March 6, 2025 Blog

Shani jayanti 2025: शनि जयंती कब है, इस दिन शनि देव की कृपा पाने के लिए करे खास उपाय

BY : STARZSPEAK

Shani jayanti 2025:  शनि जयंती, जिसे शनिश्चरी अमावस्या भी कहा जाता है, सनातन धर्म में एक विशेष पर्व के रूप में मनाई जाती है। इस दिन भगवान शनि की पूजा कर उनके आशीर्वाद की कामना की जाती है।

हिंदू धर्म और ज्योतिष शास्त्र में भगवान शनि, सूर्य देव के पुत्र के रूप में, एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। वे न्याय के देवता माने जाते हैं और हर व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते हैं—अच्छे कर्मों का सुखद परिणाम और बुरे कर्मों का दंड। इस दिन भक्तगण शनि देव को प्रसन्न करने के लिए विशेष पूजा, दान और उपाय करते हैं, जिससे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और शांति बनी रहे।

शनि जयंती 2025: तिथि और पूजा समय (Shani Jayanti 2025: Date and Puja Time)

हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास की अमावस्या को शनि जयंती (Shani Jayanti) मनाई जाती है। यह दिन शनि देव की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। खासतौर पर वे भक्त जो शनि की साढ़े साती, ढैय्या या महादशा से गुजर रहे हैं, इस दिन पूजा-अर्चना करने से शुभ फल प्राप्त कर सकते हैं।

इस वर्ष शनि जयंती (Shani Jayanti 2025 Date) 27 मई 2025, मंगलवार को पड़ेगी। इस दिन शनि देव की विशेष पूजा करने से तुरंत लाभ मिल सकता है। ध्यान रखें कि शनि देव के दर्शन सीधे उनकी मूर्ति की आंखों में नहीं करना चाहिए, बल्कि उनके चरणों की ओर देखने का विधान है। इससे शनि देव की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में शांति व समृद्धि आती है।

शनि जयंती 2025: पूजा का शुभ समय (Shani Jayanti 2025: Auspicious Time for Puja)

  • अमावस्या तिथि प्रारंभ: 26 मई 2025, दोपहर 12:11 बजे
  • अमावस्या तिथि समाप्त: 27 मई 2025, सुबह 08:31 बजे

इस अवधि के दौरान शनि जयंती की पूजा (Shani Jayanti Puja) करना अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है।


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शनि जयंती पर कैसे करें शनि देव की पूजा?

शनि जयंती (Shani Jayanti 2025) पर विशेष पूजा करने से शनि देव की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में शांति एवं समृद्धि आती है। इस दिन विधिपूर्वक पूजा करने के लिए इन चरणों का पालन करें:

  • स्नान एवं तैयारी: प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • आसन की स्थापना: पूजा के लिए एक चौकी पर काले वस्त्र बिछाएं और उस पर शनि देव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  • दीप एवं धूप अर्पण: शनि देव के समक्ष सरसों के तेल या घी का दीप जलाएं और धूप दिखाएं।
  • अभिषेक: शनि देव की प्रतिमा को पंचगव्य, पंचामृत और इत्र से स्नान कराएं।
  • श्रृंगार एवं भोग: शनि देव को कुमकुम, काजल, अबीर, गुलाल और पुष्प अर्पित करें। भोग में इमरती या तेल से बनी मिठाई चढ़ाएं।
  • मंत्र जाप: पूजा के बाद शनि मंत्र की एक माला (108 बार) जपें।
  • शनि चालीसा पाठ: जाप के बाद शनि चालीसा का पाठ करें।
  • आरती: अंत में शनिदेव की आरती करें और पूजा संपन्न करें।

इस विधि से पूजा करने पर शनि देव की विशेष कृपा प्राप्त होती है और जीवन में आने वाली बाधाओं से मुक्ति मिलती है। पूजा विधि के दौरान मन में लगातार शनि के किसी एक मंत्र का जाप करना चाहिए। शनि का यह मंत्र भी है उन्हें प्रिय- 

ॐ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम। छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम् ।

शनि जयंती का ज्योतिषीय महत्व (Astrological Significance of Shani Jayanti)

वैदिक ज्योतिष में शनि देव को नवग्रहों में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है, जिन्हें न्याय का देवता माना जाता है। वे कर्मों के अनुसार फल देने वाले ग्रह हैं और सबसे धीमी गति से चलने वाले ग्रहों में से एक हैं। ज्योतिष शास्त्र में शनि की कठोर दृष्टि को अशुभ माना जाता है, इसलिए उन्हें पाप ग्रह भी कहा जाता है। शनि मकर और कुंभ राशियों के स्वामी हैं और इनका रंग काला होता है। इनके कुल नौ वाहन बताए गए हैं।

ऐसा विश्वास किया जाता है कि यदि किसी व्यक्ति पर शनि की दृष्टि पड़ जाए, तो उसे कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। लेकिन यह भी सत्य है कि शनि देव सदैव बुरा नहीं करते—यदि वे किसी पर अनुकंपा कर दें, तो उसे रंक से राजा बना सकते हैं। शनि जयंती (Shani Jayanti) के दिन यदि कोई व्यक्ति श्रद्धा और समर्पण के साथ उनकी पूजा करता है, तो वह उनकी कृपा शीघ्र प्राप्त कर सकता है।


शनि जयंती का महत्व (Significance of Shani Jayanti)

सनातन धर्म में भगवान शनि को न्याय और कर्मों के दाता के रूप में पूजा जाता है। शनि जयंती का दिन उनकी विशेष उपासना के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। जो लोग अपने जीवन में मेहनत, अनुशासन और ईमानदारी से कार्य करते हैं, उन्हें शनि देव का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

जिन लोगों की कुंडली में शनि ग्रह अशुभ स्थिति में हो, या जो शनि की साढ़े साती और ढैया के प्रभाव से संघर्ष कर रहे हों, उनके लिए शनि जयंती का दिन विशेष रूप से फलदायी होता है। इस दिन शनि देव की पूजा और उपासना से कठिनाइयों में कमी आती है और जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं।

शनि देव को पश्चिम दिशा का स्वामी माना जाता है और वे सौरी, मंदा, नील, यम, कपिलक्ष और छाया पुत्र जैसे नामों से भी प्रसिद्ध हैं। यह भी मान्यता है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवनकाल में शनि की साढ़े साती के प्रभाव से अवश्य गुजरता है। इस दौरान शनि देव व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार अच्छे या बुरे फल प्रदान करते हैं।

इसलिए शनि जयंती (Shani Jayanti) के दिन विशेष रूप से उपवास, शनि देव की पूजा और मंदिर में जाकर दर्शन करने से सौभाग्य और कष्टों से मुक्ति प्राप्त होती है। जो लोग शनि की साढ़े साती के प्रभाव से गुजर रहे हैं, उन्हें नियमित रूप से भगवान शनि की आराधना करनी चाहिए ताकि उनके जीवन में संतुलन और सफलता बनी रहे।

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शनि देव की जन्म कथा (Birth Story of Shani Dev)

स्कंदपुराण के काशीखंड के अनुसार, शनि देव भगवान सूर्य और छाया देवी (संवर्णा) के पुत्र हैं।

कथा के अनुसार, सूर्य देव का विवाह प्रजापति की पुत्री संज्ञा से हुआ। संज्ञा अपने पति से बहुत प्रेम करती थीं, लेकिन उनका तेजस्वी स्वरूप (अग्नि रूप) उनके लिए सहन करना कठिन था। समय के साथ, उन्हें तीन संतानें हुईं—वैवस्वत मनु, यमराज और यमुना।

हालाँकि, सूर्य के प्रचंड तेज को सहन करने में असमर्थ संज्ञा ने घोर तपस्या करने का निर्णय लिया, लेकिन अपने कर्तव्यों और परिवार को छोड़ना आसान नहीं था। इसलिए उन्होंने अपनी छाया (प्रतिरूप) बनाई, जिसका नाम संवर्णा रखा।

संज्ञा ने संवर्णा को अपने स्थान पर सूर्यदेव की सेवा करने और बच्चों का पालन-पोषण करने की जिम्मेदारी सौंपी, यह राज केवल उन दोनों के बीच ही था। इसके बाद, संज्ञा अपने पिता के पास गईं, लेकिन उन्होंने उन्हें समझाकर वापस लौटने के लिए कहा। तब संज्ञा ने वन में जाकर एक घोड़ी का रूप धारण कर कठोर तपस्या शुरू कर दी।

उधर, सूर्य देव को इस बात का ज़रा भी आभास नहीं हुआ कि उनके साथ संज्ञा नहीं, बल्कि संवर्णा रह रही हैं। संवर्णा ने पति धर्म निभाते हुए तीन संतानें—मनु, शनिदेव और भद्रा को जन्म दिया। इस प्रकार, शनि देव का जन्म भगवान सूर्य और उनकी छाया संवर्णा के पुत्र के रूप में हुआ।


शनि जयंती पर ज़रूर करें ये खास उपाय (Do Special Remedies on Shani Jayanti)

शनि जयंती (Shani Jayanti) के दिन कुछ विशेष उपाय करने से शनि देव की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में आ रहे कष्टों और परेशानियों से मुक्ति मिलती है।

  • पीपल के पेड़ की पूजा करें – सुबह स्नान के बाद पीपल की जड़ में जल अर्पित करें और दीपक जलाएं। इससे शनि दोष से राहत मिलती है और सौभाग्य बढ़ता है।
  • पीपल का वृक्ष लगाएं – यदि संभव हो तो इस दिन पीपल का पौधा लगाना शुभ माना जाता है। यह शनि देव की कृपा प्राप्त करने का एक उत्तम उपाय है।
  • दान करें – शनि देव से संबंधित चीज़ें जैसे काले कपड़े, काले तिल, सरसों का तेल, लोहे का सामान आदि ज़रूरतमंदों को दान करें। इससे नकारात्मक ऊर्जा कम होती है और पुण्य की प्राप्ति होती है।
  • भगवान शिव का अभिषेक करें – इस दिन काले तिल मिले जल से भगवान शिव का अभिषेक करने से शनि दोष का प्रभाव कम होता है।
  • हनुमान जी की आराधना करें – शनि देव के साथ हनुमान जी की पूजा करने से जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं और शनि देव की कृपा प्राप्त होती है।
  • सरसों के तेल का दान करें – एक कटोरी में सरसों का तेल लें, उसमें अपना चेहरा देखें और फिर इस तेल को किसी शनि मंदिर में दान कर दें। यह उपाय विशेष रूप से शनि दोष के निवारण के लिए किया जाता है।

इन आसान उपायों को अपनाकर आप शनि देव की कृपा पा सकते हैं और जीवन में आने वाली बाधाओं को कम कर सकते हैं।

निष्कर्ष

भगवान शनि केवल कठोर दंड देने वाले देवता नहीं हैं, बल्कि वे सच्चे कर्मयोगी को आशीर्वाद भी प्रदान करते हैं। यदि व्यक्ति सच्चे मन से शनि जयंती पर व्रत (Shani Jayanti Vrat), पूजा और दान करता है, तो शनि देव की कृपा से जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं। इसलिए, इस पावन अवसर पर भक्तों को शनि देव की उपासना कर उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को सफल और समृद्ध बनाने का संकल्प लेना चाहिए।


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