1000 Names of Lord Krishna In Hindi: ‘विष्णु सहस्रनाम’ भगवान श्रीकृष्ण के हजार नामों का एक पावन संग्रह है, जो उनके अनगिनत रूपों, दिव्य गुणों और लीलाओं को गहराई से दर्शाता है। यह स्तुति महाभारत के अंतर्गत उस समय प्रकट हुई थी, जब भीष्म पितामह अपने अंतिम समय में शर-शैय्या पर विराजमान थे। उन्होंने भगवान विष्णु की महिमा का वर्णन करते हुए इन नामों के माध्यम से उनकी अपार शक्ति, करुणा और सृष्टि में व्याप्त उपस्थिति का गुणगान किया। यह संग्रह भक्तों को ईश्वर की ओर उन्मुख करता है और उनके गुणों पर मनन करने का अवसर भी प्रदान करता है।(1000 Names of Lord Krishna In Hindi)
हर नाम के पीछे एक गहरा भाव और आध्यात्मिक अर्थ छिपा है – जैसे ‘अच्युत’, जो उनके अमर और अविचल स्वरूप को दर्शाता है; ‘नारायण’, जो उन्हें ब्रह्मांडीय जल में स्थित सर्वोच्च सत्ता के रूप में प्रस्तुत करता है; और ‘जगदीश्वर’, जो समस्त सृष्टि के स्वामी के रूप में उनकी स्थिति को दर्शाता है।
भगवान श्रीकृष्ण के इन 1000 नामों (1000 names of krishna) का स्मरण सिर्फ भक्ति का एक माध्यम नहीं है, बल्कि यह मन को शांत करने, भीतर झांकने और आध्यात्मिक रूप से जागरूक होने का भी एक सुंदर रास्ता है। ये नाम श्रद्धालुओं को ईश्वर से गहराई से जोड़ते हैं और उनके भीतर ध्यान, समर्पण और आत्मचिंतन की भावना को जगाते हैं।

यह भी पढ़ें - Surya ke 12 naam : भगवान सूर्यदेव के 12 नामों का जप करने से मिलता है मनचाहा फल
|
क्रम संख्या |
नाम |
अर्थ |
|
1. |
हरिगृही |
भक्तों के पाप-ताप का हरण करने वाले |
|
2. |
देवकीनन्दन |
अपने जन्म से ही जिन्होंने माता देवकी और यशोदा के जीवन में अपार आनंद और सुख का संचार किया। |
|
3. |
कंसहन्ता |
कंस का वध करने वाले |
|
4. |
परात्मा |
परमात्म |
|
5. |
पीताम्बर: |
पीतवस्त्रधारी |
|
6. |
पूर्णदेव: |
परिपूर्ण देवता श्रीकृष्ण |
|
7. |
रमेश: |
रमावल्लभ |
|
8. |
कृष्ण: |
सबको अपनी ओर आकर्षित करने वाले |
|
9. |
परेश: |
सर्वोत्कृष्ट ब्रह्मा आदि देवताओं के भी नियन्ता |
|
10. |
पुराण: |
पुरातन पुरुष या अनादिसिद्ध |
|
11. |
सुरेश: |
देवताओं पर भी शासन करने वाले |
|
12. |
अच्युत: |
अपनी महिमा या मर्यादा से कभी च्युत न होने वाले |
|
13. |
वासुदेव: |
वसुदेव के पुत्र और चार व्यूहों में प्रथम, जो सबके अंत:करण में वास करते हैं। |
|
14. |
देव: |
प्रकाशस्वरूप परम देवता |
|
15. |
धराभारतहर्ता |
पृथ्वी का भार हरण करने वाले |
|
16. |
कृती |
कृतकृत्य अथवा पुण्यात्मा |
|
17. |
राधिकेश: |
राधाप्राणवल्लभ |
|
18. |
पर: |
सर्वोत्कृष्ट |
|
19. |
भूवर |
पृथ्वी के स्वामी |
|
20. |
दिव्यगोलोक-नाथ: |
दिव्यधाम गोलोक के स्वामी |
|
21. |
सुदाम्नस्तथा राधिकाशापहेतु: |
सुदामा तथा राधिका के पारस्परिक शाप में कारण |
|
22. |
घृणी |
दयालु |
|
23. |
मानिनी-मानद: |
मानिनी को मान देने वाले |
|
24. |
दिव्यलोक: |
दिव्यधाम स्वरूप |
|
25. |
लसद्गोपवेश: |
सुन्दर गोपवेषधारी |
|
26. |
अज: |
अजन्मा |
|
27. |
राधिकात्मा |
जिनकी आत्मा राधा हैं, या जो स्वयं राधा के स्वरूप हैं। |
|
28. |
चलत्कुण्डल: |
हिलते हुए कुण्डलों से सुशोभित |
|
29. |
कुन्तली |
घुंघराली अलकों से शोभायमान |
|
30. |
कुन्तलस्त्रक् |
केशों में फूलों की माला सजाने वाले। |
|
31. |
कदाचिद् राधया रथस्थ: |
कभी-कभी राधिका के साथ रथ में विराजमान |
|
32. |
दिव्यरत्न |
दिव्यमणि- कौस्तुभ धारण करने वाले अथवा अखिल जगत् के दिव्य रत्न स्वरूप |
|
33. |
सुधासौधभूचारण: |
चूने से सफेदी किए महलों की छत पर विहार करने वाले। |
|
34. |
दिव्यवासा: |
दिव्य वस्त्रधारी |
|
35. |
कदा वृन्दकारण्यचारी |
कभी-कभी वृंदावन में विचरने वाले |
|
36. |
स्वलोके महारत्न सिंहासनस्थ: |
अपने दिव्य धाम में अनमोल और विशाल रत्नों से जड़े सिंहासन पर विराजमान रहने वाले। |
|
37. |
प्रशान्त: |
परम शान्त |
|
38. |
महाहंसभैश्चामरैर्वीज्यमान: |
महान हंसों के समान श्वेत चामरों से जिनके ऊपर हवा की जाती है, ऐसे भगवान |
|
39. |
चलच्छत्रमुक्तावली शोभमान: |
हिलते हुए सफेद छत्र और मोतियों की मालाओं से सुसज्जित रहने वाले। |
|
40. |
सुखी |
आनंदस्वरूप |
|
41. |
कोटिकंदर्प लीलाभिराम: |
करोड़ों कामदेवों के सामने ललित लीलाओं के कारण अतिशय मनोहर |
|
42. |
क्वणन्नूपुरालं कृताङघ्रि: |
झंकारते हुए नूपुरों से अलंकृत चरणवाले |
|
43. |
शुभाङघ्रि: |
शुभ लक्षणसम्पन्न पैर वाले |
|
44. |
सुजानु |
सुन्दर घुटनों वाले |
|
45. |
रम्भाशुभोरु: |
केले के समान परम सुन्दर ऊरुयुगल (जांघ) वाले |
|
46. |
कृशांग: |
दुबले-पतले |
|
47. |
प्रतापी |
तेजस्वी एवं प्रतापशाली |
|
48. |
इभशुण्डासुदोर्दण्डखण्ड: |
हाथी की सूंड के समान सुन्दर भुजदण्डमण्डल वाले |
|
49. |
जपापुष्पहस्त: |
डहुल के फूल के समान लाल-लाल हथेली वाले |
|
50. |
शातोदरश्री: |
फतली कमर की शोभा से सम्पन्न |
|
51. |
महापद्मवक्ष: स्थल: |
वक्ष:स्थल में प्रफूल्ल विशाल कमल की माला से अलंकृत, अथवा जिनका हृदय कमल विशाल है, ऐसे, |
|
52. |
चन्द्रहास: |
जिनके हंसते समय चन्द्रमा की चांदनी की सी छटा छिटक जाती है, ऐसे |
|
53. |
लसत्कुन्ददन्त: |
शोभामयों कुन्दकलिका के समान उज्जवल दांत वाले |
|
54. |
बिम्बाधरश्री: |
जिनके अधर की शोभा पक्व बिम्ब फल से अधिक अरुण है, ऐसे, |
|
55. |
शरत्पद्मनेत्र: |
शरत्काल के प्रफुल्ल कमल के सदृश नेत्रवाले |
|
56. |
किरीटोज्ज्वलाभ: |
कान्तिमान किरीट की उज्जवल आभा धारण करने वाले |
|
57. |
सखीकोटिभिर्वर्तमान: |
करोड़ों सखियों के साथ रहकर शोभा पाने वाले |
|
58. |
निकुंजे प्रियाराधया राससक्त: |
निकुंज में प्राणवल्लभा श्रीराधा के साथ रासलीला में तत्पर |
|
59. |
नवांग: |
अपने दिव्य अंगों में नित्य नूतन रमणीयता धारण करने वाले |
|
60. |
धराब्रह्मरुद्रा दिभि: प्रार्थित: सन् धराभारदूरीक्रियार्थं प्रजात: |
पृथ्वी, ब्रह्मा तथा रुद्र आदि देवताओं की प्रार्थना सुनकर भूमि का भार दूर करने के लिए अवतार ग्रहण करने वाले |
|
61. |
यदु: |
यादवकुल के प्रवर्तक राजा यदु जिनकी विभूति हैं, वे |
|
62. |
देवकीसौख्यद: |
देवकी को सुख देने वाले |
|
63. |
बन्धनच्छित् |
भवबन्धन का उच्छेद करने वाले अथवा अवतारकाल में माता-पिता के बन्धन को काट देने वाले |
|
64. |
सशेष: |
शेषावतार बलरामजी के साथ विराजमान |
|
65. |
विभु: |
व्यापक अथवा सर्वसमर्थ |
|
66. |
योगमायी |
योगमाया के प्रवर्तक तथा स्वामी |
|
67. |
विष्णु |
व्यापक या वैकुण्ठनाथ विष्णुस्वरूप |
|
68. |
व्रजे नन्दपुत्र: |
व्रजमंडल में नन्दनन्दन के रूप में लीला करने वाले |
|
69. |
यशोदासुताख्य: |
यशोदा के पुत्ररूप में विख्यात |
|
70. |
महासौख्यद: |
महान सौख्य प्रदान करने वाले |
|
71. |
बालरूप: |
शिशुरूपधारी |
|
72. |
शुभांग: |
सुन्दर एवं शुभ लक्षण सम्पन्न शरीर वाले। |
|
73. |
पूतनामोक्षद: |
फूतना को मोक्ष देने वाले |
|
74. |
श्यामरूप: |
श्याम मनोहर रूप वाले |
|
75. |
दयालु: |
कृपालु |
|
76. |
अनोभञ्जन: |
शकटभंग करने वाले |
|
77. |
पल्लवाङ्घ्रि: |
नूतन पल्लवों के समान कोमल एवं अरूण चरण वले |
|
78. |
तृणावर्त संहारकारी |
तृणावर्त का संहार करने वाले |
|
79. |
गोप: |
गोपालरूप |
|
80. |
यशोदायश: |
यशोदा के यशरूप |
|
81. |
विश्वरूपप्रदर्शी |
माता को अपने मुख में (तथा अर्जुन, धृतराष्ट्र और उत्तंक को) सम्पूर्ण विश्वरूप का दर्शन कराने वाले |
|
82. |
गर्गदिष्ट: |
गर्गजी के द्वारा जिनका नामकरण संस्कार एवं भावी फलादेश किया गया, ऐसे |
|
83. |
भाग्योदयश्री: |
भाग्योदयसूचक शोभा से सम्पन्न |
|
84. |
लसद्वालकेलि: |
सुन्दर बालोचित क्रीड़ा करने वाले |
|
85. |
सराम: |
बलरामजी के साथ विचरने वाले |
|
86. |
सुवाच: |
मनोहर बात करने वाले |
|
87. |
क्वणत्रूपुरै: शब्दयुक् |
खनकते हुए नूपुरों से शब्दयुक्त |
|
88. |
जानु-हस्तैर्व्रजेशांगणे रिंगमाण: |
घुटनों और हाथों के बल पर व्रजराजनन्द के आंगन में रेंगने या चलने वाले |
|
89. |
दधिस्पृक् |
दही का स्पर्श (दान) करने वाले |
|
90. |
हैयंगवीदुग्धभोक्ता |
ताजा माखन खाने वाले और दूध पीने वाले |
|
91. |
दधिस्तेयकृत् |
व्रजांगनाओं को सुख देने के लिये दही की चोरी-लीला करने वाले |
|
92. |
दुग्धभुक् |
दूध का भोग आरोगने वाले |
|
93. |
भाण्डभेत्ता |
दही दूध आदि के मटके फोड़ने वाले |
|
94. |
मृदं भुक्तवान् |
मिट्टी खाने वाले |
|
95. |
गोपज: |
नन्दगोप के पुत्र |
|
96. |
विश्वरूप: |
सम्पूर्ण विश्व जिनका रूप है, ऐसे, |
|
97. |
प्रचण्डांशुचण्डप्रभामण्डितांग: |
स्त्रूर्य की प्रखर किरणों से सुशोभित शरीर वाले |
|
98. |
यशोदाकरैर्बन्धनप्राप्त: |
यशोदा के हाथों ओखली में बांधे गये |
|
99. |
आद्य: |
आदिपुरुष या सबके आदिकारण |
|
100 |
मणिग्रीवमुक्तिप्रद: |
कुबेरपुत्र मणिग्रीव और नलकूबर का शाप से उद्धार करने वाले |
|
101. |
दामबद्ध: |
यशोदा द्वारा रस्सी से बांधे गये |
|
102. |
कदा व्रजे गोपिकाभि: नृत्यमान: |
कभी व्रज में गोपिकाओं के साथ नृत्य करने वाले |
|
103. |
कदा नन्दसन्नन्दकैर्लाल्यमान: |
कभी नन्द और सन्नन्द आदि के द्वारा लाड़ लड़ाये जाने वाले |
|
104. |
कदा गोपनन्दांक: |
कभी गोपराज नन्द की गोद में समोद विराजमान |
|
105. |
गोपालरूपी |
ग्वाल रूपधारी |
|
106. |
कलिन्दांजाकूलग: |
कलिन्द नन्दिनी यमुना के तट पर विहार करने वाले |
|
107. |
वर्तमान: |
नित्य सत्ता वाले |
|
108. |
घनैर्मारूतैश्छन्न भाण्डीरदेश नन्दहस्ताद् राधया गृहीतो वर: |
एक समय प्रचण्ड वायु और घने बादलों से आच्छादित भाण्डीरवन के प्रदेश में नन्दजी के हाथ से श्रीराधा द्वारा गृहीत वरस्वरूप। |
|
109. |
गोलोकलोकागते महारत्नसंघैर्यते कदम्बावृते निकुंजे राधिकासद्विवाहे ब्रह्मणा प्रतिष्ठानगत: |
गोलोकधाम से आये महान रत्नसमूहों से शोभित तथा कदम्ब वृक्षों से आवृत निकुंज में राधिकाजी के साथ विवाह के अवसर पर ब्रह्माजी के द्वारा सादन स्थापित |
|
110. |
साममन्त्रै: पूजित: |
सामवेद के मंत्रों द्वारा पूजित |
|
111. |
रसी |
विविध रसों के अधिष्ठान, परम रसिक |
|
112. |
मालतीनां वनेअपि प्रियाराधया सह राधिकार्थ रासयुक् |
मालती वन में भी प्रियतमा राधिका के साथ उन्हीं का सुख पहुंचाने के लिए रास बिलास में संलग्न |
|
113. |
रमेश: धरानाथ: |
लक्ष्मी के पति और पृथ्वी के स्वामी |
|
114. |
आनन्दद: |
आनन्द प्रदान करने वाले |
|
115. |
श्रीनिकेत: |
रमानिवास |
|
116. |
वनेश: |
वृन्दावन के स्वामी |
|
117. |
धनी |
सीमातीत धन और ऐश्वर्य के स्वामी |
|
118. |
सुन्दर: |
अप्रतिम सौन्दर्य की निधि |
|
119. |
गोपिकेश: |
गोपांगनाओं के प्राणवल्लभ |
|
120. |
कदा राधया नन्दगेहे प्रापित: |
किसी समय राधिका द्वारा नन्द के घर में पहुंचाये गये |
|
121. |
यशोदाकरैर्लालित: |
यशोदा के हाथों दुलारे गये |
|
122. |
मन्दहास: |
मन्द-मन्द मनोरम हास से सुशोभित |
|
123. |
क्वापि भयी |
कहीं-कहीं डरे हुए की भांति लीला करने वाले |
|
124. |
वृन्दारकारण्यवासी |
वृन्दावन में निवास करने वाले |
|
125. |
महामंदिरे वासकृत् |
नन्दराय के विशाल भवन में रहने वाले |
|
126. |
देवपूज्य: |
देवताओं के पूजनीय |
|
127. |
वने वत्सचारी |
वन में बछड़े चराने वले |
|
128. |
महावत्सहारी |
महान बछड़े का रूप धारण करके आये हुए वत्सासुर के विनाशक |
|
129. |
बकारि: |
बकासुर के शत्रु |
|
130. |
सुरै: पूजित: |
देवगणों द्वारा सम्मानित |
|
131. |
अघारिनामा |
अघासुर का वध करके ‘अघारि’ नाम से प्रसिद्ध |
|
132. |
वने वत्सकृत् |
वन में नूतन बछड़ों की सृष्टि करने वाले |
|
133. |
गोपकृत |
तन ग्वाल बालों का निर्माण करने वाले |
|
134. |
गोपवेश: |
ग्वालवेशधारी |
|
135. |
कदा ब्रह्मणा संस्तुत: |
किसी समय ब्रह्माजी के मुख से अपना गुणगान सुनने वाले |
|
136. |
पद्मनाभ: |
एकार्णव के जल में अपनी नाभि से कमल प्रकट करने वाले |
|
137. |
विहारी |
वृंदावन में विचरण करने वाले और भक्तों के साथ नाना प्रकार विहार करने वाले |
|
138. |
तालभुक |
ताड़का फल खाने वाले |
|
139. |
धेनुकारि: |
धेनुकासुर के शत्रु |
|
140. |
सदा रक्षक: |
सदा सबके रक्षक |
|
141. |
गोविषार्ति प्रणाशी |
यमुनाजी का विषाक्त जल पीने से गौओं के भीतर व्याप्त विषजनित पीड़ा का नाश करने वाले, कलिन्द-कन्या यमुना के तट पर जाने वाले |
|
142. |
कालियस्य दमी |
कालियनाग का दमन करने वाले |
|
143. |
फणेषु नृत्यकारी |
कालियनाग के फणों पर नृत्य करने वाले |
|
144. |
प्रसिद्ध: |
सर्वत्र प्रसिद्धि को प्राप्त |
|
145. |
सलील: |
लीलापरायण |
|
146. |
शमी |
स्वभावत: शान्त |
|
147. |
ज्ञानद: |
ज्ञानदाता |
|
148. |
कामपूर: |
कामनाओं के पूरक |
|
149. |
गोपयुक् |
गोपों के साथ विराजमान |
|
150. |
गोप: |
गोपस्वरूप या गौओं के पालक |
|
151. |
आनन्दकारी |
आनंददायिनी लीला प्रस्तुत करने वाले |
|
152. |
स्थिर: |
स्थैर्ययुक्त |
|
153. |
अग्निभुक् |
दावानल को पी जाने वाले |
|
154. |
पालक: |
रक्षक |
|
155. |
बाललील: |
बालकों- जैसी क्रीडा करने वाले |
|
156. |
सुराग: |
मुरली के स्वरों में सुन्दर राग गाने वाले |
|
157. |
वंशीधर: |
मुरलीधारी |
|
158. |
पुष्पशील: |
स्वभावत: फूलों का श्रृंगार धारण करने वाले |
|
159. |
प्रलम्बप्रभानाशक: |
बलराम रूप से प्रलम्बासुर की प्रभा के नाशक |
|
160. |
गौरवर्ण: |
गोरे वर्णवाले बलराम |
|
161. |
बल: |
बलस्वरूप या बलभद्र |
|
162. |
रोहिणीज: |
रोहिणीनन्दन |
|
163. |
राम: |
बलराम |
|
164. |
शेष: |
शेष के अवतार |
|
165. |
बली |
बलवान |
|
166. |
पद्मनेत्र: |
कमलनयन |
|
167. |
कृष्णाग्रज: |
श्रीकृष्ण के बडे़ भाई |
|
168. |
धरेश: |
धरणीधर |
|
169. |
फणीश: |
नागराज |
|
170. |
नीलाम्बराभ: |
नीलवस्त्र की शोभा से युक्त |
|
171. |
अग्निहारक: |
मुंजाटवी में लगी हुई आग को हर लेने वाले |
|
172. |
व्रजेश: |
व्रज के स्वामी |
|
173. |
शरदगीष्मवर्षाकर: |
शरद, ग्रीष्म और वर्षा प्रकट करने वाले |
|
174. |
कृष्णवर्ण: |
श्यामसुन्दर |
|
175. |
व्रजे गोपिकापूजित: |
व्रजमंडल में गोप सुन्दरियों द्वारा पूजित |
|
176. |
चीरहर्ता |
चीरहरण की लीला करने वाले |
|
177. |
कदम्बे स्थित: |
चीर लेकर कदम्ब पर जा बैठने वाले |
|
178. |
चीरद: |
गोपकिशोरियों के मांगने पर उन्हें चीर लौटा देने वाले |
|
179. |
सुन्दरीश: |
सुन्दरी गोपकुमारियों के प्राणेश्वर |
|
180. |
क्षुधानाशकृत् |
ग्वालबालों की भूख मिटाने वाले |
|
181. |
यज्ञपत्नीमन: स्पृक |
यज्ञ करने वाले ब्राह्मणों की पत्नी के मन का स्पर्श करने वाले- उनके मंदिर में बस जाने वाले |
|
182. |
कृपाकारक: |
दया करने वाले |
|
183. |
केलिकर्ता |
क्रीडापरायण |
|
184. |
अवनीश: |
भूस्वामी |
|
185. |
व्रजे शक्रयाग प्रणाश: |
व्रजमंडल में इन्द्रयाग की परम्परा को मिटा देने वाले |
|
186. |
अमिताशी |
गोवर्धन पूजा में समर्पित अपरिमित भोजन राशि को आरोग लेने वाले |
|
187. |
शुनासीरमोहप्रद: |
इन्द्र को मोह प्रदान करने वाले अथवा उनके मोह का खण्डन करने वाले |
|
188. |
बालरूपी |
बालरूपधारी |
|
189. |
गिरे: पूजक: |
गिरिराज गोवर्धन की पूजा करने वाले |
|
190. |
नन्दपुत्र: |
नन्दरायजी के बेटे |
|
191. |
अगध्र: |
गिरिवरधारी |
|
192. |
कृपाकृत् |
कृपा करने वाले |
|
193. |
गोवर्धनोद्धारिनामा |
गोवर्धनोद्धारी नाम वाले |
|
194. |
वातवर्षाहर: |
आंधी और वर्षा के कष्ट को हर लेने वाले |
|
195. |
रक्षक: |
व्रजवासियों की रक्षा करने वाले |
|
196. |
व्रजाधीश गोपांगनाशंकित: |
व्रजराज नन्द और गोपांगनाओं से डरने वाले, अथवा गोवर्धन उठाने के अलौकिक कर्म को देखकर व्रजराज नन्द तथा गोपियों को जिनके प्रति यह शंका हुई थी कि ये साधारण गोप नहीं, साक्षात नारायण हो सकते हैं, इस तरह की शंका के पात्र |
|
197. |
अगेन्द्रोपरि शक्रपूज्य: |
गिरिराज गोवर्धन के ऊपर इन्द्र के द्वारा पूजनीय |
|
198. |
प्राकस्तुत: |
पहले जिनका स्तवन हुआ है, ऐसे |
|
199. |
मृषा शिक्षक: |
अपने ऊपर शंका करने वाले नन्दादि गोपों को व्यर्थ की बातों से बहला देने वाले |
|
200. |
देवगोविन्द नामा |
‘गोविन्ददेव’ नाम धारण करने वाले |
|
201. |
व्रजाधीशरक्षाकर: |
व्रजराज नन्द की रक्षा करने वाले (उन्हें वरुणलोक से छुड़ाकर लानेवाले) |
|
202. |
पाशिपूज्य: |
पाशधारी वरुण के द्वारा पूजनीय |
|
203. |
अनुगैर्गोपजै: दिव्यवैकुण्ठदर्शी |
अनुगामी ग्वालबालों के साथ जाकर उन्हें दिव्य वैकुण्ठधाम का दर्शन कराने वाले |
|
204. |
चलच्चारुवंशीक्वण:: |
मनोहर वंशी की ध्वनि को चारों ओर फैलाने वाले |
|
205. |
कामिनीश: |
गोप सुन्दरियों के प्राणेश्वर |
|
206. |
व्रजे कामिनी मोहद: |
व्रज की कामिनियों को मोह प्रदान करने वाले |
|
207. |
कामरूप: |
कामदेव से भी सुन्दर रूप वाले |
|
208. |
रसाक्त: |
रसमग्न |
|
209. |
रसी रासकृत् |
रासक्रीडा करने वाले रसों के निधि |
|
210. |
राधिकेश: |
राधिका के स्वामी |
|
211. |
महामोहद: |
महान मोह प्रदान करने वाले |
|
212. |
मानिनीमानहारी |
मानिनियों के मान हर लेने वाले |
|
213. |
विहारी वर: |
विहारशील श्रेष्ठ पुरुष |
|
214. |
मानहृत |
मान हर लेने वाले |
|
215. |
राधिकांग: |
श्रीराधिका जिनकी वांगस्वरूपा हैं, वे |
|
216. |
धराद्वीपग: |
भूमण्डल के सभी द्वीपों में जाने वाले |
|
217. |
खण्डचारी |
विभिन्न वनखण्डों में विचरने वाले |
|
218. |
वनस्थ: |
वनवासी |
|
219. |
प्रिय: |
सबके प्रियतम |
|
220. |
अष्टवक्रर्षिद्रष्टा |
अष्टावक्र ॠषि का दर्शन करने वाले |
|
221. |
सराध: |
राधिका के साथ विचरने वाले |
|
222. |
महामोक्षद: |
महामोक्ष प्रदान करने वाले |
|
223. |
प्रियार्थं पद्महारी: |
प्रियतमा की प्रसन्नता के लिए कमल के फूल लाने वाले |
|
224. |
वटस्थ: |
वटवृक्ष पर विराजमान |
|
225. |
सुर: |
देवता |
|
226. |
चन्दनाक्त: |
चन्दन से चर्चित |
|
227. |
प्रसक्त: |
श्रीराधा के प्रति अधिक अनुरक्त |
|
228. |
राधया व्रजं ह्यागत: |
श्रीराधा के साथ व्रजमण्डल में अवतीर्ण |
|
229. |
मोहिनीषु महामोहकृत् |
मोहिनियों में महामोह उत्पन्न करने वाले |
|
230. |
गोपिकागीतकीर्ति: |
गोपिकाओं द्वारा गायी गयी कीर्तिवाले |
|
231. |
रसस्थ: |
अपने स्वरूपभूत रस में स्थित |
|
232. |
पटी |
पीताम्बरधारी |
|
233. |
दु:खिता-कामिनीश: |
दुखिया नारियों के रक्षक |
|
234. |
वने गोपिकात्यागकृत् |
वन में गोपियों का त्याग करने वाले |
|
235. |
पादचिह्नप्रदर्शी |
वन में ढ़ूंढती हुई गोपिकाओें को अपना चरण चिन्ह प्रदर्शित करने वाले |
|
236. |
कलाकारक: |
चौंसठ कलाओं के कलाकार |
|
237. |
काममोही |
अपने रूप और लावण्य से कामदेव को भी मोहित करने वाले |
|
238. |
वशी |
मन और इन्द्रियों को वश में रखने वाले |
|
239. |
गोपिकामध्यग: |
गोपांगनाओं के बीच में विराजमान |
|
240. |
पेशवाच: |
मधुरभाषी |
|
241. |
प्रियाप्रीतिकृत् |
प्रिया श्रीराधा से प्रेम करने वाले अथवा प्रिया की प्रसन्नता के लिये कार्य करने वाले |
|
242. |
रासरक्त: |
रास के रंग में रंगे हुए |
|
243. |
कलेश: |
सम्पूर्ण कलाओं के स्वामी |
|
244. |
रसारक्तचित्त |
रसमग्न चित्त वाले |
|
245. |
अनन्तस्वरूप: |
अनन्त रूपवाले अथवा शेषनाग-स्वरूप |
|
246. |
स्त्रजासंवृत: |
आजानुलम्बिनी वनमाला धारण करने वाले |
|
247. |
वल्लवीमध्यसंस्थ: |
गोपांगना मण्डल के मध्य बैठे हुए |
|
248. |
सुबाहु: |
सुन्दर बांह वाले |
|
249. |
सुपाद: |
सुन्दर चरण वाले |
|
250. |
सुवेश: |
सुन्दर वेश वाले |
|
251. |
सुकेशो व्रजेश |
सुन्दर केशवाले वज्रमण्डल के स्वामी |
|
252. |
सखा |
सकख्य-रति के आलम्बन |
|
253. |
वल्लभेश: |
प्राणवल्लभा श्रीराधा के हृदयेश |
|
254. |
सुदेश: |
सर्वोत्कृष्ट देशस्वरूप |
|
255. |
क्वणत्किङ्किणीजालभृत् |
झनकारती हुई किकिंणी की लड़ों को धारण करने वाले |
|
256. |
नूपुराढय: |
चरणों में नूपुरों की शोभा से सम्पन्न |
|
257. |
लसत्कंकण: |
कलाइयों में सुन्दर कंगन करने वाले |
|
258. |
अंगदी |
बाजूबन्दधारी |
|
259. |
हारभार: |
हारों के भार से विभूषित |
|
260. |
किरीटी |
मुकुटधारी |
|
261. |
चलत्कुण्डल: |
कानों में हिलते हुए कुण्डलों से सुशोभित |
|
262. |
अंगुलीयस्फुरत्कौस्तुभ: |
हाथों में अंगूठी के साथ वक्ष: स्थल पर जगमगाती हुई कौस्तुभमणि धारण करने वाले |
|
263. |
मालतीमण्डितांग |
मालती की माला से अलंकृत शरीर वाले |
|
264. |
महानृत्यकृत् |
महारास-नृत्य करने वाले |
|
265. |
रासरंग: |
रासरंग में तत्पर |
|
266. |
कलाढ्य: |
समस्त कलाओं से सम्पन्न |
|
267. |
चलद्धारभ: |
हिलते हुए रत्नहार की छटा छिटकने वाले |
|
268. |
भामिनी-नृत्ययुक्त: |
भामिनियों के साथ नृत्य में संलग्न |
|
269. |
कलिन्दांगजाकेलिकृत् |
कलिन्द नन्दिनी यमुनाजी के जल में क्रीडा करने वाले |
|
270. |
कुंकुमश्री: |
केसर-कुंकुम की शोभा से सम्पन्न |
|
271. |
सुरैर्नायिका-नायकैर्गीयमान: |
नायिकाओं के नायक, अर्थात अपनी प्राणवल्लभाओं के साथ सुशोभित देवताओं द्वारा जिनके यश का गान किया जाता है, वे |
|
272. |
सुखाढ्य: |
स्वरूपभूत सुख से सम्पन्न |
|
273. |
राधापति: |
राधिका के प्राणवल्लभ |
|
274. |
पूर्ण-बोध |
पूर्ण ज्ञानस्वरूप |
|
275. |
कटाक्षस्मिती |
नचायी हुई भौहों के विलास से शोभायमान |
|
276. |
वल्गितभ्रूविलास: |
नचायी हई भौंहों के विलास से शोभयमान |
|
277. |
सुरम्य: |
अत्यन्त रमणीय |
|
278. |
अलिभि:कुन्तलालोलकेश: |
मंडराते भ्रमरों से युक्त कुछ हिलते घुंघराले केश वाले |
|
279. |
स्फुरद्वर्ह-कुन्दस्त्रजाचारुवेश: |
फरफराते हुए मोर पंख के मुकुट और कुंद कुसुमों की माला से मनोहर वेशवाले |
|
280. |
महासर्पतो नन्दरक्षापराङ्घ्रि: |
जिनके चरण महान् अजगर के भय से नन्द की रक्षा करने वाले हैं, वे |
|
281. |
सदा मोक्षद: |
सतत मोक्ष प्रदान करने वाले |
|
282. |
शंखचूडप्रणाशी |
‘शंखचूड़’ नामक यक्ष को मार भगाने वाले |
|
283. |
प्रजारक्षक: |
प्रजाजनों के प्रतिपालक |
|
284. |
गोपिकागीयमान: |
गोपांगनाओं द्वारा जिनके यश का गान किया जाता है, वे |
|
285. |
कुद्मिप्रणाशप्रयास: |
अरिष्टासुर के वध के लिये प्रयास करने वाले |
|
286. |
सुरेज्य: |
देवताओं के पूजनीय |
|
287. |
कलि: |
कलिस्वरूप |
|
288. |
क्रोधकृत् |
दुष्टों पर क्रोध करने वाले |
|
289. |
कंसमन्त्रोपदेष्टा |
नारदरूप से कंस को मन्त्रोपदेश करने वाले |
|
290. |
अक्रूरमन्त्रोपदेशी |
अक्रूर को अपने नाम-मंत्र का उपदेश करने वाले अथवा उनको मन्त्रणा देने वाले |
|
291. |
सुरार्थ: |
देवताओं का प्रयोजन सिद्ध करने वाले |
|
292. |
बली केशिहा |
केशी का नाश करने वाले महान् बलवान् |
|
293. |
पुष्पवर्षामलश्री: |
देवताओं द्वारा जिन पर पुष्पवर्षा की गयी है, वे भगवान |
|
294. |
अमलश्री: |
उज्ज्वल शोभा से सम्पन्न |
|
295. |
नारदादेशतो व्योमहन्ता |
नारदजी के कहने से व्योमासुर का वध करने वाले |
|
296. |
अक्रूरसेवापर: |
नन्द-व्रज में आये हुए अक्रूर की सेवा में संलग्न |
|
297. |
सर्वदर्शी |
सबके द्रष्टा |
|
298. |
व्रजे गोपिकामोहद: |
वज्र में गोपांगनाओं को मोहित करने वाले |
|
299. |
कूलवर्ती |
यमुना के तट पर विद्यमान |
|
300. |
सतीराधिकाबोधद: |
मथुरा जाते समय सती राधिका को बोध (आश्वासन) देने वाले |
|
301. |
स्वप्नकर्ता |
श्रीराधिका के लिये सुखमय स्वप्न की सृष्टि करने वाले |
|
302. |
विलासी |
लीला- विलास- परायण |
|
303. |
महामोहनाशी |
महामोह के नाशक |
|
304. |
स्वबोध: |
आत्मबोधस्वरूप |
|
305. |
व्रजे शापतस्त्यक्तराधासकाश: |
व्रज में शापवश राधा के समीप निवास का त्याग करने वाले |
|
306. |
महामोहदावाग्निदग्धापति: |
श्रीकृष्णविषयक महामोहरूप दावानल से दग्ध होने वाली श्रीराधा के पालक या प्राणरक्षक |
|
307. |
सखीबन्धनान्मोचिताक्रूर: |
सखियों के बन्धन से अक्रूर को छुड़ाने वाले |
|
308. |
आरात सखीकङ्कणैस्ताडिताक्रूररक्षी |
निकट आयी हुई सखियों के कंगनों की मार से पी पीड़ित अक्रूर की रक्षा करने वाले |
|
309. |
व्रजे राधयारथस्थ: |
व्रज में राधा के साथ रथ पर विराजमान |
|
310. |
कृष्णचन्द्र: |
श्रीकृष्णचन्द्र |
|
311. |
गोपकै: सुगुप्तो गमी |
ग्वाल-बालों के साथ अत्यन्त गुप्तरूप से मथुरा की यात्रा करने वाले |
|
312. |
चारुलील: |
मनोहर लीलाएं करने वाले |
|
313. |
जलेऽक्रूरसंदर्शित: |
यमुना के जल में अक्रूर को अपने रूप का दर्शन कराने वाले |
|
314. |
दिव्यरूप: |
दिव्यरूपधारी |
|
315. |
दिदृक्षु: |
मथुरापुरी देखने के इच्छुक |
|
316. |
पुरीमोहिनीचित्तमोही |
मथुरापुरी की मोहिनी स्त्रियों के भी चित्त को मोह लेने वाले |
|
317. |
रङ्गकारप्रणाशी |
कंस के रंगकार या धोबी को नष्ट करने वाले |
|
318. |
सुवस्त्र: |
सुन्दरवस्त्रधारी |
|
319. |
स्त्रजी |
माली सुदामा की दी हुई माला धारण करने वाले |
|
320. |
वायकप्रीतिकृत् |
दर्जी को प्रसन्न करने वाले |
|
321. |
मालिपूज्य: |
माली के द्वारा पूजित |
|
322. |
महाकीर्तिद: |
माली को महान सुयश प्रदान करने वाले |
|
323. |
कुब्जाविनोदी |
कुब्जा के साथ हास-विनोद करने वाले |
|
324. |
स्फुरच्चदण्ड-कोदण्डरुग्ण: |
कंस के कान्तिमान को दण्ड खण्डन (धनुष-भंग) करने वाले |
|
325. |
प्रचण्ड: |
प्रचण्ड (महान बलवान) दिखायी देने वाले |
|
326. |
भटार्त्तिप्रद: |
कंस के मल्ल योद्धाओं को पीड़ा देने वाले |
|
327. |
कंसदु:स्वप्नकारी |
कंस को बुरे सपने दिखाने वाले |
|
328. |
महामल्लवेश: |
महान मल्लों के समान वेष धारण करने वाले |
|
329. |
करीन्द्र-प्रहारी |
गजराज कुवलयापीड़ पर प्रहार करने वाले |
|
330. |
महामात्यहा |
महावतों को मारने वाले |
|
331. |
रंगभूमिप्रवेशी |
कंस की मल्लशाला में प्रवेश करने वाले |
|
332. |
रसाढ्य: |
नौ रसों से सम्पन्न (भिन्न-भिन्न द्रष्टाओं को विभिन्न रसों के आलम्बन के रूप में दिखायी देने वाले) |
|
333. |
यश:स्पृक् |
यशस्वी |
|
334. |
बलीवाक्पटुश्री: |
अन्नत शक्ति से सम्पन्न और बातचीत करने में प्रवीण ऐश्वर्यवान् |
|
335. |
महामल्लहा |
बड़े-बड़े मल्ल चाणूर और मुष्टिक आदि का वध करने वाले |
|
336. |
युद्धकृत् |
युद्ध करने वाले |
|
337. |
स्त्रीवचोअर्थी |
रंगोत्सव देखने के लिये आयी हुई स्त्रियों के वचनों को सुनने की इच्छा वाले |
|
338. |
धरानायक: कंसहन्ता |
कंस का हनन करने वाले भूतल के स्वामी |
|
339. |
प्राग्यदु: |
पूर्ववर्ती राजा यदुस्वरूप |
|
340. |
सदापूजित |
सदा सबसे पूजित |
|
341. |
उग्रसेनप्रसिद्ध: |
उग्रसेन की प्रसिद्धि के कारण |
|
342. |
धराराज्यद: |
उग्रसेन को भूमण्डल का राज्य देने वाले |
|
343. |
यादवैर्मण्डितांग: |
यादवों से सुशोभित शरीर वाले ।। |
|
344. |
गुरो: पुत्रद: |
गुरु को पुत्र प्रदान करने वाले |
|
345. |
ब्रह्मविद् |
ब्रह्मावेत्ता |
|
346. |
ब्रह्मपाठी |
वेदपाठ करने वाले |
|
347. |
महाशंखहा |
महान् राक्षस शंखासुर का वध करने वाले |
|
348. |
दण्डधृकपूज्य: |
दण्डधारी यमराज के लिये पूजनीय |
|
349. |
व्रजे उद्धव प्रेषिता |
वज्र में वहां का समाचार जानने के लिये उद्धव को भेजने वाले |
|
350. |
गोपमोही |
अपने रूप, गुण और सद्भाव से गोपागणों को मोह लेने वाले |
|
351. |
यशोदाघृणी |
मैया यशोदा के प्रति अत्यन्त कृपालु |
|
352. |
गोपिकाज्ञानदेशी |
गोपांगनाओं को ज्ञानोपदेश करने वाले |
|
353. |
सदा स्नेहकृत् |
सदा स्नेह करने वाले |
|
354. |
कुब्जया पूजितांग: |
कुब्जा के द्वारा पूजित अंगवाले |
|
355. |
अक्रूरगेहंगमी |
अक्रूर के घर पधारने वाले |
|
356. |
मन्त्रवेत्ता |
मन्त्रणा के मर्मज्ञ |
|
357. |
पाण्डवप्रेषिताक्रूर: |
पाण्डवों का समाचार लाने के लिये अक्रूर को भेजने वाले |
|
358. |
सुखी सर्वदर्शी |
सौख्ययुक्त, सबके साक्षी अथवा सर्वज्ञ |
|
359. |
नृपानन्द-कारी |
राजा उग्रसेन को आनन्द देने वाले |
|
360. |
महाक्षौहिणीहा |
जरासंध की तीस अक्षौहिणी सेना का विनाश करने वाले |
|
361. |
जरासंधमानोद्धर: |
जरासंध का मान भंग करने वाले |
|
362. |
द्वारकाकारक: |
द्वारकापुरी का निर्माण करने वाले |
|
363. |
मोक्षकर्ता |
भवबन्धन से छुटकारा दिलाने वाले |
|
364. |
रणी |
युद्ध के लिये सदा उद्यत |
|
365. |
सर्वाभैमस्तुत: |
सत्ययुग के चक्रवर्ती राजा मुचुकुन्द ने जिनकी स्तुति की, ऐसे |
|
366. |
ज्ञानदाता |
मुचुकुन्द को ज्ञान प्रदान करने वाले |
|
367. |
जरासंध संकल्पकृत |
एक बार अपनी पराजय का अभिनय करके जरासंध के संकल्प की पूर्ति करने वाले |
|
368. |
धावदङ्घ्रि: |
पैदल भागने वाले |
|
369. |
नगादुत्पतन्द्वारकामध्वर्ती |
प्रवर्षणगिरि से उछलकर द्वारकापुरी के बीच विराजमान |
|
370. |
रेवतीभूषण |
बलरामरूप से रेवती के सौभाग्यभूषण |
|
371. |
तालचिह्नो यदु: |
ताल के चिन्ह से युक्त ध्वजा वाले यदुवीर |
|
372. |
रुक्मिणीहारक: |
रुक्मिणी का अपहरण करने वाले |
|
373. |
चैद्यभेद्य: |
चेदिराज शिशुपाल जिनका वध्य है, वे |
|
374. |
रूक्मिरूपप्रणाशी |
रुक्मी की आधी मूंछ मुंड़कर उसे कुरूप बनाने वाले |
|
375. |
सुखाशी |
स्वरूपभूत आनन्द के आस्वादक |
|
376. |
अनन्त: |
शेषनागस्परूप |
|
377. |
मार: |
कामदेवावतार |
|
378. |
कार्ष्णि |
कृष्णकुमार प्रद्युम्न |
|
379. |
काम: |
कामदेव |
|
380. |
मनोज: |
काम |
|
381. |
शम्बरारि: |
शम्बरासुर के शत्रु कामदेव |
|
382. |
रतीश: |
रति के स्वामी |
|
383. |
रथी |
रथारूढ़ |
|
384. |
मन्मथ |
मन को मथ देने वाले |
|
385. |
मीनकेतु: |
मत्स्यचिन्ह ध्वजा से युक्त |
|
386. |
शरी |
बाणधारी |
|
387. |
स्मर: |
काम |
|
388. |
दर्पक: |
कामदेव |
|
389. |
मानहा |
मानमर्दन करने वाले |
|
390. |
पञ्चबाण: |
पंचबाणधारी कामदेव (ये सब नाम प्रद्युम्नस्वरूप श्रीहरि के पर्यायवाची हैं)। |
|
391. |
प्रिय: सत्यभामापति: |
सत्यभामा के प्रिय पति |
|
392. |
यादवेश: |
यादवों के स्वामी |
|
393. |
सत्राजित्प्रेमपूर: |
सत्राजित् के प्रेम को पूर्ण करने वाले |
|
394. |
प्रहास: |
उत्कृष्ट हास वाले |
|
395. |
महारत्नद: |
महारत्न स्यमन्तक को ढूंढ़कर ला देने वाले |
|
396. |
जाम्बवद्युद्धकारी |
जाम्बवान् से युद्ध करने वाले |
|
397. |
महाचक्रधृक् |
महान सुदर्शन चक्र धारण करने वाले |
|
398. |
खड्गधृक् |
‘नन्दक’ नामक खड्ग धारण करने वाले |
|
399. |
रामसंधि |
बलरामजी के साथ संधि करने वाले |
|
400. |
विहारस्थित: |
लीलाविहारपरायण |
|
401. |
पाण्डवप्रेमकारी |
पाण्डवों से प्रेम करने वाले |
|
402. |
कलिन्दांगजामोहन: |
कालिन्दी के मन को मोह लेने वाले |
|
403. |
खाण्डवार्थी |
खाण्डव-वन को अग्निदेव के लिये अर्पित करने के इच्छुक |
|
404. |
फाल्गुनप्रीतिकृत् सखा |
अर्जुन पर प्रेम रखने वाले उनके सखा |
|
405. |
नग्नकर्ता |
खाण्डव-वन को जलाकर नग्न (शून्य) करने वाले |
|
406. |
मित्रविन्दापति: |
‘मित्राविन्दा’ नामवाली अवन्ती देश की राजकुमारी के पति |
|
407. |
क्रीडनार्थी |
क्रीडा या खेल के इच्छुक |
|
408. |
नृपप्रेमकृत् |
राजा नग्नजित् से प्रेम करने वाले |
|
409. |
सप्तरूपो गोजयी |
सात रूप धारण करके सात बिगड़ैल बैलों को एक ही साथ नाथकर काबू में कर लेने वाले |
|
410. |
सत्यापति: |
नग्नजित्कुमारी सत्या के पति |
|
411. |
पारिवर्ही |
राजा नग्नजित् के द्वारा दिये दहेज को ग्रहण करने वाले |
|
412. |
यथेष्टम् |
पूर्ण |
|
413. |
नृपै: संवृत: |
सत्या को लेकर लौटते समय मार्ग में युद्धार्थी राजाओं द्वारा घेर लिये जाने वाले |
|
414. |
भद्रापति: |
भद्रा के स्वामी |
|
415. |
मधोर्विलासी |
मधुमास चैत्र की पूर्णिमा को रासविलास करने वाले |
|
416. |
मानिनीश: |
मानिनी जनों के प्राणवल्लभ |
|
417. |
जनेश: |
प्रजाजनों के स्वामी |
|
418. |
शुनासीरमोहावृत: |
इन्द्र के प्रति मोह (स्नेह एवं कृपाभाव) से युक्त |
|
419. |
सत्सभार्य: |
सती भार्या से युक्त |
|
420. |
सतार्क्ष्य: |
गरुड पर आरूढ़ |
|
421 |
मुरारि: |
मुर दैत्य का नाश करने वाले |
|
422. |
पुरीसंघभेत्ता |
भौमसुर की पुरी के दुर्गसमुदाय का भेदन करने वाले |
|
423. |
सुवीर: शिर:खण्डन: |
श्रेष्ठवीर असुरों का मस्तक काटने वाले |
|
424. |
दैत्यनाशी |
दैत्यों का नाश करने वाले |
|
425. |
शरी भौमहा |
सायकधारी होकर भौमासुर का वध करने वाले |
|
426. |
चण्डवेग: |
प्रचण्ड वेगशाली |
|
427. |
प्रवीर: |
उत्कृष्ट वीर |
|
428. |
धरासंस्तुत: |
पृथ्वी देवी के मुख से अपना गुणगान सुनने वाले |
|
429. |
कुण्डलच्छत्रहर्ता |
अदितिे के कुण्डल और इन्द्र के छत्र को भौमासुर की राजधानी से लेकर उसे स्वर्गलोक तक पहुंचाने वाले |
|
430. |
महारत्नयुक् |
महान् मणिरत्नों से सम्पन्न |
|
431. |
राजकन्याअभिराम: |
सोलह हजार राजकुमारियों के सुन्दर पति |
|
432. |
शचीपूजित: |
स्वर्ग में इन्द्रपत्नी शची के द्वारा सम्मानित |
|
433. |
शक्रजित |
पारिजात के लिये होने वाले युद्ध में इन्द्र को जीतने वाले |
|
434. |
मानहर्ता |
इन्द्र का अभिमान चूर्ण कर देने वाले |
|
435. |
पारि-जातापहारी रमेश: |
पारिजात का अपहरण करने वालेरमावल्लभ |
|
436. |
गृही चामरै: शोभित: |
गृहस्थ के रूप में रहकर श्वेत चंवर डुलाये जाने के कारण अतिशय शोभायमान |
|
437. |
भीष्मककन्यापति: |
राजा भीष्म की पुत्री रुक्मिणी के पति |
|
438. |
हास्यकृत् |
रुक्मिणी के साथ परिहास करने वाले |
|
439. |
मानिनीमानकारी |
मानिनी रुक्मिणी को मान देने वाले |
|
440. |
रुक्मिणीवाक्पटु: |
रुक्मिणी को अपनी बातों से रिझाने में कुशल |
|
441. |
प्रेमगेह: |
प्रेम के अधिष्ठान |
|
442. |
सतीमोहन: |
सतियों को भी मोह लेने वाले |
|
443. |
कामदेवापरश्री: |
दूसरे कामदेव के समान मनोरम सुषमा से सम्पन्न |
|
444. |
सुदेष्ण: |
‘सुदेष्ण’ नामक श्रीकृष्ण-पुत्र |
|
445. |
सुचारु: |
सुचारु |
|
446. |
चारुदेष्ण: |
चारुदेष्ण |
|
447. |
चारुदेह: |
चारुदेह |
|
448. |
बली चारुगुप्त: |
बली, चारुगुप्त |
|
449. |
सुती भद्रचारु: |
पुत्रवान् भद्रचारु |
|
450. |
चारुचन्द्र: |
चारुचन्द्र |
|
451. |
विचारु: |
विचारु |
|
452. |
चारु: |
चारु |
|
453. |
रथीपुत्ररूप: |
रथी पुत्रस्वरूप |
|
454. |
सुभानु: |
सुभानु |
|
455. |
प्रभानु: |
प्रभानु |
|
456. |
चन्द्रभानु: |
चन्द्रभानु |
|
457. |
बृहद्भानु: |
बृहद्भानु |
|
458. |
अष्टभानु: |
अष्टभानु |
|
459. |
साम्ब: |
साम्ब |
|
460. |
सुमित्र: |
सुमित्र |
|
461. |
क्रतु: |
क्रतु |
|
462. |
चित्रकेतु: |
चित्रकेतु |
|
463. |
वीर: अश्वसेन: |
वीर अश्वसेन |
|
464. |
वृष: |
वृष |
|
465. |
चित्रगु: |
चित्रगु |
|
466. |
चन्द्रबिम्ब: |
चन्द्रबिम्ब |
|
467. |
विशंकु: |
विशंकु |
|
468. |
वसु: |
वसु |
|
469. |
श्रुत: |
श्रुत |
|
470. |
भद्र: |
भद्र |
|
471. |
सुबाहु: वृष: |
उत्तम भुजाओं-युक्त वृष |
|
472. |
सोम: वर: |
श्रेष्ठ सोम |
|
473. |
शान्ति: |
शान्ति |
|
474. |
प्रघोष: |
प्रघोष |
|
475. |
सिंह: |
सिंह |
|
476. |
बल: ऊर्ध्वग: |
बल और ऊर्ध्वग |
|
477. |
वर्धन: |
वर्धन |
|
478. |
उन्नाद: |
उन्नाद |
|
479. |
महाश: |
महाश |
|
480. |
वृक: |
वृक |
|
481. |
वृक: |
वृक |
|
482. |
पावन: |
पावन |
|
483. |
वन्हिमित्र: |
वन्हिमित्र |
|
484. |
क्षुधि: |
क्षुधि |
|
485. |
हर्षक: |
हर्षक |
|
486. |
अनिल: |
अनिल |
|
487. |
अमित्रजित्: |
अमित्रजित |
|
488. |
सुभद्र: |
सुभद्र |
|
489. |
जय: |
जय |
|
490. |
सत्यक: |
सत्यक |
|
491. |
वाम: |
वाम |
|
492. |
आयु: आयु, यदु: |
यदु |
|
493. |
कोटिश: पुत्रपौत्रे: प्रसिद्ध: |
इस प्रकार करोड़ों पुत्र-पौत्रों से प्रसिद्ध |
|
494. |
हली दण्डधृक् |
ईषादण्डधारी हलधर बलराम |
|
495. |
रुक्महा |
रुक्मी का वध करने वाले |
|
496. |
अनिरुद्ध: |
किसी के द्वारा रोके न जा सकने वाले |
|
497. |
राजभिर्हास्यग: |
अनिरूद्ध के विवाह में द्युत-क्रीड़ा के समय राजाओं ने जिनकी हंसी उड़ायी |
|
498. |
द्यूतकर्ता |
विनोद के लिये द्यूत-क्रीड़ा में भाग लेने वाले बलरामजी |
|
499. |
मधु: |
मधुवंश में अवतीर्ण |
|
500. |
ब्रह्मसू: |
ब्रह्माजी के अवतार अनिरूद्ध |
|
501. |
बाणपुत्रीपति: |
बाणासुर की कन्या ऊषा के स्वामी |
|
502. |
महासुन्दर: |
अतिशय सौन्दर्यशाली |
|
503. |
कामपुत्र: |
प्रद्युम्न के पुत्र अनिरूद्धरूप |
|
504. |
बलीश: |
बलवानों के ईश्वर |
|
505. |
महादैत्यसंग्रामकृद् यादवेश: |
बड़े-बड़े दैत्यों के साथ युद्ध करने वाले यादवों के स्वामी |
|
506. |
पुरीभञ्चन: |
बाणसुर को नगरी को नष्ट- भ्रष्ट करने वाला |
|
507. |
भूतसंत्रासकारी |
भूतगणों को संत्रस्त कर देने वाले |
|
508. |
मृधे रुद्रजित् |
युद्ध में रुद्र को जीतने वाले |
|
509. |
रुद्रमोही |
जृम्भणास्त्र के प्रयोग से रुद्रदेव को मोहित करने वाले |
|
510. |
मृधार्थी |
युद्धाभिलाषी |
|
511. |
स्कन्दजित |
कुमार कार्तिकेय को परास्त करने वाले |
|
512. |
कूपकर्णप्रहारी |
धनुष भंग करने वाले |
|
513. |
धनुर्भजंन: |
धनुष भंग करने वाले |
|
514. |
बाणमानप्रहारी |
बाणासुर के अभिमान को चूर्ण कर देने वाले |
|
515. |
ज्वरोत्पत्तिकृत |
ज्वर की उत्तपत्ति करने वाले |
|
516. |
ज्वरेण संस्तुत |
रुद्र के ज्वर द्वारा जिनकी स्तुति की गई, वे |
|
517. |
भुजाछेदकृत् |
बाणासुर की बाहों को काट देने वाले |
|
518. |
बाणसंत्रासकर्ता |
बाणासुर के मन में त्रास उत्पन्न कर देने वाले |
|
519. |
मुडप्रस्तुत: |
भगवान् शिव के द्वारा स्तुत |
|
520. |
युद्धकृत् |
युद्ध करने वाले |
|
521. |
भूमिभर्त्ता |
भूमण्डल का भरण-पोषण करने वाले, अथवा भूदेवी के पति |
|
522. |
नृगं मुक्तिद: |
राजा नृग का उद्धार करने वाले |
|
523. |
यादवानां ज्ञानद: |
यादवों को ज्ञान देने वाले |
|
524. |
रथस्थ: |
दिव्य रथ पर आरूढ़ |
|
525. |
व्रजप्रेमप: |
व्रजविषयक प्रेम के पालक अथवा व्रजवासियों के प्रेमरस का पान करने वाले |
|
526. |
गोपमुख्य: |
गोपशिरोमणि |
|
527. |
महासुन्दरीक्रीडित: |
अपनी प्रेयसी परम सुन्दरियों के साथ क्रीडा करने वाले बलरामजी |
|
528. |
पुष्पमाली |
पुष्प मालाओं से अलंकृत |
|
529. |
कलिन्दांगजाभेदन: |
कालिन्दी की धारा को फोड़कर अपनी ओर खींच लाने वाले |
|
530. |
सीरपाणि: |
हाथों में हल धारण करने वाले |
|
531. |
महादम्भिहा |
बड़े-बड़े दम्भी–पाखण्डियों का दमन करने वाले |
|
532. |
पौण्ड्रमानप्रहारी |
पौण्ड्रक के घमंड को चूर्ण कर देने वाले |
|
533. |
शिरश्छेदक: |
उसके मस्तक को काट देने वाले |
|
534. |
काशिराजप्रणाशी |
काशिकाराज का नाश करने वाले |
|
535. |
महाअक्षौहिणीध्वंसकृत् |
शत्रुओं की विशाल अक्षौहिणी सेना का विनाश करने वाले |
|
536. |
चक्रहस्त: |
चक्रपाणि |
|
537. |
पुरीदीपक: |
काशीपुरी को जलाने वाले |
|
538. |
राक्षसीनाशकर्ता |
राक्षसी के नाशक |
|
539. |
अनन्त: |
शेषनागरूप |
|
540. |
महीध्र: |
धरणी को धारण करने वाले |
|
541. |
फणी |
फणधारी |
|
542. |
वानरारि: |
‘द्विविद’ नामक वानर के शत्रु |
|
543. |
स्फुरद्गौरवर्ण: |
प्रकाशमान गौरवर्ण वाले |
|
544. |
महापद्मनेत्र: |
प्रफुल्ल कमल के समान विशाल नेत्रवाले |
|
545. |
कुरुग्रामतिर्यग्गति: |
कौरवों के निवास स्थल हस्तिनापुर को गंगा की ओर तिरछी दिशा में खींच लेने वाले |
|
546. |
गौरवार्थं कौरवै: स्तुत: |
जिनका गौरव प्रकट करने के लिये कौरवों ने स्तुति की, वे बलरामजी |
|
547. |
ससाम्ब: पारिबर्ही |
साम्ब के साथ कौरवों से दहेज लेकर लौटने वाले |
|
548. |
महावैभवी |
महान् वैभवशाली |
|
549. |
द्वारकेश: |
द्वारकानाथ |
|
550. |
अनेक: |
अनेक रूपधारी |
|
551. |
चलन्नारद: |
नारदजी को विचलित कर देने वाले |
|
552. |
श्रीप्रभादर्शक: |
अपनी लक्ष्मी तथा प्रभाव को दिखाने वाले |
|
553. |
महर्षिस्तुत: |
महर्षियों से संस्तुत |
|
554. |
ब्रह्मदेव: |
ब्राह्मणों को देवता मानने वाले अथवा ब्रह्माजी के आराध्यदेव |
|
555. |
पुराण: |
पुराणपुरुष |
|
556. |
सदा षोडशस्त्रीसहस्थित: |
सर्वदा सोलह हजार पत्नियों के साथ रहने वाले |
|
557. |
गृही |
आदर्श गृहस्थ |
|
558. |
लोकरक्षापर: |
समस्त लोकों की रक्षा में तत्पर |
|
559. |
लोकरीति: |
लौकिक रीति का अनुसरण करने वाले |
|
560. |
प्रभु: |
अखिल विश्व के स्वामी |
|
561. |
उग्रसेनावृत: |
उग्र सेनाओं से घिरे हुए |
|
562. |
दुर्गयुक्त: |
दुर्ग से युक्त |
|
563. |
राजदूतस्तुत: |
जरासंध के बंदी राजाओं द्वारा भेजे गये दूत ने जिनकी स्तुति की, वे |
|
564. |
बन्धभेत्ता स्थित: |
बन्दी राजाओं के बन्धन काटकर उनके लिये मुक्तिदाता के रूप में स्थित नित्य विद्यमान |
|
565. |
नारदप्रस्तुत: |
नारदजी के द्वारा संस्तुत |
|
566. |
पाण्डवार्थी |
पाण्डवों का अर्थ सिद्ध करने वाले |
|
567. |
नृपैर्मन्त्रकृत् |
राजाओं के साथ सलाह करने वाले |
|
568. |
उद्धवप्रीतिपूर्ण: |
उद्धव की प्रीति से परिपूर्ण |
|
569. |
पुत्रपौत्रैर्वृत: |
पुत्र-पौत्रों से घिरे हुए |
|
570. |
कुरुग्रामगन्ता घृणी |
कुरुग्राम-इन्द्रप्रस्थ में जाने वाले दयालु |
|
571. |
धर्मराजस्तुत: |
धर्मराज युधिष्ठिर से संस्तुत |
|
572. |
भीमयुक्त: |
भीमसेन से सप्रेम मिलने वाले |
|
573. |
परानन्दद: |
परमानन्द प्रदान करने वाले |
|
574. |
धर्मजेन मन्त्रकृत् |
धर्मराज युधिष्ठिर से सलाह करने वाले |
|
575. |
दिशाजित् बली |
दिग्विजय बलवान् |
|
576. |
राजसूयार्थकारी |
युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ-सम्बन्धी कार्य को सिद्ध करने वाले |
|
577. |
जरासंधहा |
जरासंध का वध करने वाले |
|
578. |
भीमसेनस्वरूप: |
भीमसेनस्वरूप |
|
579. |
विप्ररूप: |
ब्राह्मण का रूप धारण करके जरासंध के पास जाने वाले |
|
580. |
गदायुद्धकर्ता |
भीमरूप से गदायुद्ध करने वाले |
|
581. |
कृपालु: |
दयालु |
|
582. |
महाबन्धनच्छेदकारी |
बड़े-बड़े बन्धनों को काट देने अथवा महान भवबन्धन का उच्छेद करने वाले |
|
583. |
नृपै: संस्तुत: |
जरासंध के कारागर से मुक्त राजाओं द्वारा संस्तुत |
|
584. |
धर्मगेहमागत: |
धर्मराज के घर में आये हुए |
|
585. |
द्विजै: संवृत: |
ब्राह्मणों से घिरे हुए |
|
586. |
यज्ञसम्भारकर्ता |
यज्ञ के उपकरण जुटाने वाले |
|
587. |
जनै: पूजित: |
सब लोगों से पूजित |
|
588. |
चैद्यदुर्वाक्क्षम: |
चेदिराज शिशुपाल के दुर्वचनों को सह लेने वाले |
|
589. |
महामोक्षद: |
उसे महान मोक्ष देने वाले |
|
590. |
अरे: शिरश्छेदकारी |
सुदर्शन चक्र से शत्रु शिशुपाल का सिर काट लेने वाले |
|
591. |
महायज्ञशोभाकर: |
युधिष्ठिर के महान् यज्ञ की शोभा बढ़ाने वाले |
|
592. |
चक्रवर्ती नृपानन्दकारी |
राजाओं को आनन्द प्रदान करने वाले सार्वभौम सम्राट् |
|
593. |
सुहारी विहारी |
सुन्दर हार से सुशोभित विहार परायण प्रभु |
|
594. |
सभासंवृत: |
सभा सदों से घिरे हुए |
|
595. |
कौरवस्य मानहृत् |
कुरुराज दुर्योधन का मान हर लेने वाले |
|
596. |
शाल्वसंहारक: |
राजा शाल्व का संहार करने वाले |
|
597. |
यानहन्ता |
शाल्व के सौभ विमान को तोड़ने डालने वाले |
|
598. |
सभोज: |
भोजवंशियों सहित |
|
599. |
वृष्णि: |
वृष्णिवंशी |
|
600. |
मधु: |
मधुवंशी |
|
601. |
शूरसेन: |
शूरवीर सेना से संयुक्त, अथवा शूरसेनवंशी |
|
602. |
दशार्ह: |
दशार्हवंशी |
|
603. |
यदु: अन्धक: |
यदुवंशी तथा अन्धकवंशी |
|
604. |
लोकजित् |
लोकविजयी |
|
605. |
द्युमन्मानहारी |
द्युमन् का मान हर लेने वाले |
|
606. |
वर्मधृक |
कवचधारी |
|
607. |
दिव्यशस्त्री |
दिव्य आयुधारी |
|
608. |
स्वबोध |
आत्मबोधस्वरूप |
|
609. |
सदा रक्षक: |
साधु पुरुषों की सदा रक्षा करने वाले |
|
610. |
दैत्यहन्ता |
दैत्यों का वध करने वाले |
|
611. |
दन्तवक्त्रप्रणाशी |
दन्तवक्त्र का नाश करने वाले |
|
612. |
गदाधृक् |
गदाधारी |
|
613. |
जगत्तीर्थयात्राकर: |
सम्पूर्ण जगत् की तीर्थ यात्रा करने वाले बलरामजी |
|
614. |
पद्महार: |
कमल की माला धारण करने वाले |
|
615. |
कुशी सूतहन्ता |
कुश हाथ में लेकर रोमहर्षण सूत का वध करने वाले |
|
616. |
कृपाकृत |
कृपा करने वाले |
|
617. |
स्मृतीश: |
धर्मशास्त्रों के स्वामी |
|
618. |
अमल: |
निर्मल स्वरूप |
|
619. |
बल्वलांगप्रभाखण्डकारी |
बल्वल की अंग कान्ति को खण्डित करने वाले |
|
620. |
भीमदुर्योधनज्ञानदाता |
भीमसेन और दुर्योधन को ज्ञान देने वाले |
|
621. |
अपर: |
जिनसे बढ़कर दूसरा कोई नहीं है, ऐसे |
|
622. |
रोहिणीसौख्यद: |
माता रोहिणी को सुख देने वाले |
|
623. |
रेवतीश: |
रेवती के पति बलरामजी |
|
624. |
महादानकृत् |
बड़े भारी दानी |
|
625. |
विप्रदारिद्रयहा |
सुदामा ब्राह्मण की दरिद्रता दूर कर देने वाले |
|
626. |
सदा प्रेमयुक् |
नित्य प्रेमी |
|
627. |
श्रीसुदाम्न सहाय: |
श्रीसुदामा के सहायक |
|
628. |
सराम: भार्गवक्षेत्रगन्ता: |
बलरामसहित, परशुरामजी के शूर्पारक क्षेत्र की यात्रा करने वाले |
|
629. |
श्रुते सूर्योपरागे सर्वदर्शी |
विख्यात सूर्यग्रहण के अवसर पर सबसे मिलने वाले |
|
630. |
महासेनयास्थित: |
विशाल सेना के साथ विद्यमान |
|
631. |
स्नानयुक्त: महादानकृत् |
सूर्य-ग्रहण पर्व पर स्नान करके महान् दान करने वाले |
|
632. |
मित्रसम्मेलनार्थी |
मित्रों के साथ मिलने के लिये इच्छुक अथवा मित्र सम्मेलन रूप प्रयोजन वाले |
|
633. |
पाण्डवप्रीतिद: |
पाण्डवों को प्रीति प्रदान करने वाले |
|
634. |
कुन्तिजार्थी |
कुन्ती और उनके पुत्रों का अर्थ सिद्ध करने वाले |
|
635. |
विशालाक्ष मोहप्रद: |
विशालाक्ष को मोह में डालने वाले |
|
636. |
शान्तिद: |
शान्ति देने वाले |
|
637. |
सखी कोटिभि: गोपिकाभि: सहवटे राधिकाराधन: |
सखीस्वरूप कोटिश: गोपकिशोरियों के साथ वट के नीचे श्रीराधिका की आराधना करने वाले |
|
638. |
राधिका प्राणनाथ: |
श्रीराधा के प्राणेश्वर |
|
639. |
सखीमोहदावाग्निहा |
सखियों के मोहरूपी दावानल को नष्ट करने वाले |
|
640. |
वैभवेश: |
वैभव के स्वामी |
|
641. |
स्फुरत्कोटिकंदर्पलीलाविशेष: |
कोटि-कोटि कान्तिमान् कामदेवों से भी बढ़कर लीला-विशेष प्रकट करने वाले |
|
642. |
सखीराधिकादु:खनाशी |
सखियों सहित श्रीराधा के दु:ख का नाश करने वाले |
|
643. |
विलासी |
विलासशाली |
|
644. |
सखी मध्यग: |
सखियों की मण्डली में विराजमान |
|
645. |
शापहा |
शाप दूर करने वाले |
|
646. |
माधवीश: |
माधवी श्रीराधा के स्वामी |
|
647. |
शंत वर्षविक्षेपहृत् |
सौ वर्षों की वियोग व्यथा को हर लेने वाले |
|
648. |
नन्दपुत्र: |
नन्दकुमार |
|
649. |
नन्दवक्षोगत: |
नन्द की गोद में बैठने वाले |
|
650. |
शीतलांग: |
शीतल शरीर वाले |
|
651. |
यशोदाशुच: स्नानकृत् |
यशोदाजी के प्रेमाश्रुओं से नहाने वाले |
|
652. |
दु:खहन्ता |
दु:ख दूर करने वाले |
|
653. |
सदा गोपिकानेत्रलग्न: व्रजेश: |
नित्यनिरन्तर गोपांगनाओं के नेत्र में बसे रहने वाले व्रजेश्वर |
|
654. |
देवकीरोहिणीभ्यां स्तुत: |
देवकी और रोहिणी से संस्तुत |
|
655. |
सुरेन्द्र: |
देवताओं के स्वामी |
|
656. |
रहो गोपिकाज्ञानद: |
एकान्त में गोपिकाओं को ज्ञान देने वाले |
|
657. |
मानद: |
मान देने वाले अथवा मानका खण्डन करने वाले |
|
658. |
पट्टराज्ञीभि: आरात् संस्तुत: धनी |
पटरानियों द्वारा निकट और दूर से भी संस्तुत परम ऐश्वर्य से सम्पन्न |
|
659. |
सदा लक्ष्मणाप्राणनाथ: |
सदैव लक्ष्मणा के प्राणवल्लभ |
|
660. |
सदा षोडशस्त्रीसहस्त्रस्तुतांग: |
सोलह हजार रानियों द्वारा जिनके श्रीविग्रह की सदा स्तुति की गयी है |
|
661. |
शुक: |
शुकमुनिस्वरूप |
|
662. |
व्यासदेव: |
व्यासदेवरूप, (इसी प्रकार अन्य ऋषियों के नामों में भी स्वरूप जोड़ लेना चाहिये) |
|
663. |
सुमन्तु: |
सुमन्तु |
|
664. |
सित: |
सित |
|
665. |
भरद्वाजक: |
भरद्वाज |
|
666. |
गौतम: |
गौतम |
|
667. |
आसुरि: |
आसुरि |
|
668. |
सद्वसिष्ठ: |
श्रेष्ठ वसिष्ठ मुनि |
|
669. |
शतानन्द: |
शतानन्द |
|
670. |
आद्य: राम: |
आद्य राम के रूप में प्रसिद्ध परशुराम |
|
671. |
पर्वतो मुनि: |
पर्वतमुनि |
|
672. |
नारद: |
नारदमुनि |
|
673. |
धौम्य: |
धौम्यमुनि |
|
674. |
इन्द्र |
इन्द्रमुनि |
|
675. |
असित: |
असित |
|
676. |
अत्रि: |
अत्रि |
|
677. |
विभाण्ड: |
विभाण्ड |
|
678. |
प्रचेता: |
प्रचेता |
|
679. |
कृप: |
कृप |
|
680. |
कुमार: |
सनत्कुमार |
|
681. |
सनन्द: |
सनन्दन |
|
682. |
याज्ञवल्क्य: |
याज्ञवल्क्य |
|
683. |
ऋभु: |
ऋभु |
|
684. |
अंगिरा: |
अंगिरा |
|
685. |
देवल: |
देवल |
|
686. |
श्रीमृकण्ड: |
श्रीमृकण्ड |
|
687. |
मरीचि: |
मरीचि |
|
688. |
क्रतु: |
क्रतु |
|
689. |
और्वक: |
और्व |
|
690. |
लोमश: |
लोमश |
|
691. |
पुलस्त्य: |
पुलस्त्य |
|
692. |
भृगु: |
भृगु |
|
693. |
ब्रह्मारात: वसिष्ठ: |
ब्रह्मरात वसिष्ठ |
|
694. |
नर: नारायण: |
नर-नारायण |
|
695. |
दत्त: |
दत्तात्रेय |
|
696. |
पाणिनि: |
व्याकरण-सूत्रकार पाणिनि |
|
697. |
पिंगल: |
छन्द:सूत्रकार महर्षि पिंगल |
|
698. |
भाष्यकार: |
महाभाष्यकार पिंजलि |
|
699. |
कात्यायन: |
वार्तिककार कात्यायन |
|
700. |
विप्रपातंजलि: |
ब्राह्मण पतंजलि |
|
701. |
गर्ग: |
यदुकुल के स्वामी |
|
702. |
गुरु: |
बृहस्पति |
|
703. |
गीष्पति: |
वाचस्पति बृहस्पति |
|
704. |
गौतमीश: |
गौतम के स्वामी |
|
705. |
मुनि: जाजलि: |
महर्षि जाजलि |
|
706. |
कश्यप: |
कश्यप |
|
707. |
गालव: |
गालव |
|
708. |
द्विज: सौभरि: |
ब्रह्मर्षि सौभरि |
|
709. |
ऋष्यश्रृंग: |
ऋष्यश्रृंग |
|
710. |
कण्व: |
कण्व |
|
711. |
द्वित: |
द्वित |
|
712. |
जातूद्भव: |
जातूकर्ण्य |
|
713. |
एकत: |
एकत |
|
714. |
घन: |
घन |
|
715. |
कर्दमस्य-आत्मज: |
कर्दमपुत्र कपिल |
|
716. |
कर्दम: |
कपिल के पिता महर्षि कर्दम |
|
717. |
भार्गव: |
भृगुपुत्र च्यवन |
|
718. |
कौत्स्य: |
पवित्र कौत्स्य |
|
719. |
आरुणि: |
आरुणि |
|
720. |
शुचि: पिप्पलाद: |
पवित्र पिप्पलाद मुनि |
|
721. |
मृकण्डस्य पुत्र: |
मार्कण्डेय |
|
722. |
पैल: |
पैल |
|
723. |
जैमिनि: |
जैमिनि |
|
724. |
सत् सुमन्तु: |
सत्सुमन्तु |
|
725. |
वरो गांगल |
श्रेष्ठ गांगल मुनि |
|
726. |
स्फोटगेह: फलाद |
फल खाने वाले स्फोटगेह |
|
727. |
सदापूजित: ब्राह्मण: |
नित्यपूजित ब्राह्मणस्वरूप |
|
728. |
सर्वरूपी: |
सर्व-रूपधारी सर्व-रूपधारी |
|
729. |
महामोहनाश: मुनीश: |
महान् मोह का नाश करने वाले मुनीश्वर |
|
730. |
प्रागमर: |
पूर्वदेवता जो उपेन्द्रवतार में देवतारूप में थे |
|
731. |
मुनीशस्तुत: |
मुनीश्वरों द्वारा संस्तुत |
|
732. |
शौरिविज्ञानदाता |
वसुदेवजी को ज्ञान देने वाले |
|
733. |
महायज्ञकृत् |
महान् यज्ञ करने वाले |
|
734. |
आभृथस्नानपूज्य: |
यज्ञान्त में किये जाने वाले |
|
735. |
सदादक्षिणाद: |
सदा दक्षिणा देने वाले |
|
736. |
नृपै: पारिबर्ही |
राजाओं से भेंट लेने वाले |
|
737. |
व्रजानन्दद: |
वज्र को आनन्द देने वाले |
|
738. |
द्वाराकागेहदर्शी |
द्वारकापुरी के भवानों को देखने वालेद्वारकापुरी के भवानों को देखने वाले |
|
739. |
महाज्ञानद: |
महान् ज्ञान प्रदान करने वाले |
|
740. |
देवकीपुत्रद: |
देवकी को उनके मरे हुए पुत्र लाकर देने वाले |
|
741. |
असुरै: पूजित: |
असुरों से पूजित |
|
742. |
इन्द्रसेनादृत: |
राजा बलि से सम्मानित |
|
743. |
सदाफाल्गुनप्रीतिकृत् |
अर्जुन से सदा प्रेम करने वाले |
|
744. |
सत्सुभद्राविवाहे द्विपाश्रवप्रद: |
सुभद्रा के शुभ विवाह में दहेज के रूप में हाथी, घोड़े देने वाले |
|
745. |
मानयान: |
वरपक्ष को सम्मानित करने वाले अथवा मानयुक्त वाहन अर्पित करने वाले |
|
746. |
भुवं दर्शक: |
भूमण्डल को देखने और दिखाने वाले |
|
747. |
मैथिलेन प्रयुक्त: |
मिथिलापति राजा बहुलाश्र्व तथा मिथिलानिवासी ब्राह्मण श्रुतदेव से एक ही समय दर्शन देने के लिये प्रार्थित |
|
748. |
आशु ब्राह्मणै: सह राजा स्थित: ब्राह्मणैश्च स्थित: |
उसी क्षण एक ही साथ राजा बहुलाश्र्व के साथ विराजमान तथा श्रुतदेव ब्राह्मण के साथ ब्राह्मणों में विराजमान |
|
749. |
मैथिले कृती |
मैथिल राजा और मैथिल ब्राह्मण के प्रति कर्तव्य का पालन करने वाले |
|
750. |
लोकवेदोपदेशी |
लोक और वेद का उपदेश करने वाले |
|
751. |
सदा वेदवाक्यै: स्तुत: |
सदा वेदावचनों द्वारा स्तुत |
|
752. |
शेषशायी |
शेषनाग की शय्या पर शयन करने वाले |
|
753. |
अमरेषु ब्राह्मणै: परीक्षावृत: |
भृगु आदि ब्राह्मणों ने परीक्षा करके सब देवताओं में श्रेष्ठ रूप से जिनका वरण किया है |
|
754. |
भृगुप्रार्थित: |
भृगु से प्रार्थित |
|
755. |
दैत्यहा |
दैत्यनाशक |
|
756. |
ईशरक्षी |
भस्मासुर को भस्म करके शिवजी की रक्षा करने वाले |
|
757. |
अर्जुनस्य सखा |
अर्जुन के मित्र |
|
758. |
अर्जुनस्यापि मानप्रहारी |
अर्जुन का भी अभिमान भंग करने वाले |
|
759. |
विप्रपुत्रप्रद: |
ब्राह्मण को पुत्र प्रदान करने वाले |
|
760. |
धामगन्ता |
ब्राह्मण के पुत्रों को लाने के लिये अपने दिव्यधाम में जाने वाले |
|
761. |
माधवीभिर्विहारस्थित: |
अपनी भार्या स्वरूपा मधुकुल की स्त्रियों के साथ समुद्र में जल-विहार करने वाले |
|
762. |
कलांग |
कलाएं जिनके अंग हैं, वे |
|
763. |
महामोहदावाग्निदग्धाभिराम: |
महामोहमयदावानल से दग्ध (नष्ट) हुए लोगों के मन को आकर्षित करने वाले |
|
764. |
यदु: उग्रसेन: नृप: |
यदु, उग्रसेन, नृपति |
|
765. |
अक्रूर |
अक्रूर अथवा क्रूरता रहित |
|
766. |
उद्धव: |
उद्धव अथवा उत्सवरूप |
|
767. |
शूरसेन: |
शूरसेन |
|
768. |
शूर: |
शूर |
|
769. |
हृदीक: |
कृतवर्मा के पिता ह्दीक (समस्त यादव भगवत्स्वरूप या भगवान की विभूति हैं, इसलिये इन नामों में इनकी गणना की गयी है) |
|
770 |
सत्राजित: |
सत्राजित |
|
771. |
अप्रमेय: |
प्रमाणातीत |
|
772. |
गद: |
बलरामजी के छोटे भाई गद |
|
773. |
सारण: |
सारण |
|
774. |
सात्यिक |
सत्यकपुत्र |
|
775. |
देवभाग: |
देवभाग |
|
776. |
मानस: |
मानस |
|
777. |
संजय: |
संजय |
|
778. |
श्यामक: |
श्यामक |
|
779. |
वृक: |
वृक |
|
780. |
वत्सक: |
वत्सक |
|
781. |
देवक: |
देवक |
|
782. |
भद्रसेन: |
भद्रसेन |
|
783. |
नृप अजातशत्रु: |
राजा युधिष्ठिर |
|
784. |
जय: |
जय (अर्जुन) |
|
785. |
माद्रीपुत्र: |
नकुल सहदेव |
|
786. |
भीष्म: |
दुर्योधन आदि के पितामह देवव्रत |
|
787. |
कृप: |
कृपाचार्य |
|
788. |
बुद्धिचक्षु: |
प्रज्ञाचक्षु धृतराष्ट्र |
|
789. |
पाण्डु: |
पाण्डवों के पिता राजा पाण्डु |
|
790. |
शांतनु: |
भीष्म के पिता राजा शान्तनु |
|
791. |
देवो बाल्हीक: |
देवस्वरूप बाल्हीक |
|
792. |
भूरिश्रवा: |
भूरिश्रवा |
|
793. |
चित्रवीर्य: |
विचित्रवीर्य |
|
794. |
विचित्र: |
विचित्र या चित्रांगद |
|
795. |
शल: |
शल |
|
796. |
दुर्योधन: |
जिसके साथ युद्ध करना कठिन हो, वह राजा दुर्योधन |
|
797. |
कर्ण: |
कर्ण |
|
798. |
सुभद्रासुत: |
सुभद्राकुमार अभिमन्यु |
|
799. |
प्रसिद्ध: विष्णुरात: |
भगवान् श्रीकृष्ण ने जिन्हें जीवनदान दिया था, वे सुप्रसिद्ध राजा परीक्षित |
|
800. |
जनमेजय: |
परीक्षित के पुत्र राजा जनमेजय |
|
801. |
पाण्डव: |
पांचों पाण्डव |
|
802. |
कौरव: |
कुरुकुल में उत्पन्न क्षत्रियसमुदाय |
|
803. |
सर्वतेजा: हरि: |
सम्पूर्ण तेज से सम्पन्न एवं भक्तों के चित्त हरण करने वाले भगवान् श्रीकृष्ण |
|
804. |
सर्वरूपी |
सर्वस्वरूप |
|
805. |
राधया व्रजं ह्रागत: |
श्रीराधा के साथ व्रज में अवतीर्ण |
|
806. |
पूर्णदेव: |
परिपूर्णतम परमात्मा |
|
807. |
वर: |
सब के वरधीय |
|
808. |
रासलीलापर: |
रासक्रीडापरायण |
|
809. |
दिव्यरूपी |
दिव्य रूप वाले |
|
810. |
रथस्थ: |
रथ पर विराजमान |
|
811. |
नवद्वीपखण्डप्रदर्शी |
जमबूद्वीप के नौ खण्डों को देखने-दिखाने वाले |
|
812. |
महामानद: |
बहुत सम्मान देने वाले अथवा महामान का खण्डन करने वाले |
|
813. |
विश्वरूप: |
स्वयं ही विश्व के रूप में प्रकाशमान |
|
814. |
सनन्द: |
सनन्द |
|
815. |
नन्द: |
नन्द |
|
816. |
वृष: |
वृषभानु |
|
817. |
वल्लवेश: |
गोपेश्वर |
|
818. |
सुदामा |
‘श्रीदामा’ नामक गोप |
|
819. |
अर्जुन: |
अर्जुन गोप |
|
820. |
सौबल: |
सुबल |
|
821. |
सकृष्ण: स्तोक: |
स्तोककृष्ण |
|
822. |
अंकुश: |
अंकुश |
|
823. |
सद्विशालर्षभाख्य: |
विशाल और ऋषभ नामक दो सखाओं वाले |
|
824. |
सुतेजस्विक: |
श्रेष्ठ तेजस्वी |
|
825. |
कृष्णमित्रो वरूथ: |
श्रीकृष्ण के सखा वरूथ |
|
826. |
कुशेश: |
कुशेश्वर |
|
827. |
वनेश: |
वनेश्वर |
|
828. |
वृन्दावनेश: |
वृन्दावनेश्वर |
|
829. |
माथुरेशाधिप: |
मथुरामण्डल के राजाधिराज |
|
830. |
गोकुलेश: |
गोकुल के स्वामी |
|
831. |
सदा गोगण: |
सदा गौओं के समुदाय के साथ रहने वाले |
|
832. |
गोपति: |
गोस्वामी |
|
833. |
गोपिकाकेश: |
गोपांगनावल्लभ |
|
834. |
गोवर्धन: |
गौओं की वृद्धि करने वाले; गिरिराज गोवर्धन अथवा नामधारी गोप |
|
835. |
गोपति: |
गौओं के पालक |
|
836. |
कन्यकेश: |
गोपकिशोरियों के प्राणवल्लभ |
|
837. |
अनादि: |
जिनका कोई आदिकरण नहीं तथा जो सबके आदि हैं वे |
|
838. |
आत्मा |
अन्तर्यामी परमात्मा |
|
839. |
हरि: |
श्यामवर्ण श्रीकृष्ण |
|
840. |
पर: पुरुष: |
परम पुरुष |
|
841. |
निर्गुण: |
प्राकृत गुणों से अतीत |
|
842. |
ज्योतिरूप: |
ज्योतिर्मय विग्रहवाले |
|
843. |
निरीह: |
चेष्टा या कामना से रहित |
|
844. |
सदा निर्विकार: |
सतत विकारशून्य |
|
845. |
प्रपंचात्पर: |
सकल दृश्य-प्रपंच से परे विराजमान |
|
846. |
ससत्य: |
सत्ययुक्त अथवा सत्या-सत्यभामा से संयुक्त |
|
847. |
पूर्ण: |
परिपूर्ण |
|
848. |
परेश: |
परमेश्वर |
|
849. |
सूक्ष्म: |
सूक्ष्मस्वरूप |
|
850. |
द्वारकायां नृपेण अश्वमेधस्य कर्ता |
द्वारका में राजा उग्रसेन के द्वारा अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान करने वाले |
|
851. |
अपि पौत्रेण भूभारहर्ता |
पुत्र एवं पौत्र के सहयोग से भूमिका भार उतारने वाले |
|
852. |
पुन: श्रीव्रजे राधया रासरंगस्य कर्ता हरि: |
पुन: श्रीव्रज में श्रीराधिका के साथ रास-रंग करने वाले श्रीहरि |
|
853. |
गोपिकानां च भर्ता |
श्रीराधा तथा अन्य गोपकिशोरियों के पति |
|
854. |
सदैक: |
सदा एकमात्र अद्वितीय |
|
855. |
अनेक: |
अनेक रूपों में प्रकट |
|
856. |
प्रभापूरितांग: |
प्रकाशपूर्ण अंग वाले |
|
857. |
योगमायाकार: |
योगमाया के उद्भावक |
|
858. |
कालजित् |
कालविजयी |
|
859. |
सुदृष्टि: |
उत्तम दृष्टि वाले |
|
860. |
महत्तत्त्वरूप: |
महत्तत्त्स्वरूप |
|
861. |
प्रजात: |
उत्कृष्ट अवतारधारी |
|
862. |
कूटस्थ: |
कूटस्थ (निर्विकार) |
|
863. |
आद्यांकुर: |
विश्ववृक्ष के प्रथम अंकुर, ब्रह्मा |
|
864. |
वृक्षरूप: |
विश्ववृक्षरूप |
|
865. |
विकारस्थित: |
विकारों (कार्यों) में भी कारणरूप से विद्यमान |
|
866. |
वैकारिकस्तैजस्तामसक्ष्च अहंकार: |
वैकारिक, तेजस और तामस (अथवा सात्विक, राजस, तामस) त्रिविध अहंकाररूप |
|
867. |
नभ: |
आकाशस्वरूप |
|
868. |
दिक् |
दिशास्वरूप |
|
869. |
समीर: |
वायुरूप |
|
870. |
सूर्य: |
सूर्यस्वरूप |
|
871. |
प्रचेतोश्र्विवन्हि: |
वरुण अश्विनीकुमार एवं अग्निस्वरूप |
|
872. |
शक्र: |
इन्द्र |
|
873. |
उपेन्द्र: |
भगवान् वामन |
|
874. |
मित्र: |
मित्रदेवता |
|
875. |
श्रुति: |
श्रवणेन्द्रिय |
|
876. |
त्वक् |
त्वगिन्द्रिय |
|
877. |
दृक् |
नेत्रेन्द्रिय |
|
878. |
घ्राण: |
नासिकेन्द्रिय |
|
879. |
जिह्वा |
रसनेन्द्रिय |
|
880. |
गिर: |
वागिन्द्रिय |
|
881. |
भुजा |
हस्तस्वरूप |
|
882. |
मेढरक: |
जननेन्द्रियरूप |
|
883. |
पायु: |
‘पायु’ नामक कर्मेन्द्रिय (गुदा) रूप |
|
884. |
गघ्रि: |
‘चरण’ नामक कमेन्द्रियरूप |
|
885. |
सचेष्ट: |
चेष्टाशील |
|
886. |
धरा |
पृथ्वी |
|
887. |
व्योम |
आकाश |
|
888. |
वा: |
जल |
|
889. |
मारुत: |
वायु |
|
890. |
तेज: |
अग्नि (पंचभूतस्वरूप) |
|
891. |
रूपम् |
रूप |
|
892. |
रस: |
रस |
|
893. |
गन्ध: |
गन्ध |
|
894. |
शब्द: |
शब्द |
|
895. |
स्पर्श: |
स्पर्श-विषयरूप |
|
896. |
सचित्त: |
चित्तयुक्त |
|
897. |
बुद्धि: |
बुद्धि |
|
898. |
विराट् |
विराट् |
|
899. |
कालरूप: |
कालस्वरूप |
|
900. |
वासुदेव: |
सर्वव्यापी भगवान |
|
901. |
जगत्कृत् |
संसार के स्त्रष्टा |
|
902. |
अण्डेशयान: |
ब्रह्माण्ड के गर्भ में शयन करने वाले ब्रह्माजी |
|
903. |
सशेष: |
शेष के साथ रहने वाले (अर्थात् शेष शय्याशायी) |
|
904. |
सहस्त्रस्वरूप: |
सहसहस्त्रों स्वरूप धारण करने वालेस्त्रों स्वरूप धारण करने वाले |
|
905. |
रमानाथ: |
लक्ष्मीपति |
|
906. |
आद्योवतार: |
ब्रह्मारूप में जिनका प्रथम बार अवतार हुआ, वे श्रीहरि |
|
907. |
सदा सर्गकृत् |
विधाता के रूप में सदा सृष्टि करने वाले |
|
908. |
पद्मज: |
दिव्य कमल से उत्पन्न ब्रह्मा |
|
909. |
कर्मकर्ता |
निरन्तर कर्म करने वाले |
|
910. |
नाभिपद्मोद्भव: |
नारायण के नाभिकमल से प्रकट ब्रह्मा |
|
911. |
दिव्यवर्ण: |
दिव्य कान्ति से सम्पन्न |
|
912. |
कवि: |
त्रिकालदर्शी अथवा विश्वरूप काव्य के निर्माता आदि कवि |
|
913. |
लोककृत् |
जगत्स्त्रष्टा |
|
914. |
कालकृत् |
काल के निर्माता |
|
915. |
सूर्यरूप: |
सूर्यस्वरूप |
|
916. |
अनिमेष: |
निमेषरहित |
|
917. |
अभव: |
जन्मरहित |
|
918. |
वत्सरान्त: |
संवत्सर के लयस्थान |
|
919. |
महीयान् |
महान् से भी अत्यन्त महान् |
|
920. |
तिथि: |
तिथिस्वरूव |
|
921. |
वार: |
दिन |
|
922. |
नक्षत्रम् |
नक्षत्र |
|
923. |
योग: |
योग |
|
924. |
लग्न: |
लग्नस्वरूप |
|
925. |
मास: |
मासस्वरूप |
|
926. |
घटी |
अर्धमुहूर्तरूप |
|
927. |
क्षण: |
क्षणरूप |
|
928. |
काष्ठिका: |
काष्ठा |
|
929. |
मुहूर्त: |
दो घड़ी का समय |
|
930. |
याम: |
प्रहर |
|
931. |
ग्रहा: |
ग्रहस्वरूप |
|
932. |
यामिनी |
रात्रिरूप |
|
933. |
दिनम् |
दिनरूप |
|
934. |
ऋक्षमालागत: |
नक्षत्रपंक्तियों में गमन करने वाले ग्रहरूप |
|
935. |
देवपुत्र: |
वसुदेवनन्दन |
|
936. |
कृत: |
सत्ययुगरूप |
|
937. |
त्रेयता: |
त्रेता |
|
938. |
द्वापर: |
द्वापररूप |
|
939. |
असौकलि: |
यह कलियुग |
|
940. |
युगानां सहस्त्रम् |
सहस्त्रचतुर्युग (ब्रह्माजी का एक दिन) |
|
941. |
मन्वन्तरम् |
मन्वन्तरकाल |
|
942. |
लय: |
संहाररूप |
|
943. |
पालनम् |
पालनकर्मस्वरूप |
|
944. |
सत्कृति: |
उत्तम सृष्टिरूप |
|
945. |
परार्द्धम् |
परार्द्धकालरूप |
|
946. |
सदोत्पत्तिकृत् |
सदा सृष्टि करने वाले |
|
947. |
द्वयक्षर: ब्रह्मरूप: |
दो अक्षर वाला ‘कृष्ण’ नामक ब्रह्मास्वरूप |
|
948. |
रुद्रसर्ग: |
रुद्रसर्ग |
|
949. |
कौमारसर्ग: |
कौमारसर्ग |
|
950. |
मुने: सर्गकृत् |
मुनिसर्ग के कर्ता |
|
951. |
देवकृत् |
देवसर्ग के रचयिता |
|
952. |
प्राकृत: |
प्राकृतसर्गरूपी |
|
953. |
श्रुति: |
वेद |
|
954. |
स्मृति: |
धर्मशास्त्र |
|
955. |
स्तात्रम् |
स्तुति |
|
956. |
पुराणम् |
पुराण |
|
957. |
धनुर्वेद: |
धनुर्वेद |
|
958. |
इज्या |
यज्ञ |
|
959. |
गान्धर्ववेद: |
गान्धर्ववेद (संगीतशास्त्र) |
|
960. |
विधाता |
ब्रह्मा |
|
961. |
नारायण: |
विष्णु |
|
962. |
सनत्कुमार: |
सनत्कुमार आदि |
|
963. |
वराह: नारद: |
वराहावतार देवर्षि नारदरूप |
|
964. |
धर्मपुत्र: |
धर्म के पुत्र नर-नारायण आदि |
|
965. |
मुनि: कर्दमस्यात्मज: |
कर्दमकुमार कपिल मुनि |
|
966. |
सयज्ञो दत्त: |
यज्ञस्वरूप और दत्तात्रेय |
|
967. |
अमरो नाभिज: |
अविनाशी ऋषभदेव |
|
968. |
श्रीपृथु: |
श्रीमान् राजा पृथु |
|
969. |
सुमत्स्य: |
सुन्दर मस्त्यावतार |
|
970. |
कूर्म: |
कच्छपावतार |
|
971. |
धन्वन्तरि: |
धन्वन्तरि-अवतार |
|
972. |
मोहिनी |
मोहिनी नारी का अवतार |
|
973. |
प्रतापी नारसिंह: |
प्रतापी नृसिंहावतार |
|
974. |
द्विजोवामन: |
ब्राह्मणजातीय वामनावतार |
|
975. |
रेणुकापुत्ररूप: |
परशुरामरूप |
|
976. |
श्रुतिस्तोत्रकर्ता मुनि: व्यासदेव: |
वेदों के विभाजक तथा स्तोत्र आदि के निर्माता मुनिवर व्यासदेव |
|
977. |
धनुर्वेदभाग् रामचन्द्रावतार: |
धनुर्वेद के ज्ञाता श्रीरामचन्द्रावतार |
|
978. |
सीतापति: |
जनकनन्दिनी सीता के पति |
|
979. |
भारहृत् |
भूभार हरण करने वाले |
|
980. |
रावणारि: |
रावण के शत्रु |
|
981. |
नृप: सेतुकृत् |
समुद्र पर पुल बांधने वाले नरेश |
|
982. |
वानरेन्द्रप्रहारी |
वानरराज (बालि) को मारने वाले |
|
983. |
महायज्ञकृत् |
महान् अश्वमेध यज्ञ करने वाले श्रीराम |
|
984. |
प्रचण्ड: राघवेन्द्र: |
प्रचण्ड पराक्रमी रघुनाथजी |
|
985. |
बल: कृष्णचन्द्र: |
बलराम सहित साक्षात् भगवान श्रीकृष्ण |
|
986. |
कल्कि: कलेश: |
‘कल्कि’ नामक अवतार कलाओं के स्वामी |
|
987. |
प्रसिद्धो बुद्ध: |
प्रसिद्ध बुद्धावतार |
|
988. |
हंस: |
हंसावतार |
|
989. |
अश्व: |
हयग्रीवावतार |
|
990. |
ऋषीन्द्रोजित: |
ऋषिप्रवर पुलहपुत्र अजित |
|
991. |
देववैकुण्ठनाथ: |
देवलोक तथा वैकुण्ठलोक के अधिपति |
|
992. |
अमूर्ति: |
निराकार |
|
993. |
मन्वन्तरस्यावतार: |
मन्वन्तरावतार |
|
994. |
गजोद्धारण: |
गज और ग्राह के युद्ध में हाथी को उबारने वाले हरि-अवतार |
|
995. |
ब्रह्मापुत्र: श्रीमनु: |
ब्रह्माजी के पुत्र श्रीस्वायम्भुव मनु |
|
996. |
दानशील: |
दानशील |
|
997. |
दुष्यन्तजो नृपेन्द्र: |
दुष्यन्तकुमार महाराज भरत |
|
998. |
संदृष्ट: श्रुत: भूत: एवं भविष्यत् भवत् |
दृष्ट, श्रुत, भूत, भविष्यत् एवं वर्तमानस्वरूप |
|
999. |
स्थावरो जंगम: |
स्थावरजंगमरूप |
|
1000. |
अल्पं च महत् |
अल्प और महान |
श्रीकृष्ण के अनगिनत स्वरूपों, दिव्य गुणों और लीलाओं का condensed स्वरूप हैं। प्रत्येक नाम (1000 Names of Lord Krishna in hindi) अपने भीतर एक विशिष्ट भावना, एक प्रेरणादायक कथा और आध्यात्मिक संदेश को समाहित करता है। इन नामों का स्मरण न केवल भक्ति का साधन है, बल्कि आत्मा को शांति और जीवन को दिशा देने वाला मार्ग भी है।
इस संग्रह का उद्देश्य है – श्रीकृष्ण के नामों को सरल भाषा में प्रस्तुत कर, हर भक्त को उनके दिव्य स्वरूप से जोड़ना।
यह भी पढ़ें - Radha Rani Ke 28 Naam: राधा रानी के इन 28 नामो को जपने से होती है सभी कामना पूर्ति
Rajeshwari Sharma, with 10+ years of research experience, specializes in stotras and namavalis, curating devotional content that helps readers connect deeply with divine names and traditions.