Mahalaxmi Vrat 2025: हिंदू परंपरा में महालक्ष्मी व्रत को बहुत ही पवित्र और फलदायक माना जाता है। यह खास व्रत भाद्रपद महीने की शुक्ल पक्ष की अष्टमी से शुरू होता है और लगातार सोलह दिनों तक चलकर अश्विन महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को समाप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान श्रद्धा से की गई पूजा से मां लक्ष्मी की कृपा बरसती है और घर में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है। यानी यह व्रत कुल 16 दिनों तक किया जाता है। वर्ष 2025 (Mahalaxmi Vrat 2025 Date) में यह व्रत 31 अगस्त या 1 सितंबर को शुरू हो सकता है—इसकी पक्की तिथि पंचांग के अनुसार ही तय होगी।
महालक्ष्मी व्रत का विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि इसे विधि-विधान से करने पर माता लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। मान्यता है कि इस उपवास से घर में सुख-समृद्धि बढ़ती है, आर्थिक स्थिति मजबूत होती है और जीवन में सौभाग्य बना रहता है।
इस व्रत में महिलाएं विशेष रूप से माता लक्ष्मी की आराधना करती हैं। व्रत के दौरान अन्न ग्रहण नहीं किया जाता, और 16वें दिन व्रत का विधिवत उद्यापन किया जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जिस घर की महिलाएं श्रद्धा और नियमपूर्वक इस व्रत को करती हैं, वहां परिवार में शांति, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है। तो आइए जानते है कि इस साल कब से शुरू हो रहा है महालक्ष्मी व्रत, इसकी तिथि, मुहूर्त पूजा विधि और इस त्यौहार से जुड़े जरुरी नियम।
महालक्ष्मी व्रत 2025 में विशेष रूप से 31 अगस्त, रविवार के दिन रखा जाएगा। इस दिन माता लक्ष्मी की विशेष कृपा पाने के लिए भक्तगण पूरे श्रद्धा-भाव से व्रत रखते हैं और विधिपूर्वक पूजा करते हैं।
अष्टमी तिथि कब से कब तक?
यह तिथि 30 अगस्त रात 10:46 बजे से शुरू होकर 1 सितंबर सुबह 12:57 बजे तक रहेगी।
व्रत का समापन (उद्यापन) – 14 सितंबर 2025, दिन रविवार को किया जाएगा।
इस दिन चंद्रोदय का समय – दोपहर 1:11 बजे रहेगा, जो अर्घ्य देने के लिए महत्वपूर्ण होता है।
इस व्रत (Mahalaxmi Vrat starts) की शुरुआत भाद्रपद शुक्ल अष्टमी से होती है और यह पूरे सोलह दिनों तक चलता है। ऐसा माना जाता है कि महालक्ष्मी व्रत के दौरान सच्चे मन से माता लक्ष्मी की पूजा करने से घर में खुशहाली, समृद्धि और शुभता का वातावरण बना रहता है।
महालक्ष्मी व्रत के दिन श्रद्धा और सच्चे मन से माता लक्ष्मी की पूजा करना बेहद फलदायी माना जाता है। इस दिन व्रती यानी उपवास करने वाला व्यक्ति सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि कर स्वच्छ या नये वस्त्र धारण करता है। फिर शांत मन से महालक्ष्मी व्रत का संकल्प लिया जाता है।
इसके बाद पूजा स्थल (Mahalaxmi Vrat puja) को साफ करके वहां माता लक्ष्मी की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। फिर देवी को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल) से स्नान कराएं। एक तांबे या पीतल के कलश में शुद्ध जल भरकर उस पर नारियल रखें और उसे लक्ष्मी जी के सामने स्थापित करें। यह कलश देवी का प्रतीक माना जाता है।
इसके बाद माता को कुमकुम, सिंदूर, फूल, फल, मिठाई और नैवेद्य अर्पित करें। धूप और दीप जलाकर मां का पूजन करें और उन्हें सोलह श्रृंगार की सामग्री समर्पित करें। फिर माता लक्ष्मी की पूजा करते हुए भोग लगाएं और श्रद्धापूर्वक महालक्ष्मी श्लोक या स्तोत्र का पाठ करें।
पूजा के अंत में, हर दिन चंद्रोदय के समय चंद्रमा को अर्घ्य दें और महालक्ष्मी व्रत की कथा का श्रवण करें या स्वयं पढ़ें। यह व्रत न केवल सुख-समृद्धि का वरदान देता है, बल्कि घर में शांति और सौभाग्य भी बनाए रखता है।
कहते हैं, एक समय की बात है—एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण अपनी सादगी भरी जिंदगी जीता था। उसके पास अधिक धन-दौलत तो नहीं थी, लेकिन उसमें भगवान विष्णु के प्रति गहरी आस्था और अपार श्रद्धा थी। वह रोज़ नियमपूर्वक भगवान विष्णु की पूजा करता और पूरे मन से उनकी आराधना में जुटा रहता।
उसकी इसी सच्ची भक्ति से प्रसन्न होकर एक दिन स्वयं भगवान विष्णु ने उसे दर्शन दिए और कहा—"ब्राह्मण, मांगो क्या वरदान चाहते हो?" ब्राह्मण ने विनम्रता से कहा, "प्रभु, मेरा बस एक ही सपना है—कि माता लक्ष्मी हमेशा मेरे घर में वास करें।" यह सुनकर भगवान विष्णु मुस्कुराए और बोले, "तो सुनो, हर दिन एक स्त्री इस मंदिर के सामने आकर उपले (गोबर के कंडे) थापती है। वही देवी लक्ष्मी हैं। तुम उनसे अपने घर आने का निमंत्रण देना।"
अगले ही दिन ब्राह्मण सुबह-सुबह मंदिर के पास जा बैठा। कुछ देर बाद वह स्त्री वहां आई, जो हमेशा की तरह उपले थाप रही थी। ब्राह्मण ने तुरंत उनके पास जाकर बड़ी श्रद्धा से घर आने का निवेदन किया। स्त्री मुस्कुराईं, क्योंकि वह जान चुकी थीं कि यह आमंत्रण भगवान विष्णु के कहने पर दिया गया है। (Mahalaxmi Vrat 2025)
उन्होंने ब्राह्मण से कहा, "मैं तुम्हारे घर ज़रूर आऊंगी, लेकिन एक शर्त है। पहले तुम 16 दिन तक महालक्ष्मी व्रत पूरी श्रद्धा और विधि से करो, और अंतिम दिन चंद्रोदय के समय चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित करो। तब तुम्हारी मनोकामना अवश्य पूरी होगी।"
ब्राह्मण ने पूरी श्रद्धा और निष्ठा के साथ महालक्ष्मी व्रत का पालन किया। जब सोलहवां दिन आया और रात को चांद आसमान में चमकने लगा, तो उसने विधिपूर्वक चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित किया और उत्तर दिशा की ओर मुख करके माता लक्ष्मी से विनम्र भाव से आह्वान किया। और फिर वही हुआ जिसकी उसने कामना की थी—माता लक्ष्मी उसके घर पधारीं और उसके जीवन में समृद्धि, शांति और खुशहाली भर दी।
कहते हैं, तभी से महालक्ष्मी व्रत (Mahalaxmi Vrat katha) की यह पावन परंपरा चली आ रही है, जो आज भी श्रद्धा और विश्वास के साथ निभाई जाती है।
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इस वर्ष महालक्ष्मी व्रत 31 अगस्त 2025 से आरंभ हो रहा है। ऐसे में अगर आप चाहते हैं कि आपके जीवन में सुख, समृद्धि और मां लक्ष्मी का आशीर्वाद हमेशा बना रहे, तो इस व्रत के दौरान कुछ विशेष उपाय जरूर करें।
यह व्रत (Mahalaxmi Vrat 2025) हमें यह सिखाता है कि जब हम सच्चे मन से मां लक्ष्मी की आराधना करते हैं, तो जीवन में सुख, समृद्धि और शांति स्वतः ही आ जाती है। 16 दिनों तक चलने वाला यह व्रत संयम, भक्ति और पारिवारिक कल्याण की भावना को मजबूत करता है। ऐसा माना जाता है कि जो श्रद्धालु पूरे विधि-विधान से इस व्रत को करता है, उसके घर में कभी भी दरिद्रता नहीं आती। अतः मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने और जीवन में सौभाग्य बढ़ाने के लिए महालक्ष्मी व्रत को पूरे श्रद्धा और विश्वास से करें।
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