April 17, 2025 Blog

Kajari Teej 2025 : इस साल कब है कजरी तीज, जानिए तिथि, पूजा विधि और नियम

BY : STARZSPEAK

Kajari Teej 2025: कजरी तीज का पर्व हर साल भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। यह एक पारंपरिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध त्योहार है, जो विशेष रूप से विवाहित महिलाओं के लिए सौभाग्य, सुख और पति की लंबी उम्र की कामना के साथ जुड़ा होता है। इसे कजरी तीज, भादो तीज, बूढ़ी तीज या बड़ी तीज जैसे नामों से भी जाना जाता है।

उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में यह पर्व बड़े श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। महिलाएं इस दिन व्रत रखकर शिव-पार्वती की पूजा करती हैं और सुखद वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं।

सिर्फ विवाहित ही नहीं, बल्कि अविवाहित कन्याएं भी इस दिन आदर्श जीवनसाथी की प्राप्ति के लिए उपवास रखती हैं और माँ पार्वती से प्रार्थना करती हैं। कजरी तीज न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा है, बल्कि यह प्रेम, समर्पण और जीवन की सकारात्मकता को भी दर्शाता है।


कब है कजरी तीज (When is Kajari Teej)

कजरी तीज (Kajari Teej 2025 date)का पर्व इस साल मंगलवार, 12 अगस्त 2025 को मनाया जाएगा। इस खास दिन की पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 10:33 बजे से अगले दिन यानी 12 अगस्त की सुबह 8:40 बजे तक रहेगा। पंचांग के अनुसार, तृतीया तिथि की शुरुआत 11 अगस्त को सुबह 10:33 बजे से होगी और इसका समापन 12 अगस्त को सुबह 8:40 बजे तक होगा। इस दौरान श्रद्धा और विधिपूर्वक देवी पार्वती और भगवान शिव की पूजा करने से व्रत का संपूर्ण फल प्राप्त होता है।

कजरी तीज का महत्त्व (Importance of Kajari Teej) 

कजरी तीज का पर्व महिलाओं के लिए प्रेम, समर्पण और आस्था का प्रतीक है। यह विशेष दिन देवी पार्वती की उस तपस्या और भक्ति को समर्पित है, जिसके बल पर उन्होंने भगवान शिव को अपना जीवनसाथी बनाया। इसलिए इस व्रत को सौभाग्य, सुखी वैवाहिक जीवन और मनोवांछित वर की प्राप्ति के लिए बेहद शुभ माना जाता है।

जो महिलाएं अपने दांपत्य जीवन में सुख और स्थिरता की कामना करती हैं, वे इस दिन श्रद्धा के साथ व्रत रखती हैं और भगवान शिव व माता पार्वती की पूजा करती हैं। अविवाहित युवतियों के लिए भी यह दिन विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इस दिन की पूजा उन्हें एक योग्य जीवनसाथी का आशीर्वाद दिला सकती है।

कजरी तीज (Kajari Teej) का संबंध हरियाली तीज और हरतालिका तीज से भी जुड़ा है—तीनों ही पर्व महिलाओं के सौभाग्य और वैवाहिक खुशहाली के लिए मनाए जाते हैं। लेकिन कजरी तीज को खास बनाता है माता पार्वती की कठोर तपस्या का स्मरण, जो इस दिन की पूजा को और भी शक्तिशाली और फलदायी बना देता है। यह पर्व न सिर्फ आध्यात्मिक रूप से, बल्कि भावनात्मक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है।

kajari teej 2025

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कजरी तीज क्यों मनाते है ? (Why is Kajari Teej celebrated?)

कजरी तीज (Kajari Teej 2025) का त्योहार भगवान शिव और माता पार्वती के दिव्य प्रेम और उनकी अटूट भक्ति की स्मृति में मनाया जाता है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि सच्ची श्रद्धा, समर्पण और धैर्य से हर इच्छा पूरी हो सकती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कई जन्मों तक तप किया था। उनकी इसी निष्ठा और भक्ति से प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया।  

इसलिए यह पर्व न केवल भक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह जीवन में एक सच्चे और योग्य साथी की प्राप्ति की कामना से भी जुड़ा हुआ है। कजरी तीज के दिन महिलाएं विशेष रूप से अपने पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए व्रत रखती हैं, वहीं कुंवारी कन्याएं अच्छे जीवनसाथी की प्रार्थना करती हैं।  

इस दिन महिलाएं पारंपरिक वस्त्र पहनती हैं, हाथों में मेहंदी लगाती हैं और पूरे श्रद्धा भाव से भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं। कजरी तीज न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह रिश्तों में प्रेम, विश्वास और दृढ़ता को भी सुदृढ़ करता है।


कजरी तीज पूजा विधि (Worship Method Of Kajari Teej) 

कजरी तीज (Kajari Teej puja vidhi) का त्योहार पूरे उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं पारंपरिक रीति-रिवाजों का पालन करते हुए खास पूजा और व्रत करती हैं। आइए जानें कि यह पर्व किस तरह से मनाया जाता है:

व्रत का संकल्प: इस दिन महिलाएं सूरज निकलने से लेकर चांद दिखने तक बिना कुछ खाए-पिए निर्जला व्रत रखती हैं। विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए, तो अविवाहित लड़कियां अच्छे जीवनसाथी की कामना से यह उपवास करती हैं। व्रत चंद्रोदय के बाद पूजा कर के खोला जाता है।

पूजा विधि: शाम के समय महिलाएं सोलह श्रृंगार करके भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं। पूजा में गेहूं, जौ, चना और चावल के सत्तू को घी के साथ मिलाकर अर्पित किया जाता है। यह पूजा सौभाग्य और सुख-शांति की कामना के साथ की जाती है।

झूले और गीतों का रंग: इस दिन घरों और बगीचों में झूले लगाए जाते हैं। महिलाएं पारंपरिक गीत—कजरी गीत—गाती हैं और झूले पर झूलती हैं। ढोलक की थाप पर गाए जाने वाले ये लोकगीत त्योहार में रंग भर देते हैं और प्रेम, भक्ति व खुशियों की भावनाएं जागृत करते हैं।

नीम की पूजा: कजरी तीज पर नीम के पेड़ की भी पूजा की जाती है। महिलाएं नीम की डाली पर धागा लपेटती हैं और अपने वैवाहिक जीवन की खुशहाली और सुरक्षा के लिए प्रार्थना करती हैं।

श्रृंगार और मेंहदी: इस दिन मेहंदी और सिंदूर का खास महत्व होता है। महिलाएं हाथों में मेहंदी रचाती हैं, सिंदूर लगाती हैं और पारंपरिक गहनों से सजती हैं। ये सब सौभाग्य का प्रतीक माने जाते हैं।

चंद्र पूजन और व्रत खोलना: दिनभर उपवास के बाद महिलाएं शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं और उसकी पूजा करती हैं। चंद्र दर्शन के बाद पारंपरिक भोजन, विशेष रूप से सत्तू से बनी चीजें खाकर व्रत खोला जाता है।

इस तरह कजरी तीज न केवल धार्मिक भावनाओं से जुड़ा होता है, बल्कि यह प्रेम, श्रद्धा और पारंपरिक लोक संस्कृति का भी सुंदर उत्सव होता है।

कजरी तीज व्रत के नियम (Kajari Teej Vrat 2025 Rituals)

कजरी तीज के दिन कुछ खास परंपराओं और नियमों का पालन करना शुभ माना जाता है। इस व्रत को पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से करना चाहिए।

इस दिन विशेष रूप से जौ, गेहूं, चना और चावल के सत्तू में घी और सूखे मेवे मिलाकर विभिन्न प्रकार के पकवान तैयार किए जाते हैं। चंद्रमा के दर्शन के बाद इन पकवानों का सेवन कर व्रत खोला जाता है।

एक खास परंपरा के अनुसार, इस दिन गाय की पूजा की जाती है। आटे की सात लोइयां बनाकर उन पर घी और गुड़ रखा जाता है और पहले इन्हें गाय को खिलाया जाता है। इसके बाद ही व्रती महिलाएं स्वयं भोजन करती हैं।

कजरी तीज के दिन घरों में झूले डाले जाते हैं, जिन पर महिलाएं झूलती हैं और पारंपरिक कजरी गीत गाती हैं। नाच-गान और लोकगीतों का यह उत्सव महिलाओं के लिए विशेष आनंद और उत्साह का समय होता है।


निष्कर्ष:

कजरी तीज (Kajari Teej 2025) नारी शक्ति, प्रेम, समर्पण और वैवाहिक सुख का प्रतीक पर्व है। यह न सिर्फ विवाहित महिलाओं के लिए पति की लंबी उम्र और खुशहाल दांपत्य जीवन की कामना का अवसर होता है, बल्कि अविवाहित कन्याओं के लिए भी यह एक शुभ दिन होता है, जब वे मनचाहा जीवनसाथी पाने की प्रार्थना करती हैं। पूजा-व्रत, कजरी गीत, झूले और सांस्कृतिक परंपराएं इस पर्व को विशेष और उत्साहपूर्ण बना देती हैं।


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