February 13, 2025 Blog

Baisakhi 2025: बैसाखी का त्यौहार कब और क्यों मनाते है ? जानिए बैसाखी की सम्पूर्ण जानकारी

BY : Neha Jain – Cultural & Festival Content Writer

Baisakhi 2025: बैसाखी का त्योहार पूरे देश में बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है। बैसाखी का त्योहार हर साल वैशाख महीने में धूमधाम से मनाया जाता है। वैसे तो पूरे वर्ष कई पर्व और त्योहार मनाए जाते हैं, लेकिन बैसाखी विशेष रूप से फसल कटाई और नए वसंत के आगमन का प्रतीक मानी जाती है। जिससे किसानों के लिए यह खुशहाली और समृद्धि का समय होता है। इसे वैसाखी, वैशाखी या फसल पर्व के नाम से भी जाना जाता है।  विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा में इसे धूमधाम से मनाया जाता है, जहां सिख समुदाय इसे पूरी ऊर्जा और उत्साह के साथ मनाता है।हिंदू समुदाय के लिए यह पर्व नए साल की शुरुआत का प्रतीक है और भारत के विभिन्न हिस्सों में इसे अलग-अलग परंपराओं के साथ मनाया जाता है।

साल 2025 (Baisakhi 2025) में यह शुभ पर्व कब मनाया जाएगा? बैसाखी का महत्व और इसे मनाने की परंपराएं क्या हैं? जानने के लिए आगे पढ़ें।

बैसाखी कब और क्यों मनाई जाती है? (When & Why Is Baisakhi Celebrated)

बैसाखी का पर्व (Baisakhi 2025 Date) हर वर्ष 13 या 14 अप्रैल को मनाया जाता है। यह पूरे भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, विशेष रूप से पंजाब में, जहां सिख समुदाय गुरुद्वारों और खेतों में विशेष समारोहों का आयोजन करता है।

इस दिन को सिखों के लिए खास माना जाता है क्योंकि 1699 में इसी दिन गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। कहा जाता है कि आनंदपुर साहिब में एक विशाल जनसमूह के सामने गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा योद्धा-संतों के पहले समूह की घोषणा की थी।

उन्होंने भीड़ से अपनी जान समर्पित करने की इच्छा रखने वालों को सामने आने की चुनौती दी और प्रत्येक बार जब कोई आगे आया, तो वे उसे तंबू के अंदर ले गए और खून से सनी तलवार के साथ बाहर लौटे। इस घटना के बाद, उन्होंने "पंज प्यारे" की स्थापना की, जिनके नाम थे—भाई दया सिंह, भाई हिम्मत सिंह, भाई साहिब सिंह, भाई मुहकम सिंह और भाई धरम सिंह।

गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ के अनुयायियों के लिए "पांच ककार" धारण करने की परंपरा स्थापित की, जो हैं—

  1. कचेरा (एक विशेष प्रकार का वस्त्र)
  2. कंघा (कंघी)
  3. कड़ा (लोहे का कड़ा)
  4. कृपाण (छोटी तलवार)
  5. केश (बिना कटे बाल)

बैसाखी (Baisakhi 2025) का यह पावन पर्व न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह किसानों के लिए भी बेहद खास है, क्योंकि यह नई फसल की कटाई का प्रतीक भी माना जाता है।

बैसाखी का महत्व (Significance Of Baisakhi)

बैसाखी का पर्व न केवल सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से, बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह दिन सिख समुदाय के लिए विशेष महत्व रखता है क्योंकि इसी दिन खालसा पंथ की स्थापना हुई थी। वहीं, हिंदू धर्म में यह कई आध्यात्मिक मान्यताओं से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि बैसाख माह से भगवान बद्रीनाथ की यात्रा का शुभारंभ होता है। पद्म पुराण में इस दिन स्नान करने का विशेष महत्व बताया गया है। इसके अलावा, सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने यानी मेष संक्रांति के कारण यह दिन ज्योतिषीय रूप से भी शुभ माना जाता है। यही कारण है कि इस दिन से सौर नववर्ष की शुरुआत भी होती है।

बैसाखी (Baisakhi 2025) उन तीन प्रमुख त्योहारों में से एक है, जिन्हें सिखों के तीसरे गुरु, गुरु अमर दास जी ने मनाने की परंपरा शुरू की थी। यह पर्व सिख धर्म के अंतिम गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी के राज्याभिषेक और खालसा पंथ की स्थापना के प्रतीक के रूप में भी मनाया जाता है। यही वजह है कि बैसाखी सिख समुदाय के लिए अत्यधिक पवित्र और महत्वपूर्ण पर्व है।

यह पर्व देश के अन्य राज्यों में भी अलग-अलग नामों से मनाया जाता है— पश्चिम बंगाल में पोहेला बोइशाख, तमिलनाडु में पुथंडु, असम में बोहाग बिहु, केरल में पूरामुद्दीन, उत्तराखंड में बिहू, ओडिशा में महा विष्णु संक्रांति, और आंध्र प्रदेश व कर्नाटक में उगादी के रूप में इसे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

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बैसाखी कैसे मनाई जाती है? (How To Celebrate Baisakhi)

बैसाखी का पर्व मुख्य रूप से गुरुद्वारों या खुले मैदानों में धूमधाम से मनाया जाता है, जहां लोग भांगड़ा और गिद्दा जैसे पारंपरिक नृत्य करते हैं। इस खास दिन को मनाने की परंपराएं इस प्रकार हैं:

  • लोग प्रातःकाल उठकर गुरुद्वारे में जाकर अरदास (प्रार्थना) करते हैं।
  • गुरुद्वारे में गुरुग्रंथ साहिब जी के स्थान को जल और दूध से शुद्ध किया जाता है।
  • इसके बाद पवित्र ग्रंथ को ससम्मान ताज के साथ उसके स्थान पर स्थापित किया जाता है।
  • श्रद्धालु ध्यानपूर्वक गुरुग्रंथ साहिब का पाठ सुनते हैं और गुरुवाणी का अनुसरण करते हैं।
  • इस दिन विशेष रूप से अमृत तैयार किया जाता है, जिसे श्रद्धालुओं में वितरित किया जाता है।
  • परंपरा के अनुसार, अनुयायी एक पंक्ति में खड़े होकर अमृत को पाँच बार ग्रहण करते हैं।
  • दोपहर में अरदास के बाद गुरुग्रंथ साहिब को भोग अर्पित किया जाता है, जिसके बाद श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरित किया जाता है।
  • अंत में सभी लोग मिलकर लंगर का प्रसाद ग्रहण करते हैं।

बैसाखी (Baisakhi 2025) का यह उत्सव केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक भी है, जिसमें श्रद्धालु पूरे उत्साह और भक्ति के साथ भाग लेते हैं।


किसानों का त्योहार बैसाखी

बैसाखी का पर्व ((Baisakhi Festival) किसानों के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इस समय सूर्य की स्थिति में परिवर्तन होता है, जिससे धूप तेज हो जाती है और गर्मी की शुरुआत होती है। सूरज की गर्माहट के कारण रबी की फसल पककर तैयार हो जाती है, जिसे किसान हर्षोल्लास के साथ एक उत्सव के रूप में मनाते हैं। अप्रैल के महीने में सर्दियों का अंत हो जाता है और गर्मी का मौसम शुरू होता है, जिससे मौसम में बदलाव का भी यह पर्व प्रतीक बनता है।

बैसाखी से जुड़ी पौराणिक मान्यता (Mythological Belief Related to Baisakhi)

ऐसा माना जाता है कि सिखों के 9वें गुरु, गुरु तेग बहादुर, मुग़ल शासक औरंगज़ेब के खिलाफ संघर्ष करते हुए शहीद हो गए थे। वे उस समय हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों के विरोध में लड़ रहे थे। उनकी शहादत के बाद उनके पुत्र, गुरु गोबिंद सिंह, सिखों के अगले गुरु बने।

सन् 1650 के दौरान पंजाब मुग़लों और अन्य शासकों के अत्याचारों से त्रस्त था। समाज में अन्याय बढ़ रहा था, और लोगों को न्याय की कोई उम्मीद नहीं थी। ऐसे कठिन समय में गुरु गोबिंद सिंह ने लोगों को अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया और उनमें साहस का संचार किया। उन्होंने आनंदपुर में सिख समुदाय को संगठित करने के लिए एक सभा बुलाई।

इस सभा में उन्होंने तलवार उठाकर उपस्थित लोगों से पूछा कि उनमें से कौन वीर योद्धा अन्याय के विरुद्ध लड़ने और शहीद होने के लिए तैयार है। इस आह्वान पर पाँच वीर योद्धा आगे आए, जिन्हें "पंच प्यारे" कहा गया और इन योद्धाओं ने खालसा पंथ की स्थापना की। यही कारण है कि बैसाखी (Baisakhi 2025) का पर्व न केवल कृषि उत्सव बल्कि सिख धर्म में खालसा पंथ के जन्म की स्मृति में भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।


बैसाखी समारोह (Baisakhi Festival)

बैसाखी (Baisakhi 2025) के अवसर पर लोग उत्साहपूर्वक नाचते-गाते हैं और नए कपड़े पहनकर त्यौहार का आनंद लेते हैं। इस दिन होने वाली परेड को देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग एकत्रित होते हैं। पुरुष पारंपरिक भांगड़ा नृत्य प्रस्तुत करते हैं, जबकि महिलाएँ गिद्दा करती हैं। इस उत्सव में स्वादिष्ट व्यंजन और मिठाइयाँ तैयार की जाती हैं, जिन्हें लोग एक-दूसरे के साथ साझा करते हैं। यह सिख समुदाय के लिए विशेष महत्व रखता है, जो इस दिन भव्य जुलूस निकालते हैं और पूरे जोश के साथ पर्व को मनाते हैं। खासतौर पर, पंजाब और हरियाणा में बैसाखी का त्यौहार बड़े पैमाने पर हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

सिख समुदाय के लोग इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं, नए वस्त्र धारण करते हैं और फिर विशेष प्रार्थना के लिए गुरुद्वारे जाते हैं। सामूहिक अरदास के बाद श्रद्धालुओं को कड़ा प्रसाद वितरित किया जाता है। इसके बाद, वे सेवा भाव से तैयार किए गए लंगर का आनंद लेते हैं।

यह त्यौहार स्कूलों, कॉलेजों और अन्य सार्वजनिक स्थलों पर भी मनाया जाता है, जहां विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। गुरुद्वारे इस दिन विशेष रूप से सजाए जाते हैं और वहां भजन-कीर्तन आयोजित किए जाते हैं, जो श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देते हैं। बैसाखी 2025 (Baisakhi 2025) में भी इसी जोश और उल्लास के साथ मनाए जाने की उम्मीद है।

बैसाखी के अनुष्ठान (Rituals of Baisakhi)

बैसाखी के दिन सिख समुदाय के लोग सुबह जल्दी उठकर गुरुद्वारों में सामूहिक प्रार्थना में भाग लेते हैं। इस दौरान गुरु ग्रंथ साहिब को विशेष रूप से दूध और जल से शुद्ध किया जाता है। श्रद्धालुओं को प्रसाद एवं मिठाइयाँ वितरित की जाती हैं।

दोपहर में, गुरु ग्रंथ साहिब की भव्य परेड निकाली जाती है, जिसमें श्रद्धालु पूरे उत्साह के साथ भाग लेते हैं। ये परंपराएँ बैसाखी 2025 में भी इसी श्रद्धा और भक्ति के साथ निभाई जाएंगी।

निष्कर्ष (Conclusion)

बैसाखी (Baisakhi 2025) केवल एक त्यौहार नहीं, बल्कि संस्कृति, परंपरा और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। यह किसानों के लिए फसल कटाई का उत्सव है, वहीं सिख समुदाय के लिए खालसा पंथ की स्थापना का महत्वपूर्ण दिन। गुरुद्वारों में विशेष प्रार्थनाएँ, परेड, लंगर और पारंपरिक नृत्य इसे और भी उल्लासपूर्ण बनाते हैं। बैसाखी न केवल आध्यात्मिक जागरूकता बल्कि सामूहिक एकता और खुशहाली का संदेश भी देती है।


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Author: Neha Jain – Cultural & Festival Content Writer

Neha Jain is a festival writer with 7+ years’ experience explaining Indian rituals, traditions, and their cultural meaning, making complex customs accessible and engaging for today’s modern readers.