November 11, 2025 Blog

Utpanna Ekadashi 2025: जानें उत्पन्ना एकादशी की व्रत एवं पूजा विधि और तुलसी से जुड़े नियम

BY : Meera Joshi – Spiritual Writer

Utpanna Ekadashi 2025: एकादशी व्रत को सभी व्रतों में सबसे श्रेष्ठ माना गया है। माना जाता है कि जो व्यक्ति नियमित रूप से एकादशी का व्रत रखता है, उसके मन की चंचलता दूर होती है और उसे धन, स्वास्थ्य तथा मानसिक शांति की प्राप्ति होती है। ज्योतिष के अनुसार उत्पन्ना एकादशी का व्रत विशेष रूप से आरोग्य, संतान सुख और मोक्ष प्राप्ति के लिए अत्यंत शुभ माना गया है। यह व्रत हर वर्ष मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है।

मौसम और स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह समय फलाहार के लिए उपयुक्त माना गया है। इस वर्ष उत्पन्ना एकादशी का व्रत 15 नवंबर को मनाया जाएगा। आइए जानते हैं इस पावन तिथि से जुड़ी जानकारी, शुभ मुहूर्त और पारण का समय।


उत्पन्ना एकादशी 2025 तिथि (Utpanna Ekadashi 2025 Date)

उत्पन्ना एकादशी का पवित्र व्रत इस वर्ष 15 नवंबर 2025 (15 November 2025) को रखा जाएगा। पंचांग के अनुसार, यह तिथि 15 नवंबर की अर्धरात्रि 12 बजकर 49 मिनट से शुरू होकर 16 नवंबर की रात 2 बजकर 37 मिनट तक रहेगी।
व्रत का पारण 16 नवंबर, रविवार को किया जाएगा। पारण का शुभ समय दोपहर 1 बजकर 10 मिनट से लेकर 3 बजकर 18 मिनट तक रहेगा। इसी अवधि में व्रतीजन व्रत का समापन कर सकते हैं।

उत्पन्ना एकादशी पारण मुहूर्त (Utpanna Ekadashi 2025 Parana Muhurat)

एकादशी व्रत का पारण हमेशा अगले दिन सूर्योदय के बाद किया जाता है। इस वर्ष उत्पन्ना एकादशी व्रत (Utpanna Ekadashi Vrat) का पारण 16 नवंबर 2025, रविवार को किया जाएगा। पंचांग के अनुसार, पारण के लिए दोपहर 1 बजकर 10 मिनट से 3 बजकर 16 मिनट तक का समय शुभ रहेगा। इस दौरान व्रतीजन व्रत तोड़ सकते हैं। इसके अलावा, हरि वासर यानी व्रत पारण से पूर्व का निषिद्ध काल 16 नवंबर की सुबह 9 बजकर 9 मिनट पर समाप्त होगा। हरि वासर समाप्त होने के बाद ही पारण करना शुभ और फलदायी माना जाता है। इस समय के भीतर श्रद्धापूर्वक व्रत का समापन करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और व्रत पूर्ण फल देता है।

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उत्पन्ना एकादशी 2025 के शुभ योग (Utpanna Ekadashi 2025 Shubh Yog)

इस बार की उत्पन्ना एकादशी बेहद शुभ मानी जा रही है क्योंकि इस दिन कई मंगलकारी योग बन रहे हैं। इस तिथि पर उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र, विष्कुंभ योग और अभिजीत मुहूर्त का संयोग बन रहा है। यह संयोजन इस दिन किए गए पूजा-पाठ, दान और व्रत के फल को कई गुना बढ़ा देता है।

उत्पन्ना एकादशी 2025 पूजन विधि (Utpanna Ekadashi 2025 Pujan Vidhi)

उत्पन्ना एकादशी के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा करने का विशेष महत्व होता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन श्रद्धा और नियमपूर्वक श्रीहरि की आराधना करने से जीवन के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति को सुख, शांति तथा समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान कर लें और घर की साफ-सफाई करें। फिर पूजा स्थान को शुद्ध करके भगवान विष्णु की आराधना करें। श्रीहरि के समक्ष देसी घी का दीपक जलाएं और तुलसी दल के साथ पंचामृत अर्पित करें। (Utpanna Ekadashi)
संध्याकाल में पुनः भगवान विष्णु की पूजा करें और उन्हें भोग लगाते समय विष्णु सहस्त्रनाम तथा श्री हरि स्तोत्रम का पाठ करें। यह दिन पूरी निष्ठा और भक्ति के साथ प्रभु विष्णु को समर्पित होता है।

उत्पन्ना एकादशी के नियम (Utpanna Ekadashi Niyam)

इस व्रत को व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार निर्जल, फलाहार या जलीय व्रत के रूप में रख सकता है। हालांकि निर्जल व्रत केवल वही लोग करें जो पूर्णतः स्वस्थ हों।
दशमी तिथि की रात को भोजन न करना इस व्रत का एक महत्वपूर्ण नियम है। एकादशी के दिन प्रातः श्रीकृष्ण और श्रीहरि की पूजा कर उन्हें फलों का भोग लगाएं। दिनभर संयम, भक्ति और सत्य के मार्ग पर चलकर इस व्रत को पूर्ण करें।

यह व्रत न केवल शरीर को शुद्ध करता है, बल्कि मन को भी शांति और आत्मिक बल प्रदान करता है।

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एकादशी पर तुलसी के नियम (Rules for Tulsi on Ekadashi)

इस दिन विधि-विधान से व्रत और पूजा करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। मान्यता है कि यदि एकादशी के दिन तुलसी से जुड़े नियमों का पालन न किया जाए तो मां लक्ष्मी अप्रसन्न हो सकती हैं, जिससे जीवन में बाधाएं उत्पन्न हो सकती हैं।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, एकादशी तिथि पर तुलसी माता स्वयं निर्जला व्रत रखती हैं, इसलिए इस दिन तुलसी को जल अर्पित करना वर्जित माना गया है। इसके साथ ही तुलसी के पत्ते तोड़ना भी निषिद्ध है, क्योंकि ऐसा करने से तुलसी व्रत खंडित हो सकता है और मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त नहीं होती।


तुलसी माता का व्रत हो सकता है खंडित (Tulsi Mata's fast may be broken)

धार्मिक मान्यता के अनुसार, एकादशी के दिन तुलसी माता स्वयं निर्जला व्रत रखती हैं। इसलिए इस दिन तुलसी को जल अर्पित करना वर्जित माना गया है। ऐसा करने से तुलसी माता का व्रत भंग हो सकता है। इसी तरह, एकादशी तिथि पर तुलसी के पत्ते तोड़ने की भी मनाही होती है। कहा जाता है कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी अप्रसन्न हो सकती हैं और व्रत का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता।

धन की कमी का बन सकता है कारण (Lack of money can be the reason)

मां लक्ष्मी का वास हमेशा स्वच्छ और पवित्र स्थान पर होता है। इसलिए एकादशी के दिन तुलसी के पौधे के आसपास सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए। धार्मिक मान्यता है कि यदि तुलसी के पास गंदगी रहती है, तो घर से लक्ष्मी का वास हट जाता है और आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

इसके अलावा, तुलसी के पौधे को कभी भी गंदे या जूठे हाथों से नहीं छूना चाहिए। ऐसा करने से नकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है और जीवन में अशुभ परिणाम मिल सकते हैं।

निष्कर्ष (Conclusion)

उत्पन्ना एकादशी (Utpanna Ekadashi 2025) न केवल व्रत और पूजा का दिन है, बल्कि यह आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक जागरण का अवसर भी है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की सच्चे मन से पूजा करने से जीवन के सभी दुख, पाप और बाधाएँ दूर होती हैं। साथ ही, तुलसी माता से जुड़े नियमों का पालन कर व्यक्ति अपने घर में सुख, शांति और समृद्धि बनाए रख सकता है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो श्रद्धा और भक्ति के साथ इस व्रत को करता है, उसे भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन में सौभाग्य की वृद्धि होती है। इसलिए, उत्पन्ना एकादशी केवल एक तिथि नहीं, बल्कि ईश्वर के प्रति समर्पण और आत्मिक शुद्धता का प्रतीक है।

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Author: Meera Joshi – Spiritual Writer

Meera Joshi, a spiritual writer with 12+ years’ expertise, documents pooja vidhis and rituals, simplifying traditional ceremonies for modern readers to perform with faith, accuracy, and devotion.