जब किसी जातक की कुंडली में गुरु के साथ राहु या केतु किसी भाव में युति करें या दृष्टि सम्बन्ध बनाए तो उसे गुरु चांडाल योग कहा जाता है, गुरु चांडाल योग अशुभ माना जाता है । गुरु को विवेक तथा धार्मिक होने के साथ साथ सात्विक ग्रह माना जाता है जबकि राहु या केतु को अशुभ ग्रह होने से चांडाल की संज्ञा दी जाती है इसलिए इसे गुरु चांडाल योग के नाम से जाना जाता है ।
ऐसा कहा जाता है की इस योग में उत्पन्न होने वाले जातक चरित्र से भ्रष्ट हो सकते है तथा वह अनैतिक कार्य कर सकते है । गुरु के साथ राहु की युति से व्यक्ति भौतिकवादी होता है, वह अपनी इच्छाओं की पूर्ति करने के लिए, धन कमाने के पीछे पागल होता है और कभी कभी वह अपनी इच्छा की पूर्ति करने के लिए कुछ गलत तरीकों का सहारा लेने में भी पीछे नहीं हटता ।
जब कुंडली के किसी भाव में गुरु के साथ केतु की युति हो या दृष्टि सम्बन्ध बन रहा हो तो ऐसा जातक पाखंडी तथा हिंसक हो सकता है, ऐसे लोग अपने आस पास रहने वाले लोगो तथा परिवार को भी परेशानी में डाल सकते है । गुरु सात्विक ग्रह है और राहु और केतु अशुभ होने से ये विपरीत ग्रह है इसीलिए इनका एक साथ होना ज़्यादा अशुभ माना जाता है लेकिन यह हमेशा विपरीत फल नहीं देते । इसका आकलन करने से पहले यह भी देख लेना चाहिए की यह किस राशि या भाव में बन रहा है, जैसे यदि यह योग दशम भाव में बने और किसी अशुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो व्यक्ति व्यवसाय में उँच्चाईयो को छू सकता है । वही यदि इस योग का निर्माण यदि पंचम भाव में हो रहा हो तथा कोई अशुभता ने हो तो व्यक्ति बहुत प्रसिद्धि प्राप्त कर सकता है ।
Dr. Sandeep Ahuja, an Ayurvedic doctor with 14 years’ experience, blends holistic health, astrology, and Ayurveda, sharing wellness practices that restore mind-body balance and spiritual harmony.