शिव भक्तों को सावन माह का बेसब्री से इंतजार रहता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, सावन पंचांग का पांचवां महीना है। यह पूरा महीना मुख्य रूप से भगवान शिव को समर्पित है। सावन में कांवर यात्रा का विशेष महत्व माना जाता है। ऐसे में आइए जानते हैं कांवर यात्रा से जुड़े जरूरी नियम.
Kanwar Yatra: कावड़ यात्रा शिवभक्तों की तीर्थयात्रा है। कांवर लाने वाले भक्तों को कांवडि़यों के नाम से जाना जाता है। यह एक कठिन यात्रा है, क्योंकि पूरी यात्रा पैदल ही की जाती है। हर साल सावन शिवरात्रि पर लाखों की संख्या में कांवरिए हरिद्वार से पवित्र गंगा जल लाते हैं और अपने क्षेत्र के शिव लिंगों में जलाभिषेक करते हैं।

सावन का महीना शुरू होते ही श्रद्धालु अपने-अपने स्थानों से उत्तराखंड के हरिद्वार, गौमुख और गंगोत्री जैसे स्थानों से गंगा नदी का पवित्र जल लाने के लिए निकल पड़ते हैं। इसके बाद शिव भक्त कलश में गंगा तट से गंगा जल भरकर उसे अपनी कांवर (Kanwar Yatra) में बांधकर अपने कंधे पर लटकाते हैं। इसके बाद वे इसे अपने क्षेत्र के शिव मंदिर में लाते हैं और इस गंगा जल से शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। शास्त्रों में माना जाता है कि भगवान परशुराम ने सबसे पहले कांवर यात्रा शुरू की थी।
यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को सात्विक भोजन ही करना चाहिए। साथ ही इस दौरान किसी भी प्रकार के नशे, मांस, शराब या तामसिक भोजन आदि से दूर रहना चाहिए। यात्रा के दौरान इस बात का भी विशेष ध्यान रखा जाता है कि कांवर को जमीन पर न रखा जाए। ऐसा होने पर कांवर यात्रा अधूरी मानी जाती है. ऐसी स्थिति में कांवरिया को फिर से कांवर पात्र (Kanwar Yatra) में पवित्र जल भरना पड़ता है।
कांवर यात्रा (Kanwar Yatra) पूरी तरह से पैदल की जाती है, इसके लिए किसी भी प्रकार के वाहन का उपयोग नहीं किया जाता है। कावड़ को हमेशा स्नान करने के बाद ही छुआ जाता है। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि यात्रा के दौरान कांवरिया की त्वचा त्वचा से न छूए और न ही कांवरिया को किसी के ऊपर से ले जाया जाए. साथ ही भोलेनाथ की कृपा के लिए कांवर यात्रा के दौरान हर समय भगवान शिव का नाम जपते रहना चाहिए।
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Neha Jain is a festival writer with 7+ years’ experience explaining Indian rituals, traditions, and their cultural meaning, making complex customs accessible and engaging for today’s modern readers.