जब भी कोई व्यक्ति अपनी कुंडली दिखाने जाता है, तो अक्सर कुछ सवाल सामने आते हैं — जैसे कि कुंडली में दोष क्या होता है? कितने प्रकार के दोष होते हैं? ये दोष बनते कैसे हैं? और सबसे ज़रूरी – क्या इनका समाधान संभव है?
असल में, कुंडली हमारे भविष्य की एक झलक होती है। यह बताती है कि हमारे जीवन में कौन-कौन से उतार-चढ़ाव आ सकते हैं और क्यों। कुंडली में मौजूद ग्रहों की स्थिति, उनकी चाल और आपसी संबंध ही तय करते हैं कि किसी व्यक्ति के जीवन में कौन से योग (अवसर) और कौन से दोष (रुकावटें) होंगे।
हर ग्रह की अपनी एक ऊर्जा होती है। जब ये ग्रह किसी अशुभ स्थिति में आ जाते हैं, या एक-दूसरे से विपरीत ढंग से जुड़ते हैं, तो कुंडली में कुछ नकारात्मक योग बन जाते हैं, जिन्हें दोष कहा जाता है। ये दोष जीवन में कठिनाइयों का कारण बन सकते हैं। सकारात्मक बात यह है कि ज्योतिष में इन दोषों के उपाय और निवारण भी बताए गए हैं। सही मार्गदर्शन और नियमित पूजा, उपाय या मंत्रों के जाप से इन दोषों के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
इसलिए, अगर आप अपनी कुंडली में दोष देखते हैं तो घबराएं नहीं, बल्कि समझदारी से उसका समाधान तलाशें। दोष चाहे कोई भी हो, आस्था और सही सलाह से उसका असर कम किया जा सकता है। आइए जानते है कि कुंडली में कितने प्रकार के दोष होते है ।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, हर व्यक्ति की कुंडली में ग्रहों की स्थिति उसके जीवन पर गहरा असर डालती है। अगर ग्रहों की चाल ठीक न हो या कुछ विशेष योग बनें, तो कुंडली में कई तरह के दोष उत्पन्न हो जाते हैं, जो जीवन में अनेक प्रकार की परेशानियाँ खड़ी कर सकते हैं। आइए कुछ प्रमुख दोषों को सरल भाषा में समझते हैं:
जब कुंडली में शनि की स्थिति ठीक नहीं होती, तो यह शनि दोष कहलाता है। इससे व्यक्ति को समाज में अपमान, काम में रुकावट और नौकरी या व्यापार में नुकसान जैसी समस्याएं झेलनी पड़ती हैं।
अगर मंगल ग्रह लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या दशम भाव में स्थित हो, तो कुंडली में मांगलिक दोष बनता है। इससे विवाह में देरी या बाधा, रक्त संबंधित बीमारियाँ और ज़मीन-जायदाद से जुड़े विवाद हो सकते हैं।
जब सभी ग्रह राहु और केतु के बीच आ जाएं, तो कालसर्प योग बनता है। इससे जीवन में अस्थिरता, धन हानि और संतान संबंधी परेशानियाँ हो सकती हैं।
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यदि कुंडली में चंद्रमा के साथ राहु पहले भाव में हो, और पंचम या नवम भाव में कोई क्रूर ग्रह हो, तो इसे प्रेत दोष माना जाता है। इससे जातक पर नकारात्मक ऊर्जाओं या बुरी आत्माओं का प्रभाव हो सकता है।
जब सूर्य, चंद्र, शनि या राहु में से कोई दो ग्रह एक ही घर में स्थित हों, तो पितृ दोष बनता है। यह दोष अक्सर पूर्वजों की असमाप्त क्रियाओं या उनके अटके हुए संस्कारों के कारण होता है। इससे संतान सुख में बाधा आती है और जीवन में बार-बार रुकावटें आती हैं।
अगर गुरु (बृहस्पति) और राहु एक ही घर में बैठ जाएं, तो चाण्डाल दोष बनता है। इसका असर व्यक्ति की सोच, संगत और निर्णयों पर पड़ता है और वह गलत दिशा में चला जाता है।
जब सूर्य या चंद्रमा राहु या केतु के साथ युति करते हैं, तो ग्रहण दोष बनता है। इससे व्यक्ति में आत्मविश्वास की कमी, डर और निर्णयों में अस्थिरता देखी जाती है। ऐसे लोग अक्सर काम अधूरे छोड़ देते हैं।
अगर सूर्य और चंद्रमा एक ही भाव में हों, तो अमावस्या दोष बनता है। इससे चंद्रमा कमजोर हो जाता है और व्यक्ति को मानसिक तनाव, भ्रम और जीवन में अनिश्चितता का सामना करना पड़ता है।
9. केमद्रुम दोष (Kemdrum Dosh)जब चंद्रमा के दोनों ओर के घर खाली हों यानी चंद्रमा के पास कोई ग्रह न हो, तो केमद्रुम दोष बनता है। यह दोष मानसिक कमजोरी, अकेलेपन और आर्थिक संघर्ष की ओर संकेत करता है।
इन दोषों को जानना इसलिए जरूरी है ताकि हम समय रहते उनके उपाय कर सकें और जीवन में संतुलन, सफलता और शांति ला सकें। कुंडली के इन दोषों का निवारण संभव है—बस सही मार्गदर्शन और सच्ची श्रद्धा की जरूरत होती है।
जब किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली (Janam Kundali) में ग्रहों की स्थिति अनुकूल न होकर नकारात्मक हो जाती है, तो वहां दोष उत्पन्न होने लगते हैं। जैसे कि कोई ग्रह नीच का हो जाए, अशुभ भाव में बैठ जाए या फिर पाप ग्रह जैसे शनि, राहु या केतु आपके लग्न या चंद्र राशि को प्रभावित करने लगें — ऐसी स्थितियाँ कुंडली में दोष का कारण बनती हैं। कई बार ये दोष केवल इस जन्म से नहीं, बल्कि पूर्व जन्म के कर्मों से भी जुड़े होते हैं। जब कोई ग्रह पीड़ित हो जाता है, तो उसके शुभ फल नहीं मिलते, बल्कि जीवन में रुकावटें, तनाव या हानि का सामना करना पड़ता है।
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यह दोष की प्रकृति और उसकी स्थिति पर निर्भर करता है। कुछ दोष थोड़े समय के लिए असर डालते हैं, वहीं कुछ दोष दीर्घकालिक प्रभाव छोड़ते हैं। जैसे:
यदि कुंडली में कोई ग्रह नीच स्थिति में हो, तो उसका असर जीवनभर बना रह सकता है — खासकर जब तक उसकी शांति या उपाय न किए जाएं। श्रापित दोष, जो राहु और शनि के मेल से बनता है, अक्सर पूर्व जन्म के कर्मों का फल माना जाता है और इसके लिए विशेष उपाय की आवश्यकता होती है।
जी हां, जहां समस्या होती है, वहां उसका समाधान भी होता है। ज्योतिष शास्त्र में विभिन्न प्रकार के उपाय बताए गए हैं जैसे:
हालांकि यह जरूरी नहीं कि दोष पूरी तरह समाप्त हो जाए, लेकिन ग्रहों को बल प्रदान कर उनके दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है। इससे जीवन में स्थिरता और संतुलन आता है।
अगर आपको ज्योतिष (Jyotish) की अच्छी समझ है, तो आप तकनीकी माध्यमों से अपनी कुंडली का आकलन कर सकते हैं। लेकिन हम यही सुझाव देंगे कि कुंडली का विश्लेषण किसी अनुभवी ज्योतिषाचार्य से करवाएं। मशीन या ऐप आपकी कुंडली के योग (Kundali Yoga) और दोष तो बता सकते हैं, लेकिन हर ग्रह की गहराई, उसकी दशा, दिशा और प्रभाव को सही तरह से केवल एक जानकार ही समझा सकता है।
अगर आप भी अपनी कुंडली में दोषों (Kundali dosha)को लेकर चिंतित हैं, तो उचित मार्गदर्शन और उपाय के ज़रिए जीवन को फिर से संतुलित और सुखद बना सकते हैं। ज्योतिष केवल डराने के लिए नहीं, बल्कि समाधान दिखाने के लिए है।
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