May 21, 2025 Blog

Jyeshtha Gauri Puja 2025 : जानिए गौरी पूजा आवाहन एवं विसर्जन विधि, नियम एवं महत्व

BY : STARZSPEAK

Jyeshtha Gauri Avahan 2025: भारत एक ऐसा देश है जहां हर गली, हर राज्य और हर समुदाय में विविधता रची-बसी है। अलग-अलग धर्म, बोलियाँ, परंपराएं और रीति-रिवाज़ यहाँ के जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। यही कारण है कि यहां साल भर में सैकड़ों नहीं, बल्कि हजारों त्योहार मनाए जाते हैं—हर एक त्योहार के साथ जुड़ी होती है एक अनोखी कहानी, संस्कृति और भावना। यह भारत की गहराई से जुड़ी हुई सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है।

यहाँ के त्योहार न केवल धार्मिक आस्था को दर्शाते हैं, बल्कि सामाजिक मेलजोल, पारिवारिक एकता और पारंपरिक मूल्यों को भी मजबूत करते हैं। अधिकतर पर्व किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित होते हैं, जिनकी पूजा श्रद्धा और विधिविधान के साथ की जाती है। ऐसे ही एक विशेष त्योहार का नाम है गौरी पूजन, जो देवी पार्वती के एक रूप—गौरी माता—को समर्पित होता है।


गौरी पूजन क्या है?(What Is Gauri Pujan)

गौरी पूजन एक पावन पर्व है जो मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा मनाया जाता है और देवी गौरी के प्रति श्रद्धा, प्रेम और सम्मान को दर्शाता है। इसे मंगला गौरी व्रत या ज्येष्ठ गौरी पूजा (Jyeshtha Gauri Puja) के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व विशेषकर महाराष्ट्र में बड़े श्रद्धा भाव से मनाया जाता है, लेकिन इसकी महिमा कई अन्य राज्यों में भी देखने को मिलती है।


2025 में गौरी पूजन की तिथि और शुभ मुहूर्त (Gauri Pujan 2025 Date and Auspicious Time)

साल 2025 में ज्येष्ठा गौरी पूजन (Jyeshtha Gauri Puja) का पावन पर्व सोमवार, 1 सितंबर को मनाया जाएगा। यह दिन माता गौरी की कृपा पाने के लिए बेहद शुभ माना गया है। इस दिन श्रद्धालु पूरे विधि-विधान से देवी गौरी की पूजा करते हैं, विशेष रूप से महिलाएं इस दिन का बड़ी श्रद्धा से पालन करती हैं।

पूजन के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 05:59 बजे से शुरू होकर शाम 06:43 बजे तक रहेगा। इस अवधि में माता की पूजा करना विशेष फलदायी माना जाता है, क्योंकि यह समय ऊर्जा और सकारात्मकता से भरपूर होता है। कुल मिलाकर पूजन की अवधि करीब 12 घंटे 43 मिनट की होगी।

इस पर्व (Jyeshtha Gauri Pujan 2025 Date) की शुरुआत 31 अगस्त 2025, रविवार को गौरी माता के ‘आवाहन’ से होती है, यानी उस दिन माता को विधिपूर्वक घर में आमंत्रित किया जाता है। इसके बाद 1 सितंबर को मुख्य पूजन होता है और 2 सितंबर, मंगलवार को विधिवत विसर्जन के साथ माता को विदा किया जाता है।

इस व्रत और पूजन का गहरा संबंध ज्येष्ठा नक्षत्र से भी है। यह नक्षत्र 31 अगस्त की शाम 05:27 बजे आरंभ होगा और 1 सितंबर की शाम 07:55 बजे तक प्रभाव में रहेगा। इसी नक्षत्र में गौरी पूजन करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है और देवी की कृपा बनी रहती है।

इस तरह 2025 में गौरी पूजन (Jyeshtha Gauri Puja 2025) का यह पर्व श्रद्धा, आस्था और पारंपरिक भावनाओं से परिपूर्ण रहेगा, जो भक्तों के जीवन में सुख-समृद्धि और सौभाग्य लेकर आएगा।

Gauri Pujan

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पूजन का समय और परंपरा

गौरी पूजन (Gauri Pujan) आमतौर पर गणेश चतुर्थी के तीसरे दिन से शुरू होता है, जब देवी गौरी का स्वागत विधिवत किया जाता है। यह आवाहन एक पारंपरिक रीतिरिवाज़ होता है जिसमें गौरी माता की मूर्ति को घर लाया जाता है और पूजा की जाती है। तीसरे दिन से लेकर पाँचवे दिन तक यह पर्व चलता है, जिसमें दूसरे दिन विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। पांचवें दिन देवी की मूर्ति का विसर्जन कर उन्हें विदा किया जाता है।

पूजन के दौरान महिलाएं पारंपरिक पोशाक पहनती हैं, गीत-भजन गाए जाते हैं, और हाथों में मेहंदी रचाई जाती है। देवी को विशेष भोग अर्पित किया जाता है, जैसे पूरणपोली, खीर, मोदक आदि। महिलाएं देवी गौरी के समक्ष दीप जलाकर उनकी आराधना करती हैं और अपने मन की मुरादें कहती हैं।

घर पर गौरी पूजा कैसे करें?  (How to perform Gauri Puja at home?)

अगर आप घर पर ही गौरी माता की पूजा करना चाहते हैं, तो इसके लिए कुछ विशेष चीजों की आवश्यकता होती है और पूजा की एक पवित्र विधि होती है। आइए जानते हैं कि इस पूजन को सही ढंग से कैसे किया जाए और कौन-कौन सी सामग्री की जरूरत होती है:


गौरी पूजा के लिए जरूरी सामग्री:

पूजा की तैयारी के लिए पहले से ये वस्तुएं एकत्र कर लें:

  • माता गौरी, भगवान शिव और श्री गणेश की मूर्तियाँ या चित्र

  • मूर्तियों को स्नान कराने के लिए तांबे या पीतल का पात्र

  • देवी को अर्पित करने के लिए वस्त्र और गहने

  • पूजा में प्रयोग होने वाले हल्दी, रोली, चंदन का लेप, कुमकुम और गंगाजल

  • अक्षत (चावल), दीपक, तेल, रूई, अगरबत्ती, अष्टगंध और पूजा थाली

  • पुष्पों में गुलाब या कोई भी ताजे फूल, पान के पत्ते और आम के पत्तों की माला

  • भोग के लिए फल, मिठाई, नारियल, पंचामृत, दूध, सूखे मेवे, पान और दक्षिणा

पूजा की विधि (संक्षेप में):
  1. प्रातः स्नान कर साफ-सुथरे वस्त्र पहनें और पूजा स्थान को स्वच्छ करें।

  2. देवी गौरी, भगवान गणेश और भगवान शिव की मूर्तियों या चित्रों को विधिपूर्वक गंगाजल से शुद्ध करें और कपड़े पहनाएँ।

  3. दीपक जलाएं और भगवान गणेश का सबसे पहले स्मरण करें, क्योंकि किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत उनसे ही की जाती है।

  4. फिर माता गौरी की विधिपूर्वक हल्दी, रोली, चंदन, फूल और अर्पित वस्त्रों से पूजा करें।

  5. माता को भोग लगाएं जिसमें पंचामृत, मिठाई, फल और नारियल शामिल हो।

  6. अंत में आरती करें और अपनी मनोकामनाओं को प्रकट करें।

इस प्रकार श्रद्धा और नियमपूर्वक की गई गौरी पूजा से जीवन में सुख, शांति, वैवाहिक आनंद और समृद्धि की प्राप्ति होती है। यह पूजा खासकर उन महिलाओं के लिए शुभ मानी जाती है जो अपने पति के स्वास्थ्य और लंबी उम्र की कामना करती हैं या जिनकी विवाह की इच्छाएँ पूर्ण नहीं हो पा रही हैं।

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गौरी पूजन का महत्व (Importance Of Gauri Pujan) 

गौरी पूजा का विशेष महत्व है, खासकर महिलाओं के जीवन में। मान्यता है कि माता सीता ने भगवान राम को अपने जीवनसाथी के रूप में पाने के लिए देवी गौरी की पूजा की थी। तभी से यह पूजा विवाह, सौभाग्य और सुखमय दांपत्य जीवन की कामना के साथ की जाती है।

यह पर्व खासतौर पर विवाहित महिलाओं के लिए बहुत पवित्र माना जाता है। वे अपने मायके में रहकर यह व्रत करती हैं और देवी गौरी से अपने पति की लंबी उम्र, सुख-शांति और पारिवारिक समृद्धि की प्रार्थना करती हैं।

वहीं, अविवाहित लड़कियां इस पूजा को एक आदर्श जीवनसाथी की प्राप्ति की कामना से करती हैं। मान्यता है कि इस व्रत और पूजन से मनचाहा वर मिलता है और जीवन में खुशहाली आती है।

गौरी पूजन (Gauri Avahan 2025) को करने से घर में शांति, सौभाग्य और समृद्धि का वास होता है। देवी गौरी को स्त्री शक्ति, स्नेह और सौंदर्य की प्रतीक माना जाता है। इसलिए उनका पूजन नारी जीवन में विशेष सुख और संतुलन लाता है।

कुल मिलाकर, यह पर्व न केवल एक धार्मिक परंपरा है, बल्कि परिवार और रिश्तों में प्रेम, सम्मान और एकजुटता की भावना को भी गहराई से दर्शाता है।

गौरी पूजन (Gauri Pujan 2025) केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि स्त्री शक्ति की आराधना का प्रतीक भी है। यह पूजा दर्शाती है कि किस तरह एक स्त्री, चाहे वह पत्नी, मां या बेटी हो – अपने परिवार की रीढ़ होती है। यह पर्व महिलाओं को यह याद दिलाता है कि उनमें देवी जैसी शक्ति है—सहनशीलता, करुणा, प्रेम और समर्पण की।


गौरी पूजन: तीन दिवसीय पावन उत्सव


पहला दिन – गौरी आवाहन

इस दिन देवी गौरी की मूर्ति घर में स्थापित कर उनका विधिवत स्वागत किया जाता है। भक्त भगवान शिव, पार्वती और गणेश जी की पूजा करते हैं और विशेष भोग चढ़ाते हैं।


दूसरा दिन – मुख्य पूजा व कथा

इस दिन सत्यनारायण कथा और माता गौरी की विशेष पूजा होती है। महिलाएं व्रत रखती हैं और पूरे विधि-विधान से देवी को प्रसन्न करने का प्रयास करती हैं।


तीसरा दिन – गौरी विसर्जन

अंतिम दिन पूजा के बाद देवी की मूर्ति को श्रद्धापूर्वक जल में विसर्जित किया जाता है। इसके साथ ही तीन दिवसीय पर्व का समापन होता है।
 

गौरी विसर्जन तिथि एवं पूजा विधि (Gauri Visarjan Date and Worship Method)

गौरी आवाहन (Gauri avahan) और पूजन के अंतिम दिन गौरी विसर्जन किया जाता है। जो कि इस साल 2 सितम्बर 2025 को किया जायेगा। इस दिन भक्तजन माता की पूजा कर भावभीनी विदाई देते हैं। विसर्जन (Jyeshtha Gauri Visarjan) की प्रक्रिया को सही तरीके से करने के लिए नीचे कुछ आसान और महत्वपूर्ण चरण दिए गए हैं:
  1. प्रातः सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर स्वयं को शुद्ध करें।

  2. माता गौरी की अंतिम बार विधिवत पूजा करें और दीपक जलाएं।

  3. देवी को सुंदर फूल, फल, मिष्ठान और हलवा-पूरी का भोग अर्पित करें।

  4. कपूर से आरती करें और "ॐ पार्वत्यै नमः" मंत्र का जाप करें।

  5. पूजा के बाद गाजे-बाजे के साथ माता की मूर्ति को श्रद्धा के साथ विसर्जन के लिए ले जाएं।

  6. किसी पवित्र नदी या सरोवर में मूर्ति का शांतिपूर्वक विसर्जन करें।

  7. विसर्जन के समय माता गौरी के 108 नामों का स्मरण करें (इन्हें लिखकर साथ ले जाना सुविधाजनक होगा)।

  8. विसर्जन के बाद माता से अपनी पूजा स्वीकार करने की प्रार्थना करें और भूल-चूक के लिए क्षमा मांगें।

  9. अंत में प्रसाद बांटें, ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान दें।

  10. इसके बाद व्रत का विधिवत पारायण करें। आवश्यकता हो तो पूजा से पहले या बीच में फलाहार भी किया जा सकता है।

इस भावनात्मक विदाई के साथ देवी से आशीर्वाद लेकर भक्तजन अगली वर्ष पुनः इस उत्सव की प्रतीक्षा करते हैं।

निष्कर्ष

गौरी पूजन (Gauri Puja 2025) भारतीय संस्कृति की उस भावना को दर्शाता है, जिसमें देवी की पूजा के माध्यम से महिलाओं को सम्मान दिया जाता है। यह केवल पूजा का पर्व नहीं, बल्कि एक ऐसा अवसर है जब महिलाएं अपनी आस्था, परंपरा और आपसी जुड़ाव को जीती हैं। यह त्योहार यह भी सिखाता है कि चाहे समय कितना भी बदल जाए, परंपराएं और आस्था हमेशा हमें हमारी जड़ों से जोड़े रखती हैं।

इस पर्व के माध्यम से देवी गौरी का स्वागत करना मानो सौंदर्य, शक्ति और स्नेह का स्वागत करना है—जो हर घर में, हर स्त्री में विद्यमान है।

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