कन्या लग्न में दूसरे भाव में तुला राशि में राहु गुप्त रोग का कारक है जैसे बवासीर, गुप्तांश रोग आदि ।
केतु यदि कन्या लग्न में अष्टम भाव में तो उदर रोग, रीड की हड्डी के रोग होने की सम्भावना होती है । पंचमेश यदि द्वादश में हो तो गर्भ में कष्ट होता है, पंचमेश यदि अष्टम में हो तो गर्भ में असह्नीय पीड़ा होती है ।
कन्या लग्न में चतुर्थ भाव में शुक्र पर राहु, शनि या मंगल का प्रभाव हो तो हृदय की बीमारी हो सकती है ।
किसी जातक की कुंडली में केतु यदि तीसरे भाव में हो तो उसकी कमर में दर्द या घुटने में दर्द होता है ।
जब किसी जातक की कुंडली में चन्द्रमा की दशा या अंतर दशा हो तो उस व्यक्ति को पेट के रोग व जल से सम्बंधित रोग होने की प्रबल सम्भावना रहती है ।
यदि वृश्चिक लग्न हो और पंचम भाव में शुक्र पर पाप प्रभाव हो तो वह किडनी के रोग, नाभि की समस्या तथा किडनी में स्टोन इत्यादि रोग हो सकते है ।
यदि जातक की कुंडली में कन्या लग्न में षष्ठम भाव में शुक्र हो तो शुगर की बीमारी, नसों के रोग देता है ।
यदि मकर लग्न में सातवे भाव में मंगल हो तो व्यक्ति को रक्तचाप की समस्या, त्वचा के रोग, रक्तदोष की समस्या रह सकती है । यदि कन्या लग्न में दूसरे भाव में राहु हो तो यह गुप्त रोग का कारक है ।
यदि कुंडली में जिस भाव में चन्द्रमा स्थित है उससे षष्ठम भाव में सूर्य पीड़ित हो तो वह पाचन अंगो तथा अंतड़ियो से सम्बंधित रोग देता है ।