिसमें दूसरे दिन विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। पांचवें दिन देवी की मूर्ति का विसर्जन कर उन्हें विदा किया जाता है।
पूजन के दौरान महिलाएं पारंपरिक पोशाक पहनती हैं, गीत-भजन गाए जाते हैं, और हाथों में मेहंदी रचाई जाती है। देवी को विशेष भोग अर्पित किया जाता है, जैसे पूरणपोली, खीर, मोदक आदि। महिलाएं देवी गौरी के समक्ष दीप जलाकर उनकी आराधना करती हैं और अपने मन की मुरादें कहती हैं।
अगर आप घर पर ही गौरी माता की पूजा करना चाहते हैं, तो इसके लिए कुछ विशेष चीजों की आवश्यकता होती है और पूजा की एक पवित्र विधि होती है। आइए जानते हैं कि इस पूजन को सही ढंग से कैसे किया जाए और कौन-कौन सी सामग्री की जरूरत होती है:
पूजा की तैयारी के लिए पहले से ये वस्तुएं एकत्र कर लें:
इस प्रकार श्रद्धा और नियमपूर्वक की गई गौरी पूजा से जीवन में सुख, शांति, वैवाहिक आनंद और समृद्धि की प्राप्ति होती है। यह पूजा खासकर उन महिलाओं के लिए शुभ मानी जाती है जो अपने पति के स्वास्थ्य और लंबी उम्र की कामना करती हैं या जिनकी विवाह की इच्छाएँ पूर्ण नहीं हो पा रही हैं।
यह भी पढ़ें - Durva Ashtami 2025: दूर्वा अष्टमी क्या होती है इसे कब, क्यों और कैसे मनाते है ?
गौरी पूजा का विशेष महत्व है, खासकर महिलाओं के जीवन में। मान्यता है कि माता सीता ने भगवान राम को अपने जीवनसाथी के रूप में पाने के लिए देवी गौरी की पूजा की थी। तभी से यह पूजा विवाह, सौभाग्य और सुखमय दांपत्य जीवन की कामना के साथ की जाती है।
यह पर्व खासतौर पर विवाहित महिलाओं के लिए बहुत पवित्र माना जाता है। वे अपने मायके में रहकर यह व्रत करती हैं और देवी गौरी से अपने पति की लंबी उम्र, सुख-शांति और पारिवारिक समृद्धि की प्रार्थना करती हैं।
वहीं, अविवाहित लड़कियां इस पूजा को एक आदर्श जीवनसाथी की प्राप्ति की कामना से करती हैं। मान्यता है कि इस व्रत और पूजन से मनचाहा वर मिलता है और जीवन में खुशहाली आती है।
गौरी पूजन (Gauri Avahan 2025) को करने से घर में शांति, सौभाग्य और समृद्धि का वास होता है। देवी गौरी को स्त्री शक्ति, स्नेह और सौंदर्य की प्रतीक माना जाता है। इसलिए उनका पूजन नारी जीवन में विशेष सुख और संतुलन लाता है।
कुल मिलाकर, यह पर्व न केवल एक धार्मिक परंपरा है, बल्कि परिवार और रिश्तों में प्रेम, सम्मान और एकजुटता की भावना को भी गहराई से दर्शाता है।
गौरी पूजन (Gauri Pujan 2025) केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि स्त्री शक्ति की आराधना का प्रतीक भी है। यह पूजा दर्शाती है कि किस तरह एक स्त्री, चाहे वह पत्नी, मां या बेटी हो – अपने परिवार की रीढ़ होती है। यह पर्व महिलाओं को यह याद दिलाता है कि उनमें देवी जैसी शक्ति है—सहनशीलता, करुणा, प्रेम और समर्पण की।
इस दिन सत्यनारायण कथा और माता गौरी की विशेष पूजा होती है। महिलाएं व्रत रखती हैं और पूरे विधि-विधान से देवी को प्रसन्न करने का प्रयास करती हैं।
इस भावनात्मक विदाई के साथ देवी से आशीर्वाद लेकर भक्तजन अगली वर्ष पुनः इस उत्सव की प्रतीक्षा करते हैं।
गौरी पूजन (Gauri Puja 2025) भारतीय संस्कृति की उस भावना को दर्शाता है, जिसमें देवी की पूजा के माध्यम से महिलाओं को सम्मान दिया जाता है। यह केवल पूजा का पर्व नहीं, बल्कि एक ऐसा अवसर है जब महिलाएं अपनी आस्था, परंपरा और आपसी जुड़ाव को जीती हैं। यह त्योहार यह भी सिखाता है कि चाहे समय कितना भी बदल जाए, परंपराएं और आस्था हमेशा हमें हमारी जड़ों से जोड़े रखती हैं।
इस पर्व के माध्यम से देवी गौरी का स्वागत करना मानो सौंदर्य, शक्ति और स्नेह का स्वागत करना है—जो हर घर में, हर स्त्री में विद्यमान है।
यह भी पढ़ें - Ganesh Chaturthi 2025: कब है गणेश चतुर्थी, जानिए मूर्ति स्थापना का शुभ समय एवं पूजा विधि