Mangla Gauri Vrat 2025: श्रावण मास को हिंदू संस्कृति में एक बेहद शुभ और आध्यात्मिक रूप से फलदायी समय माना जाता है। यह महीना देवी-देवताओं की आराधना का खास अवसर होता है। जहां सोमवार का दिन भगवान शिव की भक्ति और उपवास के लिए प्रसिद्ध है, वहीं मंगलवार को देवी पार्वती के गौरी रूप की उपासना की जाती है। इस दिन विशेष रूप से महिलाएं मंगला गौरी व्रत (Mangla Gauri Vrat) करती हैं, जो सुखी वैवाहिक जीवन, सौभाग्य और मनोकामना पूर्ति के लिए बहुत प्रभावशाली माना जाता है।
यह व्रत मां पार्वती की उस तपस्या की स्मृति में रखा जाता है, जिससे उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया था। श्रद्धा और नियमपूर्वक यह व्रत करने से मां गौरी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
भारत के उत्तर भारत के राज्यों जैसे राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, दिल्ली, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, बिहार और झारखंड में पूर्णिमांत पंचांग के आधार पर व्रत की तिथियां तय होती हैं। वहीं, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, गोवा और तमिलनाडु जैसे दक्षिण और पश्चिम भारत के राज्यों में अमांत पंचांग को मान्यता दी जाती है, जिससे इन क्षेत्रों में व्रत तिथियों में थोड़ा अंतर हो सकता है।
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मंगला गौरी व्रत (Mangla Gauri Vrat) सिर्फ वैवाहिक सुख और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए ही नहीं, बल्कि यह महिलाओं के जीवन में खुशहाली, सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि का भी स्रोत माना जाता है।
मंगला गौरी व्रत श्रावण मास के हर मंगलवार को रखा जाता है। यह व्रत विशेष रूप से विवाहित और नवविवाहित महिलाओं के लिए शुभ माना जाता है। इस वर्ष श्रावण मास का आरंभ 11 जुलाई 2025, शुक्रवार से होगा। इसके साथ ही मंगला गौरी व्रत (Mangla Gauri Vrat 2025) का शुभ अवसर भी शुरू हो जाएगा। यह व्रत महिलाएं श्रावण माह के प्रत्येक मंगलवार को श्रद्धा और आस्था के साथ करती हैं। इस वर्ष मंगला गौरी व्रत की तिथियां इस प्रकार रहेंगी:
इस व्रत के दौरान श्रद्धालु माता गौरी की पूजा-अर्चना कर सुखी वैवाहिक जीवन और सौभाग्य की कामना करते हैं।
प्राचीन समय की बात है, एक नगर में धर्मपाल नाम के एक समृद्ध व्यापारी अपनी पत्नी के साथ रहते थे। जीवन में धन-संपत्ति और सुख-सुविधाओं की कोई कमी नहीं थी, लेकिन इसके बावजूद उनके मन में एक अधूरी सी चाह थी, जो उनके सुख में एक खालीपन सा भर देती थी—वह था संतान सुख का अभाव। संतान प्राप्ति की इच्छा से उन्होंने कई व्रत, अनुष्ठान और दान-पुण्य किए। उनकी भक्ति और श्रद्धा देखकर भगवान की कृपा उन पर हुई और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।
लेकिन यह खुशी ज्यादा देर तक नहीं टिक सकी। जब बालक का जन्म हुआ, तो ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की कि वह अल्पायु होगा और उसके जीवन का सोलहवां वर्ष पूर्ण होने से पहले सर्पदंश के कारण उसकी मृत्यु हो जाएगी।
अपने पुत्र की अल्पायु की भविष्यवाणी सुनकर धर्मपाल बेहद दुखी हो गए, लेकिन उन्होंने ईश्वर पर भरोसा रखते हुए सब कुछ उसके हाथों में छोड़ दिया। जब उनका बेटा बड़ा हो गया, तब उन्होंने अपने बेटे का विवाह एक खूबसूरत और संस्कारी लड़की से करवा दिया। सौभाग्य से, उस लड़की की माता रोजाना नियमपूर्वक मंगला गौरी व्रत (Mangla Gauri Vrat) का पालन करती थी, जिसके प्रभाव से उसकी पुत्री को अखंड सौभाग्य का वरदान प्राप्त था। इस व्रत की शक्ति से धर्मपाल के पुत्र की आयु बढ़ गई और उसने एक सुखी और समृद्ध जीवन व्यतीत किया।
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इस व्रत के लिए महत्वपूर्ण सामग्रियों में फल, फूलमाला, लड्डू, पान, सुपारी, इलायची, लौंग, जीरा, धनिया (सभी 16-16 की संख्या में), साड़ी सहित 16 श्रृंगार का सामान, 16 कांच की चूड़ियां, पांच तरह के मेवे (16-16 की संख्या में) और 7 तरह के अनाज जरुरी हैं।
इस व्रत को श्रावण मास के पहले मंगलवार से विधिपूर्वक आरंभ किया जाता है। प्रातः स्नान आदि के बाद, देवी मंगला गौरी की मूर्ति या चित्र को लाल कपड़े में लपेटकर लकड़ी के पाट (चौकी) पर स्थापित करें। पाट पर चावल से नवग्रह और गेहूं से 16 माताओं की आकृति बनाएं। पाट के एक ओर चावल और फूल रखकर जल से भरा कलश स्थापित करें।
तत्पश्चात आप एक आटे का दीपक बनाये और उस दीपक में 16-16 बनाकर 4 जोड़े में उसको जलाये। सबसे पहले भगवान श्री गणेश जी की पूजा करें — फिर उन्हें गंगाजल, रोली, मौली, चंदन, सिंदूर, सुपारी, लौंग, पान, चावल, फूल, बेलपत्र, फल, मेवे और दक्षिणा अर्पित करें। फिर नवग्रहों और 16 मातृ देवियों की विधिपूर्वक पूजा करें।
मंगला गौरी की प्रतिमा को जल, दूध और दही से स्नान कराकर वस्त्र अर्पित करें। फिर, रोली, चंदन, सिंदूर, मेंहदी और काजल से देवी का श्रृंगार करें। 16 प्रकार के फूल, पत्ते और मालाएं चढ़ाएं। साथ ही, मेवे, सुपारी, लौंग, मेंहदी और चूड़ियां अर्पित करें।
इसके बाद, मंगला गौरी व्रत कथा सुनी जाती है। विवाहित महिलाएं अपनी सास और ननद को 16 लड्डू भेंट करती हैं और एक समय भोजन ग्रहण करने का नियम अपनाती हैं। यह प्रसाद ब्राह्मण को भी दिया जाता है।
व्रत के अंतिम दिन, अगले दिन बुधवार को देवी की मूर्ति को नदी या जलाशय में विसर्जित किया जाता है। इस व्रत को लगातार पांच वर्षों तक करने के बाद विधिपूर्वक उद्यापन किया जाता है।
श्रावण मास के सभी मंगलवारों का व्रत पूर्ण करने के बाद उद्यापन करना आवश्यक होता है। इस दिन उपवास रखा जाता है और भोजन वर्जित होता है। पूजा से पहले मेंहदी लगाकर सोलह श्रृंगार करना शुभ माना जाता है।
उद्यापन के लिए चार विद्वान ब्राह्मणों से विधिपूर्वक पूजा करानी चाहिए। एक लकड़ी के पाट पर चारों कोनों पर केले के खंभे लगाकर एक मंडप तैयार करें और उस पर ओढ़नी बांधें। कलश पर कटोरी रखकर उसमें देवी मंगला गौरी की स्थापना करें और उनके समक्ष साड़ी, नथ और सुहाग से जुड़ी सभी वस्तुएं अर्पित करें।
पूजा के उपरांत हवन किया जाता है, फिर व्रत कथा सुनकर देवी की आरती करें। इसके बाद, चांदी के बर्तन में आटे से बने सोलह लड्डू, रुपये और साड़ी अपनी सास को अर्पित करें और उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लें। पूजा कराने वाले विद्वानों को भी भोजन कराकर उन्हें दान-दक्षिणा और उपहार दें।
मंगला गौरी व्रत का यह उद्यापन विधिपूर्वक करने से महिलाओं को संतान सुख, अखंड सौभाग्य और सुखी दांपत्य जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
बिल्कुल! मंगला गौरी व्रत (Mangla Gauri Vrat) सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि रिश्तों की गहराई और शक्ति का प्रतीक है। यह व्रत दर्शाता है कि एक स्त्री की श्रद्धा, संकल्प और प्रेम में इतनी शक्ति होती है कि वह अपने पति को हर बाधा और अनहोनी से सुरक्षित रख सकती है। यह न केवल सौभाग्य और दीर्घायु का वरदान देता है, बल्कि स्त्री के आत्मबल और समर्पण को भी दर्शाता है। इस व्रत का मूल सार यही है कि आस्था और प्रेम से हर कठिनाई को टाला जा सकता है।
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