Siddh Kunjika Stotram: बहुत चमत्कारी है सिद्ध कुंजिका स्तोत्र, मनोकामना पूर्ति के लिए जरूर करें इसका पाठ
BY : STARZSPEAK
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र को परम कल्याणकारी माना गया है। मान्यता है कि Siddh Kunjika Stotram स्तोत्र का पाठ करने से मनुष्य को चमत्मकारिक रूप से कष्टों से मुक्ति मिलती है।
Siddh Kunjika Stotram: शारदीय नवरात्रि 15 अक्टूबर से शुरू हो रही है. नवरात्रि के नौ दिन बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इस अवसर पर मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। अगर आप इस नवरात्रि मां दुर्गा की कृपा पाना चाहते हैं तो सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें। सिद्ध कुंजिका स्तोत्र अत्यंत कल्याणकारी माना जाता है और कहा जाता है कि इसका पाठ करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस स्तोत्र में दिए गए मंत्र बहुत शक्तिशाली माने जाते हैं और इन मंत्रों में बीजों का महत्वपूर्ण स्थान होता है, क्योंकि बीज मंत्र बेहद शक्तिशाली माने जाते हैं। धार्मिक मान्यता है कि यदि आपके पास दुर्गा सप्तशती का पाठ करने का समय नहीं है या आपके लिए यह कठिन है तो आपको सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। सिद्ध कुंजिका स्तोत्र इस प्रकार है...
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Siddh Kunjika Stotram
॥सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम्॥
शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत॥१॥
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्॥२॥
कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्॥३॥
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्॥४॥
॥अथ मन्त्रः॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं स:
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।''
॥इति मन्त्रः॥
नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि॥१॥
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि॥२॥
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका॥३॥
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी॥४॥
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि॥५॥
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥६॥
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥७॥
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा॥८॥
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे॥
इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रं मन्त्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥
यस्तु कुञ्जिकाया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥
इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम्।
॥ॐ तत्सत्॥
Siddh Kunjika Stotram
॥सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम्॥