Makar Sankranti 2025: मकर संक्रांति का पर्व सनातन धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जो साल की शुरुआत में होने वाले महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। इस पर्व का खगोलीय महत्व भी है क्योंकि मकर संक्रांति उस तिथि को चिन्हित करती है जब सूर्य देव अपनी राशि बदलते हुए धनु से मकर में प्रवेश करते हैं। इस अवसर पर सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं, जो मौसम में बदलाव का संकेत होता है और ऋतुओं में परिवर्तन लेकर आता है। मकर संक्रांति भारत में विभिन्न राज्यों में कई नामों और अलग अलग रीति रिवाजो के अनुसार के साथ मनाई जाती है।
साल 2025 में मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी को मनाया जाएगा। इस दिन का पुण्यकाल सुबह 9:03 बजे से शाम 5:46 बजे तक रहेगा, जिसमें स्नान, पूजा और दान का विशेष महत्व है। महा पुण्यकाल सुबह 9:03 से 10:48 बजे तक रहेगा, इस समय में गंगा स्नान और सूर्य देवता की उपासना अत्यधिक फलदायी मानी जाती है। इस समय में की गई पूजा-अर्चना, तिल और अन्य सामग्रियों का दान विशेष पुण्य का कार्य माना जाता है।
भारत के प्रत्येक राज्य में मकर संक्रांति (Makar Sankranti) को उत्साह के साथ मनाया जाता है। इसे अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नामों और तरीकों से मनाया जाता है, जैसे पंजाब में इसे लोहड़ी कहा जाता है, असम में बिहू, गुजरात में उत्तरायण और दक्षिण भारत में पोंगल। दक्षिण भारत में यह पर्व विशेष तौर पर चार दिनों तक बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता है, जहाँ हर दिन का अपना महत्व होता है।
गंगा स्नान, सूर्य पूजा और तिल-गुड़ का दान मकर संक्रांति (Makar Sankranti 2025) की खास परंपराओं में शामिल हैं। मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से पापों का नाश होता है और आत्मा को शांति मिलती है। वहीं, गुड़ और तिल का सेवन व दान स्वास्थ्य को लाभ देता है और पारिवारिक जीवन में मिठास लाता है। इस दिन तिल-गुड़ के व्यंजन जैसे तिल के लड्डू, खिचड़ी और चूड़ा-दही बनाकर बांटने की परंपरा है।
यह भी पढ़ें - Shree Ram Chandra Kripalu Lyrics: पढ़े श्री राम स्तुति का सम्पूर्ण पाठ
मकर संक्रांति एक ऐसा पर्व है जो आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी बहुत खास माना जाता है। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि के निवास स्थान जाते हैं, जो मकर और कुंभ राशियों के स्वामी हैं। इसलिए मकर संक्रांति का पर्व पिता-पुत्र के मिलन का प्रतीक भी माना जाता है। इस दिन तीर्थ स्थानों पर पवित्र स्नान का विशेष महत्व होता है।
शास्त्रों में दक्षिणायन को नकारात्मकता और उत्तरायण को सकारात्मकता का प्रतीक बताया गया है। श्रीमद्भगवद गीता के अध्याय 8 में भगवान कृष्ण ने कहा है कि उत्तरायण के छह महीनों में देह त्यागने से व्यक्ति को ब्रह्म गति प्राप्त होती है, जबकि दक्षिणायन के छह महीनों में देह त्याग करने वाले को पुनः जन्म-मृत्यु के चक्र में प्रवेश करना पड़ता है।
मान्यता है कि इस दिन कोई भी शुभ कार्य जैसे गृह प्रवेश, विवाह और नई शुरुआत करने से विशेष लाभ होता है।
मकर संक्रांति के दिन आकाश रंग-बिरंगी पतंगों से सज जाता है, और कई स्थानों पर विशेष पतंग महोत्सव भी मनाए जाते हैं। इस पर्व पर अग्नि के चारों ओर लोक गीतों पर नृत्य करने की परंपरा है, जिसे आंध्र प्रदेश में "भोगी," पंजाब में "लोहड़ी" और असम में "मेजी" के नाम से जाना जाता है। मकर संक्रांति के अवसर पर धान और गन्ने जैसी फसलों की कटाई का समय भी होता है, जो अच्छी फसल का प्रतीक है।
इस दिन गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी जैसी पवित्र नदियों में स्नान को शुभ माना जाता है, और मान्यता है कि इस स्नान से पूर्व जन्मों के पापों का नाश होता है। लोग इस दिन ज्ञान और समृद्धि के लिए भगवान सूर्य की आराधना करते हैं। संक्रांति पर "कुंभ मेला," "गंगासागर मेला," और "मकर मेला" जैसे प्रसिद्ध मेले भी होते है।
मकर संक्रांति (Makar Sankranti 2025) का पर्व सामान्यतः 14 जनवरी को मनाया जाता है। इस दिन पौष माह में सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है, जिसे दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर उसका परिवर्तन भी माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है, तो इसे संक्रांति कहा जाता है। जनवरी में आमतौर पर 14 तारीख को सूर्य का धनु से मकर राशि में प्रवेश होता है, इसलिए इस दिन मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है।
ज्यादातर हिंदू त्योहार चंद्र आधारित पंचांग पर आधारित होते हैं, लेकिन मकर संक्रांति को सूर्य पर आधारित पंचांग से तय किया जाता है। यह दिन ऋतु परिवर्तन का भी संकेत देता है। शीत ऋतु का प्रभाव कम होने लगता है और धीरे-धीरे बसंत ऋतु का आगमन होने लगता है। इसके साथ ही, दिन बड़े होने और रातें छोटी होने लगती हैं, जिससे प्रकृति में भी बदलाव महसूस किया जा सकता है।
यह भी पढ़ें - Cats Eye Stone: क्या है इस रत्न को धारण करने के लाभ और पहचान का तरीका?