July 2, 2025 Blog

Indira Ekadashi 2025: जानिए इस साल इंदिरा एकादशी की तिथि, मुहूर्त, पूजाविधि, एवं महत्त्व

BY : STARZSPEAK

Indira Ekadashi 2025: हिंदू धर्म में एकादशी तिथि को बहुत ही शुभ और पवित्र माना गया है। हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को इंदिरा एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। चूंकि यह एकादशी पितृ पक्ष के दौरान आती है, इसलिए इसे पितृ एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन एकादशी व्रत के साथ-साथ एकादशी तिथि का श्राद्ध भी किया जाता है।

मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप की पूजा करने से न सिर्फ व्यक्ति को बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है, बल्कि उनकी सात पीढ़ियों तक के पितरों को भी मोक्ष मिल जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जो श्रद्धा और नियमपूर्वक इंदिरा एकादशी का व्रत करता है, उसके पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वह स्वयं भी आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होता है।

चलिए जानते हैं कि साल 2025 में इंदिरा एकादशी (Indira Ekadashi Kab hai) की तिथि और शुभ मुहूर्त क्या है।

इंदिरा एकादशी 2025  तिथि और मुहूर्त (Indira Ekadashi 2025 Date & Auspicious Time)

इंदिरा एकादशी व्रत 2025 में बुधवार, 17 सितंबर को रखा जाएगा। यह व्रत रात्रि 12:21 बजे से शुरू होकर उसी दिन रात 11:39 बजे तक रहेगा। व्रत के पारण का समय अगले दिन यानी 18 सितंबर को सुबह 6:27 बजे से 8:54 बजे तक निर्धारित है। द्वादशी तिथि 18 सितंबर को रात 11:24 बजे तक रहेगी, इसलिए पारण इसी दिन सुबह शुभ मुहूर्त में करना उचित होगा। व्रत रखने वाले श्रद्धालुओं को पारण का समय ध्यान में रखते हुए विधिपूर्वक व्रत का समापन करना चाहिए, जिससे व्रत का संपूर्ण फल प्राप्त हो सके।

इंदिरा एकादशी 2025 व्रत विधि (Indira Ekadashi Vrat Vidhi)

इंदिरा एकादशी के दिन श्रद्धालु प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान कर लेते हैं और स्वच्छ पीले वस्त्र धारण करते हैं। इसके बाद भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप का ध्यान करते हुए पूरे दिन व्रत रखने का संकल्प लिया जाता है।

पूजा की तैयारी इस प्रकार करें:

एक लकड़ी की चौकी पर पीले रंग का वस्त्र बिछाएं।
उस पर रोली से स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं।
“ॐ गणेशाय नमः” मंत्र का जाप करते हुए स्वास्तिक पर फूल और अक्षत चढ़ाएं और भगवान गणेश का आह्वान करें।
इसके बाद शुभ मुहूर्त में पूजा स्थल पर भगवान विष्णु की मूर्ति या शालिग्राम जी या उनकी तस्वीर स्थापित करें।
गंगाजल से शुद्धिकरण करें, फिर रोली, चंदन, अक्षत, धूप, दीप, मिठाई और तुलसी पत्ता अर्पित करें।
दीपक जलाएं और पीले फूलों की माला चढ़ाएं।

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पूजन और आराधना:

भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा करें और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
आरती करके भगवान को भोग लगाएं और पितरों की आत्मा की शांति हेतु प्रार्थना करें।
शाम को एक बार फिर तुलसी जी के सामने दीपक जलाएं और भगवान विष्णु की आरती करें।

पितृ तर्पण और श्राद्ध:

इस दिन पितरों की आत्मा की मुक्ति के लिए भगवान विष्णु से विनम्र प्रार्थना करें।
पितरों द्वारा किए गए अनजाने पापों के लिए क्षमा याचना करें।
श्राद्ध के रूप में पितरों के नाम से किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं और यथासंभव दक्षिणा दें।

व्रत का पालन:

व्रत के दिन दिनभर फलाहार लें और रात्रि को जागरण करें।
दूसरे दिन द्वादशी तिथि को शुभ समय में व्रत का विधिपूर्वक पारण करें।

इस प्रकार श्रद्धा, भक्ति और विधिपूर्वक की गई इंदिरा एकादशी पूजा और व्रत से न केवल पितरों को शांति मिलती है, बल्कि व्रती को भी पुण्य लाभ और आध्यात्मिक उन्नति का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

इंदिरा एकादशी पारण विधि (Indira Ekadashi Paran Vidhi)

इंदिरा एकादशी व्रत का पारण यानी व्रत खोलने की प्रक्रिया भी उतनी ही महत्वपूर्ण होती है जितनी कि व्रत रखना। पारण हमेशा द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले कर लेना चाहिए, क्योंकि इसे समय पर न करने से व्रत का पूरा फल नहीं मिल पाता और यह धार्मिक दृष्टि से अनुचित माना जाता है। व्रत खोलने से पहले 'हरि वासर' समाप्त होने की प्रतीक्षा जरूर करें, क्योंकि इस दौरान पारण करना वर्जित होता है। पारण का सबसे उत्तम समय प्रातःकाल माना गया है। अगर किसी कारणवश सुबह व्रत नहीं खोल पाएं तो फिर मध्याह्न के बाद ही पारण करें, लेकिन ध्यान रहे कि इसे देर तक टालना उचित नहीं है।

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इंदिरा एकादशी पौराणिक कथा (Indira Ekadashi Vrat Katha)

राजा इंद्रसेन और नारद का संदेश

पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार, महिष्मती के राजा इंद्रसेन भगवान विष्णु के परम भक्त थे। एक दिव्य संवाद में देवर्षि नारद पहुंचे और संदेश दिया कि उनके पिता पितृजनों को एकादशी व्रत छोड़ने के कारण यमलोक में अटका पड़ा है।

नारद जी ने सुझाव दिया कि इंद्रसेन यदि इंदिरा एकादशी व्रत (Indira Ekadashi vrat 2025) करें और नियमपूर्वक पालन करें, तो उनके पिताओं को स्वर्ग की प्राप्ति होगी। इंद्रसेन ने विधिपूर्वक व्रत रखा, कथा सुनी, श्राद्ध किया, ब्राह्मणों को भोजन कराया। परिणामस्वरूप उनके पितृजनों को मोक्ष प्राप्त हुआ और उन्हें भी राज्य का आनंद लेते हुए स्वर्ग का मार्ग मिला 

क्या लाभ होते हैं?
    • पितृजनों की आत्मा को पापों से मुक्ति और स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
    • भक्त के पूर्व जन्म के दोष नष्ट होते हैं।
    • घर में सुख-शांति, समृद्धि और परिवार में सौहार्द बढ़ता है।
    • यह व्रत एक तरह से अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य प्रदान करता है।

व्रत की महत्ता (Significance Of Indira Ekadashi)

  • पितृ पक्ष में एकादशी व्रत को विशेष असरकारी माना जाता है।
  • व्रत करने से मृतकों के प्रति श्रद्धा, पारिवारिक संबंधों की पूर्ति होती है।
  • आत्मा शांति और पितृदोष निवारण का धार्मिक उपाय है।
  • जीवन में आशीर्वाद, संतुलन और अध्यात्मिक शांति के द्वार खोलता है।


निष्कर्ष

इंदिरा एकादशी व्रत (Indira Ekadashi Vrat) न केवल एक धार्मिक परंपरा है, बल्कि यह पितृ ऋण से मुक्ति और आत्मिक शुद्धि का एक प्रभावशाली माध्यम भी है। इस व्रत के जरिए जहां हम भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करते हैं, वहीं अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए भी प्रार्थना करते हैं। श्रद्धा, नियम और संयम के साथ किया गया यह उपवास जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने की क्षमता रखता है। अगर आप सच्चे मन से इस व्रत को करते हैं, तो न सिर्फ पितृ दोष से छुटकारा मिलता है, बल्कि जीवन में आध्यात्मिक उन्नति और सुख-शांति का भी मार्ग प्रशस्त होता है।

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