February 14, 2025 Blog

Rudrashtakam Lyrics : पढ़े Namami Shamishan Nirvan Roopam का हिंदी अर्थ सहित पाठ

BY : STARZSPEAK

Shiv Rudrashtakam Namami Shamishan Lyrics:  रुद्राष्टकम, भगवान शिव की महिमा का वर्णन करने वाला एक अद्भुत स्तोत्र है, जिसे गोस्वामी तुलसीदास जी ने रचा था। यह मंत्र पाठ न केवल शिवजी की स्तुति का सबसे प्रभावशाली स्रोत है, बल्कि इसे चमत्कारिक भी माना जाता है।

रामचरितमानस के अनुसार, भगवान श्रीराम ने रावण पर विजय प्राप्त करने के लिए रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना कर श्रद्धापूर्वक रुद्राष्टकम का पाठ (Rudrashtakam Lyrics) किया था। उनकी गहरी भक्ति और इस स्तुति के प्रभाव से उन्हें भगवान शिव की कृपा प्राप्त हुई और वे युद्ध में विजयी हुए।

यह पाठ भगवान शिव के दिव्य स्वरूप, उनकी करुणा, शक्ति और भक्ति का प्रतीक है। जो भी सच्चे मन से इसका पाठ करता है, उसे भगवान शिव की अपार कृपा प्राप्त होती है।

॥ श्री रुद्राष्टकम ॥
Shree Rudrashtakam Lyrics

नमामीशमिषां  निर्वाणरूपं

विभुं  व्यापकं  ब्रह्मवेदस्वरूपम्  ।

निजं  निर्गुणं  निर्विकल्पं  निरिहं

चिदाकाशमाकाश्वसं  भजेऽहम्  ॥1॥


नमामि-शमिशान-निर्वाण-रूपम

विभूम-व्यापाकम्-ब्रह्म-वेद-स्वरूपम

निजम-निर्गुणम-निर्विकल्पम-निरीहम

चिदाकाशम-आकासा-वासम-भजे-[ए]हम्||1||

हिंदी अनुवाद: मैं भगवान ईशान (शिव) को नमन करता हूँ, जो मोक्ष के प्रतीक, सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी हैं। जो स्वयं ब्रह्म और वेदस्वरूप हैं, सदा अपने स्वरूप में स्थित रहते हैं। जो सत्व, रज, तम गुणों से परे, अचल, अपरिवर्तनशील और आकाशवत व्यापक हैं। ऐसे भगवान शिव की मैं पूजा करता हूँ। ||1||


निराकारमोङ्करमूलं  तुरीयं

गिरज्ञानगोतीतमीशं  बरबम्  ।

करालं  महाकालं  कृपालं

गुणागरसंसारपारं  नतोऽहम्  ॥2॥


निराकार-ओंकार-मूलं-तुरीयं

गिरा-ज्ञान-गोति-तमिसम-गिरसम

करलम-महाकाल-कलम-कृपालम

गुण-गारा-संसार-परम-न-तो-[ए]हम||2||


हिंदी अनुवाद
: मैं भगवान शिव को नमन करता हूँ, जो निराकार और सृष्टि के मूल कारण, ओंकार को धारण करने वाले हैं। जो ब्रह्म अनुभव की चतुर्थ अवस्था में स्थित हैं, वाणी, बुद्धि और इंद्रियों से परे हैं। जो कैलाशपति, विकराल और महाकाल से भी श्रेष्ठ हैं, जो करुणामय हैं। जो भक्तों को गुणमय संसार से परे ले जाते हैं, ऐसे भगवान शिव की मैं पूजा करता हूँ। ||2||


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तुषाराद्रिसंशगौरं गभीरं

मनोभूतकोटिप्रभाश्री  शरीरम्  ।

स्फुर्नमौलिकलोलिनी  चारुगा

लसद्भालबालेंदु  कान्थे  भुजंगा  ॥3॥


तुषार-[ए]-अद्रि-संकाश-गौरम-गभिराम

मनो-भूत-कोटि-प्रभा-श्री-शरीरम

स्फुरन-मौली-कल्लोलिनी-चारु-गंगा

लसद-भालेन्दु-कंठे-भुजंगा ||3||


हिंदी अनुवाद: मैं भगवान शिव को नमन करता हूँ, जो हिमालय के समान उज्ज्वल, शांत स्वभाव वाले और सहस्रों कामदेवों के तेज से भी अधिक कांतिमान हैं। जिनके सिर से पावन गंगा प्रवाहित होती है, जिनके मस्तक पर चमकता हुआ चंद्रमा सुशोभित है, और जिनका गला सर्पों की माला से और भी सुंदर प्रतीत होता है। ||3||


चलत्कुण्डलं  ब्रूसुनेत्रं  विशालं

आकर्षकानं  नीलकण्ठं  मित्रम्  ।

मृगागाश्चर्माम्बरं  मुंडमालं

प्रियं  शंकरं  सर्वनाथं  भजामि ॥4॥


चलत-कुंडलम-भ्रु-सुनेत्रम-विशालम

प्रसन्न-नन्नम-नील-खंटम-दयालम

मृग-धिशा-चरमम-बरम-मुंड-मलम

प्रियम-शंकरम-सर्व-नाथम-भजामि ||4||


हिंदी अनुवाद:
मैं भगवान शिव को प्रणाम करता हूँ, जिनके कुण्डल झूमते हैं, जिनकी सुंदर, बड़ी भौंहें और आंखें मनमोहक हैं। जिनका मुख आनंदमय, कंठ नीला और स्वभाव करुणामय है। जो व्याघ्रचर्म धारण करते हैं और कपाल की माला पहनते हैं। ऐसे समस्त जगत के स्वामी, प्रिय शंकर की मैं पूजा करता हूँ। ||4||  


प्रचंडं  प्रकृष्टं  प्रग्लभं  परेषां

अखंडं  अजं  भानुकोटिप्रकाशं  ।

त्रयःशूलनिर्मूलनं  शूलपाणिनं

भजेऽहं  भवानीपतिं  भावगम्यम् ॥5॥


प्रचंडम-प्रकृष्टम-प्रगल्भम-परेशम

अखंडम-अजम-भानु-कोटि-प्रकाशम

त्रयः-शुला-निर्मूलन-शुल-पाणिम

भजे-[ए]हं-भवानी-पतिम-भव-गम्यम||5||


हिंदी अनुवाद:
मैं भगवान शिव को नमन करता हूँ, जो भयानक, श्रेष्ठ, वीर, परमेश्वर और सनातन हैं। जिनकी प्रभा करोड़ों सूर्यों के समान तेजस्वी है, जो हाथ में त्रिशूल धारण करते हैं और भक्तों के सभी कष्ट हर लेते हैं। मैं उन शिव की पूजा करता हूँ, जो भक्ति से सहज ही प्राप्त होते हैं। ||5||


कलातीत कल्याण  कल्पान्तकारी

सदा  सज्जनानंददाता  पुरारी  ।

चिदानंदसंदोह  मोहापाहारी

प्रसीद  प्रसीद  प्रभो  मन्मथारि ॥6॥


कलातिता-कल्याण-कल्पान्त-कारी सदा

-सज्जन-[ए]नंद-दाता-पुरारी चिदानंद

-संदोहा-मोह-पहारी प्रसीद-प्रसीद-प्रभो-मन्मथरी ||6||


हिंदी अनुवाद:
मैं भगवान शिव को नमन करता हूँ, जो सांसारिक मोह से परे, भक्तों के प्रिय और सृष्टि चक्र के संहारकर्ता हैं। जो ज्ञानियों को आनंद प्रदान करते हैं और त्रिपुरासुर का नाश करने वाले हैं। जो आसक्ति का नाश कर भक्तों को ज्ञान प्रदान करते हैं। हे करुणामय, कृपा करें, कृपा करें, हे कामदेव का संहार करने वाले! ||6||


न  यावद्  उमानाथपादारविंदं

भजन्तिह  लोके  परे  वा  नाराणाम्  ।

न  तावत्सुखं  शांति  सन्तापनाशं

प्रसीद  प्रभो  सर्वभूतधिवासं  ॥7॥


न-यावद-उमानाथ-पदारविन्दम

भजन्तिहा-लोके-परे-वा-नर-नाम

न-तावत-सुखम-शांति-सन्ताप-नाशम

प्रसीद-प्रभो-सर्व-भूत-धिवसम्||7||


हिंदी अनुवाद: जब तक मनुष्य उमा के चरणों की पूजा नहीं करेगा, तब तक न उसे इस लोक में शांति और समृद्धि मिलेगी, और न ही वह परलोक में दुःखों से मुक्त हो सकेगा। हे समस्त प्राणियों में विराजमान प्रभु, कृपा करें! ||7||


rudrashtakam lyrics

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नमामि  जानां  जपं नैव पूजां    

नतोऽहं  सदा  सर्वदा  शम्भुतुभ्यम् ।

जराजन्मदुःखौघ  तत्प्यमानं

प्रभो  पाहि  आपन्नमामिश  शम्भो ॥8॥


न-जानामि-योगम-जपम-नैव-पूजम

नतोहं-सदा-सर्वदा-शम्भु-तुभ्यं

जरा-जन्म-दुःख-[ए]उद-ततप्य-मानम

प्रभो-पाहि-आपन-मा-मीसा-सम्भो||8||


हिंदी अनुवाद:
मैं भगवान शिव को नमन करता हूँ, न मुझे योग का ज्ञान है, न जप, न भक्ति की विधि। मैं केवल सदा, हर क्षण आपको प्रणाम करता हूँ, हे शम्भु! कृपया मुझे बुढ़ापे, जन्म-मृत्यु के कष्टों और पापों के दुःख से बचाएँ। हे शम्भु, कृपा करके मुझे सभी दुखों से मुक्त करें। ||8||


रुद्राष्टकमिदं  प्रोक्तं  विप्रेण  हरतोषये

ये  पञ्ति  नरा  भक्त्या  तेषं  शम्भुः  प्रसीदति ॥9॥


रुद्राष्टकम्-इदम-प्रोक्तम्-विप्रेण-हर-तोषये

ये-पथन्ति-नर-भक्त्य-तेषाम्-शम्भु-प्रसीदति||9||

हिंदी अनुवाद: ज्ञानी कहते हैं कि जो भी भक्तिभाव से शिव को प्रसन्न करने हेतु इस रुद्राष्टकम का पाठ करता है, उस पर शम्भू शीघ्र कृपा करते हैं।

।।इस प्रकार श्रीरुद्राष्टकम् सम्पूर्ण हुआ।।

रुद्राष्टकम: भगवान शिव की स्तुति का दिव्य मार्ग

रुद्राष्टकम, (Rudrashtakam Lyrics) गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित एक अद्भुत भजन है, जिसमें भगवान शिव के दिव्य गुणों का वर्णन किया गया है। यह नौ श्लोकों (Namami Shamishan) की एक ऐसी स्तुति है जो हमें शिव के शांत, करुणामय और सर्वशक्तिमान स्वरूप का अनुभव कराती है। प्रत्येक श्लोक उनके अनंत रूपों को उजागर करता है—शांत, तेजस्वी, दयालु और संहारक। आइए इन पवित्र छंदों की गहराई में उतरते हैं और भगवान शिव की महिमा का अनुभव करते हैं।

श्लोक 1: शिव—मोक्ष का प्रतीक

पहले श्लोक (Namami Shamishan Nirvan Roopam) में भगवान ईशान को नमन किया गया है, जो मुक्ति के दाता, सर्वशक्तिमान और वेदों के साक्षात स्वरूप हैं। उनका शांत और अडिग स्वभाव भक्तों को आध्यात्मिक पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।

श्लोक 2: निराकार शिव

यह श्लोक हमें शिव के निराकार स्वरूप से परिचित कराता है, जो सृष्टि के मूल कारण का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे वाणी, बुद्धि और इंद्रियों से परे हैं, फिर भी भक्तों को सच्चे ज्ञान की ओर मार्गदर्शन करते हैं।

श्लोक 3: शिव की दिव्य आभा

इस छंद में शिव की कांति का वर्णन किया गया है, जो हजारों सूर्यों की चमक के समान है। उनके सिर पर बहती गंगा और सजीव चंद्रमा उनकी दिव्यता को और भी अधिक प्रभावशाली बनाते हैं।

श्लोक 4: सुंदर और दयालु भोलेनाथ

भगवान शिव के सौम्य और करुणामय स्वरूप को दर्शाते हुए, यह श्लोक (Namami Shamishan Nirvan Roopam) उनकी बड़ी सुंदर आँखों, शांत मुस्कान और नीले कंठ की महिमा का गुणगान करता है। बाघ की खाल और कपाल की माला उनकी सरलता और रहस्यमय स्वरूप को दर्शाती है।

श्लोक 5: भयानक और सर्वश्रेष्ठ शिव

इस श्लोक में शिव की दो विरोधी भूमिकाओं को दिखाया गया है—वे एक ओर दयालु हैं तो दूसरी ओर रौद्र रूप धारण कर संकटों का नाश करने वाले। उनका त्रिशूल, जो दुखों और मोह का नाश करता है, इसी शक्ति का प्रतीक है।

श्लोक 6: सांसारिक बंधनों से परे शिव

यह श्लोक (Namami Shamishan) हमें शिव के निर्लिप्त स्वरूप से परिचित कराता है। वे भौतिक संसार के आकर्षणों से परे रहते हुए भी भक्तों को ज्ञान प्रदान करते हैं और बुराई का संहार करते हैं।

श्लोक 7: शांति और समृद्धि का स्रोत

शिव की पूजा के बिना मनुष्य दुखों के चक्र में उलझा रहता है। यह श्लोक हमें उनके चरणों की भक्ति करने और शांति व समृद्धि प्राप्त करने की प्रेरणा देता है।

श्लोक 8: सरलता में छिपी भक्ति

यह छंद (Namami Shamishan Nirvan Roopam) हमें सिखाता है कि भक्ति में जटिल अनुष्ठानों से अधिक हृदय की सच्ची भावना महत्वपूर्ण है। शिव की सच्चे मन से की गई प्रार्थना हमें जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त कर सकती है।

श्लोक 9: शिव को प्रसन्न करने का मार्ग

अंतिम श्लोक में बताया गया है कि जो भी श्रद्धा और भक्ति से रुद्राष्टकम का पाठ (Rudrashtakam Lyrics) करता है, उस पर भगवान शिव की विशेष कृपा होती है, और वे उसे समस्त दुखों से मुक्ति प्रदान करते हैं।

निष्कर्ष

रुद्राष्टकम (Rudrashtakam ) सिर्फ एक स्तुति नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक यात्रा है। यह हमें भगवान शिव के शांत, करुणामय और संहारक रूपों का अनुभव कराता है। हर श्लोक उनकी महिमा को दर्शाता है और हमें उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है। भक्ति के इस मार्ग पर चलते हुए, हम शिव की अनंत कृपा का अनुभव कर सकते हैं और मोक्ष की ओर अग्रसर हो सकते हैं।


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