अनंत चतुर्दशी हिन्दू संस्कृति में बहुत महत्त्व रखती है, इसे हम लोग अनत चौदस भी कहते है। अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु के अनेक रूपों की पूजा करते है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाए जाने वाले इस पर्व पर अनंत भगवान की पूजा के बाद बाजू पर अनंत सूत्र बांधने की परंपरा होती है। इस सूत्र में चौदह गांठें होती हैं और यह कपास या रेशम से बना होता है। इसी दिन गणेश विसर्जन भी होता है, जिससे इस पर्व का महत्व और भी बढ़ जाता है। भारत के विभिन्न राज्यों में यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है, और कई स्थानों पर धार्मिक झांकियां भी निकाली जाती हैं।
पंचांग के अनुसार, शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि 16 सितंबर को दोपहर 3 बजकर 4 मिनट से शुरू होकर 17 सितंबर की सुबह 11 बजकर 44 मिनट पर समाप्त होगी। उदया तिथि के आधार पर, अनंत चतुर्दशी का पर्व 17 सितंबर को मनाया जाएगा।
व्रत पूजा का शुभ समय सुबह 6:11 मिनट से 12:04 मिनट तक होगा। इस दिन शुभ 6:07 मिनट से लेकर 1:51 मिनट तक रवि योग का निर्माण होगा, जो बेहद शुभ माना जाता है। इस योग में पूजा करने से अधिक फल की प्राप्ति होती है।
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सनातन धर्म में अनंत चतुर्दशी का खास महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु, माता यमुना, और शेष नाग की पूजा की जाती है। भक्त अपने हाथ में अनंत सूत्र बांधते हैं और व्रत रखते हैं। यह दिन विद्यार्थियों के लिए विशेष है, क्योंकि इस दिन से अध्ययन आरंभ करने पर उन्हें अनंत ज्ञान और सफलता प्राप्त होती है। अधिक धन कमाने की इच्छा करने वाले व्यक्तियों को इस दिन अत्यधिक लाभ प्राप्त होता है।
अनंत चतुर्दशी व्रत कथा (Anant Chaturdasi Vrat Katha)
महाभारत के अनुसार, पांडवों को जुए में सब कुछ हारने के बाद 12 वर्ष का वनवास मिला। एक दिन भगवान श्रीकृष्ण उनसे मिलने आए। युधिष्ठिर ने भगवान से पूछा, "हे नारायण! हमें इतने कष्ट क्यों सहने पड़ रहे हैं और इन्हें कैसे दूर किया जा सकता है?" तब श्रीकृष्ण ने कहा, "धर्मराज, तुम भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनंत भगवान की पूजा करो। इससे तुम्हारे सभी दुःख दूर होंगे और तुम्हें अपना राज्य वापस मिलेगा।"
इसके पश्चात भगवान श्री कृष्ण ने पांडवो को इस व्रत की कथा सुनाई :
प्राचीन काल में सुमंत नामक एक ब्राह्मण थे, जिनकी पत्नी का नाम दीक्षा था। उनकी एक अत्यंत सुंदर पुत्री थी, जिसका नाम सुशीला था। कुछ समय बाद, दीक्षा का देहांत हो गया, जिससे सुशीला बहुत दुखी रहने लगी। पत्नी की मृत्यु के बाद, सुमंत ने दूसरी शादी कर्कशा नामक एक महिला से की, ताकि वह सुशीला की देखभाल कर सके। लेकिन कर्कशा का व्यवहार अत्यंत कठोर था; वह सुशीला से दिनभर काम करवाती और खुद आराम करती। यह देखकर सुमंत बहुत दुखी रहते थे।
जब सुशीला विवाह योग्य हुई, तो सुमंत ने उसका विवाह कौंडिन्य नामक ऋषि से कर दिया। विवाह के समय, सुमंत ने बेटी और दामाद को कपड़े में ईंट और पत्थर के टुकड़े बांधकर उपहार स्वरूप दिए, जिसे देखकर कौंडिन्य ऋषि आहत हुए, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा और अपनी पत्नी सुशीला के साथ आश्रम की ओर चल पड़े। रास्ते में रात हो जाने पर, वे एक नदी के किनारे विश्राम के लिए रुक गए। कौंडिन्य ऋषि संध्या उपासना में लीन हो गए, तभी सुशीला ने देखा कि कई औरते वहां किसी भगवान कि पूजा कर रही है तो सुशीला ने उनसे इस व्रत कि पूजा विधि और महत्व के बारे में पूछा।
सुशीला ने उस व्रत के बारे में जान कर उसी समय अनंत चतुर्दशी व्रत करने का फैसला किया। विधिवत पूजा के करने बाद हाथ में पूजा का डोरा बांधकर अपने पति के पास लौट गयी। ऋषि ने हाथ में पूजा का डोरा देखकर उसके बारे में पूछा और बहुत क्रोधित भी हुए फिर उस डोरे को अग्नि में फेंक दिया।
इस अपमान से भगवान अनंत नाराज हो गए, और ऋषि की सारी संपत्ति चली गई। जब कौंडिन्य ऋषि ने अपनी पत्नी से इसका कारण पूछा, तो उन्होंने बताया कि यह भगवान के कोप का परिणाम है, क्योंकि उन्होंने डोरे को तोड़कर अग्नि में डाल दिया था। ऋषि को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने प्रायश्चित करने का निर्णय लिया।
ऋषि ने प्रायश्चित के लिए वन में भटकते हुए भगवान के दर्शन किए। भगवान ने कहा कि चौदह वर्षों तक अनंत व्रत करने से उनके सभी कष्ट दूर हो जाएंगे।
इसके बाद, कौंडिन्य ऋषि अपने आश्रम लौट आए और नियमित रूप से अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान अनंत की पूजा करने लगे। चौदह वर्ष बाद, उनके सभी कष्ट समाप्त हो गए और वे समृद्ध हो गए।
इस प्रकार, अनंत चतुर्दशी व्रत की विधि और कथा के माध्यम से व्यक्ति जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति कर सकता है।
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