November 19, 2024 Blog

Pongal Festival 2025: जानिए क्या है 4 दिवसीय पोंगल पर्व का महत्व और इतिहास

BY : STARZSPEAK

Pongal Festival 2025: भारत विविध परंपराओं, संस्कृतियों और धर्मों का देश है, जिसे त्योहारों की भूमि के रूप में जाना जाता है। यहां विभिन्न जातियों और धर्मों के लोग आपसी सामंजस्य और सौहार्द के साथ रहते हैं, जिसके चलते साल भर अनेक त्योहार मनाए जाते हैं। इनमें दिवाली, होली, ईद, क्रिसमस और नवरात्रि जैसे बड़े त्योहार शामिल हैं। इन्हीं में से एक प्रमुख त्योहार है *पोंगल*, जिसे दक्षिण भारत में बड़ी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है।  
पोंगल का त्योहार इतना खास है कि इसके बारे में अक्सर विद्यालयों में भी चर्चा होती है। इस लेख में हम *पोंगल* से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जानकारियां साझा करेंगे। आप पोंगल के इतिहास, इसके महत्व और इससे जुड़ी परंपराओं को विस्तार से जान पाएंगे। आइए, पोंगल के इस अद्भुत त्योहार को करीब से समझें।


पोंगल का पर्व कब और क्यों मनाया जाता है? (When And Why to Celebrate Pongal Festival?)


पोंगल (Pongal 2025) तमिल हिंदुओं का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे हर साल 14 या 15 जनवरी को मनाते है। यह त्योहार समृद्धि, कृषि, पालतू पशुओं, वर्षा और धूप के प्रति आभार प्रकट करने के लिए मनाया जाता है। यह त्योहार उत्तर भारत में “मकर संक्रांति”, पंजाब में “लोहड़ी” की तरह, और दक्षिण भारत मे विशेष रूप से तमिलनाडु में,  पोंगल की तरह मनाया जाता है।  पोंगल किसानों का मुख्य त्योहार है।
यह चार दिनों तक चलने वाला उत्सव मकर संक्रांति के समय मनाया जाता है। मुख्य त्योहार “पौष माह” के दौरान पड़ता है, जब सूर्य *उत्तरायण* में प्रवेश करता है, जो शुभ समय माना जाता है। पोंगल का विशेष महत्व किसानों और उनके श्रम के प्रति सम्मान व्यक्त करने में निहित है।  


पोंगल का अर्थ और परंपराएं (Meaning and Traditions of Pongal) 


तमिल भाषा में *पोंगल* का अर्थ "उबालना" या "समृद्धि" है। इस दिन चावल और गुड़ को उबालकर सूर्य देव को अर्पित किया जाता है, और इसी प्रसाद को *पोंगल* कहा जाता है। इसे नए साल में बुरी आदतों को त्यागने और अच्छी चीजों को अपनाने का समय भी माना जाता है। त्योहार की शुरुआत की रात, जिसे *भोगी* कहा जाता है, लोग पुरानी और अनुपयोगी चीजों को त्यागते हैं। यह *दिवाली* की तरह प्रतीकात्मक रूप से एक नई शुरुआत करने का समय है। 
पोंगल त्योहार (Pongal Festival) कृषि, समृद्धि और नई फसल के स्वागत का उत्सव है, जिसमें परिवार और समाज मिलकर इसे उल्लासपूर्वक मनाते हैं। इस पर्व के दौरान वर्षा, धूप और कृषि से जुड़ी चीजों की पूजा की जाती है। अब आइए जानते हैं इस खास पर्व का इतिहास और इसकी परंपराओं के बारे में।


पोंगल क्यों मनाया जाता है? (Why Is Pongal Celebrated?) 

दक्षिण भारत में धान की कटाई के बाद खुशी का इजहार करने और भगवान का आभार प्रकट करने के लिए पोंगल का त्योहार मनाया जाता है। यह पर्व कृषि, वर्षा, सूर्य, और पालतू पशुओं की पूजा का प्रतीक है, क्योंकि ये सभी समृद्धि का आधार माने जाते हैं। इस दिन विशेष तौर पर खीर और मीठे-नमकीन पोंगल जैसे व्यंजन तैयार किए जाते हैं। चावल, दूध, घी, और गुड़ से बने इस प्रसाद को सूर्य देव को अर्पित किया जाता है।  
पोंगल के दौरान (Pongal Dish)  दूध को नए बर्तन में उबालने और गिराने की परंपरा है। इसे शुभ माना जाता है और इसका प्रतीकात्मक अर्थ है कि जैसे दूध का उबलना शुद्धता का संकेत है, वैसे ही इंसान का हृदय संस्कारों से उज्ज्वल और शुद्ध होना चाहिए।  


Pongal Festival 2025


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पोंगल का इतिहास एवं इससे जुडी पौराणिक कथा  (History And The mythological story Of Pongal)


कुछ इतिहासकारों का मानना है कि पोंगल का इतिहास लगभग 1,000 साल पुराना है और इसके पीछे कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं।


शिव और नंदी की कहानी 

पोंगल से जुड़ी एक प्रचलित कथा शिव और नंदी से संबंधित है। मान्यता है कि शिव ने नंदी को मनुष्यों तक यह संदेश पहुंचाने भेजा कि वे रोज तेल से स्नान करें और महीने में केवल एक दिन भोजन करें। नंदी ने उल्टा संदेश दिया कि मनुष्य रोज भोजन करें और महीने में एक दिन स्नान करें। इस गलत संदेश से भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने नंदी को श्राप दिया कि वह पृथ्वी पर ही रहकर खेतों में हल चलाए और इंसानों को भोजन उत्पादन में मदद करे। इस पौराणिक घटना के प्रतीक रूप में लोग फसल कटाई के बाद फसलों और मवेशियों का आभार प्रकट करने के लिए पोंगल का पर्व मनाते हैं। यह त्योहार प्रकृति, कृषि और पालतू जानवरों के प्रति आभार व्यक्त करने की एक सुंदर परंपरा है।


कृष्ण और इंद्रदेव की कहानी

एक अन्य कथा कृष्ण और इंद्रदेव से जुड़ी है। गोवर्धन पर्वत उठाने के बाद, ग्वालों ने अपने गांवों को फिर से बसाया और बैलों की मदद से फसलें उगाईं। इसे कृषि और पालतू जानवरों के प्रति सम्मान के रूप में पोंगल के साथ जोड़ा गया है।  


कोवलन और कण्णगी की कहानी 

ऐसा माना जाता है कि प्राचीन समय में मदुरै में कोवलन (Pongal Kolam) नाम का एक व्यक्ति रहता था। उसकी पत्नी कण्णगी ने उसे अपने पायलों को बेचने के लिए कहा। जब कोवलन पायल बेचने सुनार के पास गया, तो सुनार को शक हुआ कि ये पायल रानी के चोरी हुए पायलों जैसे लगते हैं। उसने यह बात राजा को बताई, और राजा ने बिना किसी जांच-पड़ताल के कोवलन को फांसी की सजा सुना दी। 

अपने पति की इस निष्ठुर मौत से कण्णगी बेहद क्रोधित हो गईं और भगवान शिव की कठोर तपस्या की। उन्होंने भगवान से प्रार्थना की कि दोषी राजा और उसके राज्य का विनाश हो जाए। इस घटना से राज्य की जनता को गहरा दुख हुआ। राज्य की महिलाओं ने किलिल्यार नदी के किनारे मां काली की पूजा की और उनसे प्रार्थना की कि वे कण्णगी के दिल में दया का भाव पैदा करें ताकि राजा और राज्य की रक्षा हो सके। महिलाओं की आराधना से प्रसन्न होकर मां काली ने कण्णगी के भीतर दया भाव जागृत किया और राज्य को विनाश से बचा लिया। 

तभी से पोंगल के अंतिम दिन को "कन्या पोंगल" या "कन्नम पोंगल" (Traditional Pongal Kolam)  के रूप में मनाया जाता है, और काली मंदिर में इस दिन बड़े ही हर्षोल्लास के साथ पूजा-अर्चना की जाती है।



पोंगल के चार दिन और उनका महत्व (The Four Days Of Pongal And Their Significance)


पोंगल चार दिन का उत्सव है, और हर दिन का अलग महत्व है:  


1. भोगी पोंगल (पहला दिन)

पहले दिन भगवान इंद्र की पूजा की जाती है, जो वर्षा और समृद्धि के देवता हैं। इस दिन पुराने सामान को जलाने की परंपरा है, जो नई शुरुआत का प्रतीक है।  

2. सूर्य पोंगल (दूसरा दिन)

दूसरा दिन मुख्य पर्व होता है, जब सूर्य देव को खीर और पोंगल का प्रसाद चढ़ाया जाता है। यह दिन फसल की उपज और सूर्य देव की कृपा के प्रति आभार प्रकट करने के लिए समर्पित है।  


3. मट्टू पोंगल (तीसरा दिन)

तीसरे दिन जानवरों की पूजा होती है, जिन्हें खेती में सहायक माना जाता है। खासकर गाय और बैल को सजाया जाता है और उनका सम्मान किया जाता है। इस दिन प्रसिद्ध बैल दौड़, जिसे जल्लीकट्टू कहते हैं, का आयोजन किया जाता है।  


4. कन्नुम पोंगल (चौथा दिन)

पोंगल (Pongal 2025) का आखिरी दिन रिश्तों और समाज के प्रति समर्पित है। घरों को रंगोली और फूलों से सजाया जाता है। लोग एक-दूसरे से मिलकर शुभकामनाएं देते हैं और सुख-समृद्धि की प्रार्थना करते हैं।  


पोंगल (Pongal Festival )न केवल एक त्योहार है, बल्कि यह कृषि, संस्कृति, और प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखने की परंपरा का प्रतीक है।


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