September 27, 2018 Blog

एकादश रूद्राभिषेक से शिव जी क्या फल प्रदान करते है...जानिए यहां

BY : Neha Jain – Cultural & Festival Content Writer

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By: Manmeet Kaur Tura

जब भी शिवजी की भक्ति की बात आती है वहां पर रूद्राभिषेक जरूर किया जाता है। भगवान शिव जी की कठिन भक्ति और फल की प्राप्ति के लिए लोग आदि काल से रूद्राभिषेक करते आए है। लेकिन रूद्राभिषेक का अर्थ क्या होता है और क्यों करना चाहिए।इसके करने से शिवजी प्रसन्न होकर अपने भक्त को कौनसा फल प्रदान करते है। चलिए बताते है आपकों।

सबसे पहले आपकों बता दें कि रूद्राभिषेक का अर्थ होता है – रूद्र +अभिषेक। अर्थात रूद्र यानि कि शिवलिंग और अभिषेक यानि स्नान। अर्थात शिवजी जिनकों रूद्र भी कहा जाता है, उनकों स्नान करवाया जाता है। और यह शिव स्नान कोई साधारण नहीं होता बल्कि पूरे भाव-भक्ति के साथ रूद्र मंत्रों के साथ किया जाता है। रूद्राभिषेक करना शिव अराधना का सर्वश्रेष्ठ तरीका माना जाता है। रूद्राभिषेक मंत्रों का वर्णन हमारे शास्त्रों और पुराणों में है। साथ ही कहते है कि हमारे वेदों ऋग्वेद,यजुर्वेद, और सामवेद में भी इसका वर्णन किया गया है।


वैसे तो रूद्राभिषेक कई प्रकार का होता है। एक: रूद्राभिषेक, तृतीय रूद्राभिषेक और नवम् रूद्राभिषेक और एकादश रूद्राभिषेक होता है। जब भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है, तो रूद्राष्टाध्याय के मंत्रों का उच्चारण कर अभिषेक करना रूद्राभिषेक का पूर्ण माना जाता है। और इसी वजह से सबसे शक्तिशाली और बलशाली एकादश रूद्राभिषेक माना जाता है। कहते है यदि कोई शिव भक्त एकादश रूद्राभिषेक से शिव की अराधना करते है तो भगवान शिव बेहद और जल्दी प्रसन्न होतें है। 



एकादश रूद्राभिषेक कैसे और किस विधि से किया जाता है वह इस प्रकार से है-

रूद्राष्टाध्यायी के मन्त्रों के उच्चारण के साथ जल, दूध, पंचामृत, आमरस, गन्ने का रस, नारियल का जल और गंगाजल आदि से शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है, वही रूद्राभिषेक कहलाता है। शिवपुराण के अनुसार भक्त को अपने पवित्र मन, वचन, और कर्म द्वारा भगवान शूलपाणि का रूद्राष्टाध्यायी के मन्त्रों से अभिषेक करने से मनुष्य की समस्त कामनाओं की पूर्ति हो जाती है। और मृत्यु के बाद उस मनुष्य को परम गति की प्राप्ति होती है।

रूद्राष्टाध्यायी में वैसे तो 10 अध्याय है लेकिन 8 अध्याय उत्तम माने गए है। और सर्वश्रेष्ठ रूद्री, लघुरूद्र, महारूद्र और अतिरूद्र माना गया है। यह रूष्टाध्यायी के पांचवें अध्याय में है जिसमें रूद्राअध्याय की 11 आवृत्ति  और शेष अध्याय की एक आवृत्ति के साथ अभिषेक से एक रूद्राभिषेक या एकादश अभिषेक कहलाता है।

एकादश रूद्राभिषेक के बाद 11 बार लघुरूद्र फिर लघुरूद्र के बाद 11 बार महारूद्र  के पाठ से अतिरूद्र का अनुष्ठान होता है।

एकादश रूद्राभिषेक से क्या फल प्राप्त होता है-

  1. यदि किसी मनुष्य को रोगों से छुटाकारा चाहिए तो उस मनुष्य को कुशा लगाकर जलधारा से एकादश रूद्राभिषेक करना चाहिए।
  2. पशुधन की प्राप्ति के लिए किसी भी मनुष्य को दही की धारा से रूद्राभिषेक करना चाहिए।
  3. यदि किसी व्यक्ति को अपने वंश का विस्तार करना है तो उस जातक को शिव का घी की धारा से अभिषेक करना चाहिए इससे उस जातक का वंश सदैव सुरक्षित और बना रहता है।
  4. यदि किसी व्यक्ति को शत्रु का नाश करना है तो उस जातक को चमेली के तेल की धारा से एकादश रूद्राभिषेक करना चाहिए। इससे उस मनुष्य को शत्रु भय नही होता है।
  5. किसी जातक को अधिक धनवान बनना है या लक्ष्मी की प्राप्ति करनी है तो उस जातक को गन्ने के रस से भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए।
  6. और भी कई प्रकार की परेशानियों को दूर करने के लिए और शारीरिक और मानसिक शान्ति की प्राप्ति के लिए घी,दूध,दही,शक्कर,शहद से निर्मित पंचामृत से मन्त्रों के साथ एकादश रूद्राभिषेक करना चाहिए।
Author: Neha Jain – Cultural & Festival Content Writer

Neha Jain is a festival writer with 7+ years’ experience explaining Indian rituals, traditions, and their cultural meaning, making complex customs accessible and engaging for today’s modern readers.