उत्तर भारत में गोवधन पूजा का त्यौहार काफी हर्षोलास से मनाया जाता है | इस दिन लोग गाय के गोबर से गोवेर्धन पर्वत देवता की पूजा करते है और वर्ष भर खुशहाली की कामना करते है | इस पर्व को मनाए जाने के पीछे की कथा कुछ इस प्रकार है | बात महाभारत काल की है जब श्री कृष्ण जी छोटे थे उस समय दिवाली के अगले दिन अर्थात परेवा के दिन लोग भगवन इंद्रा की पूजा करते थे| एक बार गोकुल में अकाल पड़ा हुआ था और और दिवाली के अगले दिन इंद्रदेव की पूजा होनी थी| सभी गांव वाले परेशान थे कल पूजा में में यदि इंद्रदेव की पूजा और उपासना में अन्न और मिष्टान आदि का भोग नहीं लगाया तो इंद्रा देव नाराज हो जायेंगे | श्री कृष्ण जी ने गाँव वालों से कहा की हमें इंद्रा देव की पूजा नहीं करनी चाहिए अगर इंद्रा देव चाहे तो अकाल से मुक्ति मिल सकती है परन्तु वे इस अकाल को दूर नहीं कर रहे है उससे अच्छा तो ये गोवेर्धन पर्वत है जिसमे हमारे पशु चरते है | इससे हमें ईंधन हेतु लकड़ी मिलती है और इससे हमें अनेक प्रकार की भोज्य वस्तुए मिलती है | गाँव वाले कृष्ण की बात मान गए उन्होंने ने इंद्रा देव की जगह उस दिन गोवेर्धन की पूजा की जिससे भगवान् इन्द्र कुपित हो गए और उन्होंने इतनी वर्षा की की पूरा गोकुल जलमग्न हो गया इस पर भगवन श्री कृष्ण ने गोवेर्धन पर्वत को अपनी तर्जनी पे उठा लिया और गाँव वालो को शरण दी | जब इंद्रा भगवन कृष्ण से जीत ना सके तो उनका घमंड चूर हुआ और वे श्री कृष्ण की शरण में आ गए और उसी दिन से दीपावली के अगले दिन को गोवेर्धन पूजा के रूप में मनाया जाने लगा |
पूजन विधि:- इस दिन महिलाये गाय के गोबर से लीपकर उसके गोबर से ही घर बनाती है और ५ अनाजों से और दूब घास से उस घर को सजाती है | और भगवान गोवर्धन और श्री कृष्ण की पूजा करती है | शाम को उस गोबर के बने घर से अनाज और दूब सहित पर्वत बनाती है और उसमे दीपक जलाती है|