देवताओं और दैत्यों ने मिलकर समुद्र मंथन किया। उनके ऐसा करने के बाद, लक्ष्मी पृथ्वी पर आई और देवताओं को उनकी शक्ति वापस दे दी। उस समय इन्द्र का राज्याभिषेक हुआ और उन्होंने इस स्तोत्र से भगवती महालक्ष्मी की स्तुति की। विष्णु पुराण में यह पहला लक्ष्मी स्तोत्र है और यह बहुत ही प्रभावशाली है। इसका नियमित पाठ करने से आप कभी दरिद्र नहीं होंगे (Lakshmi Stotram)।
देवराज्ये स्थितो देवीं तुष्टावाब्जकरां ततः ॥1॥
नमस्ये सर्वलोकानां जननीमब्जसम्भवाम् ।
श्रियमुन्निद्रपद्माक्षीं विष्णुवक्षःस्थलस्थिताम् ॥2॥
सम्पूर्ण लोकों की जननी, विकसित कमल के सदृश नेत्रोंवाली, भगवान विष्णु के वक्षःस्थल में विराजमान कमलोद्भवा श्रीलक्ष्मी देवी को मैं नमस्कार करता हूँ ॥2॥
वन्दे पद्ममुखीं देवीं पद्मनाभप्रियामहम् ॥3॥
सन्ध्या रात्रिः प्रभा भूतिर्मेधा श्रद्धा सरस्वती ॥4॥
आत्मविद्या च देवि त्वं विमुक्तिफलदायिनी ॥5॥
सौम्यासौम्यैर्जगद्रूपैस्त्वयैत्तद्देवि पूरितम् ॥6॥
अध्यास्ते देवदेवस्य योगिचिन्त्यं गदाभृतः ॥7॥
विनष्टप्रायमभवत्त्वयेदानीं समेधितम् ॥8॥
भवत्येतन्महाभागे नित्यं त्वद्वीक्षणान्नृणाम् ॥9॥
देवि त्वद् दृष्टिदृष्टानां पुरुषाणां न दुर्लभम् ॥10॥
त्वयैतद्विष्णुना चाम्ब जगद्व्याप्तं चराचरम् ॥11॥
मा शरीरं कलत्रं च त्यजेथाः सर्वपावनि ॥12॥
त्यजेथा मम देवस्य विष्णोर्वक्षःस्थलालये ॥13॥
त्यज्यन्ते ते नराः सद्यः सन्त्यक्ता ये त्वयामले ॥14॥
कुलैश्वर्यैश्च युज्यन्ते पुरुषा निर्गुणा अपि ॥15॥
अर्थ – तुम्हारी कृपादृष्टि होने पर तो गुणहीन पुरुष भी शीघ्र ही शील आदि सम्पूर्ण गुण और कुलीनता तथा ऐश्वर्य आदि से सम्पन्न हो जाते हैं ॥15॥
स शूरः स च विक्रान्तो यस्त्वया देवि वीक्षितः ॥16॥
पराङ्मुखी जगद्धात्री यस्य त्वं विष्णुवल्लभे ॥17॥
प्रसीद देवि पद्माक्षि मास्मांस्त्याक्षीः कदाचन ॥18॥
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अर्थ – हे देवि ! तुम्हारे गुणों का वर्णन करने में तो श्रीब्रह्मा जी की रसना भी समर्थ नहीं है, फिर मैं क्या कर सकता हूँ। अतः हे कमलनयने ! अब मुझ पर प्रसन्न होओ और मुझे कभी न छोड़ो ॥18॥
[ श्रीपराशर उवाच ]
एवं श्रीः संस्तुता सम्यक् प्राह देवी शतक्रतुम् ।
शृण्वतां सर्वदेवानां सर्वभूतस्थिता द्विज ॥19॥
अर्थ – [ श्रीपराशर जी बोले ]
हे द्विज ! इस प्रकार सम्यक स्तुति किये जाने पर सर्वभूत स्थिता श्रीलक्ष्मी जी सब देवताओं के सुनते हुए इन्द्र से इस प्रकार बोलीं – ॥19॥
[ श्रीरुवाच ]
परितुष्टास्मि देवेश स्तोत्रेणानेन ते हरे ।
वरं वृणीष्व यस्त्विष्टो वरदाहं तवागता ॥20॥
अर्थ – [ श्रीलक्ष्मी जी बोलीं ]
हे देवेश्वर इन्द्र ! मैं तुम्हारे इस स्तोत्र से अति प्रसन्न हूँ, तुमको जो अभीष्ट हो, वही वर माँग लो। मैं तुम्हें वर देने के लिये ही यहाँ आयी हूँ ॥20॥
[ इन्द्र उवाच ]
वरदा यदि मे देवि वरार्हो यदि वाप्यहम् ।
त्रैलोक्यं न त्वया त्याज्यमेष मेऽस्तु वरः परः ॥21॥
अर्थ – [ इन्द्र बोले ]
हे देवि ! यदि आप वर देना चाहती हैं और मैं भी यदि वर पाने योग्य हूँ तो मुझको पहला वर तो यही दीजिये कि आप इस त्रिलोकी का कभी त्याग न करें ॥21॥
स्तोत्रेण यस्तथैतेन त्वां स्तोष्यत्यब्धिसम्भवे ।
स त्वया न परित्याज्यो द्वितीयोऽस्तु वरो मम ॥22॥
अर्थ – और हे समुद्र सम्भवे ! दूसरा वर मुझे यह दीजिये कि जो कोई आपकी इस स्तोत्र से स्तुति करे, उसे आप कभी न त्यागें ॥22॥
[ श्रीरुवाच ]
त्रैलोक्यं त्रिदशश्रेष्ठ न सन्त्यक्ष्यामि वासव ।
दत्तो वरो मया यस्ते स्तोत्राराधनतुष्टया ॥23॥
अर्थ – [ श्रीलक्ष्मी जी बोलीं ]
हे देवश्रेष्ठ इन्द्र ! मैं अब इस त्रिलोकी को कभी न छोडूँगी। तुम्हारे स्तोत्र से प्रसन्न होकर मैं तुम्हें यह वर देती हूँ ॥23॥
यश्च सायं तथा प्रातः स्तोत्रेणानेन मानवः ।
मां स्तोष्यति न तस्याहं भविष्यामि पराङ्मुखी ॥24॥
अर्थ – जो कोई मनुष्य प्रातःकाल और सायंकाल के समय इस लक्ष्मी स्तोत्र से मेरी स्तुति करेगा, उससे भी मैं कभी विमुख न होऊँगी ॥24॥
॥ इस प्रकार श्री विष्णु महापुराण में श्री लक्ष्मी स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ ॥
।। Lakshmi Stotram।।
लक्ष्मी स्त्रोतम (Lakshmi Stotram) भगवान विष्णु की स्तुति है जो धन, समृद्धि और सम्पदा की प्राप्ति के लिए पढ़ी जाती है। इसके फायदे निम्नलिखित हैं:
- धन प्राप्ति: लक्ष्मी स्त्रोतम का जाप करने से धन की प्राप्ति होती है। यह स्त्रोत भगवान लक्ष्मी की कृपा और आशीर्वाद को प्राप्त करने में मदद करता है।
- समृद्धि और सम्पदा: लक्ष्मी स्त्रोतम का जाप करने से व्यक्ति की समृद्धि और सम्पदा में वृद्धि होती है।
- दुर्भाग्य और दुःख से मुक्ति: लक्ष्मी स्त्रोतम के जाप से व्यक्ति के जीवन में दुर्भाग्य और दुःख से मुक्ति मिलती है।
- समस्त कष्टों का नाश: लक्ष्मी स्त्रोतम के जाप से समस्त कष्टों का नाश होता है।
- भय और अशांति से मुक्ति: लक्ष्मी स्त्रोतम के जाप से व्यक्ति भय और अशांति से मुक्ति प्राप्त करता है।
- समस्त विघ्नों का नाश: लक्ष्मी स्त्रोतम का जाप करने से समस्त विघ्नों का नाश होता है और व्यक्ति की जिंदगी में समृद्धि और सफलता मिलती है
लक्ष्मी स्त्रोतम (Lakshmi Stotram) को कोई भी व्यक्ति पढ़ सकता है, इसके लिए कोई विशेष शर्त नहीं होती है। यह स्तोत्र पढ़कर व्यक्ति अपने जीवन में धन, समृद्धि और सम्पदा की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करता है।
लेकिन धार्मिक आदर्शों के अनुसार, लक्ष्मी स्त्रोतम (Lakshmi Stotram) को सबसे अधिक वैदिक धर्म के अनुयायियों द्वारा पढ़ा जाता है।
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