7 Chiranjeevi: हिंदू धर्म में ऐसे सात महान विभूतियों का वर्णन मिलता है, जिन्हें चिरंजीवी – यानी अमर माना गया है। ये सिर्फ नाम मात्र के महापुरुष नहीं, बल्कि अपनी तपस्या, आचरण, किसी वचन, नियम या फिर मिले हुए शाप के कारण आज भी जीवित माने जाते हैं। इनका जीवन और योगदान इतना गहरा है कि सदियों बाद भी इन्हें श्रद्धा से याद किया जाता है। उनमें वो सभी दिव्य शक्तियाँ विद्यमान हैं, जिनका वर्णन योग में अष्ट सिद्धियों के रूप में किया गया है।
हिंदू शास्त्रों में इन्हें जीवित महामानव कहा गया है — यानी ऐसे महापुरुष जो आज भी इस धरती पर किसी न किसी रूप में विद्यमान हैं। मान्यता है कि इनका स्मरण प्रतिदिन प्रातःकाल करने से व्यक्ति को लंबी उम्र, अच्छा स्वास्थ्य और मानसिक शांति प्राप्त होती है। ये न सिर्फ आध्यात्मिक रूप से उन्नत हैं, बल्कि हमारे लिए प्रेरणा और सुरक्षा का भी प्रतीक हैं। इन सात चिरंजीवियों के नाम (7 Chiranjeevi Name) हैं —
भगवान परशुराम,
राजा बलि,
विभीषण,
हनुमान जी,
महर्षि वेदव्यास,
कृपाचार्य, और
अश्वत्थामा।
ये सभी दिव्य आत्माएं अपने-अपने विशेष गुणों के कारण आदर और श्रद्धा की पात्र हैं। इनका जीवन आज भी हमें यह सिखाता है कि अगर हमारे भीतर सच्ची निष्ठा, धर्म के प्रति आस्था और समर्पण का भाव हो, तो हम किसी भी दौर में आदर्श बन सकते हैं। (7 Chiranjeevi )
परशुराम जी को भगवान विष्णु के अंशावतार के रूप में पूजा जाता है। वे जितने तेजस्वी और ज्ञानी थे, उतने ही धर्म पर अडिग और अधर्म के प्रति क्रोधी भी। परशुराम जी को क्रोध का प्रतीक माना गया है, लेकिन उनका हर क्रोध अत्याचार के विरुद्ध था।उन्होंने कभी भी निर्दोषों पर शस्त्र नहीं उठाया, बल्कि केवल अत्याचारी और भ्रष्ट शासकों को दंडित किया। (7 Chiranjeevi)
ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका के पुत्र परशुराम ने आज्ञाकारी पुत्र और समाज के रक्षक दोनों की भूमिका को निभाया। श्रीराम से भेंट के बाद उन्होंने संसारिक मोह त्यागकर महेंद्रगिरि पर्वत पर तपस्या का मार्ग चुन लिया।
परशुराम ने एक युग में कई बार पृथ्वी को अत्याचारी क्षत्रियों से मुक्त किया।
दैत्य कुल में जन्में राजा बलि ने अपनी दानवीरता और धर्मप्रियता से देवताओं तक को प्रभावित कर दिया। उन्हें दानवों का दानवीर कहा गया है। बलि ने अपने बाहुबल से तीनों लोकों पर विजय प्राप्त की थी, लेकिन जब वामन अवतार में भगवान विष्णु ने तीन पग भूमि मांगी, तो उन्होंने अपना सम्पूर्ण साम्राज्य दान में दे दिया।(7 Chiranjeevi)
यहाँ तक कि जब गुरु शुक्राचार्य ने उन्हें मना किया, तब भी राजा बलि ने अपना वचन नहीं तोड़ा। उन्होंने अपनी बात पर अडिग रहते हुए वामन भगवान को भूमि दान दी और पाताल लोक के राजा बनने के बाद भी अपनी दानवीरता और सत्यनिष्ठा के कारण पूजनीय बने रहे।उनकी पत्नियाँ अशना, विंध्यावली और सुदेष्णा थीं, और वे नर्मदा के उत्तरी तट पर यज्ञ कर रहे थे जब वामन भगवान उनके पास पहुँचे।
राजा बलि को उनकी दानशीलता के लिए आज भी पूजा जाता है। यद्यपि वे दैत्यराज थे, फिर भी धर्म और वचन के पालन में उन्होंने देवताओं को भी पीछे छोड़ दिया।
विभीषण को आज भी 'घर का भेदी लंका ढाए' जैसे मुहावरे से याद किया जाता है, लेकिन सच्चाई इससे कहीं गहरी है। वे न तो धोखेबाज थे, न ही सत्ता के लालची। उन्होंने कई बार अपने भाई रावण को समझाया कि सीता को श्रीराम को लौटा दें और धर्म के मार्ग पर चलें। पर जब रावण ने उनकी एक न सुनी और उन्हें लंका से अपमानित कर निकाल दिया, तब विभीषण ने धर्म और राष्ट्रहित को प्राथमिकता दी। उन्होंने रावण का साथ छोड़कर श्रीराम का समर्थन किया और अधर्म पर धर्म की विजय में अपना योगदान दिया। (7 Chiranjeevi Name)

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वेदव्यास का जन्म महर्षि पराशर और मछुआरा कन्या सत्यवती से हुआ था। वे काले रंग के कारण ‘कृष्ण’ और द्वीप पर जन्म लेने के कारण ‘द्वैपायन’ कहलाए। बाद में वे अपने विशाल ज्ञान और लेखन के कारण वेदव्यास कहलाए। उन्होंने न केवल 'महाभारत' जैसे महान ग्रंथ की रचना की—जिसे पंचम वेद की मान्यता मिली है—बल्कि चारों वेदों का विभाजन कर उन्हें जनमानस के लिए सुलभ बनाया। यही नहीं, 18 पुराणों और वेदांत सूत्र जैसे गूढ़ ग्रंथों की रचना भी उन्हीं के ज्ञान का परिणाम है। माता सत्यवती के आग्रह पर उन्होंने नियोग परंपरा के तहत धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर जैसे महान चरित्रों को जन्म देकर इतिहास की दिशा ही बदल दी। (7 Chiranjeevi Name)
कृपाचार्य महाभारत काल के ऐसे योद्धा थे जो न केवल असाधारण शिक्षक थे, बल्कि कौरवों और पांडवों दोनों के कुलगुरु भी रहे। उन्होंने अस्त्र-शस्त्र विद्या सिखाई और युद्ध में कौरवों की ओर से हिस्सा लिया। उनकी बहन कृपी का विवाह गुरु द्रोणाचार्य से हुआ था। युद्ध में हार के बाद भी कृपाचार्य ने पांडवों के शासन में उनका साथ दिया। वे एक ऐसे गुरु थे जो परिस्थिति के अनुसार स्वयं को ढालना जानते थे।
गुरु द्रोणाचार्य और गौतमी के पुत्र अश्वत्थामा अपार शक्ति और योगबल के धनी थे, लेकिन उनका क्रोध और अहंकार उनके पतन का कारण बना। महाभारत युद्ध के बाद, उन्होंने प्रतिशोध में पांडवों के पांचों पुत्रों की हत्या कर दी। यह अधर्मपूर्ण कार्य उन्होंने रात में युद्ध नियमों का उल्लंघन कर किया, जिसके परिणामस्वरूप श्रीकृष्ण ने उन्हें श्राप दिया कि वे अनंतकाल तक जीवित रहेंगे, मस्तक से मणि निकाल ली जाएगी, और वह घाव हमेशा रिसता रहेगा। (7 Chiranjeevi Name list)
हनुमान जी भगवान शिव के ग्यारहवें रूद्र अवतार हैं, और वानरराज केसरी व माता अंजना के पुत्र हैं। उनका जीवन रामभक्ति की पराकाष्ठा है। उन्होंने श्रीराम की सेवा में जो समर्पण दिखाया, वह आज भी हर भक्त के लिए प्रेरणा है। चाहे वह लंका दहन हो, संजीवनी बूटी लाना हो या राम के प्रति अटूट निष्ठा—हनुमान का हर कार्य 'दास्य भाव' का उत्कृष्ट उदाहरण है।
ये सात चिरंजीवी (7 Chiranjeevi) केवल पौराणिक कथाओं के पात्र नहीं हैं, बल्कि हमारे लिए ऐसे प्रेरणास्त्रोत हैं जो यह सिखाते हैं कि जब किसी व्यक्ति के जीवन में शक्ति, ज्ञान, आस्था और त्याग का संतुलन होता है, तब वह वास्तव में महानता की मिसाल बन जाता है।
इन महापुरुषों का जीवन आज भी प्रेरणा का स्रोत है। चाहे बात हो अन्याय के खिलाफ उठ खड़े होने की, या फिर दान, वचन और सेवा जैसे गुणों की—ये सभी चिरंजीवी (7 Chiranjeevi) हमारे संस्कारों और मूल्यों के संरक्षक हैं। इनका स्मरण न सिर्फ श्रद्धा का विषय है, बल्कि जीवन जीने की कला भी सिखाता है। आज के समय में भी इनके गुणों से प्रेरणा लेकर हम एक बेहतर समाज की दिशा में बढ़ सकते हैं।
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Rajeshwari Sharma, with 10+ years of research experience, specializes in stotras and namavalis, curating devotional content that helps readers connect deeply with divine names and traditions.