माँ चंद्रघंटा नवरात्रि के तीसरे दिन अपने भक्तो को दर्शन देती है | नवरात्रि के तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा की उपासना की जाती है | माँ के मस्तक पर घंटे के आकर का अर्धचंद्र होने के कारण माँ का नाम चंद्रघंटा पड़ा | माँ चंद्र घंटा सिंह की सवारी करती है जो वीरता और साहस का प्रतीक है | माँ अपने दस हाथो में अस्त्र-शस्त्र धारण कर अपने भक्तो की रक्षा करती है | माँ स्त्री की अदम्य शक्ति का प्रतीक है | माँ सदा ही अपने भक्तो की रक्षा के लिए युद्ध को उद्धत रहती है और नकारात्मकता का विनाश करती है | माँ के घंटे की प्रचंड ध्वनि से ही नकारात्मकता का अंत हो जाता है | माँ बुराई के लिए विध्वंसकारी है तो अपने भक्तो के लिए शांत और कल्याणकारी स्वरूप है| माँ सोने के समान शरीर वाली सुंदर कांतियुक्त है और माँ की आराधना से व्यक्ति का भविष्य भी सोने की कांति के समान सुंदर हो जाता है और उसका यश सभी दिशाओ में फैलता है |माँ अलौकिक एवं पारलौकिक सुख प्रदान करने वाली है |
माँ चंद्रघंटा की उपासना से उपासक का मन मणिपूरक चक्र में स्थापित होता है | माँ चद्रघंटा की उपासना से साधक को साहस और सुख -शांति की प्राप्ति होती है | माँ चंद्रघंटा की आराधना से यश , कीर्ति और सम्मान की प्राप्ति होती है | माँ चंद्रघंटा की कृपा से शत्रु पर विजय प्राप्त होती है | माँ चंद्रघंटा शक्ति की अधिष्ठात्री देवी है माँ की कृपा से शारीरिक स्वास्थ्य एवं शक्ति प्राप्त होती है | माँ चंद्रघंटा मन की नकारात्मकता का विनाश कर मानसिक शांति प्रदान करती है | माँ चंद्रघंटा की कृपा से व्यक्ति रोगमुक्त होकर लम्बी और स्वस्थ्य आयु प्राप्त करता है |
Neha Jain is a festival writer with 7+ years’ experience explaining Indian rituals, traditions, and their cultural meaning, making complex customs accessible and engaging for today’s modern readers.