December 13, 2018 Blog

यह है केदारनाथ मंदिर की असली कहानी

BY : Dr. Sandeep Ahuja – Ayurvedic Practitioner & Wellness Writer

Table of Content

By: Amit Khare

अभी हाल ही में रिलीज़ हुयी फिल्म “केदारनाथ” ने जून 2013 में आई केदारनाथ त्रासदी की भयावह यादों को ताजा कर दिया है। भगवान शिव का वह पवित्र स्थल जिसके दर्शन मात्र से ही सारी समस्याओं का हल जो जाता है, जो मनुष्य के लिए मोक्ष का द्वार माना जाता है, वह केदारनाथ 2013 में आई भयानक त्रासदी से अस्त-व्यस्त हो गया था। लगातार तीन दिन हुयी बारिश और बादल भटने की वजह से मन्दाकिनी नदी में ऐसा प्रलय आया जिसने हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दिया। कई लापता हो गये तो कई अपने परिवार से बिछड़ गये।

प्रलय इतना भयंकर था कि लगभग एक महीने तक चले रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद भी कई लोगों का नामोनिशान तक नहीं मिला और आखिरकार उन्हें लापता ही घोषित कर दिया गया।

गौरतलब है कि उसी केदारनाथ त्रासदी में कुछ परिवर्तन करके निर्देशक अभिषेक कपूर ने एक रोमांटिक ड्रामा फिल्म का निर्माण किया है जिसमें फिल्म के नायक को फिल्म की नायिका से प्यार हो जाता है लेकिन नायक के मुस्लिम होने के कारण नायिका के परिवार वाले उन दोनों का रिश्ता स्वीकार नहीं करते जिसके चलते क्रोध में आकर नायिका केदारनाथ में प्रलय आने की प्राथना कर बैठती है। फिल्म में सुशांत सिंह राजपूत के साथ सैफ अली खान की बेटी सारा अली खान ने डेब्यू किया है।

लोगों ने भले ही केदारनाथ पर दर्शायी गयी फिल्म को लव-जिहाद का मुद्दा बनाकर उसकी आलोचना की हो पर बॉक्स ऑफिस पर फिल्म लगातार कमाई कर रही है। फिल्म देखकर आप केदारनाथ में आई त्रासदी का अंदाजा जरूर लगा सकते हैं लेकिन उसके वर्चस्व की जड़ें इतिहास में बहुत अन्दर तक गयी हुयी हैं 



इतिहास से जुड़ा है केदारनाथ का अस्तित्व-


उत्तराखंड का सबसे बड़ा शिव मंदिर हिमालय की केदार नामक चोटी पर बना हुआ है। देश में मौजूद बारह ज्योतिर्लिंगों में सर्वोच्च और चार धामों में से एक केदारनाथ धाम तीन दिशाओं से पहाड़ों से घिरा हुआ है। इसके एक तरफ है 22 हज़ार फुट ऊँचा केदारनाथ, दूसरी तरफ भरतकुंड और तीसरी तरफ है 21 हज़ार 600 फुट ऊँचा खुर्चकुंड। पत्थरों के बड़े-बड़े शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया यह शिव मंदिर लगभग 6 फुट ऊँचे चबूतरे पर बना हुआ है।

मंदिर निर्माण के इतिहास को लेकर आज तक कोई पुख्ता सबूत तो नहीं मिले हैं हालाँकि कुछ इतिहासकारों का यह मानना है कि मालवा के महान राजा भोज द्वारा करवाए गये अनेक मंदिर निर्माणों में से केदारनाथ मंदिर भी एक ऐसा मंदिर है जिसका 10वीं शताब्दी के आस-पास पुनर्निर्माण कराया गया था। कुछ का कहना है कि इसका निर्माण 8वीं शताब्दी में शंकराचार्य द्वारा किया गया था।

पहाड़ों के साथ-साथ केदारनाथ में मन्दाकिनी, सरस्वती, मधुगंगा, क्षीरगंगा और स्वर्णगौरी नामक पाँच नदियों का भी संगम है।

पुराण के अनुसार यह है मंदिर निर्माण की कथा- कथानुसार हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपास्य करते थे। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया।  

एक और कथा कुछ इस प्रकार है कि महाभारत का युद्ध जीतने के बाद पांडवों ने भ्रातहत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए भागवान शिव का आशीर्वाद लेना चाहा। लेकिन भगवान शिव उनसे नाराज होकर केदार में जाकर अंतर्ध्यान में लग गये। पांडव जब उनका पीछा करते हुए केदार पहुंचे तो शिव ने एक भैंसे का रूप धारण कर लिया और बाकी पशुओं में जाकर मिल गये। भीम ने अपना विशाल रूप धारण करके दो पहाड़ों पर जब अपने पैर फैलाए तो अन्य जानवर तो उनके नीचे से निकल गये परन्तु भगवान् शिव को यह रास नहीं आया। भीम जैसे ही शिव-रुपी भैंसे पर झपटे वह भूमि में अंतर्ध्यान होने लगा। भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ के भाग को पकड़ लिया। भगवान् शिव ने उनके समर्पण से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए और उन्हें उनके पाप से मुक्त कर दिया। तब से केदारनाथ में भगवान शंकर को भैंस की पीठ की पिंड के रूप में पूजा जाता है।

दीपवाली पर्व के दूसरे दिन मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं जो कि छः माह तक बंद रहते हैं। छः महीने बाद मई के महीने में कपाट फिर से खुलते हैं और केदारनाथ यात्रा आरम्भ होती है।

Author: Dr. Sandeep Ahuja – Ayurvedic Practitioner & Wellness Writer

Dr. Sandeep Ahuja, an Ayurvedic doctor with 14 years’ experience, blends holistic health, astrology, and Ayurveda, sharing wellness practices that restore mind-body balance and spiritual harmony.