November 18, 2024 Blog

Lohri 2025: 13 जनवरी को ही क्यों मनाते है लोहड़ी एवं क्या है इसका महत्व ?

BY : STARZSPEAK

Lohri 2025: लोहड़ी, मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाने वाला खास पंजाबी त्योहार है। इस दिन लोग लकड़ी और घास की ढेर जलाकर उसके चारों ओर घूमते हैं और उसमें मक्का, मूंगफली, रेवड़ी जैसे स्वादिष्ट पदार्थ अर्पित करते हैं। यह दिन खुशियों और समृद्धि के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है, जहां लोग एक-दूसरे को मिठाइयां भेजते हैं, शुभकामनाएं देते हैं और बुजुर्गों का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस साल मकर संक्रांति 14 जनवरी को है, और लोहड़ी 13 जनवरी को मनाई जाएगी (Lohri 2025)। खास बात यह है कि भारत में हर पर्व अलग-अलग तारीखों पर मनाए जाते हैं, जैसे दिवाली और होली, जिनकी तारीख हर साल बदलती रहती है। लेकिन लोहड़ी हमेशा 13 जनवरी को ही मनाई जाती है। इसके पीछे कुछ खास कारण हैं, जिन्हें जानना दिलचस्प हो सकता है।


क्यों मनाते है 13 जनवरी को लोहरी का पर्व (Why We Celebrate Lohri?)


लोहड़ी (Lohri 2025) का पर्व न केवल उत्तर भारत बल्कि पूरे देश में बड़े उत्साह और धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस त्योहार को अलग-अलग क्षेत्रों में विभिन्न नामों से पुकारा जाता है। पंजाब के कुछ हिस्सों में इसे "लोई" कहा जाता है, तो कहीं इसे "लोह" या "तिलोड़ी" के नाम से भी जाना जाता है।  
यह त्योहार फसल की बुआई और कटाई से जुड़ा है, जो हर साल पौष और माघ के बीच की ठिठुरती ठंड में, 13 जनवरी को मनाया जाता है। इसे कृषि चक्र का प्रतीक माना जाता है, और लोहड़ी के ठीक अगले दिन नए साल की पहली सुबह का स्वागत किया जाता है। इस दिन किसान अपनी फसलों की पूजा करते हैं और गन्ने की फसल काटने की परंपरा निभाते हैं।  
कहा जाता है कि लोहड़ी की रात साल की सबसे लंबी और ठंडी रात होती है। इसी के चलते शाम के समय खुली जगहों पर अलाव जलाने की परंपरा है। इस अलाव में मूंगफली, रेवड़ी, गजक, तिल, और रबी की फसल के अन्य हिस्से अर्पित किए जाते हैं। इसके बाद लोग अलाव की परिक्रमा करते हैं और इस पावन अवसर का आनंद लेते हैं।
लोहड़ी (Lohri 2025) का त्योहार हर साल 13 जनवरी को बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है, क्योंकि यह रबी की फसल की कटाई का समय होता है। इस दिन किसान अपनी मेहनत का फल मिलने की खुशी में उत्सव मनाते हैं और परिवार व दोस्तों के साथ इस पर्व का आनंद लेते हैं।  
हालांकि, साल 2025 में सूर्य देव 14 जनवरी को मकर राशि में प्रवेश करेंगे, जिसकी वजह से मकर संक्रांति का पर्व 14 जनवरी को मनाया जाएगा। इसी खगोलीय बदलाव के चलते लोहड़ी (Lohri Date 2025) का उत्सव भी इस बार 13 जनवरी को मनाया जाएगा। 


लोहड़ी से जुडी पौराणिक कथा (Mythological Story Related To Lohri) 


लोहड़ी (Lohri) से जुड़ी कई दिलचस्प कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से एक भगवान कृष्ण से संबंधित है। एक कहानी के अनुसार, कंस ने भगवान कृष्ण को मारने के लिए एक राक्षसी, लोहित, को नंदगांव भेजा था। उस समय लोग मकर संक्रांति की तैयारियों में व्यस्त थे। जब लोहिता कृष्ण को मारने के लिए वहां पहुंची, तो भगवान ने उसे नष्ट कर दिया। इस घटना के कारण मकर संक्रांति से एक दिन पहले लोहड़ी का पर्व मनाने की परंपरा शुरू हुई।


Happy Lohri


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लोहड़ी पर्व का महत्व (Importance Of Lohri Festival) 


भारत के अन्नदाता पंजाब राज्य में गेहूँ की प्रमुख फ़सल सर्दियों के मौसम में उगाई जाती है। यह फ़सल अक्टूबर में बोई जाती है और मार्च या अप्रैल तक काटी जाती है। जनवरी के महीने में, जब खेतों में सुनहरी फ़सल खड़ी होती है, किसान अपने काम के खत्म होने से पहले लोहड़ी का त्योहार मनाते हैं।
इस समय, जब पृथ्वी सूर्य से सबसे दूर होती है, वह सूर्य की ओर अपनी यात्रा शुरू करती है, जिससे पौष मास समाप्त हो जाता है और माघ का महीना शुरू होता है। यह समय उत्तरायण की शुभ बेला की शुरुआत का प्रतीक है। भगवद गीता के अनुसार, इस समय भगवान कृष्ण अपनी पूरी शक्ति के साथ प्रकट होते हैं। हिंदू धर्म में इस अवधि में गंगा स्नान कर पापों से मुक्ति पाने की परंपरा भी है।


अलाव अनुष्ठान (Bonfire rituals)


शाम के समय, जब खेतों की कटाई हो जाती है, तो घरों के आंगन में बड़े अलाव जलाए जाते हैं। लोग आग की लपटों के चारों ओर एकत्रित होते हैं, उनके चारों ओर घूमते हैं, मुरमुरे, नमकीन, और पॉपकॉर्न आग में डालते हैं और लोकगीत गाते हैं। वे अग्नि देवता से प्रार्थना करते हैं कि वह धरती को समृद्धि और प्रचुरता से पवित्र करें। इस अनुष्ठान में 5 मुख्य चीजें प्रसाद के रूप में वितरित की जाती हैं: गजक, तिल, गुड़, पॉपकॉर्न, और मूंगफली।


लोहड़ी गीत और इसका महत्व (Lohri Songs And Its Significance) 


लोहड़ी पर्व (Lohri Festival)में गीतों का अहम स्थान है, जो लोगों में नई ऊर्जा और खुशी की लहर लाते हैं। गीतों के साथ नृत्य भी इस पर्व का एक अभिन्न हिस्सा है, जिससे यह और भी जीवंत हो उठता है। इन सांस्कृतिक लोक गीतों में आम तौर पर खुशहाल फ़सलों और समृद्धि का वर्णन किया जाता है। साथ ही, इन गीतों के जरिए पंजाबी योद्धा दुल्ला भट्टी को भी श्रद्धांजलि दी जाती है। लोग आग के चारों ओर ढ़ोल की थाप पर गिद्दा और भांगड़ा करते हुए इस पर्व का उल्लास मनाते हैं।


दुल्ला भट्टी:

लोहड़ी पर्व (Lohri Festival) को कई वर्षों से दुल्ला भट्टी से जोड़ा जाता है, और लोहड़ी के कई गीतों में उनका नाम लिया जाता है। कहा जाता है कि मुग़ल सम्राट अकबर के समय में दुल्ला भट्टी नामक एक लुटेरा पंजाब में सक्रिय था। वह केवल अमीरों को लूटता नहीं था, बल्कि वह उन गरीब पंजाबी लड़कियों को भी बचाता था, जो जबरदस्ती बाजार में बेची जाती थीं। इस वजह से उसे पंजाब का "रॉबिन हुड" भी कहा जाता है।



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