Jagannath Rath Yatra 2025: हर साल आषाढ़ महीने में ओडिशा के पुरी में निकाली जाने वाली भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा एक बेहद खास और भावनाओं से जुड़ा उत्सव होता है। यह परंपरा न केवल श्रद्धालुओं के लिए आस्था का प्रतीक है, बल्कि इसकी भव्यता और भक्ति का माहौल हर किसी को deeply भावुक कर देता है। इस दिव्य अवसर पर देश-दुनिया से लाखों श्रद्धालु भगवान के दर्शन और रथ यात्रा का हिस्सा बनने के लिए जुटते हैं।
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra 2025) भले ही ओडिशा के पुरी में निकाली जाती हो, लेकिन इसकी गूंज पूरे देश में सुनाई देती है। खासकर गुजरात जैसे पश्चिमी राज्यों में भी यह उत्सव बड़ी श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाया जाता है। यह रथ यात्रा दुनिया की सबसे प्राचीन परंपराओं में से एक मानी जाती है। इस दिन भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ मंदिर से निकलकर एक विशेष रथ पर सवार होकर दूसरे मंदिर तक जाते हैं, जिसे उनकी मौसी का घर माना जाता है। इस यात्रा के दौरान लाखों श्रद्धालु भगवान के दर्शन करते हैं और रथ को खींचने का सौभाग्य प्राप्त करते हैं। माना जाता है कि इस रथ यात्रा में भाग लेने या केवल भगवान के दर्शन मात्र से ही व्यक्ति के सारे पाप कट जाते हैं और उसे भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।
यह यात्रा न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भक्तों के लिए एक गहरे भावनात्मक और भक्ति से जुड़ने का अवसर भी होता है। जगन्नाथ रथ यात्रा का उल्लेख कई पौराणिक ग्रंथों में भी मिलता है। आइए इस लेख में जानें जगन्नाथ रथ यात्रा 2025 (Jagannath Puri Rath Yatra 2025) से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां धार्मिक महत्व और उससे जुड़ी रोचक मान्यताओं के बारे में।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, एक बार भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने पुरी नगर घूमने की इच्छा जताई। भगवान जगन्नाथ ने इस पर बहन की इच्छा पूरी करते हुए, उन्हें अपने बड़े भाई बलभद्र के साथ रथ पर बिठाया और नगर भ्रमण कराया। इस यात्रा के दौरान वे अपनी मौसी के घर भी रुके, जहां तीनों ने कुछ दिन विश्राम किया।
तभी से यह परंपरा शुरू हुई, और आज भी हर साल यह भव्य रथ यात्रा बड़ी श्रद्धा और धूमधाम से निकाली जाती है।
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जगन्नाथ रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra 2025) से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं आज भी लोगों की आस्था और धार्मिक विश्वास को गहराई से बनाए रखती हैं। इन कहानियों के पीछे गहरे भाव और संदेश छिपे हैं।
कथा 1: एक कथा के अनुसार, जब कंस ने भगवान कृष्ण और उनके भाई बलराम को मथुरा बुलाने की योजना बनाई, तो उसने अक्रूर को रथ लेकर गोकुल भेजा। इस पर भगवान कृष्ण और बलराम रथ पर सवार होकर मथुरा के लिए निकले। इसी दिन को रथ यात्रा के रूप में मनाया जाता है, जिसे कंस के अंत की शुरुआत माना जाता है।
एक अन्य मान्यता द्वारका से जुड़ी है, जहां भगवान श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण को निकले थे। यह नगर दर्शन आज भी रथ यात्रा (Jagannath Puri Rath Yatra 2025) के रूप में मनाया जाता है।
कथा 2 : एक रोचक कथा यह भी है कि भगवान श्रीकृष्ण की रानियों ने एक बार माता रोहिणी से रास लीला की कथाएं सुनाने का आग्रह किया। माता रोहिणी ने सुभद्रा को ये प्रसंग सुनने से रोका, लेकिन सुभद्रा अपनी जिज्ञासा से कृष्ण और बलराम के साथ वहीं ठहर गईं। उसी समय देवर्षि नारद वहां पहुंचे और जब उन्होंने तीनों भाई-बहनों को एक साथ देखा, तो वे भावुक हो उठे। उन्होंने प्रार्थना की कि ये तीनों सदैव इसी रूप में भक्तों को दर्शन देते रहें। तभी से भगवान जगन्नाथ (Jagannath Rath Yatra 2025), बलराम और सुभद्रा एक साथ विराजमान हैं।
कथा 3: एक अन्य कथा के अनुसार, जब श्रीकृष्ण का देहांत हुआ, तब बलराम इस शोक को सहन नहीं कर पाए और सुभद्रा के साथ समुद्र की ओर चल दिए। उसी समय ओडिशा के राजा इंद्रद्युम्न को स्वप्न आया कि श्रीकृष्ण की अस्थियां समुद्र में तैर रही हैं और उन्हें पुरी में एक मंदिर बनवाकर तीनों की मूर्तियां स्थापित करनी चाहिए। इसके लिए भगवान विश्वकर्मा स्वयं बढ़ई के रूप में आए और मूर्तियां बनाने लगे, लेकिन शर्त थी कि उन्हें कोई न देखे। जब राजा से प्रतीक्षा नहीं हुई और उन्होंने दरवाजा खोल दिया, तो विश्वकर्मा अदृश्य हो गए। परिणामस्वरूप, अधूरी मूर्तियों को ही मंदिर में स्थापित कर दिया गया।
यह परंपरा आज भी जीवित है—हर 12 वर्षों में इन मूर्तियों को बदला जाता है, और नई मूर्तियों को भी अधूरा ही रखा जाता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा में भाग लेने से जीवन के पापों का नाश होता है और रथ को खींचने से शुभ फल व सौभाग्य की प्राप्ति होती है। यह यात्रा भक्तों के लिए एक आध्यात्मिक अनुभव होता है, जिसमें सबसे आगे भगवान बलराम का रथ, बीच में देवी सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ का रथ (Jagannath Puri Rath Yatra) चलता है।
इस यात्रा का एक अनोखा पहलू यह है कि रथ बनाने में किसी भी तरह की कील या धातु का प्रयोग नहीं किया जाता। शास्त्रों में माना गया है कि आध्यात्मिक कार्यों में कील या कांटों का उपयोग अशुभ होता है। भगवान बलराम और देवी सुभद्रा के रथ का रंग लाल होता है, जबकि भगवान जगन्नाथ का रथ आमतौर पर पीले या लाल रंग में सजाया जाता है।
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जगन्नाथ रथ यात्रा को खास बनाता है इसका अद्भुत स्वरूप और इसकी भव्यता। यह दुनिया का इकलौता ऐसा पर्व है, जिसमें भगवान स्वयं मंदिर से बाहर निकलकर भक्तों को दर्शन देने के लिए नगर भ्रमण पर निकलते हैं। यही नहीं, यह यात्रा विश्व की सबसे बड़ी रथ यात्राओं में से एक मानी जाती है, जिसे देखने के लिए हर साल देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु पुरी पहुंचते हैं।
इस यात्रा की एक और खास बात यह है कि आज भी पुरी के राजवंश के राजा, भगवान के रथ के आगे "सोने की झाड़ू" से रास्ता साफ करते हैं – इसे 'छेरा पहरा' कहा जाता है। तीनों देवताओं – भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा – के रथ बहुत ही सुंदर और विशाल होते हैं, जिनमें 18 पहिए होते हैं। इन रथों का निर्माण हर साल यात्रा से पहले केवल 42 दिनों में किया जाता है, और यह काम पीढ़ियों से वही शिल्पकार करते आ रहे हैं, जिनके परिवारों को यह अधिकार विरासत में मिला है।
ऐसी मान्यता है कि जिस दिन रथ यात्रा निकलती है, उस दिन बारिश जरूर होती है – जैसे प्रकृति भी इस उत्सव में शामिल हो जाती है।
रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra 2025) के पहले दिन से ही मंदिर के द्वार लगभग एक सप्ताह के लिए बंद कर दिए जाते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, 108 कलशों से स्नान के पश्चात देवी-देवताओं को ज्वर हो जाता है, और वे विश्राम करते हैं, और उनके आराम के लिए उन्हें मौसी के घर भेजा जाता है – यही रथ यात्रा का मुख्य उद्देश्य भी है।
इस अनोखी परंपरा और आस्था की झलक देखने के लिए न सिर्फ भारत, बल्कि दुनियाभर से श्रद्धालु इस यात्रा में हिस्सा लेने आते हैं।
दो रथ यात्राएं कैसे जुडी हुई है ?
कहा जाता है कि करीब 500 साल पहले गुजरात के संत श्री सारंगदासजी को पुरी में भगवान जगन्नाथ (Jagannath puri rath yatra) ने स्वप्न में दर्शन देकर अहमदाबाद में भी मंदिर और रथ यात्रा शुरू करने का निर्देश दिया। उन्होंने उसी भाव से अहमदाबाद में भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा की मूर्तियाँ स्थापित कीं। बाद में उनके शिष्य नरसिंहदासजी महाराज ने लगभग 142 साल पहले वहां रथ यात्रा की शुरुआत की।
इस तरह पूर्व के पुरी और पश्चिम के अहमदाबाद – दोनों जगह भगवान की यह दिव्य यात्रा भक्तों की आस्था को जोड़ती है।
जगन्नाथ रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra 2025) सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि आस्था, परंपराओं और आध्यात्मिक शक्ति से जुड़ा एक जीवंत और भावनाओं से भरा पर्व है। यह यात्रा भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा के प्रेम, समर्पण और संस्कृति की सुंदर अभिव्यक्ति है, जो न केवल उड़ीसा बल्कि पूरे भारत और विश्व के श्रद्धालुओं को एक सूत्र में बांधती है। रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra 2025) से जुड़ी पौराणिक कथाएं, विशेष परंपराएं और हर वर्ष उमड़ने वाली भक्तों की भीड़ इस आयोजन को अनोखा और प्रेरणादायक बनाती है। यह उत्सव हमें न केवल भक्ति का मार्ग दिखाता है, बल्कि जीवन में विनम्रता, सेवा और परोपकार की भावना भी जाग्रत करता है।
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