Shani Dev Mantra: शनि देव को करना है प्रसन्न तो शनिवार को ज़रूर करें इन 8 मंत्रों का जाप

Shani Dev Mantra: शनि देव को करना है प्रसन्न तो शनिवार को ज़रूर करें इन 8 मंत्रों का जाप

जब कोई अच्छे कर्म करता है तो उसे सौभाग्य का फल मिलता है। जब कोई बुरा काम करता है तो उसे सजा मिलती है। इसलिए शनिदेव को न्याय का देवता कहा जाता है। शनि की साढ़े साती जब किसी पर होती है तो उस व्यक्ति को भी आर्थिक परेशानी होती है। लोगों का मानना है कि जो व्यक्ति शनिवार के दिन सच्ची आस्था और भक्ति से शनिदेव की पूजा करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। शनि देव भगवान कृष्ण के बहुत ही खास भक्त हैं, इसलिए कहा जाता है कि भगवान कृष्ण की पूजा करने से शनि की राह में आने वाली सभी बाधाएं भी दूर हो जाती हैं। यह शनिवार शनि देव को समर्पित है इसलिए लोग अपनी मनोकामना को और आसानी से पूरा कर सकते हैं अगर वो शनि देव मन्त्र का जाप साफ़ मन से करे तो। 

शनिवार के दिन शनिदेव की पूजा की जाती है। शनि देव की विधिपूर्वक पूजा करने के लिए कुछ नियमों का पालन करना चाहिए और इस दिन ऐसा करना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त, यह सलाह दी जाती है कि देवता का आशीर्वाद पाने के लिए शनिवार के दिन बहुत अधिक धन खर्च न करें। शनि देव पर ध्यान केंद्रित करने के लिए शनिवार के दिन करें इन मंत्रों का जाप।

1- सेहत के लिए शनि देव मंत्र 

ध्वजिनी धामिनी चैव कंकाली कलहप्रिहा।

कंकटी कलही चाउथ तुरंगी महिषी अजा।।

शनैर्नामानि पत्नीनामेतानि संजपन् पुमान्।

दुःखानि नाश्येन्नित्यं सौभाग्यमेधते सुखमं।।

2- तांत्रिक शनि देव मंत्र 

ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।

3- ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌।

उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।।

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Shani Dev Mantra
4- शनि देव महामंत्र

ॐ निलान्जन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।

छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम॥

5- शनि देव मंत्र दोष निवारण 

ऊँ त्रयम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम।

उर्वारुक मिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मा मृतात।।

6- पौराणिक शनि देव मंत्र मंत्र

ऊँ ह्रिं नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।

छाया मार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।।

7- शनि देव मंत्र वैदिक 

ऊँ शन्नोदेवीर-भिष्टयऽआपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिस्त्रवन्तुनः।

8- शनि देव गायत्री मंत्र

ऊँ भगभवाय विद्महैं मृत्युरुपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोद्यात्।

ॐ शन्नोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।शंयोरभिश्रवन्तु नः।

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