वनवास के दौरान जब पांडव अपने जीवन की रक्षा के लिए जंगलों में भटक रहे थे, उसी समय भीम का सामना हिडिम्बा नामक राक्षसी से हुआ। हिडिम्बा से भीम को एक वीर पुत्र प्राप्त हुआ, जिसे घटोत्कच के नाम से जाना गया। घटोत्कच का एक महान पुत्र हुआ - बर्बरीक। इन दोनों ही योद्धाओं की वीरता और अद्वितीय शक्तियों की गाथाएँ आज भी सुनाई जाती हैं।
भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक की यह इच्छा स्वीकार की और उनके सिर को युद्ध स्थल के निकट एक पहाड़ी पर रख दिया, जहाँ से वह पूरे युद्ध को देख सकें। युद्ध के उपरांत जब पांडव इस बात पर बहस करने लगे कि विजय का श्रेय किसे जाता है, तो बर्बरीक ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह जीत केवल भगवान श्रीकृष्ण के कारण ही संभव हुई है।
श्रीकृष्ण बर्बरीक के इस महान बलिदान और निस्वार्थ भक्ति से अति प्रसन्न हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया कि कलियुग में वे श्याम के नाम से पूजे जाएँगे। यही कारण है कि आज भी खाटू श्याम के रूप में बर्बरीक की पूजा की जाती है, और लोग उनकी असीम कृपा के लिए श्रद्धा के साथ उनका स्मरण करते हैं।
महाभारत के ऐतिहासिक युद्ध से पहले, जब कौरव और पांडव युद्धभूमि में आमने-सामने थे, तब बर्बरीक ने यह निश्चय किया कि वह इस महासमर को देखेगा। बर्बरीक की प्रतिज्ञा थी कि वह हमेशा उस पक्ष का साथ देंगे जो कमजोर होगा। जब उन्होंने युद्ध में भाग लेने की तैयारी की, तो वे अपने गुरु को वचन दे चुके थे कि वह केवल एक ही दिन में युद्ध का निर्णय कर देंगे। बर्बरीक ने युद्ध में भाग लेने का संकल्प लिया और अपने साथ केवल तीन बाण लेकर चल पड़े। उनके पास यह शक्ति थी कि इन तीन बाणों से ही वे पूरे युद्ध का अंत कर सकते थे।
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श्रीकृष्ण, जो पहले से ही युद्ध का परिणाम जानते थे, चिंतित हो गए कि बर्बरीक के इस निर्णय से कहीं पांडवों की हार न हो जाए। भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक की इस प्रतिज्ञा के बारे में सुना, तो श्री कृष्णा ने उनकी परीक्षा लेने का निर्णय किया । वे एक ब्राह्मण के वेश में बर्बरीक के पास पहुंचे और उनसे पूछा कि वे युद्ध में किसका पक्ष लेंगे। बर्बरीक ने उत्तर दिया कि वह हमेशा कमजोर का साथ देंगे। इस पर श्रीकृष्ण ने उन्हें समझाया कि युद्ध में परिस्थितियां बदलती रहती हैं और यदि वह कमजोर पक्ष का साथ देंगे, तो इससे युद्ध का निर्णय नहीं हो पाएगा।
श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उनकी शक्ति की परीक्षा लेनी चाही और उनसे पूछा कि उनके तीन बाण कितनी शक्ति रखते हैं। बर्बरीक ने उन्हें बताया कि एक बाण से वह पूरे संसार को बांध सकते हैं और दूसरे बाण से उसे समाप्त कर सकते हैं।
Khatu Shyam Story: भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से युद्ध में शामिल न होने का आग्रह किया, क्योंकि उनकी प्रतिज्ञा के कारण युद्ध का परिणाम प्रभावित हो सकता था। श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि यदि वे कमजोर पक्ष का साथ देंगे, तो युद्ध का परिणाम बदल जाएगा। भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उनका सिर दान में मांगा। बर्बरीक ने निसंकोच अपना सिर दान कर दिया, लेकिन एक इच्छा जताई कि वह युद्ध देखना चाहते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक की यह इच्छा स्वीकार की और उनके सिर को युद्ध स्थल के निकट एक पहाड़ी पर रख दिया, जहाँ से वह पूरे युद्ध को देख सकें। युद्ध के उपरांत जब पांडव इस बात पर बहस करने लगे कि विजय का श्रेय किसे जाता है, तो बर्बरीक ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह जीत केवल भगवान श्रीकृष्ण के कारण ही संभव हुई है।
बर्बरीक के इस महान बलिदान के कारण श्रीकृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि कलियुग में तुम *श्याम* के नाम से पूजे जाओगे और जो भी सच्चे दिल से तुम्हारी भक्ति करेगा, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी। इस तरह बर्बरीक खाटू श्याम जी के रूप में पूजे जाने लगे।
खाटू श्याम जी(Khatu Shyam Story) का प्रसिद्ध मंदिर राजस्थान के सीकर जिले के खाटू गाँव में स्थित है। यह मंदिर खाटू श्याम जी की अनन्य भक्ति और श्रद्धा का प्रमुख स्थल है, और यहाँ पर साल भर लाखों भक्त दर्शन के लिए आते हैं।
खाटू श्याम जी को "कलियुग के देवता" के रूप में माना जाता है, जो अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूरा करते हैं। लोग यहाँ आकर सच्चे मन से प्रार्थना करते हैं और श्याम बाबा उनकी सभी इच्छाओं को पूरा करते हैं।
यह मंदिर भगवान श्रीकृष्ण के बर्बरीक के प्रति वरदान और बर्बरीक के बलिदान की कहानी को जीवित रखता है। इसलिए इसे भक्ति, त्याग और बलिदान का प्रतीक माना जाता है।
खाटू श्याम मंदिर में हर साल फाल्गुन शुक्ल पक्ष में विशाल मेला लगता है, जिसमें देश-विदेश से लाखों भक्त भाग लेने आते हैं। इस मेले में भक्त भजन-कीर्तन, जागरण, और श्याम बाबा की भक्ति में लीन रहते हैं।
श्याम बाबा की मूर्ति अपने आप में अद्भुत है। यह मूर्ति काले संगमरमर से बनी हुई है और भगवान श्याम को उनके असली रूप में दिखाती है, जो हर भक्त के मन में अद्वितीय श्रद्धा जगाती है।
खाटू श्याम मंदिर सिर्फ धार्मिक आस्था का केंद्र नहीं है, बल्कि यह एक प्रमुख पर्यटन स्थल भी है, जहाँ श्रद्धालु अपनी आत्मा को शांति देने के लिए आते हैं। यहाँ की भव्यता और दिव्यता हर किसी का मन मोह लेती है।
खाटू श्याम जी की पूजा में शुद्धता और भक्ति का विशेष महत्व है। यहाँ भक्त माला और नारियल चढ़ाते हैं। खाटू श्याम जी को चूरमे का भोग बहुत पसंद है, इसलिए भक्त विशेष रूप से यह भोग अर्पित करते हैं। इस मंदिर में भजन-कीर्तन और जागरण का भी आयोजन होता है, जिसमें भक्त श्याम बाबा के नाम के गीत गाते हुए पूरी रात गुजारते हैं।
खाटू श्याम जी की कथा (Khatu Shyam ji Story) हमें यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति और त्याग से भगवान प्रसन्न होते हैं। बर्बरीक का बलिदान और उनके प्रति श्रीकृष्ण का वरदान, दोनों ही इस मंदिर के महत्व को दर्शाते हैं। जो भी सच्चे मन से खाटू श्याम जी की भक्ति करता है, उसकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। इसी विश्वास और श्रद्धा के साथ हर साल लाखों भक्त यहाँ आते हैं और श्याम बाबा की कृपा का अनुभव करते हैं।
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