January 29, 2024 Blog

Navgrah Pooja: ऐसे करें नवग्रह को शांत, मिलेगा जीवन के हर दुखों से छुटकारा

BY : STARZSPEAK

नवग्रह की पूजा ज्योतिष शास्त्र में बहुत फलदायी मानी जाती है। अगर सच्चे भाव के साथ नवग्रह की पूजा - Navgrah Pooja की जाए तो जीवन के हर दुखों से छुटकारा मिलता है। साथ ही ऐसा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। तो आइए नवग्रह को शांत और मजबूत करने के लिए उनकी चालीसा का पाठ करते हैं जो इस प्रकार है -

Navgrah Pooja: ज्योतिष शास्त्र में मंगलवार के दिन का खास महत्व है। यह दिन भगवान हनुमान और मंगल ग्रह की पूजा के लिए समर्पित है। ऐसी मान्यता है अगर इस दिन नवग्रह की पूजा की जाए, तो बेहद लाभदायक सिद्ध होती है।

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navgrah pooja

साथ ही ऐसा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। तो चलिए नवग्रह को शांत - Navgrah Pooja और प्रबल करने के लिए उनकी चालीसा का पाठ करते हैं, जो इस प्रकार है -


।।नवग्रह चालीसा।।

॥ दोहा ॥


श्री गणपति गुरुपद कमल,

प्रेम सहित सिरनाय ।


नवग्रह चालीसा कहत,

शारद होत सहाय ॥


जय जय रवि शशि सोम बुध,

जय गुरु भृगु शनि राज।


जयति राहु अरु केतु ग्रह,

करहुं अनुग्रह आज ॥


॥ चौपाई ॥

॥ श्री सूर्य स्तुति ॥


प्रथमहि रवि कहं नावौं माथा,

करहुं कृपा जनि जानि अनाथा ।


हे आदित्य दिवाकर भानू,

मैं मति मन्द महा अज्ञानू ।


अब निज जन कहं हरहु कलेषा,

दिनकर द्वादश रूप दिनेशा ।


नमो भास्कर सूर्य प्रभाकर,

अर्क मित्र अघ मोघ क्षमाकर ।


॥ श्री चन्द्र स्तुति ॥


शशि मयंक रजनीपति स्वामी,

चन्द्र कलानिधि नमो नमामि ।


राकापति हिमांशु राकेशा,

प्रणवत जन तन हरहुं कलेशा ।


सोम इन्दु विधु शान्ति सुधाकर,

शीत रश्मि औषधि निशाकर ।


तुम्हीं शोभित सुन्दर भाल महेशा,

शरण शरण जन हरहुं कलेशा ।


॥ श्री मंगल स्तुति ॥


जय जय जय मंगल सुखदाता,

लोहित भौमादिक विख्याता ।


अंगारक कुज रुज ऋणहारी,

करहुं दया यही विनय हमारी ।


हे महिसुत छितिसुत सुखराशी,

लोहितांग जय जन अघनाशी ।


अगम अमंगल अब हर लीजै,

सकल मनोरथ पूरण कीजै ।


॥ श्री बुध स्तुति ॥


जय शशि नन्दन बुध महाराजा,

करहु सकल जन कहं शुभ काजा ।


दीजै बुद्धि बल सुमति सुजाना,

कठिन कष्ट हरि करि कल्याणा ।


हे तारासुत रोहिणी नन्दन,

चन्द्रसुवन दुख द्वन्द्व निकन्दन ।


पूजहिं आस दास कहुं स्वामी,

प्रणत पाल प्रभु नमो नमामी ।


॥ श्री बृहस्पति स्तुति ॥


जयति जयति जय श्री गुरुदेवा,

करूं सदा तुम्हरी प्रभु सेवा ।


देवाचार्य तुम देव गुरु ज्ञानी,

इन्द्र पुरोहित विद्यादानी ।


वाचस्पति बागीश उदारा,

जीव बृहस्पति नाम तुम्हारा ।


विद्या सिन्धु अंगिरा नामा,

करहुं सकल विधि पूरण कामा ।


॥ श्री शुक्र स्तुति ॥

 

शुक्र देव पद तल जल जाता,

दास निरन्तन ध्यान लगाता ।

 

हे उशना भार्गव भृगु नन्दन,

दैत्य पुरोहित दुष्ट निकन्दन ।

 

भृगुकुल भूषण दूषण हारी,

हरहुं नेष्ट ग्रह करहुं सुखारी ।

 

तुहि द्विजबर जोशी सिरताजा,

नर शरीर के तुमही राजा ।

 

॥ श्री शनि स्तुति ॥

 

जय श्री शनिदेव रवि नन्दन,

जय कृष्णो सौरी जगवन्दन ।

 

पिंगल मन्द रौद्र यम नामा,

वप्र आदि कोणस्थ ललामा ।

 

वक्र दृष्टि पिप्पल तन साजा,

क्षण महं करत रंक क्षण राजा ।

 

ललत स्वर्ण पद करत निहाला,

हरहुं विपत्ति छाया के लाला ।

 

॥ श्री राहु स्तुति ॥

 

जय जय राहु गगन प्रविसइया,

तुमही चन्द्र आदित्य ग्रसइया ।

 

रवि शशि अरि स्वर्भानु धारा,

शिखी आदि बहु नाम तुम्हारा ।

 

सैहिंकेय तुम निशाचर राजा,

अर्धकाय जग राखहु लाजा ।

 

यदि ग्रह समय पाय हिं आवहु,

सदा शान्ति और सुख उपजावहु ।

 

॥ श्री केतु स्तुति ॥

 

जय श्री केतु कठिन दुखहारी,

करहु सुजन हित मंगलकारी ।

 

ध्वजयुत रुण्ड रूप विकराला,

घोर रौद्रतन अघमन काला ।

 

शिखी तारिका ग्रह बलवान

महा प्रताप न तेज ठिकाना ।

 

वाहन मीन महा शुभकारी,

दीजै शान्ति दया उर धारी ।

 

॥ नवग्रह शांति फल ॥

 

तीरथराज प्रयाग सुपासा,

बसै राम के सुन्दर दासा ।

 

ककरा ग्रामहिं पुरे-तिवारी,

दुर्वासाश्रम जन दुख हारी ।

 

नवग्रह शान्ति लिख्यो सुख हेतु,

जन तन कष्ट उतारण सेतू ।

 

जो नित पाठ करै चित लावै,

सब सुख भोगि परम पद पावै ॥

 

॥ दोहा ॥

 

धन्य नवग्रह देव प्रभु,

महिमा अगम अपार ।

 

चित नव मंगल मोद गृह,

जगत जनन सुखद्वार ॥

 

यह चालीसा नवोग्रह,

विरचित सुन्दरदास ।

 

पढ़त प्रेम सुत बढ़त सुख,

सर्वानन्द हुलास ॥

॥ इति श्री नवग्रह चालीसा ॥

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