February 4, 2025 Blog

Lingashtakam Stotram: पढ़े Brahma Murari Surarchita Lingam Lyrics

BY : STARZSPEAK

Lingashtakam Lyrics:  संस्कृत साहित्य में आठ छंदों या श्लोकों से बनी एक विशेष काव्य रचना है। भारतीय संस्कृति में अनेक प्रसिद्ध अष्टक पाए जाते हैं, जो इसकी समृद्ध परंपरा को दर्शाते हैं।

ऐसा ही एक अत्यंत लोकप्रिय अष्टक शिव लिंगाष्टकम् (Lingashtakam Lyrics) है, जिसकी गूँज भारत के मंदिरों में प्रतिदिन सुनाई देती है। लाखों श्रद्धालु प्रतिदिन इस पावन अष्टक का पाठ कर भगवान शिव की स्तुति करते हैं।

यह दिव्य स्तोत्र आदि शंकराचार्य द्वारा रचित है, जिन्हें स्वयं भगवान शिव का अवतार माना जाता है। संस्कृत में लिंग का अर्थ प्रतीक होता है, अर्थात शिवलिंग शिव और शक्ति से सृष्टि के उत्पत्ति का प्रतीक है। प्रस्तुत है लिंगाष्टकम् का हिंदी (Lingashtakam Lyrics in Hindi) अर्थ सहित पावन पाठ।

लिंगाष्टकम् स्तोत्र का पाठ कब करना चाहिए (When Should Recite Lingashtakam Stotra)

पुराणों में शिवलिंग की विशेष उपासना के लिए लिंगाष्टकम् स्तुति का उल्लेख किया गया है। ऐसा माना जाता है कि सावन माह में शिवलिंग पर जल अर्पण करते हुए बिल्वपत्र समर्पित कर प्रतिदिन लिंगाष्टकम् का पाठ करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

ईशान संहिता के अनुसार, फाल्गुन मास की चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव दिव्य ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए थे। शिवपुराण के अनुसार, इस दिन शिवजी और माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ, जिससे उन्होंने वैराग्य छोड़कर गृहस्थ जीवन अपनाया। महाशिवरात्रि पर विधिपूर्वक भगवान शिव की आराधना करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और कष्टों का निवारण होता है। इस शुभ अवसर पर शिवजी को प्रसन्न करने के लिए लिंगाष्टकम स्तोत्र (Lingashtakam Stotram) का पाठ अवश्य करें।


।। Lingashtakam Lyrics।।

।। लिंगाष्टकम् स्तोत्र पाठ।।


ब्रह्म मुरारि सुरार्चित लिंगं, निर्मल भासित शोभित लिंगं। 
जन्मजदुःख विनाशक लिंगं, तत्प्रणमामि सदा शिव लिंगं।। (1)

हिंदी अनुवाद: मैं उस शिवलिंग को नमन करता हूँ, जिसे ब्रह्मा, विष्णु और समस्त देवगण पूजते हैं। जो निर्मल, उज्जवल और दिव्य आभा से सुशोभित है। जो जन्म-जन्मांतर के पापों का विनाश करता है, मैं उस सदाशिवलिंग को ससम्मान प्रणाम करता हूँ।। (1)

देव मुनि प्रवरार्चित लिंगं, काम दहन करुणाकर लिंगं। 
रावण दर्प विनाशन लिंगं, तत्प्रणमामि सदा शिव लिंगं।। (2)

हिंदी अनुवाद: जो देवताओं और ऋषियों द्वारा पूजित है, समस्त इच्छाओं और विकारों का नाश करने वाला तथा करुणामय है। जिसने रावण के अहंकार को समाप्त किया, मैं उस सदाशिवलिंग को नमन करता हूँ।। (2)

सर्व सुगन्ध सुलेपित लिंग, बुद्धि विवर्धन कारण लिंगं। 
सिद्ध सुरासुर वन्दित लिंगं, तत्प्रणमामि सदा शिव लिंगं।। (3)

हिंदी अनुवाद: जो सभी दिव्य सुगंधों से सुशोभित है और आत्मिक बुद्धि व विवेक को जागृत करने वाला है। जिसे सिद्ध, देवता और असुर सभी श्रद्धा से वंदन करते हैं, मैं उस सदाशिवलिंग को नमन करता हूँ ।। (3)

Lingashtakam Lyrics


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कनक महामणि भूषित लिंगं, फणिपति वेष्टित शोभित लिंगं। 
दक्षसु यज्ञ विनाशन लिंगं, तत्प्रणमामि सदा शिव लिंगं।। (4)

हिंदी अनुवाद: जो स्वर्ण और मणियों से अलंकृत है, जिसके सौंदर्य को लिपटे हुए सर्प और बढ़ा देते हैं। जिसने दक्ष के महायज्ञ का संहार किया था, मैं उस सदाशिवलिंग को नमन करता हूँ।। (4)
 
कुंकुम चंन्दन लेपित लिंगं, पङ्कजहार सुशोभित लिंगं। 
सञ्चित पाप विनाशन लिंगं, तत्प्रणमामि सदा शिव लिंगं।।  (5)

हिंदी अनुवाद: जिस पर कुंकुम और चन्दन से तिलक किया जाता है, जो कमल के हार से सजता है, और जो सभी जन्मों के पापों को समाप्त करता है, मैं उस सदाशिवलिंग को नमन करता हूँ।(Lingashtakam Lyrics)


देव गणार्चित सेवित लिंगं, भावैर्भक्ति भिरेव च लिंगं। 
दिनकर कोटि प्रभाकर लिंगं, तत्प्रणमामि सदा शिव लिंगं।। (6)

हिंदी अनुवाद: जिसकी भक्ति और सच्चे मन से सेवा देवताओं द्वारा की जाती है, और जिसका वैभव और आभा करोड़ों सूर्यों के समान है, मैं उस सदाशिवलिंग को प्रणाम करता हूँ।


अष्ट दलो परिवेष्टित लिंगं, सर्व समुद्भव कारण लिंगं। 
अष्टदरिद्र विनाशन लिंगं, तत्प्रणमामि सदा शिव लिंगं।। (7)

हिंदी अनुवाद: जो आठ पंखुड़ियों वाले फूलों से घिरा हुआ है, जिससे सम्पूर्ण सृष्टि की रचना हुई थी, और जो आठ प्रकार के दरिद्रता को समाप्त करने वाला है, मैं उस सदाशिवलिंग को प्रणाम करता हूँ।


सुरगुरु सुरवर पूजित लिंगं, सुरवन पुष्प सदार्चित लिंगं।। 
परात्परं परमात्मक लिंगं, तत्प्रणमामि सदा शिव लिंगं।। (8)

हिंदी अनुवाद: जो देवताओं के गुरु (बृहस्पति) द्वारा पूजित है, स्वर्ग के बग़ीचे के फूलों से जिसकी पूजा होती है, जो सर्वोत्तम और महानतम है, मैं उस शाश्वत शिवलिंग को प्रणाम करता हूं।


लिंगाष्टकमिदं पुण्यं यः पठे शिव सन्निधौ। 
शिवलोक मवाप्नोति शिवेन सह मोदते।।

हिंदी अनुवाद: जो भी लिंगाष्टक को शिव के समीप बैठकर पढता है, वह अंत में शिवलोक को प्राप्त होकर शिव के साथ सुखी रहता है।

Lingashtakam Stotram


लिंगाष्टकम् स्तोत्र का महत्व (Importance Of Lingashtakam Stotram)

जीवन में सुख-दुख का आना-जाना स्वाभाविक है, लेकिन कभी-कभी परिस्थितियाँ इतनी कठिन हो जाती हैं कि व्यक्ति के लिए उनका सामना करना बेहद चुनौतीपूर्ण हो जाता है। ऐसे कठिन समय में भगवान शिव का यह अत्यंत चमत्कारी और शक्तिशाली लिंगाष्टकम् स्तोत्र आपके सभी कष्टों का निवारण कर सकता है।

शिवपुराण में लिंगाष्टकम् स्तोत्र (Lingashtakam Lyrics) को शिवलिंग की उपासना के लिए विशेष रूप से वर्णित किया गया है। शिवलिंग को भगवान शिव का साक्षात स्वरूप माना जाता है, और मान्यता है कि यदि कोई प्रतिदिन शिवलिंग पर जल और बिल्वपत्र अर्पित करते हुए इस महाशक्तिशाली लिंगाष्टकम् स्तोत्र का पाठ करे, तो कठिन से कठिन समय भी आसान हो जाता है और व्यक्ति शीघ्र ही कष्टों से मुक्ति पा सकता है।

ऐसा कहा जाता है कि इस स्तोत्र के पाठ से भगवान शिव अति प्रसन्न होते हैं और अपनी अनन्य कृपा प्रदान करते हैं। यहाँ तक कि स्वयं देवता भी इस स्तोत्र (Lingashtakam Lyrics) के माध्यम से भगवान शिव की स्तुति करते हैं। यदि आपके जीवन में भी ऐसी परेशानियाँ हैं, जिनका समाधान आपको नहीं मिल रहा है, तो शिव की शरण में जाकर लिंगाष्टकम् स्तोत्र का पाठ करें। यह आठ श्लोकों वाला दिव्य स्तोत्र आपकी हर समस्या का समाधान कर सकता है।


शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव

शिव पुराण की कथा के अनुसार, भगवान शिव सृष्टि में सबसे पहले अनादि और अनंत शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे। यह शिवलिंग इतना विशाल था कि स्वयं ब्रह्मा और विष्णु भी इसके आरंभ और अंत का पता नहीं लगा सके। ऐसा माना जाता है कि इसी अनंत शिवलिंग से प्रणव मंत्र का नाद हुआ, जिससे संपूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति हुई। यही कारण है कि भगवान शिव की उपासना अनादिकाल से लिंग रूप में की जाती रही है।

शिवलिंग की पूजा केवल हिंदू धर्म तक ही सीमित नहीं है, बल्कि विश्व की कई प्राचीन सभ्यताओं में भी लिंग उपासना के प्रमाण मिलते हैं, जो कहीं न कहीं शिवलिंग पूजा से जुड़े हुए प्रतीत होते हैं।

भगवान शिव अपने साकार स्वरूप में महाशिवरात्रि के दिन प्रकट हुए थे। इसी दिन शिव और शक्ति का दिव्य मिलन हुआ था। इससे पहले शिवजी की उपासना केवल लिंग रूप में होती थी, और आज भी शिवलिंग की पूजा को भगवान शिव के साकार रूप की पूजा से अधिक प्रभावशाली माना जाता है।


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