Pitru Paksha 2023: आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 07 अक्टूबर को सुबह 08:08 बजे तक है. इसके बाद नवमी तिथि शुरू हो जाएगी. जितिया व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं व्रत रखती हैं।
सनातन पंचांग के अनुसार 6 अक्टूबर को पितृ पक्ष की अष्टमी तिथि है. इस दिन कालाष्टमी, बिहार का प्रसिद्ध त्योहार जितिया और मासिक कृष्ण जन्माष्टमी भी है। इसलिए पितृ पक्ष की अष्टमी तिथि पर एक साथ कई शुभ योग बन रहे हैं। ज्योतिषियों के मुताबिक, पितृ पक्ष की अष्टमी तिथि पर 'सर्वार्थ सिद्धि योग' बन रहा है। इसके अलावा पितृ पक्ष की अष्टमी तिथि पर कई दुर्लभ संयोग भी बन रहे हैं। इससे 3 राशि वालों को करियर और बिजनेस में फायदा मिलेगा। आइये जानते हैं इसके बारे में सबकुछ-
आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 07 अक्टूबर को सुबह 08:08 बजे तक है. इसके बाद नवमी तिथि शुरू हो जाएगी. जितिया व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं व्रत रखती हैं। साथ ही वैष्णव समुदाय के लोग जगत के पालनकर्ता भगवान श्री कृष्ण की पूजा करते हैं।
पितृ पक्ष की अष्टमी तिथि पर सर्वार्थ सिद्धि योग का निर्माण संध्याकाल 09 बजकर 32 मिनट से लेकर अगले दिन सुबह 06 बजकर 17 मिनट तक है।

आश्विन माह में अष्टमी तिथि पर संध्याकाल 07 बजकर 17 मिनट तक बालव करण का निर्माण हो रहा है। इसके पश्चात, कौलव करण रात्रि भर है। बालव और कौलव करण शुभ कार्यों के लिए श्रेष्ठ माना जाता है।
पितृ पक्ष की अष्टमी तिथि यानी कालाष्टमी पर किसी समय रुद्राभिषेक कर सकते हैं। इस दिन भगवान शिव माता पार्वती के साथ रहेंगे। इस दौरान रुद्राभिषेक करने से घर में सुख, समृद्धि और खुशहाली आती है।
आश्विन माह की अष्टमी तिथि 06 अक्टूबर को सुबह 06 बजकर 34 मिनट से शुरू होगी और अगले दिन 07 अक्टूबर को सुबह 08 बजकर 08 मिनट पर समाप्त होगी।
पितृ पक्ष की अष्टमी तिथि पर दुर्लभ शिव योग बन रहा है। भगवान शिव की पूजा कर्क, मकर और कुंभ राशि के लोग करते हैं। इसलिए इन तीन राशि के जातकों पर भगवान शिव की विशेष कृपा बरसेगी। अगर आप अपनी आय और सौभाग्य में वृद्धि करना चाहते हैं तो पितृ पक्ष की अष्टमी तिथि पर गंगा जल में काले तिल मिलाकर भगवान शिव का अभिषेक करें।
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Neha Jain is a festival writer with 7+ years’ experience explaining Indian rituals, traditions, and their cultural meaning, making complex customs accessible and engaging for today’s modern readers.