कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाने वाला पर्व गोपाष्टमी भगवान श्रीकृष्ण और गौ माता को समर्पित है। खासतौर पर मथुरा, वृंदावन और ब्रज क्षेत्र में इस उत्सव की बड़ी धूम रहती है। परंपरा के अनुसार इस दिन गायों और उनके बछड़ों को सजाकर उनकी पूजा की जाती है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार, इसी दिन नंद महाराज ने श्रीकृष्ण को पहली बार गायों की देखभाल की जिम्मेदारी सौंपी थी। जब भगवान कृष्ण गायों को चराने वन की ओर निकले, तो इस अवसर पर नंद महाराज ने एक विशेष आयोजन भी किया। बताया जाता है कि राधारानी भी इस आनंद में शामिल होना चाहती थीं, लेकिन लड़कियों को गाय चराने की अनुमति नहीं थी। ऐसे में राधा जी ने सखा सुबाला के वेश में अपने मित्रों के साथ कृष्ण के साथ गौ चराने का आनंद लिया।
गोपाष्टमी का एक और महत्व यह भी है कि इसी दिन श्रीकृष्ण ने इन्द्रदेव के अहंकार का नाश किया था। इसलिए इस पर्व को श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है।
आइए विस्तार से जानें कि गोपाष्टमी 2025 कब है (When Is Gopashtami 2025)- 29 या 30 अक्टूबर? साथ ही जानें इसका सही दिन, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और इस दिन किए जाने वाले विशेष उपाय।
हिंदू पंचांग के अनुसार गोपाष्टमी हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। वर्ष 2025 में यह पावन पर्व 30 अक्टूबर, गुरुवार को मनाया जाएगा।
यानी इस बार गोपाष्टमी का शुभ उत्सव 30 अक्टूबर को श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाया जाएगा।
गोपाष्टमी के दिन सुबह-सुबह गायों को स्नान कराकर उन्हें बछड़ों सहित पूजनीय बनाया जाता है। इस अवसर पर जल, अक्षत, रोली, गुड़, जलेबी, वस्त्र और धूप-दीप से उनकी आरती उतारी जाती है। जिन घरों में गायें नहीं होतीं, वहां भक्त गोशाला जाकर गायों की सेवा और पूजन करते हैं।
पूजा से पहले गायों को सुंदर वस्त्रों और आभूषणों से सजाया जाता है। उनके अच्छे स्वास्थ्य और लंबी आयु के लिए विशेष चारे का भोग लगाया जाता है। यह परंपरा महाराष्ट्र में मनाए जाने वाले गोवत्स द्वादशी की पूजा विधि से मिलती-जुलती है।
इस दिन श्रीकृष्ण पूजा और गौ पूजा के साथ प्रदक्षिणा करने का विशेष महत्व है। ऐसा करने से सुख-समृद्धि और अच्छे जीवन का आशीर्वाद मिलता है। हिंदू धर्म में गाय को मां का स्थान दिया गया है क्योंकि वह दूध देकर संपूर्ण परिवार का पोषण करती है। इसी कारण गौमाता का पूजन और सेवा विशेष पुण्य प्रदान करती है।
शाम के समय जब गायें जंगल से लौटती हैं, तो भक्त उन्हें साष्टांग प्रणाम करते हैं और उनकी चरणरज को माथे पर लगाकर तिलक करते हैं। इस परंपरा को अत्यंत शुभ और कल्याणकारी माना जाता है।
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मान्यता है कि प्राचीन समय में ब्रजवासी हर वर्ष इंद्र देव को प्रसन्न करने के लिए भेंट चढ़ाया करते थे। लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने लोगों से कहा कि वर्षा का असली आधार गोवर्धन पर्वत और गौ माता हैं, इसलिए हमें उनकी पूजा करनी चाहिए। श्रीकृष्ण की बात मानकर जब ब्रजवासियों ने इंद्र देव को भेंट देना बंद कर दिया तो इंद्र क्रोधित हो गए और उन्होंने लगातार सात दिनों तक मूसलधार बारिश बरसाई।
तेज़ बारिश से जब चारों ओर बाढ़ जैसी स्थिति बन गई, तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर पूरे ब्रजवासियों और गौ-धन को उसके नीचे सुरक्षित आश्रय दिया। सात दिनों तक यह अद्भुत दृश्य चलता रहा। अंततः इंद्र देव का घमंड टूट गया और उन्होंने अपनी हार स्वीकार कर ली। कहा जाता है कि यह घटना गोपाष्टमी (Gopashtami 2025) के दिन ही समाप्त हुई थी, तभी से इस पर्व को बड़े धूमधाम से मनाने की परंपरा शुरू हुई।
गोपाष्टमी का पर्व पूरे उत्साह और भक्ति भाव से मनाया जाता है। इस दिन सुबह-सुबह स्नान करने के बाद लोग गौ माता और बछड़ों को स्नान कराते हैं, उन्हें फूलों की मालाओं, वस्त्रों और आभूषणों से सजाया जाता है। कई स्थानों पर गायों के सींगों को भी रंग-बिरंगे रंगों से सजाया जाता है।
भक्त विशेष पूजा-अर्चना करते हैं, आरती गाते हैं और भगवान श्रीकृष्ण के भजनों के साथ गौ माता की महिमा का गुणगान करते हैं। पूजा के दौरान जल, रोली, चंदन, अक्षत, गुड़, मिठाई और दीपक अर्पित किए जाते हैं। आरती के बाद सूजी का हलवा, आलू-पूरी, खीर जैसे व्यंजन तैयार कर भोग के रूप में भगवान श्रीकृष्ण और गौ माता को अर्पित किए जाते हैं।
मंदिरों और घरों में विशेष अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं और पंडितों द्वारा शास्त्रीय विधि से पूजा करवाई जाती है। पूजा पूर्ण होने के बाद भोग प्रसाद सबसे पहले गायों और बछड़ों को खिलाया जाता है, फिर ग्वालों और भक्तों में बांटा जाता है।
यह पर्व न केवल गौ पूजन का प्रतीक है बल्कि यह हमें याद दिलाता है कि गाय हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा है और उसका सम्मान करना प्रत्येक भक्त का कर्तव्य है।
हिन्दू धर्म में गाय को माँ का दर्जा दिया गया है, इसी कारण गोपाष्टमी के दिन उनकी विशेष पूजा का महत्व होता है। इस दिन कुछ खास कार्य करने से भगवान श्रीकृष्ण और गौ माता दोनों का आशीर्वाद मिलता है।
हिंदू परंपराओं के अनुसार, एक समय भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी माता यशोदा से गाय चराने की इच्छा जताई। बालकृष्ण की इस इच्छा को पूर्ण करने के लिए माता यशोदा ने मुनि शांडिल्य से इस कार्य की शुरुआत का शुभ मुहूर्त पूछा।
मुनि शांडिल्य ने बताया कि गोपाष्टमी (Gopashtmi) का दिन इस कार्य के लिए सबसे पावन और उपयुक्त है। इसी दिन श्रीकृष्ण ने पहली बार गौ-सेवा और गो-चर्या का कार्य शुरू किया। गौ माता की पूजा-अर्चना कर उन्होंने अपने नए दायित्व की शुरुआत की और तभी से यह दिन "गोपाष्टमी" के रूप में विशेष महत्व रखता है।
गोपाष्टमी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह हमें गायों के महत्व और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का अवसर देता है। इस दिन गौ माता की पूजा करके न केवल भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होती है, बल्कि जीवन में सुख-समृद्धि और शांति भी आती है। यह उत्सव हमें यह सिखाता है कि गाय सचमुच "माता" के समान है, जो मानव जीवन को पोषण और संबल देती है। इसलिए, गोपाष्टमी (Gopashtami) पर की गई पूजा और सेवा हर भक्त के लिए आध्यात्मिक उत्थान और सौभाग्य का माध्यम बनती है।
Neha Jain is a festival writer with 7+ years’ experience explaining Indian rituals, traditions, and their cultural meaning, making complex customs accessible and engaging for today’s modern readers.