Sharad Purnima 2025: भारत के प्रमुख पावन त्योहारों में शरद पूर्णिमा का विशेष स्थान है। हमारे सनातन धर्म के कई ग्रंथों में इसकी महिमा का विस्तार से उल्लेख मिलता है। ऐसा माना जाता है कि इस रात चंद्र देव अपनी शांत और शीतल किरणों के माध्यम से अमृततुल्य ऊर्जा का संचार करते हैं। इस दिन की सबसे खास बात है खीर का प्रसाद, जो भक्तजन चंद्रमा को अर्पित करने के बाद रातभर चाँदनी में रखकर अगले दिन श्रद्धा से ग्रहण करते हैं। सदियों से चले आ रहे इस पर्व की मान्यता है कि शरद पूर्णिमा का व्रत करने से शरीर और मन दोनों की शुद्धि होती है, और व्यक्ति कई रोगों से मुक्त रहता है।
भारतीय पंचांग के अनुसार, शरद पूर्णिमा का पर्व हर साल अश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है, जो आमतौर पर सितंबर या अक्टूबर महीने में आती है। साल 2025 (Sharad Purnima 2025 Date) में यह शुभ तिथि 6 अक्टूबर को पड़ेगी।
इस दिन पूजा-पाठ और धार्मिक कार्यों के लिए विशेष मुहूर्त का ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है। चोघड़िया मुहूर्त के अनुसार, दिनभर के अलग-अलग समयों में शुभ, लाभदायक और अमृत योग बनते हैं, जिनमें पूजा करना अत्यंत फलदायक माना जाता है। इसलिए इस पावन दिन पर शुभ समय में ही व्रत, पूजन और चंद्रमा को अर्घ्य देने की परंपरा निभाई जाती है।
ऐतिहासिक रूप से यह पर्व सतयुग से मनाया जाता आ रहा है और भारत के साथ-साथ नेपाल और बांग्लादेश में भी इसे श्रद्धा से मनाया जाता है। इस दिन को देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग नामों से जाना जाता है—जैसे कुमार पूर्णिमा, कौमुदी पूर्णिमा या नवान्न पूर्णिमा। खासतौर पर बंगाल, ओडिशा, असम और बिहार के मिथिला क्षेत्र में यह दिन मां लक्ष्मी की विशेष पूजा के लिए जाना जाता है, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि यह रात्रि स्वयं देवी लक्ष्मी के स्वरूप का प्रतीक होती है।
शरद पूर्णिमा 2025 (Sharad Purnima 2025) एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक पर्व है, जिसमें चंद्रमा के सम्पूर्ण स्वरूप की आराधना की जाती है। इस दिन चंद्र देव अपनी सभी 16 कलाओं के साथ आकाश में उदित होते हैं, जो दिव्यता और पूर्णता का प्रतीक मानी जाती हैं। भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, हर कला इंसान की एक विशेष क्षमता का प्रतीक होती है, और जब सभी सोलह कलाएं एक साथ होती हैं, तो वह व्यक्तित्व पूर्णता की ओर अग्रसर होता है। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण इन सभी 16 कलाओं से युक्त थे।
इस दिन चंद्रमा की किरणों में औषधीय और सेहतमंद गुण समाए होते हैं। कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा अमृत बरसाता है। इसी विश्वास के साथ श्रद्धालु इस दिन दूध और चावल से बनी खीर तैयार करते हैं और उसे खुले आसमान के नीचे चंद्र प्रकाश में रख देते हैं, ताकि उसकी ऊर्जा और दिव्यता उस मिष्ठान में समाहित हो जाए। यह खीर अगली सुबह प्रसाद के रूप में सभी को बांटी जाती है।
शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) का यह दिन नवविवाहित महिलाओं के लिए भी खास माना जाता है, क्योंकि वे इसी दिन से व्रत की परंपरा की शुरुआत करती हैं। माता लक्ष्मी से जुड़ा यह पर्व धन, सौभाग्य और वैभव की प्राप्ति के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन पूरी रात लक्ष्मी पूजन करने से कुंडली में लक्ष्मी योग न होने पर भी जीवन में समृद्धि का आगमन होता है।
शरद पूर्णिमा का पर्व (Sharad purnima Vrat) भगवान श्रीकृष्ण की रासलीला से सम्बंधित है, इसलिए इसे 'रास पूर्णिमा' भी कहा जाता है। मान्यता है कि इसी रात श्रीकृष्ण ने ब्रज की गोपियों के साथ दिव्य रास रचाया था। वृंदावन और बृज क्षेत्र में इस दिन का पर्व बड़े धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
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शरद पूर्णिमा के दिन को पवित्र और शुभ माना जाता है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करके अपने इष्ट देव का ध्यान करना चाहिए। इसके बाद इंद्र देव और माता महालक्ष्मी की पूजा की जाती है। पूजा में घी के दीपक जलाकर उनकी आरती की जाती है।
इस दिन खीर का विशेष महत्व होता है। ब्राह्मणों को खीर खिलाना और उन्हें यथाशक्ति दान-दक्षिणा देना शुभ माना जाता है। रात्रि के समय चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही भोजन करना चाहिए। मंदिरों में भी खीर का दान करना परंपरा का हिस्सा है।
व्रत के दौरान व्रती जल, फल या केवल सात्विक आहार ग्रहण करते हैं। इस दिन काले रंग से परहेज करना चाहिए और चमकदार सफेद या हल्के रंग के कपड़े पहनना शुभ होता है, क्योंकि ये शुद्धता और पवित्रता के प्रतीक माने जाते हैं।
मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की किरणों में अद्भुत औषधीय गुण होते हैं, जो स्वास्थ्य को लाभ पहुंचाते हैं। रात के समय 10 बजे से 12 बजे तक चांदनी में टहलने से शरीर को सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।
खीर को खास तौर पर चांदी के बर्तन में बनाकर चांदनी रात में खुले आसमान के नीचे रखा जाता है। चांदी की प्रवृत्ति रोगाणुओं को दूर रखने में मदद करती है और खीर में औषधीय गुणों को संरक्षित रखती है।
यह रात विशेष रूप से दमा रोगियों के लिए भी लाभकारी मानी गई है। कहा जाता है कि इस रात औषधियों को खीर में मिलाकर उसे चांदनी में रख दिया जाता है और सुबह 4 बजे उसका सेवन करने से रोग में राहत मिलती है। इसके बाद हल्की सैर यानी 2-3 किमी पैदल चलना और भी लाभकारी होता है।
इतिहास की मान्यता के अनुसार रावण भी इस रात चंद्रमा की किरणों को दर्पण की मदद से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था जिससे उसे यौवन शक्ति की प्राप्ति होती थी।
इस प्रकार, शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, भक्ति और शुद्धता से जुड़ा एक समग्र पर्व है।
एक समय की बात है, एक नगर में एक साहूकार की दो बेटियाँ रहती थीं। दोनों ही शरद पूर्णिमा का व्रत करती थीं, लेकिन बड़ी बेटी नियमपूर्वक, श्रद्धा और विधिपूर्वक यह व्रत करती थी, जबकि छोटी बहन इसे अधूरा निभाती थी—ना ठीक से पूजा करती, ना नियमों का पालन।
इस कहानी से स्पष्ट होता है कि जब कोई व्रत श्रद्धा और सही विधि से किया जाए, तभी उसका पूर्ण फल मिलता है। बड़ी बहन ने पूरे नियमों के साथ शरद पूर्णिमा का व्रत (Sharad Purnima Vrat) किया, जिसके परिणामस्वरूप उसे निरोग और दीर्घायु संतान प्राप्त हुई। वहीं, छोटी बहन ने व्रत को अधूरा किया, जिससे उसकी संतानें जन्म के तुरंत बाद ही चल बसीं।
जब उसने ईर्ष्यावश अपनी मृत संतान को बड़ी बहन के पास रखकर उसे दोषी ठहराने का प्रयास किया, तब बड़ी बहन ने स्थिति को समझते हुए संयम और करुणा से काम लिया। उसने न केवल छोटी बहन की गलती को माफ किया, बल्कि उसे पूजा की सही विधि और भावना का मार्ग भी दिखाया।
इसके बाद, जब छोटी बहन ने सच्चे मन से व्रत का पालन करना शुरू किया, तो उसके जीवन में भी सकारात्मक बदलाव आए और उसकी संतानों का जीवन सुरक्षित हो गया। यह कथा हमें यह सिखाती है कि सच्चे मन और पूर्ण आस्था से किया गया कोई भी धार्मिक कार्य निश्चित ही शुभ परिणाम देता है।
शरद पूर्णिमा 2025 (Sharad Purnima 2025) सिर्फ एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि यह स्वास्थ्य लाभ, आध्यात्मिक जागरूकता और सांस्कृतिक विरासत से जुड़ा एक खास पर्व है, जिसे पूरे उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस दिन चंद्रमा की सोलह कलाओं का प्रभाव, खीर की औषधीय मान्यता और रात्रि जागरण की परंपरा इसे अन्य पूर्णिमाओं से विशिष्ट बनाती है। चाहे वह माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने की कामना हो, श्रीकृष्ण के रास लीला की स्मृति हो या चंद्रमा की शीतल रश्मियों से स्वास्थ्य लाभ की आशा—हर पक्ष इस दिन को विशेष बनाता है। शरद पूर्णिमा हमें प्रेम, पवित्रता, संयम और प्रकृति के साथ सामंजस्य का संदेश देती है।
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