November 10, 2025 Blog

Kaal Bhairav Jayanti 2025: काल भैरव जयंती के दिन शिव के रौद्र रूप की पूजा करने से मिलता विशेष लाभ

BY : Meera Joshi – Spiritual Writer

Kaal Bhairav Jayanti 2025: काल भैरव जयंती, जिसे भैरव अष्टमी या कालाष्टमी (Kalashtami) भी कहा जाता है, भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव के प्रकट होने का पावन दिन है। हिंदू धर्म में इस तिथि का विशेष महत्व माना गया है। इस दिन श्रद्धालु बाबा काल भैरव की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते हैं। मान्यता है कि काल भैरव की उपासना से भय, नकारात्मक ऊर्जाएं और पापों का नाश होता है, तथा जीवन में साहस और आत्मविश्वास की वृद्धि होती है।


काल भैरव जयंती 2025 तिथि (Kaal Bhairav Jayanti 2025 Date)

हिंदू पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 11 नवंबर 2025, मंगलवार को सुबह 11 बजकर 08 मिनट से शुरू होकर 12 नवंबर 2025, बुधवार को सुबह 10 बजकर 58 मिनट तक रहेगी। उदया तिथि के अनुसार, काल भैरव जयंती का पावन पर्व 12 नवंबर 2025, बुधवार को मनाया जाएगा।


काल भैरव बाबा करते हैं हर बाधा दूर (Kaal Bhairav Baba Removes All Obstacles)

भगवान काल भैरव को काशी का कोतवाल कहा जाता है, क्योंकि वे इस पवित्र नगरी के रक्षक माने जाते हैं। मान्यता है कि प्रलय काल में भी काशी को कोई नुकसान नहीं होगा, क्योंकि स्वयं भगवान शिव उसकी रक्षा करते हैं। काल भैरव की पूजा करने से भय, नकारात्मक ऊर्जा और बुरे प्रभाव दूर होते हैं। जिन लोगों की कुंडली में शनि या राहु-केतु से संबंधित दोष होते हैं, उनके लिए भी काल भैरव की आराधना अत्यंत लाभकारी मानी जाती है। तंत्र-मंत्र के साधक तो विशेष रूप से उनकी उपासना करते हैं ताकि वे दिव्य शक्ति और संरक्षण प्राप्त कर सकें।

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काल भैरव जयंती के दिन करें बाबा की पूजा  (Worship Baba on the day of Kaal Bhairav Jayanti )

काल भैरव जयंती के दिन भक्तों को भगवान काल भैरव की विशेष पूजा करनी चाहिए। इस दिन मंदिर जाकर या घर पर ही बाबा के समक्ष सरसों के तेल का दीपक जलाएं। दीपक जलाने के बाद “ॐ काल भैरवाय नमः” या “ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरुकुरु बटुकाय ह्रीं” मंत्र का 108 बार जप करना शुभ माना जाता है। साथ ही, इस दिन काल भैरव अष्टक का पाठ करना अत्यंत फलदायी होता है, जिससे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है और भय तथा बाधाएं दूर होती हैं। जयंती के अवसर पर भैरव बाबा को जलेबी, उड़द दाल के पकौड़े और नारियल का भोग चढ़ाना भी अत्यंत शुभ माना जाता है। (Kaal Bhairav Jayanti)

काल भैरव जयंती पूजा कैसे करे  (How to perform Kaal Bhairav Jayanti Puja) 

काल भैरव जयंती के दिन भक्तों को सुबह जल्दी उठकर स्नान-ध्यान करने के बाद पूर्व दिशा की ओर मुख करके भगवान काल भैरव की पूजा करनी चाहिए। पूजा के दौरान भैरव चालीसा या भैरव स्तोत्र का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है। भगवान भैरव को प्रसन्न करने के लिए उन्हें काले तिल, नारियल, गुड़ और सरसों के तेल का दीपक अर्पित करें। पूजा संपन्न होने के बाद किसी कुत्ते को भोजन खिलाना न भूलें — यह भैरव बाबा को प्रसन्न करने का सबसे सरल और प्रभावी उपाय माना गया है।

काल भैरव जयंती का महत्व (Importance Of Kaal Bhairav Jayanti)

मान्यता है कि भगवान काल भैरव की सच्चे मन से पूजा करने वाले व्यक्ति को जीवन में किसी भी प्रकार का भय या संकट नहीं सताता। वे अपने भक्तों की हर प्रकार की नकारात्मक शक्तियों और बाधाओं से रक्षा करते हैं। काल भैरव जयंती के दिन श्रद्धा भाव से की गई उपासना से जीवन में सुख, समृद्धि और सफलता के द्वार खुलते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन पूजा करने से दरिद्रता, भय और अशुभ प्रभाव दूर होकर जीवन में आत्मविश्वास और शक्ति का संचार होता है।

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भगवान शिव ने क्यों और कैसे लिया रूद्र रूप  (Why and how did Lord Shiva take the form of Rudra?)

भगवान शिव के भैरव रूप में प्रकट होने की कथा अत्यंत रोचक और दिव्य मानी जाती है। एक बार सुमेरु पर्वत पर देवताओं ने ब्रह्माजी से पूछा कि इस सृष्टि में वह सर्वोच्च सत्ता कौन है, जिसका कोई आरंभ और अंत नहीं है। इस पर ब्रह्माजी ने स्वयं को ही सर्वश्रेष्ठ और अविनाशी बताया। जब यही प्रश्न देवताओं ने भगवान विष्णु से किया, तो उन्होंने कहा कि वे ही इस जगत के पालनकर्ता हैं, इसलिए वही अनादि और अमर हैं।

सत्य का निर्णय करने के लिए चारों वेदों को बुलाया गया। वेदों ने कहा — “जिसमें भूत, वर्तमान और भविष्य सभी समाहित हैं, जो जन्म और मृत्यु से परे हैं, वही परमात्मा भगवान रुद्र हैं।” यह सुनकर ब्रह्माजी के पाँचवें मुख ने भगवान शिव के प्रति अपमानजनक शब्द कहे, जिससे वेद अत्यंत व्यथित हुए। तभी एक तेजस्वी ज्योति के रूप में भगवान रुद्र प्रकट हुए।(Kaal Bhairav Jayanti)

ब्रह्मा ने उन्हें संबोधित करते हुए कहा कि “तुम मेरे शरीर से उत्पन्न हुए हो, इसलिए तुम्हारा नाम रुद्र रखा गया है।” लेकिन यह व्यवहार भगवान शिव को अच्छा नहीं लगा। क्रोधित होकर उन्होंने अपने तेज से भैरव नामक पुरुष की सृष्टि की और उसे आदेश दिया कि ब्रह्मा के अहंकार का नाश करे। भैरव ने अपने बाएँ हाथ की सबसे छोटी उंगली के नाखून से ब्रह्मा के पाँचवें सिर को काट दिया, जिसके कारण उन्हें ब्रह्महत्या का दोष लगा।

भगवान शिव के आदेश पर भैरव मुक्ति की खोज में काशी पहुंचे, जहाँ उन्हें इस पाप से मुक्ति मिली। तभी से भगवान शिव ने उन्हें काशी का कोतवाल नियुक्त किया। माना जाता है कि आज भी वाराणसी में बाबा काल भैरव काशी की रक्षा करते हैं और उनके दर्शन के बिना विश्वनाथ मंदिर का दर्शन अधूरा माना जाता है।


निष्कर्ष

काल भैरव जयंती (Kaal Bhairav Jayanti) न केवल भगवान शिव के रौद्र रूप की आराधना का दिन है, बल्कि यह दिन हमें यह भी सिखाता है कि अहंकार, अन्याय और नकारात्मकता का अंत अवश्य होता है। भगवान काल भैरव की उपासना से जीवन में साहस, सुरक्षा और स्थिरता आती है। जो भी व्यक्ति सच्चे मन से उनकी आराधना करता है, उसके जीवन से भय, दुख और बाधाएं दूर हो जाती हैं। काशी के कोतवाल भगवान काल भैरव आज भी अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और उन्हें धर्म और सत्य के मार्ग पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं।

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Author: Meera Joshi – Spiritual Writer

Meera Joshi, a spiritual writer with 12+ years’ expertise, documents pooja vidhis and rituals, simplifying traditional ceremonies for modern readers to perform with faith, accuracy, and devotion.