Janmashtami : जन्माष्टमी, कुंजबिहारी की आरती
BY : STARZSPEAK
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जन्माष्टमी मनाई जाती है।धार्मिक मान्यता के अनुसार द्वापर युग में इसी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था।इसीलिए हर साल इस दिन भगवान मुरलीवाले के भक्त उनकी पूजा करते हैं, उपवास रखते हैं और उनकी पूजा करने के लिए अनुष्ठान और अनुष्ठान करते हैं।कहा जाता है कि भगवान कृष्ण की पूजा करने से भक्तों के सभी प्रकार के कष्ट और दुख दूर हो जाते हैं, उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और सनातन धार्मिक अनुष्ठानों में आरती भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। पूजा के अंत में, पूजा में किसी भी त्रुटि के लिए क्षमा और आरती के लिए प्रार्थना की जाती है। इसके बाद पूजा का पूरा फल मिलता है। जन्माष्टमी के पावन पर्व पर यहां पढ़ें भगवान कृष्ण की आरती।भगवान कृष्ण की आरती इस प्रकार है
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला ।
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला ।
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली ।
लतन में ठाढ़े बनमाली भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक,
ललित छवि श्यामा प्यारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की...॥
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं ।
गगन सों सुमन रासि बरसै ।
बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग,
अतुल रति गोप कुमारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की...॥
जहां ते प्रकट भई गंगा, सकल मन हारिणि श्री गंगा ।
स्मरन ते होत मोह भंगा
बसी शिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच,
चरन छवि श्रीबनवारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की...॥
चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू ।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू
हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद, कटत भव फंद,
टेर सुन दीन दुखारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की...॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥