May 19, 2025 Blog

Ganesh Chaturthi 2025: कब है गणेश चतुर्थी, जानिए मूर्ति स्थापना का शुभ समय एवं पूजा विधि

BY : STARZSPEAK

Ganesh Chaturthi 2025: हिन्दू परंपरा में गणेश चतुर्थी का अपना एक खास महत्व है। यह पर्व पूरे दस दिनों तक आस्था और उत्साह के साथ मनाया जाता है। इसकी शुरुआत गणेश चतुर्थी के दिन गणपति बाप्पा की स्थापना से होती है, और समापन अनंत चतुर्दशी को भावपूर्ण विसर्जन के साथ होता है। इस समय भक्तगण पूरी श्रद्धा और भक्ति भाव से भगवान गणेश की आराधना करते हैं और उनकी कृपा पाने की कामना करते हैं।

इस दौरान लोग अपने घरों में श्री गणेश की प्रतिमा स्थापित करते हैं और नियमपूर्वक उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से गणपति बप्पा की आराधना करने से साधक की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और रुके हुए कार्य भी बनने लगते हैं। आइए जानते हैं कि वर्ष 2025 में गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi 2025 date) का पावन पर्व किस दिन मनाया जाएगा।

गणेश चतुर्थी कब है ? (When Is Ganesh Chaturthi In 2025)

हिंदू पंचांग के अनुसार, गणेश चतुर्थी का पर्व हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को बड़े श्रद्धा भाव से मनाया जाता है। यही वह पावन दिन है जब भक्त गणपति बाप्पा का स्वागत करते हैं और उनकी पूजा-अर्चना करके सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
वर्ष 2025 में यह शुभ दिन (Ganesh Chaturthi date) 27 अगस्त, बुधवार को पड़ रहा है। इसी दिन पूरे देश में भक्तगण बड़े श्रद्धा और उल्लास के साथ गणपति बप्पा का स्वागत करेंगे और गणेश उत्सव की शुरुआत करेंगे।


गणेश चतुर्थी 2025 मूर्ति स्थापना शुभ मुहूर्त (Ganesh Chaturthi 2025 Auspicious Time for Murti Sthapana)

गणेश चतुर्थी के दिन गणपति जी की स्थापना और पूजा का सबसे उत्तम समय सुबह 11:05 बजे से दोपहर 1:40 बजे तक का रहेगा। इस शुभ मुहूर्त में यदि श्रद्धा और विधि-विधान से गणेश जी की मूर्ति की स्थापना और पूजा की जाए, तो इसका विशेष पुण्य फल प्राप्त होता है।

गणेश चतुर्थी पूजा विधि (Ganesh Chaturthi Worship Method)

  • सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि के बाद साफ़ सुथरे कपडे पहने।

  • फिर शुभ मुहूर्त में गणपति बप्पा की स्थापना करें।

  • स्थापना के बाद भगवान गणेश की षोडशोपचार पूजा करें।

  • उन्हें मोदक, दूर्वा (दूब) और फूल अर्पित करें, ये गणेश जी को अत्यंत प्रिय हैं।

  • पूजा के बाद गणेश जन्म कथा का पाठ करें और आरती करें।

ganesh chaturthi 2025


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गणेश पूजा के विशेष मंत्र (Special Mantras of Ganesh Puja)

  • ॐ गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्॥

  • ॐ श्रीं गं सौम्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा॥

गणेश चतुर्थी का महत्व (Significance Of Ganesh Chaturthi)

गणेश चतुर्थी का पर्व सनातन धर्म में अत्यंत पावन और महत्वपूर्ण माना गया है। पौराणिक मान्यता है कि इसी दिन भगवान गणेश का जन्म हुआ था। वे विघ्नहर्ता माने जाते हैं, जो भक्तों की हर बाधा को दूर करते हैं और नए कार्यों में सफलता दिलाते हैं। यही कारण है कि किसी भी शुभ कार्य से पहले गणेश जी की पूजा अनिवार्य मानी जाती है।

गणेश चतुर्थी से शुरू होकर यह उत्सव 10 दिनों तक चलता है, जो अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश विसर्जन के साथ संपन्न होता है। यह पर्व महाराष्ट्र सहित देशभर में बड़ी धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।

विशेष ध्यान रखें: इस दिन चंद्रमा के दर्शन करना वर्जित माना गया है।


घर पर गणेश चतुर्थी कैसे मनाएं – सरल और श्रद्धापूर्ण तरीका

  1. गणेश जी की मूर्ति की तैयारी और स्थापना:
    गणेश चतुर्थी की शुरुआत अपने घर को स्वच्छ और पवित्र बनाकर करें। पूजा के लिए एक साफ-सुथरी और शांत जगह चुनें, जहां भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित की जा सके। पर्यावरण का ध्यान रखते हुए इको-फ्रेंडली मूर्ति का चयन करें और उसे फूलों, दीपों और रंगीन सजावट से सजे ऊंचे पाट पर स्थापित करें।

  2. पूजा विधि:
    सबसे पहले व्रत और पूजा का संकल्प लें। शुभ मुहूर्त में मंत्रों के उच्चारण के साथ प्राणप्रतिष्ठा करें यानी भगवान की मूर्ति में दिव्यता का आह्वान करें। पूजा के दौरान भगवान गणेश को दूर्वा घास, मोदक, नारियल, लाल फूल, गुड़ और केले जैसे प्रिय भोग अर्पित करें। गणेश स्तोत्र का पाठ करें, आरती गाएं और प्रसाद को परिवारजनों और आसपास के लोगों में वितरित करें।

  3. दैनिक पूजा:
    पूरे गणेशोत्सव के दौरान प्रतिदिन भगवान को ताजे फूल और मोदक अर्पित करें। सुबह और शाम नियमित रूप से आरती करें। गणेश जी की बुद्धिमत्ता और चमत्कारी कथाओं को पढ़ें और बच्चों को भी उनसे जोड़ें।

  4. विसर्जन (गणपति बाप्पा को विदाई):
    गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi 2025) के दसवें दिन, यानी अनंत चतुर्दशी को, भगवान गणेश को प्रेमपूर्वक विदाई दें। विदाई से पहले विशेष आरती करें और फिर मंत्रों और प्रार्थना के साथ मूर्ति का जल में विसर्जन करें। यह प्रकृति के चक्र—सृजन और विसर्जन—का प्रतीक होता है।

गणपति बाप्पा मोरया! अगले बरस तू जल्दी आ!

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गणेश चतुर्थी के अनुष्ठान (Ganesh Chaturthi Rituals)

गणेश चतुर्थी , विशेष रूप से महाराष्ट्र में, सबसे भव्य और श्रद्धापूर्वक मनाया जाने वाला पर्व है। इस उत्सव की शुरुआत मिट्टी और रंगों से बनी भगवान गणेश की खूबसूरत मूर्तियों की तैयारियों से होती है। हर मूर्ति में श्रद्धालु भाव और भक्ति का रंग भरते हैं।

पूजा की शुरुआत "प्राणप्रतिष्ठा" से होती है, जिसमें पुजारी मंत्रोच्चार के माध्यम से गणपति जी की मूर्ति में जीवन शक्ति का आह्वान करते हैं। इसके बाद भगवान को चंदन, कुमकुम और पवित्र जल से स्नान कराकर उन्हें विशेष भाव से सुसज्जित किया जाता है।

गणपति को मोदक विशेष रूप से प्रिय होते हैं, इसलिए उन्हें पारंपरिक तौर पर नारियल और गुड़ से बने मोदक अर्पित किए जाते हैं। पूजा में दूर्वा (तीन पत्तियों वाली विशेष घास), नारियल, गुड़, लाल फूल जैसे पूजन-सामग्री का उपयोग होता है। खास बात ये है कि पूजा में 21 मोदक और 21 दूर्वा चढ़ाने की परंपरा है।

पूरे दस दिनों तक चलने वाले इस पर्व का समापन होता है विसर्जन के साथ। 11वें दिन, मूर्ति को फूलों और नारियल से पूजन कर गाजे-बाजे और जयघोष के साथ जल में विसर्जित किया जाता है। यह दृश्य बेहद भावुक और उत्साहपूर्ण होता है, जिसमें भारी भीड़, नृत्य और संगीत के साथ गणपति बाप्पा को विदाई दी जाती है।

आंध्र प्रदेश में भी गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi 2025) बड़ी श्रद्धा से मनाई जाती है। यहां भगवान गणेश की मूर्तियां अक्सर मिट्टी, हल्दी और प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनाई जाती हैं। खास बात यह है कि यहां के पकवान भी थोड़े अलग होते हैं—जैसे कि ‘कुडुमु’, जो स्थानीय मोदक का रूप है। इसके अलावा ‘पनकम’ (इलायची युक्त ठंडा पेय), ‘वडापप्पू’ (भीगी हुई दाल) और ‘चालिविडी’ (चावल से बनी मिठाई) जैसे पारंपरिक व्यंजन विशेष रूप से बनाए जाते हैं।

यह पर्व न केवल भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि यह समाज को एकजुट करने का माध्यम भी बनता है, जहां हर वर्ग, हर आयु के लोग एक साथ मिलकर बप्पा का स्वागत करते हैं और उन्हीं की जयकारों के साथ उन्हें विदा करते हैं—आशा के साथ कि अगले वर्ष फिर जल्दी लौटें।

निष्कर्ष:

गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi 2025) केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि आस्था, समर्पण और सामाजिक एकता का प्रतीक है। यह वह अवसर है जब भक्तजन पूरे भाव और श्रद्धा के साथ विघ्नहर्ता गणपति बाप्पा का स्वागत करते हैं, उन्हें मोदक, दूर्वा और प्रेम से भरे मन के साथ पूजते हैं। दस दिनों तक चलने वाला यह उत्सव न केवल हमारे जीवन से विघ्नों को दूर करने की प्रेरणा देता है, बल्कि हमें यह भी सिखाता है कि किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत गणेश जी के आशीर्वाद से ही होनी चाहिए। विसर्जन के समय भक्तों की आंखों में बप्पा के प्रति भावुक विदाई होती है, लेकिन साथ ही यह वादा भी होता है—"गणपति बाप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ!"


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