Sheetala Ashtami 2025: शीतला अष्टमी, जिसे बसौड़ा पूजा के नाम से भी जाना जाता है, देवी शीतला को समर्पित एक प्रमुख हिंदू त्योहार है। यह पर्व चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जो आमतौर पर मार्च-अप्रैल के बीच पड़ती है। यह त्योहार होली के ठीक आठ दिन बाद आता है, हालांकि कुछ स्थानों पर इसे होली के बाद पहले गुरुवार या सोमवार को भी मनाया जाता है।
शीतला अष्टमी (Sheetala Ashtami 2025) मुख्य रूप से राजस्थान, उत्तर प्रदेश और गुजरात में बड़े श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाई जाती है। खासतौर पर राजस्थान में इस दिन का खास महत्व है, जहां बड़े मेलों का आयोजन किया जाता है और भजन-कीर्तन व अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। इस दिन देवी शीतला की पूजा करने और व्रत रखने से स्वास्थ्य से जुड़ी कई समस्याओं से बचाव होने की मान्यता है।
शीतला अष्टमी (Sheetala Ashtami 2025)का पर्व केवल धार्मिक महत्व ही नहीं रखता, बल्कि यह स्वच्छता और स्वास्थ्य से भी जुड़ा हुआ है। इस दिन मां शीतला का आशीर्वाद लेने से जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है और बीमारियों से रक्षा होती है। ऐसी धार्मिक मान्यताएं हैं कि शीतला माता की पूजा करने से चेचक, खसरा और कई अन्य संक्रामक रोगों से सुरक्षा मिलती है। कहा जाता है कि जो भक्त सच्चे मन से देवी की आराधना करते हैं, उन्हें न केवल बीमारियों से मुक्ति मिलती है, बल्कि उनके जीवन के कष्ट भी दूर हो जाते हैं। शीतला अष्टमी के दिन माता की पूजा करने से क्या लाभ होते हैं और इस पूजा को किस विधि से संपन्न किया जाता है, आइए जानते हैं…
शीतला अष्टमी का पर्व (Sheetala Ashtami 2025 Date) वर्ष 2025 में शनिवार, 22 मार्च को मनाया जाएगा। इस दिन भक्त शुभ मुहूर्त में माता शीतला की पूजा-अर्चना करेंगे, जो सुबह 6:42 बजे से शाम 6:51 बजे तक रहेगा, यानी कुल 12 घंटे 10 मिनट की अवधि के लिए। शीतला सप्तमी एक दिन पहले, 21 मार्च 2025 को पड़ेगी। अष्टमी (Sheetala Ashtami 2025 Date) तिथि की शुरुआत 22 मार्च को तड़के 4:23 बजे होगी और इसका समापन 23 मार्च को सुबह 5:23 बजे होगा। इस विशेष दिन पर विधि-विधान से पूजा करने से भक्तों को देवी की कृपा प्राप्त होती है और विभिन्न रोगों से सुरक्षा का आशीर्वाद मिलता है।
माता शीतला की पूजा करने के लिए उपासकों को शीतला अष्टमी (Sheetala Ashtami 2025) के दिन ब्रह्म मुहूर्त में जागकर स्नान करना चाहिए। स्नान के जल में यदि संभव हो तो गंगाजल मिलाएं, अन्यथा शुद्ध जल का उपयोग करें। इसके बाद स्वच्छ नारंगी रंग के वस्त्र धारण करें और पूजा की तैयारी करें। पूजा के लिए दो थालियां सजाएं—एक थाली में दही, रोटी, नमक पारे, पुआ, मठरी, बाजरा और सप्तमी के दिन बने मीठे चावल रखें, जबकि दूसरी थाली में आटे से बना दीपक, रोली, वस्त्र, अक्षत, सिक्का, मेहंदी और ठंडे पानी से भरा लोटा रखें। घर के मंदिर में माता शीतला की श्रद्धा पूर्वक पूजा करें, बिना दीपक जलाए उसे स्थान पर रखें और भोग अर्पित करें। इसके अतिरिक्त, नीम के पेड़ पर जल अर्पित करना भी शुभ माना जाता है।
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शीतला माता की पूजा में बासी भोग चढ़ाने की परंपरा है, क्योंकि इस दिन घर में चूल्हा जलाना वर्जित होता है। इसलिए भक्त एक दिन पहले ही भोजन तैयार कर लेते हैं और शीतला अष्टमी (Sheetala Ashtami 2025) के दिन सुबह जल्दी उठकर माता की पूजा करते हैं। पूजा के बाद देवी को बासी भोजन, यानी शीतला सप्तमी के दिन बनाए गए भोजन का भोग अर्पित किया जाता है, जिसे परिवार के सभी सदस्य भी प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन ताजा भोजन खाने और गर्म पानी से स्नान करने से बचना चाहिए।
शीतला अष्टमी (Sheetala Ashtami 2025) के दिन एक विशेष परंपरा का पालन किया जाता है, जिसमें घरों में खाना पकाने के लिए आग नहीं जलाई जाती। इसलिए, इस पर्व से एक दिन पहले ही भोजन तैयार कर लिया जाता है, जिसे अगले दिन देवी शीतला को अर्पित करने के बाद ग्रहण किया जाता है। यही कारण है कि इस दिन बासी भोजन खाने की परंपरा है।
भक्तजन सूर्योदय से पहले स्नान कर देवी शीतला के मंदिर जाते हैं और हल्दी व बाजरे से उनकी विधि-विधान से पूजा करते हैं। पूजा के बाद बसोड़ा व्रत कथा (Sheetala Ashtami Katha) का पाठ किया जाता है और देवी को रबड़ी, दही व अन्य प्रसाद अर्पित किया जाता है। परिवार के लोग अपने बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं और देवी के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हैं।
देवी को भोग लगाने के बाद बचा हुआ भोजन प्रसाद के रूप में पूरे दिन ग्रहण किया जाता है, जिसे बसोड़ा कहा जाता है। यह प्रसाद भक्तों के बीच बांटा जाता है और जरूरतमंदों को भी दान किया जाता है। साथ ही, इस दिन शीतलाष्टक स्तोत्र का पाठ करना भी अत्यंत शुभ माना जाता है।
हिंदू धर्म में देवी शीतला को एक महत्वपूर्ण देवी के रूप में पूजा जाता है। वे गधे पर सवार होती हैं और उनके हाथों में नीम के पत्ते, झाड़ू, सूप और एक बर्तन होता है। कई धार्मिक ग्रंथों में उनकी महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है। स्कंद पुराण में शीतला अष्टमी की पूजा के लाभों का विशेष उल्लेख मिलता है। इसके अलावा, भगवान शिव द्वारा रचित शीतला माता स्तोत्र, जिसे शीतलाष्टक के नाम से जाना जाता है, भी स्कंद पुराण में पाया जाता है।
यह पर्व देवी शीतला की आराधना के लिए समर्पित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, देवी शीतला का आशीर्वाद चेचक, खसरा और अन्य संक्रामक रोगों से बचाव करता है। विशेष रूप से बच्चों को महामारी से सुरक्षित रखने के लिए भक्त इस दिन श्रद्धा और भक्ति भाव से माता की पूजा करते हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार एक वृद्ध महिला ने अपनी दोनों बहुओं के साथ शीतला माता का व्रत रखा। परंपरा के अनुसार, अष्टमी के दिन उन्हें बासी भोजन करना था, इसलिए उन्होंने सप्तमी के दिन ही भोजन तैयार कर लिया। लेकिन उनकी बहुएं हाल ही में मां बनी थीं और उन्हें डर था कि बासी भोजन करने से वे और उनके शिशु बीमार हो सकते हैं। इसलिए, उन्होंने पूजा तो की, लेकिन ताजा भोजन बनाकर खा लिया और बासी भोजन करने से बचने के लिए बहाने बनाने लगीं।
यह देखकर माता शीतला रुष्ट हो गईं और उनके दोनों बच्चों की मृत्यु हो गई। जब वृद्ध सास को यह पता चला, तो उसने अपनी बहुओं को घर से निकाल दिया। दोनों अपने मृत शिशुओं को लेकर भटकने लगीं और रास्ते में एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठ गईं, जहां पहले से ही ओरी और शीतला नाम की दो बहनें बैठी थीं। उनके सिर में बहुत सारी जुएं थीं, जिससे वे परेशान थीं। दोनों बहुओं ने उनके सिर से जुएं निकालने में मदद की, जिससे ओरी और शीतला को बहुत सुकून मिला। प्रसन्न होकर उन्होंने कहा, "जैसे तुमने हमारे मस्तक को शीतलता दी है, वैसे ही तुम्हारे जीवन में भी शांति आए।"
इस पर बहुएं दुखी होकर बोलीं, "हम तो अपने बच्चों के शव लिए भटक रही हैं, लेकिन शीतला माता के दर्शन ही नहीं हुए।" यह सुनकर शीतला माता ने कहा, "तुम दोनों पापिनी हो, क्योंकि शीतला अष्टमी के दिन गरम भोजन ग्रहण कर लिया था, इसलिए तुम्हें यह दंड मिला।"
तभी बहुएं माता को पहचान गईं और गिड़गिड़ाकर क्षमा मांगने लगीं। उन्होंने कहा, "हम भोली-भाली थीं और अज्ञानवश हमने यह गलती कर दी, कृपया हमें क्षमा करें, हम दोबारा यह भूल नहीं करेंगे।" उनकी पश्चाताप भरी बातें सुनकर माता प्रसन्न हुईं और उनके मृत शिशुओं को जीवित कर दिया।
इसके बाद, दोनों बहुएं हर्षित होकर गांव लौटीं। जब गांववालों को पता चला कि उन्हें शीतला माता के साक्षात दर्शन हुए थे, तो उनका भव्य स्वागत किया गया। तभी से शीतला अष्टमी (Sheetala Ashtami 2025) का व्रत और भी अधिक महत्व रखने लगा और लोग इसे श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाने लगे।
मां शीतला, देवी दुर्गा के अनेक स्वरूपों में से एक मानी जाती हैं, और उनकी आराधना के लिए समर्पित दिन शीतला अष्टमी (Sheetala Ashtami 2025), जिसे बसौड़ा भी कहा जाता है, विशेष रूप से पूजनीय है। उन्हें आरोग्य और शीतलता प्रदान करने वाली देवी के रूप में जाना जाता है, जो भक्तों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं। ऐसा माना जाता है कि माता शीतला की पूजा करने से जीवन में व्याप्त रोग रूपी असुर का नाश होता है। जो भी श्रद्धालु पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से माता की उपासना करता है, उसे कष्टों से मुक्ति मिलती है और रोगों का निवारण होता है।
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