Varalakshmi Vratham 2025: वरलक्ष्मी व्रत दक्षिण भारत के तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश के साथ-साथ उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाने वाला पर्व है। यह त्योहार श्रावण महीने के शुक्ल पक्ष के शुक्रवार को आता है, और इस बार वरलक्ष्मी व्रत (Varalakshmi Vratham 2025 Date) 8 अगस्त 2025 को मनाया जाएगा।
इस दिन महिलाएं मां लक्ष्मी की विशेष पूजा करती हैं, उपवास रखती हैं और अपने परिवार की सुख-शांति, समृद्धि और पति की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती हैं। ‘वर’ का अर्थ है वरदान, और इस दिन मां लक्ष्मी अपने भक्तों को कृपा और आशीर्वाद का वरदान देती हैं। यह व्रत न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि परिवार के लिए प्रेम और समर्पण का भी सुंदर भाव दर्शाता है।
वरलक्ष्मी पूजा (Varalakshmi Vratham Puja) मां लक्ष्मी के उस रूप को समर्पित है जिसे वर देने वाली देवी कहा जाता है। यह दिन खासतौर पर धन, समृद्धि और सौभाग्य की कामना के साथ मां लक्ष्मी की आराधना के लिए मनाया जाता है। वरलक्ष्मी देवी, भगवान विष्णु की अर्धांगिनी और महालक्ष्मी का ही एक विशेष स्वरूप मानी जाती हैं।
मान्यता है कि मां वरलक्ष्मी क्षीर सागर यानी दूधिया सागर से प्रकट हुई थीं। उनकी छवि भी शांत, सौम्य और उसी तरह के दूधिया रंग में वर्णित की जाती है — जैसे चंद्रमा की शीतल रोशनी। वह हमेशा उज्ज्वल वस्त्रों और आभूषणों में सजी हुई नजर आती हैं। ‘वरलक्ष्मी’ नाम ही बताता है कि यह देवी वह हैं जो अपने भक्तों को इच्छित फल और आशीर्वाद प्रदान करती हैं। इसलिए इस दिन महिलाएं विशेष श्रद्धा से मां की पूजा करती हैं ताकि उनके घर में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहे।
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वरलक्ष्मी व्रत (Varalakshmi Vratham) श्रावण मास के शुक्ल पक्ष के आखिरी शुक्रवार को मनाया जाता है—यानी राखी और पूर्णिमा से कुछ दिन पहले। यह व्रत भले ही सभी के लिए फलदायी माना जाता हो, लेकिन विशेष रूप से आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों में विवाहित महिलाएं इसे श्रद्धा और आस्था के साथ करती हैं।
इस व्रत का उद्देश्य सांसारिक सुखों की प्राप्ति होता है—जैसे जीवनसाथी की लंबी उम्र, संतान की भलाई, घर में सुख-शांति और समृद्धि। महिलाएं पूरे मन से देवी लक्ष्मी की पूजा करती हैं और अपने परिवार के लिए मंगलकामनाएं करती हैं।
ऐसा विश्वास है कि वरलक्ष्मी माता की पूजा करना केवल एक देवी की नहीं, बल्कि अष्टलक्ष्मी—जैसे धन की देवी (श्री), धरती की देवी (भू), शिक्षा की देवी (सरस्वती), प्रेम (प्रीति), यश (कीर्ति), शांति (शांति), संतोष (तुष्टि) और ऊर्जा (पुष्टि)—की सामूहिक आराधना के समान फलदायी होता है।
हालांकि उत्तर भारत में इस व्रत की मान्यता अपेक्षाकृत कम है, लेकिन दक्षिण भारत में इसे बहुत विशेष स्थान प्राप्त है। कहा जाता है कि जो भी श्रद्धा और सच्चे मन से वरलक्ष्मी व्रत (Varalakshmi Vratham) करता है, उसे देवी लक्ष्मी का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे जीवन में सुख, सौभाग्य और संतुलन बना रहता है।
वरलक्ष्मी व्रत (Varalakshmi Vratham), जिसे श्रद्धा से वरलक्ष्मी पूजा भी कहा जाता है, देवी लक्ष्मी के एक विशेष स्वरूप—वरलक्ष्मी—की आराधना का खास दिन है। इस दिन महिलाएं ही नहीं, पुरुष भी देवी से अपने और अपने परिवार के लिए सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य और दीर्घायु का आशीर्वाद मांगते हैं। देवी वरलक्ष्मी (Devi Varalakshmi Vratham) को केवल धन की ही नहीं, बल्कि बुद्धि, साहस, संतति और समग्र समृद्धि की दात्री माना जाता है।
यह व्रत देवी लक्ष्मी के आठ दिव्य रूपों—अष्टलक्ष्मी—की आराधना के समान फलदायी माना जाता है। मान्यता है कि इस पूजा से जीवन के हर क्षेत्र में शुभता और संतुलन आता है। आइए जानें, किन-किन रूपों में देवी का आशीर्वाद इस व्रत के माध्यम से प्राप्त होता है:
इस दिन महिलाएं पारंपरिक व्रत (Varalakshmi Vratham 2025) रखती हैं—दिनभर उपवास करके देवी की पूजा करती हैं और संध्या में व्रत का समापन करती हैं। यह केवल एक धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि देवी के प्रति समर्पण और परिवार के कल्याण की कामना का प्रतीक है। वरलक्ष्मी व्रत (Varalakshmi Vratham) हमें सिखाता है कि सच्ची श्रद्धा और संयम से जीवन में हर प्रकार की समृद्धि संभव है।
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